1.
दुनिया की सारी बेवफाओं से आबाद है मेरी शायरी
रोते हुए आशिकों ने सींचा है मेरी नज़्मों का बागीचा
2.
सितारों को झिलमिलाने की ज़रूरत नहीं
मेरे चांद को इतराने की ज़रूरत नहीं
दूर से ही तुम लगती हो बहुत अच्छी
मेरे घर आकर इतराने की ज़रूरत नहीं
३.
इस बरस मोहब्बत से कर ली है तौबा
बाज़ार में मंदी है,दुकानदार से है तौबा
आंखों से होंगी बातें,मोबाइल से है तौबा
काल वेटिंग भी महंगी है,अल्फाज़ से है तौबा
चंद घड़ी मोहब्बत की है,दिलदार से है तौबा
४.
तुम को इस बरस नहीं ले जाऊंगा किसी फाइव स्टार में
शेयर बाज़ार में डूबे पैसे से, उधार की मोहब्बत नहीं होती
५.
इस चुनाव में जानम,तुम पिछले शिकवे छोड़ दो
टूटे दिल के किस्से हैं, तुम मोहब्बत छोड़ दो
मैं तो हूं ही बेवफा, तुम भी वफाई छोड़ दो
इस चुनाव में जानम, तुम रुसवाई छोड़ दो
६.
सारे अधूरे लिखे खत, अब भी वही पड़े हैं
पूरा करते हैं गुलज़ार, कब से वहीं खड़े हैं
हमारे टूटे दिलों के किस्से हैं, अब भी टूटे पड़े हैं
जोड़ते रहते हैं गुलज़ार, तब से वहीं खड़े हैं
७.
जब कोई पूछता है तुम्हारा नाम, मैं किसी और का बता देता हूं
जब भी कोई लेता है तुम्हारा नाम,मैं कहीं और देखने लगता हूं
9 comments:
दूर से ही तुम लगती हो बहुत अच्छी
मेरे घर आकर इतराने की ज़रूरत नहीं
ये दो लाइने मेरे बहुत काम की हैं....उसको जरुर सुनाउंगा....बहुत परेशान करती है घर आकर....
आंखों से होंगी बातें,मोबाइल से है तौबा
बहुत मजेदार
तुम को इस बरस नहीं ले जाऊंगा किसी फाइव स्टार में
शेयर बाज़ार में डूबे पैसे से, उधार की मोहब्बत नहीं होती
बहुत खूब।
मंदी का है दौर आपने क्या खींचा है चित्र।
कैसे प्यार उधार में होवे बातें बड़ी विचित्र।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
अच्छी है
मंद-मंद मुस्काती
मंदी की चर्चा
हर कोई सोचता है
कैसे हो कम खर्चा
खर्चे का चर्चा
या चर्चे में खर्चा
badhiya ! sundar !!
बहुत सस्ती शायरी की है ज़नाब। पुरानी कतरने भाभी जी ने ढूंढकर फिर इस सिलसिले को शुरू कर दिया है। और सच कहूं तो वाकई में सस्ती है। मज़ा नहीं आता। कोई तो कंप्लीट लिख के डाल दिया करो। हम तो मनोरंजन के लिए आपके ठौर पर आते हैं और यहां सस्ती शायरी झेलने को मजबूर कर देते हैं आप।
मंदी ने तोडा येसा मेरा दिल, क्योकि बड़ी महँगी है इस प्यार की बिल/
आज फिर याद आया गुजरा ज़माना, रेस्टोरेंट छोड़कर पेड़ के निचे गाना गाना/
मैंने सोचा न था की मंदी का येसा राज है/
पैसो के बगैर मेरा दिल भी खाली आज है/
अच्छी पेशकश है आपकी/ एक सराहनीय शायरी को अंजाम दिया है आपने/
यह सस्ती शायरी नहीं है। यह तो मौके की मौजूँ है।
सितारों को झिलमिलाने की ज़रूरत नहीं
मेरे चांद को इतराने की ज़रूरत नहीं
दूर से ही तुम लगती हो बहुत अच्छी
मेरे घर आकर इतराने की ज़रूरत नहीं
...aap shaayr to nahi ...
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