जूता, कांग्रेस और अपराध बोध

प्रभात शुंगलू

नेता और जूता। क्या नेताओं को जूते की भाषा में तौला जायेगा। जो जरनैल ने किया वो कतई अशोभनीय था। पत्रकार की पहचान जूता नहीं कलम है। जरनैल अपने इमोशन पर काबू नहीं ऱख पाये इस पर उन्होने खेद भी जताया।

जरनैल का ये जूता चिदंबरम को भले न लगा हो मगर जनता भांप गयी जूता किस पर फेंका गया था। जूता चिदंबरम पर नहीं कांग्रेस की उस राजनीतिक सोच पर फेंका गया था जिसके तहत वो कुछ ऐसे लोगों को पाल पोस रही थी जिनपर 25 साल पहले दिल्ली में सिखों के खिलाफ दंगे भड़काने का आरोप लगा। 1984 के अक्टूबर नवंबर के उन चार दिनों में दिल्ली की सड़कों पर 3000 से ज्यादा लाशे बिछीं थीं। कत्लेआम का ऐसा घिनौना रूप की इसकी दर्दनाक कहानी जल्लाद बैतुल्ला महसूद भी सुने तो शर्मसार हो उठे।

सवाल ये उठता है कि चुनाव के ऐन वक्त सरकार के हाथ की कठपुतली कहे जानी वाली सीबीआई ने टाइटलर को क्लीन चिट क्यों दिया। आखिर कांग्रेस को टाइटलर को बचाने की क्या जरूरत आन पड़ी। मोदी की राजनीति को गरियाने वाली कांग्रेस, अपने आप को सेक्यूलरिज्म का चौकीदार बताने वाली कांग्रेस, वरूण के जहरीले बयान पर गीता का पाठ पढ़ाने वाली कांग्रेस को आखिर जगदीश टाइटलर को टिकट देने की क्या जरूरत पड़ गयी थी। सीबीआई के क्लीन चिट देने से क्या सिखों के दिलो-दिमाग से वो तस्वीरें पोछी जा सकती हैं जो वो अपने जहन में आरकाइव कर चुके हैं।

टाइटलर पर जब 2005 में दोबारा सिख विरोधी दंगो का मुकद्दमा खुला तो मनमोहन मंत्रिमंडल से उन्हे इस्तीफा देना पड़ा था। सीबीआई ने भले ही उन्हे क्लीन चिट दे दी हो मगर उनके खिलाफ दिल्ली की अदालत में आज भी मुकद्दमा चल रहा है। तो क्या इस देश में अब सीबीआई तय करेगी कौन अपराधी है और कौन निर्दोष। इसका मतलब जब सोनिया गांधी सीबीआई चलायेंगी तो वो तय करेंगी टाइटलर निर्दोष हैं और जब आडवाणी चलायेंगे तो वो कहेंगे माया कोडनानी निर्दोष हैं। लोकतंत्र का स्तंभ कहे जाने वाली ज्यूडिशियरी फिर क्या करेगी। दस जनपथ और 7 रेसकोर्स रोड में आने जाने वालों की प्रेस विज्ञप्ति जारी करेगी।

कांग्रेस ने मनमोहन को प्रधानमंत्री बना कर किसी हद तक अपनी गिल्ट फीलिंग पर काबू पा लिया था। मनमोहन सिंह ने संसद में 1984 के सिख विरोधी दंगो को 'नेश्नल शेम' करार दिया था। मगर हाई कमांड सोनिया बस अफसोस जता कर रह गयीं। दिल में सज्जन कुमार और टाइटलर की फांस कहीं न कहीं उसे इस अपराध बोध से उबरने में रूकावटें भी डाल रही थी। तो एक को जब अदालत ने बरी कर दिया तो उसे टिकट थमा दिया तो दूसरे को खुद ही दोष मुक्त बता दिया। ताकि पार्टी के अपराध बोध को किरपाण के एक झटके में खत्म कर दिया जाये और कांग्रेस फिर से सीना तान के अपनी राजनीतिक रोटी सेंके।

लेकिन कांग्रेस का ये अपराध बोध विरासत में मिला है। कांग्रेस पर एक हिंदुवादी पार्टी होने का आरोप पार्टी के जन्म के समय से ही लगता रहा है। मुस्लिम लीग के जन्म की एक वजह कांग्रेस का सॉफ्ट हिंदुत्व था। बाल गंगाधर तिलक हों या लाला लाजपत राय। तिलक मंदिर में आरती कराकर लोगों ( इसे हिंदुओं पढ़िये ) को अंग्रेजो के खिलाफ गोलबंद करते थें तो नेहरू 1939 के चुनाव में मुस्लिम लीग से सरकार में भागीदारी पर कन्नी काट लेते हैं। महात्मा गांधी की हत्या के बाद आरएसएस पर बैन लगाते हैं और चीन युद्ध के बाद आरएसएस को गणतंत्र दिवस की परेड में शिरकत करने का न्योता देते हैं। नेहरू 1949 में अयोध्या में राम लला की मूर्ति स्थापित करवाते है और लगभग चालीस साल बाद उनके नाती राजीव अयोध्या में मंदिर के ताले खुलवाकर अपने हिंदुत्व का प्रमाण पेश करते हैं। पुरषोत्तम दास टंडन हों या इंदिरा गांधी। देश में कांग्रेसी प्रधानमंत्रियों के कार्यकाल में अनगिनत देंगे हों या असम में 1983 के अख्लियतों की हत्यायें। मेरठ हो या मुरादाबाद के दंगे। अयोध्या में मस्जिद गिराये जाते समय नरसिंह राव का नीरो की तर्ज पर सोते रहना भी सॉफ्ट हिंदुत्व की कैटिगरी में ही तो आयेगा। और फिर चाहे वो 1984 का दिल्ली हो या कानपुर।

तो क्या जो राजीव नें तब बोला वो कतई सेक्यूलर था - जब बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती कांप उठती है। यानि जगदीश टाइटलर, सज्जन कुमार और हरकिशन लाल भगत के खिलाफ सिखों के खिलाफ देंगा भड़काने के जो आरोप लगे, वो गलत थे ? देश में दर्जन भर कमीशनों ने 84 दंगों की तफ्तीश की क्या वो हवा में थी। चलो राजीव तो राजनीति में नये थे तो क्या उनकी सॉफ्ट हिंदुत्व की कांग्रेसी 'कोटरी' ने उन्हे ये बयान जारी करने की मुगली घुट्टी पिलायी थी। अल्लाह जाने।

लेकिन जरनैल के जूता कांड से पंजाब से लेकर दिल्ली और जम्मू तक सिखों के प्रदर्शन उग्र होने लगे। तब कांग्रेस को लगा शायद टाइटलर और सज्जन को टिकट देकर गल्ती हो गयी। इन राज्यो में करीब 20-25 सीटों पर सिख वोटर पार्टी की किस्मत तय कर सकते हैं। इसलिये कांग्रेस का अपराध बोध ने एक बार फिर उसका गिरेबान पकड़ कर कहा अब बच के कहां जाओगे बच्चू। इस अपराध बोध से बच निकलने का एक ही रास्ता दिखा। पब्लिक ने कहा ना तो ना। पब्लिक परसेप्शन के आगे झुकना पड़ा। क्योंकि सवाल तो है ज्यादा लाओगे तो ज्यादा पाओगे। गद्दी भी तो बचानी है।

कांग्रेस के अपराध बोध का एक हाथ उसके गिरेबान पर था तो उसके दूसरे हाथ में जूता था। जरनैल वाला नहीं। ये जूता पब्लिक परसेप्शन का था। ये जूता बड़ा सेक्यूलर है। ये जूता जनता जनार्दन के कान्शेन्स का है। जो सिर्फ उसपर पड़ता है जो राजनीति के नाम पर समाज को बांटता है।

9 comments:

रवि मिश्रा said...

"कांग्रेस के अपराध बोध का एक हाथ उसके गिरेबान पर था तो उसके दूसरे हाथ में जूता था। जरनैल वाला नहीं। ये जूता पब्लिक परसेप्शन का था। ये जूता बड़ा सेक्यूलर है। ये जूता जनता जनार्दन के कान्शेन्स का है।"
सही है.जूता पड़ा तो अक्ल ठिकाने आ गई..लेकिन सिर्फ अभी के लिए,क्योंकि पता था कि पब्लिक के हाथ में और कई जूते थे जो दिखते तो नहीं लेकिन पड़ते हैं तो दर्द 5 सालों तक रहता है.हरिशंकर परसाई की कहानी 'भेड़ और भेड़िया' की याद आ गई जिसमें भेड़िया मासूम भेड़ों को बेवकूफ़ बनाने के लिए तरह तरह के रूप धारण करता है.चुनाव के समय साधु बन जाता है.लेकिन अंदर जीभ ने निकली लार को घूंट रहा होता है,कि एक बार जीत जाये तो सुबह शाम भेड़ों का मुलायम गोश्त मिलेगा.देर से पड़ा लेकिन सही पड़ा.चिदंबरम पर नहीं..कांग्रेस पर भी नहीं..नेताओं की पूरी क़ौम पर पड़ा..नहीं सुधरेंगे तो और पड़ेगा..इस बार लगा नहीं..चलाने वाला शालीन था..अगली बार थोबड़े पर लगेगा ..क्योंकि पब्लिक भूल जायेगी अपनी शालीनता..नेताओं सुधर जाओ..ये पब्लिक है सब जानती है..जय हो जरनैल..

anil yadav said...

आपके हिसाब से हिंदु होना दुनिया का सबसे बड़ा जुर्म है....बाल गंगाधर तिलक मंदिर में पूजा करते है तो दफा 302 का अपराध कर रहे हैं....बड़े रोष में दिख रहे हैं प्रभात जी हिंदओं से खूब खार खाये हुए है.....लेकिन चिंता मत करिए बहुत से तेल मालिश वाले आपकी इस वरुण गांधी के बयान से भी खतरनाक पोस्ट पर तेल का कटोरा लिए हुए आपकी तारीफ करने आ जाएंगे....कहीं धर्म परिवर्तन तो नहीं कर लिया है आपने.....

Aadarsh Rathore said...

ज्ञानप्रद लेख है। काफी तथ्य उभर कर सामने आए हैं और कांग्रेस का छद्म सेक्युलर चेहरे पर से भी पर्दा हटा है...

आलोक साहिल said...

namaskar prabhat ji,
kaafi dinon baad qasbe se gujrna huaaa...aap ko pdha khushi hui...pahli baat to ye ki lekha ka akhiri para kafi kuchh kah jane wala laga...dusari kahin na kahin ek hindu ke liye jo thoda bhram paida karne wala vichar hai wo khatka..isliye nahin ki main hindu hun..balki isliye ki yah ek alag vivaad ka masla hai...
ALOK SINGH "SAHIL"

kbc said...

जूता, कांग्रेस और अपराध बोध ka koe vikalp hai???

Prakash Badal said...

मैं आपकी बातों से सहमत हूँ। पत्रकार का काम कलम उठाना है। दूसरों की देखा देखी में ऐसी हरकतें करना निंदनीय है। ऐसी हरकतों को रोकने के लिए सज़ा का भी प्रावधान होना चाहिए।

Kapil said...

कांग्रेस के ''सेक्‍यूलरिज्‍म'' के इतिहास पर अच्‍छी नजर डाली है आपने। असल में छुपी हुई साप्रंदायिकता ज्‍यादा खतरनाक होती है। वैसे यह भी समझ लेना चाहिए कि असली मुद्दों से भटकाने के लिए बहुसंख्‍यक आबादी की धार्मिक भावनाओं को बढ़ावा देना और पूरा करना चुनावी राजनीति का खास गणित होता है।

श्यामल सुमन said...

अनुचित है पर देखिये जूता का पैगाम।
रोकेगे जब लेखनी जूता करेगा काम।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

Anonymous said...

यह कहना गलत होगा कि जरनैल ने नेताओं पर जूता फेंका बल्कि नेताओं की करतूत ने खुद उन्हें जूते तक पहुँचाया है . ये तो पच्चीस साल पुराने घाव का मवाद भर बहार निकला है .

हम बात करते हैं कि पत्रकार की पहचान जूता नहीं कलम है .
पर क्या कभी हमने गंभीरता से चर्चा की ? ......
कि नेताओं की पहचान क्या है और क्या होनी चाहिए और वे जूते से तौले जाने के स्तर तक हलके क्यों हो गए हैं ?
सीबीआई की पहचान क्या है और क्या होनी चाहिए ?
अफसरों की पहचान क्या है और क्या होनी चाहिए?राजनीतिक प्रभाव में काम करने के चलते सर्वोच्च न्यायालय के बार बार के फटकार के बाद अब तो सीबीआई को खुद एक क्लीन चिट की जरूरत है .

जिन्होंने गुलाबी चड्डियों का मौन समर्थन ,नारियों पर हुए अत्याचार के विरोध के लिए कम और पब संस्कृति के समर्थन के लिए ज्यादा किया था अब उन्हें जूते क्यों नहीं अच्छे लग रहे?अन्याय के खिलाफ सच्चाई के दम पर जूता फेकना भी तो एक गांधीगिरी ही है क्योंकि इससे हिंसा नहीं होती है .तो गांधीगिरी का विरोध क्यों ?यदि जरनैल सिंह ने गांधीगिरी की है तो वो प्रशंसा के पात्र हैं.

किसी भी नेता और राजनैतिक दल का अपराध बोध तो कब का मर चुका ! दोनों को केवल जनविरोध और चुनावी नुक्सान की आशंका के कारण हटाया गया .यदि राजनैतिक दलों का अपराध बोध जीवित रहता तो बाहुबलियों,भ्रष्टों ,देशद्रोहियों, अपराधियों और दागियों को टिकट ही क्यों दिया या बेंचा जाता . आकडों की गुलाम लोकतंत्र में बस आंकडेबाजी ही मुख्य सिद्धांत और नैतिक मूल्य है .हमारे लोकतंत्र में देशहित को ताक पर रखकर सत्तापक्ष का ऐसे या वैसे दो सौ बहत्तरी करते रहना और विपक्ष का टांग खींचना और लंगी मारना ही मुख्य उद्देश्य रह गया है.छद्मधर्मनिरपेक्षता के चलते हिंदुत्ववाद , मुसलमानवाद और जातिवाद ही वोट बटोरने का शार्टकट तरीका बन गया है .
ऎटम बमों से ज्यादा लीलने वाला और सारे दंगे -फसाद की जड़ ये धर्म ही है या कहें इसके नाम पर होने वाली राजनीति ही है .

हिंदुत्व,इसलाम ,या क्रिश्चियनिटी के अच्छे उपदेशों को ग्रहण करने के लिए क्या हमारा हिन्दू,मुसलमान या इसाई दिखना या होना जरूरी है ?क्या अच्छे उपदेशों को आचरण में उतारना ज्यादा जरूरी है या कि दाढ़ी बढ़ाना ,मूंछे कटवाना ,किसी ख़ास किस्म और रंग के कपड़े पहनना या धुप-अगरबत्ती जलाना ?
सिर्फ हिन्दू,मुसलमान,इसाई और सिख दिखकर प्रतीकात्मक पाखंडो में उलझे रहने से न तो रोटी की समस्या हल होती है और न ही अनैतिकता दूर होती है अपितु धर्म को श्रेष्टता और सत्ता की लड़ाई का हथियार बनाकर मनुष्यता का खून करने का बहाना जरूर मिल जाता है .