नवरात्रा का रिटर्न गिफ्ट
आज मेरी बेटी को कन्या पूजन का प्रसाद मिला है। बड़ी होने के काऱण उसने जाना बंद कर दिया। लगता है कि बाकी लड़कियों ने कन्या पूजन का भोग खाना बंद कर दिया है। तभी अब नवरात्रि खत्म होते ही चना,हलवा और पूड़ी का प्रसाद घर आने लगा है। भिजवा दिया जाता है। आज भी पड़ोस की भाभी जी प्रसाद लेकर आईं तो मेरी बेटी ड्राइंग रूम से कमरे की तरफ भागी। वो दुलार पुचकार के बुला रही थीं लेकिन मेरी बेटी ने सुना ही नहीं। फिर वो मेज़ पर एक टिफिन बाक्स रख कर चली गईं और कह गईं कि बेटी को खिला दीजियेगा। पिछले साल भी प्रसाद घर आ गया था। तब पत्ते के प्लेट में आया था। इस बार रिटर्न गिफ्ट की तरह आया है। नए टिफिन बाक्स में। तस्वीर देख सकते हैं। कन्या भ्रूण हत्या पर तो कोई सोचता नहीं लेकिन कन्याओं को भोग खिलाने के लिए प्रसाद की पैकेजिंग कर रहे हैं। इस तरह से घर घर में बेटियों के मारे जाने का फायदा आज प्लास्टिक उद्योग को खूब हुआ होगा। न जाने कितने घरों में भक्तों ने पड़ोस की बेटियों को खिलाने के लिए प्लास्टिक के टिफिन बाक्स खरीदे होंगे। वैसे प्रसाद टेस्टी था। नवरात्रि के प्रसाद का इंतज़ार मैं करता हूं लेकिन मुझे तो कोई नहीं देता। जब पुत्रों के लिए इतना ही मोह है तो कन्या पूजन का ढोंग क्यों। पुत्र पूजन कीजिए न। कहा तो कि मुझे प्रसाद अच्छे लगते हैं। शुद्ध घी वाले। शुद्ध।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
6 comments:
यही तो हमारे समाज के दोहरे मापदंड हैं ...सब दिखावा है ...और सब उसमे मग्न है ....नाटक सब से करवा लो ....अन्दर ही अन्दर बेटे की ख्वाहिश और बहार से कन्या पूजन जैसे दिखावे
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
आज सुबह-सुबह बहनोई साहेब से इसी मुद्दे को लेकर बहस हो गई. मेरी दोनों भानजियों को पड़ोस की भाभी ले गयी थी और सिन्दूर लगाकर और थाली हाथ में पकड़ाकर वापस भेज दिया कि घर में खाना. बस, जीजाजी इस बात को लेकर नाराज हो गये कि अब यही संस्कार और रीति-रिवाज आ गया है कि बर्तन ना धोना पड़े कुंवारी पूजन किया और भेज दिये. आपके यहां तो बर्तन साफ़ ना करना पड़े इस कारण प्लास्टिक का बाक्स आ गया.
आने वाले समय में लोग इसके लिये विज्ञापन छपायेंगे और कोरियर से कुंवारी पूजन कर फ़ारमिलिटी पूरा करेंगे.
kanya poojan ki to bas formality bankar rah gayi hai.. aaj bhee log chahte hai parivaar me bete ke janam lene se hi kul ka maan badta hai .........
ये तो वो सच्चाई है जिसे कि हमारे समाज के लोग सच जानकर भी नहीं माननें को राजी, भगवान के दर पर यदि दलित चढ़ जाए तो भगवान अपवित्र हो जाएंगे, लेकिन अगर दलित धर्म बदलनें लगे तो भगवान खुद उनके दर पर चले आएंगे...
रवीश जी ....आजकल माँ बाप खुद ही अपनी लड़कियों को नहीं भेजते कहीं ...मैंने कई जगह ये देखा है कि लोग मंदिरों में प्रसाद रख आते हैं ...और पुजारी उन्हें बाहर खड़ी लडकियां जो झुग्गी झोंपडी से आती हैं ,..उन्हें दे देते हैं ...ये तरीका मुझे बहुत पसंद आया
Post a Comment