प्रेम के वे दो पल
जिनमें हमने सदियां गुज़ारी थीं
भग्नावशेषों के नीचे दबी ईंटों के बीच
हमारे ही वे दो पल थे
जो बचे रह गए इतिहासकारों के लिए
उन्हीं दो पलों में हमने बनाई थी एक इमारत
खिड़कियां और दरवाज़े लगाए गए
आंगन में मिली आसमान को झांकने की जगह
आहटों को छुपा लेने के लिए दीवारें खड़ी की गईं
सरगोशियों से छन कर पहुंचती रही हमारी धड़कनें
जिनसे जलते रहे तमाम वे पल
जो बिना प्रेम के गुज़रते रहे और गुम हो गए
इतिहासकारों को नहीं मिले जिनके निशान
जो भग्नावशेषों के बाहर हवाओं में घुल मिल गए
हमने बचा लिया अपने उन दो पलों को
अपने सपनों में,कविताओं में,शब्दों में,सांसों में
वो लिखती रही इंसानों के धड़कते दिलों की दास्तान
मैं लिखता रहा बनती मिटती सल्तनतों के फरमान
हुकूमतें फनां हो गईं,ज़मींदोज़ हो गए किले
हमारा मकान कैसे बचा रहा गया
शायद प्रेम के वे दो पलों पर टिका रह गया
हमारे बाद के पलों में बचे रहने के लिए
प्रेम का इतिहास लिखने के लिए
14 comments:
प्रेम ही सत्य है और सत्य शाश्वत है।
'हर सताया हुआ शायर होता है'
यह प्रेम-व्रेम केवल मिथ्या है
आदमी को पृथ्वी से जोड़ने के लिए
जो खुद मिथ्या है
यह ऐसा ही है जैसे एक रेत का महल
जो अगले ही ज्वार-भाटे में मिट जाता है...
आदमी कि जड़ें आकाश में हैं
यहाँ केवल 'फल' की खोज में आया है
और अपने को स्थायी मान बैठता है
जैसे जीना हो वर्षों...
स्तरीय रचना। प्रेम के वो दो पल ही समाधि हैं।
रविशजी मंदिर पर अनुसन्धान कर रहे हैं. किसी दिन निराकार ब्रह्म पर करेंगे तो संभव है पाएंगे कि वो शुन्य काल और स्थान से सम्बंधित है. उसकी मजबूरी है कि वो जो बनाता है वो शुन्य काल में ही बनाता है जो शुन्य काल में टूट भी जाता है! फिर वो कैसे देखे उसने क्या बनाया? इसे समझने के लिए उसकी 'माया' को आपका ही धंधा नमूने का काम कर सकता है...
क्रिकेट के मैच में १५० किलोमीटर प्रति घंटे की गेंद जब धोनी जैसा कोई खिलाडी धुन देता है तो उसको प्रेम पूर्वक देख और आनंद उठाने के लिए आप क्या करते हैं?
acha raha!
badhiya kavita.....aap yuva hote jaa rahe hain....
bahut sundar....
बेहद सुन्दर .......
सर बहुत खूब..लेकिन ये बताईये कि ये स्वरचित है या साभार!
हमारा मकान कैसे बचा रहा गया
शायद प्रेम के वे दो पलों पर टिका रह गया
हमारे बाद के पलों में बचे रहने के लिए
प्रेम का इतिहास लिखने के लिए
बहुत बढ़िया कविता रवीश जी ....दुनिया में सिर्फ प्रेम ही है जो शायद हर स्थिति को सम्हाल लेता है.......
हेमंत कुमार
स्वरचित है झा जी।
''पुनरपि जननं पुनरपि मरणं पुनरपि जननी जठरे शयनं /
भज गोविन्दम भज गोविन्दम भज गोविन्दम मन मूढमते"
एम.एस. सुबुलक्ष्मी का गाया शंकराचार्य का ये भजन आपने याद दिला दिया . शुक्रिया.
"prem" pe bahut kuchh likha gaya hai, aapne likha hamara makan hi baki rah jayega, prem ke un do palon ke aadhar par.
Sir ji sachchi kaho to mai wait kar raha hoo kab aap hindi filmo ke liye geet likhenge. Aru o bhi aapke apne type ki.
thanks.
रवीश जी नमस्कार, मैं आपका प्रोग्राम रोज एनडीटीवी इंडिया पर देखता हूं. मैं आप तक एक बात पहुंचाना चाहता था. वो ये कि मीडिया ज्यादातर उन्ही लोगों को कवरेज देता है जो कि बड़ी पार्टीयों से उम्मीद्वार होते हैं अब चाहे ये कवरेज उनकी बुराई दिखाने के नाम पर ही क्यों ना हो. मुझे लगता है कि हर चुनाव क्षेत्र से कुछ निर्दलीय ईमानदार और कम पैसे वाले उम्मीद्वार भी खड़े होते हैं. अगर मीडिया उन्हे भी टेलीविजन पर लायेगा. उनसे सवाल जवाब करेगा. तो वो भी चुनाव जीत सकेंगे. जब ऐसा होगा तभी हम देश की तस्वीर बदलते हुये देख सकेंगे.
इसके अलावा एक और बात, मेरे चाचा मेडिकल स्टोर चलाते हैं उनका कहना है कि जो दवायें बाबा रामदेव के नाम पर आती हैं उनके रेट अन्य आयुर्वेदिक दवाओं से काफ़ी ज्यादा होते हैं. इसके संबंध में थोड़ी छानबीन करके बाबा जी से सवाल पूछिये तो बहुत अच्छा रहेगा.
मेरा संपर्क: ankur_gupta555(at)yahoo.com
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