आज बजट की बात न करो सखी
टैक्स पर ऐसो दिल टूटो है
कतरा कतरा जोड़े साल भर
प्रणब जुल्मी लूटो है
दियो गांव घर को भर भर लोटा
मुखिया बीडीओ झूमो है
हम तो पावत खावत हैं
जो उगावत है वो बोलत है
कौन लेवत है सुध बुध गांव की
पीतर तक तर गयो प्रणब जी
भर भर झोली मिलै गांव को
फिर काहे को जी रोवत है।
26 comments:
गिरहकटी का परमिट प्रणब पर
ठग है ये अलबेला
शहर से काटी जेबें सबकी
गांव में पैसा पेला
जड़ तोरी और मोरी भैया
आई गांव से दिल्ली
जेब का पैसा जड़ को जावे
तो काहे बनो भीगी बिल्ली
बीडीओ तो बिचौलिया है
पंद्रह फीसद खाए
बजट से उसका क्या बगड़े है
उसका घर भर जाए
इन नेताओं से कहो, बंद करो ये सीख
बहुत कसैली हो गई अब घोषणाओं की ईख
pasand aaya bajat kavitt.
.....S R Pandey
मैं तो कवि नही हूं लेकिन रविश जी के पोस्ट को मधुकर भाइ और आदर्श भाइ ने उन्ही की भाषा में सलामी दी ..बहुत अच्छा लगा ।
सही कहा आपने रविश जी. गाँव के विकास के नाम पर जो करोडों रूपये का आंकडा दिखाया जा रहा है उसका कोई माई-बाप नहीं है. फिर कोई ये देखने वाला नहीं होगा कि उन पैसों से गाँव में रहने वाले लोगों का विकास हो रहा है या फिर उन पैसो को मुखिया-सरपंच-पंचायत सचिव-वीडीओ-और भी न जाने कौन-कौन से लोग डकार गए. पिछले ६ दशकों में गाँव के नाम पर लोग पैसा बनाते गए और खुद का पेट भरते रहे. उसका नमूना हमें आज भी गाँव की टूटी-फूटी सड़कों, बरसात के मौसम में टपकते घरों और शाम होते ही अँधेरे में डूब जाने वाली ग्रामीण दुनिया को देखकर मिल जाता है.
रवीशजी बड़ा दुख हो रहा है... प्रणव दा के बजट के बाद... प्रणव दा के बजट को आम आदमी का बजट कहां जा रहा है लेकिन वास्तव में लगता है बजट पार्टी के हितों को ध्यान मे रखकर ही बनाया गया है...किसानों की आत्महत्या रोकने के लिये उन्हें कर्जे के बोझ से निकलने के लिये और साहूकारों के चंगुल से छुड़ाने के लिये टास्क फोर्स बनेगा...लेकिन केवल महाराष्ट्र में ... क्यों क्या महाराष्ट्र के किसान ही आत्महत्या कर रहे है...लेकिन दादा भी क्या करें महाराषट्र में चुनाव जो है... मुंबई को बाढ़ आपदा राशी बढ़ाकर दो सौ से पांच सौ करोड़ कर दी...पश्चिंम बंगाल को आइला तुफान से पीड़ितों के मुआवजे के लिये पैकेज की घोषणा की ..यहां भी चुनाव है,... लेकिन प्रणव दादा से जिन्हें सबसे ज्यादा मदद की आस थी उन्हें भूल गये..कोसी का कहर झेल चुके बिहार में कोसी अब फिर तांडव बरपाने के लिये तैयार है लेकिन ... बिहार में चुनाव नहीं हैं इसलिये बिहार को कुछ नहीं...वाह रे आम आदमी का बजट ...
aapki talkhi aapki bhasha m utar kar aai hai..........badhi.
बेहतरीन रोना रोया रविश जी मज़ा आ गया। ये बजट जलेबी फीकी है
kai bar kavita ke rup men bhav gahrai se utar kar samne ate hain...bada sarthak likha apne.
फ़िलहाल "शब्द-शिखर" पर आप भी बारिश के मौसम में भुट्टे का आनंद लें !!
wah bhaiya Ravish! niman kavit likha hai aapne.is budget me aam ke bahane 'khas' ki chinta thik se rakhi gaye hai.aap bhi apane thihe par date rahiye,hamaniyoan ke sath rahenge.
SACHIN KUMAR
ना हंस पा रहे है ना रोना आ रहा,
दादा ने ऐसा जादू कर डाला है,
किसी को झुनझुना पकड़ाया,
किसी को थोड़ी राहत दे दी,
वोटरों का शुक्रिया भी खूब किया,
ये प्रणब बाबू है या जादूगर पी सी सरकार,
सेंसेक्स तो हुआ धड़ाम,
लेकिन किसानों के लिए खोला दिल,
नरेगा के लिए भी खोली पोटली,
कुछ न कुछ सबको दे दिया,
इंडिया नहीं भारत पर है ध्यान
क्योंकि भारत है महान।
वाह प्रणब बाबू वाह!
अरे वाह, मजा आ गया। बहुत बहुत बधाई।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
रोना निर्धन का धन है
रोना निर्बल का बल है...
पचास के दशक में आठवीं कक्षा में पढ़ी केवल दो पंक्तियाँ याद आ रही है...कवि का नाम भी याद नहीं...हाँ इतना पता है की प्रणब नाम है परमेश्वर का...कलियुग में कहते हैं नाम की ही महिमा होती है, इसी लिए हिन्दू पुरातन काल से ही अपने बच्चों का नाम भगवान के नाम पर रखते आये हैं जिससे इस बहाने ही भगवान का नाम ले लिया जाये और मोक्ष मिल जाए :)
रेल और आम बजट, कर गए बंटाधार...
दीदी बेपटरी हुईं, दादा पॉकेटमार...
दादा पॉकेटमार, किए हैं बोर सभी को...
बंगाली में दोनों दिए झकझोर सभी को...
दिल्ली से बंगाल तक मचा हुआ है शोर,
बिहार कहे दीदी से, ये दिल मांगे मोर....
Aaj naisadak jo pagdandi tak utri to maja nahi maha maja Aa gya. Ravish zee budget per apki kavita rochak lagi. apke blog ke bare mein suna tha, Hindustan main apko pada bhi hai per comment pahla hai. apki naisadak per chalte hue Apse rishton ki bat phir kabhi. philhal to pagdandi per is sunder purbaiya hawa ke jhoka ke lya Thanks.
Amlendu Asthana
Dainik Bhaskar, Chandigarh
काश आपका चैनल विशेष या ब्लॉग विशेष गांव के किसानों तक पहुंच पाता। लोग भी प्रणब दा की बजट को समझ पाते। और जान पाते की वो भी अब 6 रुपये सैकड़ा पर ब्याज ले सकते हैं। वो भी महीना नहीं बल्कि साल का। लेकिन दुर्भाग्य वो सब गांव में मुखिया से नीचे तक नहीं पहुंच पाएगा। मुखिया जी लोगों के पास तक अखबार पहुंचने लगा है। तीन रुपए चावल गेंहू देने की खबर तो डीलरवे दबा देगा।
raveesh ji aapke bjat kaviit ka yah andaaj bahut bhaya.............
raveesh ji aapke bjat kaviit ka yah andaaj bahut bhaya.............
गाँवों में अब हो रहा पूँजी का हुड दंग
सारे हिल-मिल लूटते करदाता है तंग....
Aap achcha likh lete hain.
regards,
pragya
wah dada ka toh baaja hi baj gaya
wah dada ka toh baaja hi baj gaya
wah dada ka toh baaja hi baj gaya
wah dada ka toh baaja hi baj gaya
wah dada ka toh baaja hi baj gaya
'दादा का बाजा' से प्रणब यानि नादबिन्दू के ब्रह्मनाद का संकेत मिला जो उन्होंने अनंत सृष्टि की रचना के उद्देश्य से आरंभ में बजाया था :)
यदि किसी कारण से सृष्टिकर्ता अपने गंतव्य पर पहुँच अपनी रचना का आनंद रील उलटी चला कर ले रहा हो तो कठिन है 'आम आदमी' का सत्य को समझ पाना, और समझ पाना कि वो स्वयं चोटी पर पहुंच क्या खोज रहा है - जैसे शायद खोज रहा हो कि वो कभी किस निम्न स्तर तक मूर्ख था, अथवा अपनी माँ को खोज रहा हो जिसको उसने कभी देखा ही नहीं :)
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