तकीये के नीचे से आ रही थी पीली रौशनी
चुपके से बुलाया मेरे हाथ को अपनी तरफ
एक संदेशा चुपके से सिरहाने के नीचे
नाम ही देख कर लगा कितनी बातें
अधूरी रह गई हैं, दिन भर की
फिज़ूल की बातों में आज भी
बची हुई बातों का कहीं ये वही
अक्सर आने वाला एसएमएस तो नहीं
शाम होने से पहले ही बिहार में
२५ लाख विस्थापित हो चुके हैं
रात होते होते तमाम कंपनियों के
२५ हज़ार लोगों की नौकरियां खतम
सेंसेक्स और सेक्स के बीच झूलते
हुक्मरानों ने ताकत की दवा फेंक दी है
बाज़ार में खुलेआम सबके लिए मुफ्त
कल सुबह तुम्हारे सपनों की नौकरी
रात भर जागकर कर रही होगी इंतज़ार
गुलाबी रसीद वाले होठों से चूम लेगी तुमको
एक दम से गरीब नहीं होगे तुम, न खत्म होंगे
नौकरी में आसमान छूने के हमारे तुम्हारे सपने
उन बिस्तरों में कितनों ने कितनी करवटें
बदली होंगी साथ साथ रात भर जाग कर
गुलाबी रसीदों वाले होठों को चूमने के बाद
ख्वाबों से हमबिस्तर होने के लिए
आरबीआई की ताकत की दवा बेअसर हो रही थी रातों को
ग्यारह बजे का एसएमएस तभी क्यों आया
जब बाज़ार बंद हो चुके थे, दलाल सो चुके थे
बैंक का ताला सुबह दस बजे तक के लिए बंद
जेट एयरवेज़ के पायलटों का चेहरा एकदम से
विस्थापित किसानों की रैली में अचानक दिखा
मेरे सारे सपने उस एसएमएस की दो लाइनों में
टूट कर चूर चूर हो कर बिखरे पड़े थे
18 comments:
ग्यारह बजे का एसएमएस तभी क्यों आया
जब बाज़ार बंद हो चुके थे, दलाल सो चुके थे
बैंक का ताला सुबह दस बजे तक के लिए बंद
जेट एयरवेज़ के पायलटों का चेहरा एकदम से
विस्थापित किसानों की रैली में अचानक दिखा
मेरे सारे सपने उस एसएमएस की दो लाइनों में
टूट कर चूर चूर हो कर बिखरे पड़े थे
उम्दा पंक्तियां
bahut accha
humne bhi likha tha
sensex gir raha he
regards
satya jo 15 din pehel bata chuke hum
regards
बहुत सुंदर और यथार्थवादी कविता ..बधाई रवीस जी
उन बिस्तरों में कितनों ने कितनी करवटें
बदली होंगी साथ साथ रात भर जाग कर
गुलाबी रसीदों वाले होठों को चूमने के बाद
ख्वाबों से हमबिस्तर होने के लिए
आरबीआई की ताकत की दवा बेअसर हो रही थी रातों को
ग्यारह बजे का एसएमएस तभी क्यों आया
जब बाज़ार बंद हो चुके थे, दलाल सो चुके थे
बैंक का ताला सुबह दस बजे तक के लिए बंद
जेट एयरवेज़ के पायलटों का चेहरा एकदम से
विस्थापित किसानों की रैली में अचानक दिखा
मेरे सारे सपने उस एसएमएस की दो लाइनों में
टूट कर चूर चूर हो कर बिखरे पड़े थे.
bahut khoob, sach mein bahut hi gehri rachna, ek kadwa aur bhayawah sach
बहुत खुब रविश जी
baHoot kHooob,RavisBhai.
gyarah baje ka sms BARAH baja gaya .
बहुत बढ़िया !
bahut hi aache sir ... hamare blogme bhi padhare
रात तकिये पर पिघलकर
शब्द कोई लिख गई है
एक पत्ता, एक तिनका, एक गाना,
सांझ मेरे झरोखों की
तीलियों पर रख गई है.
बेहतर है
रात तकिये पर पिघलकर
शब्द कोई लिख गई है
एक पत्ता, एक तिनका, एक गाना,
सांझ मेरे झरोखों की
तीलियों पर रख गई है.
बेहतर है
sir hum kya bole aap to aap hi hai,,, par sab ko kuch sochne ke liye majboor jaroor kar deta hai app ke mobile ka sms....akash
आपकी कविता पढ़ कर विचार आया कि ;
उन बिस्तरों में कितनों ने कितनी करवटें
बदली होंगी साथ साथ रात भर जाग कर
गुलाबी रसीदों वाले होठों को चूमने के बाद
न जाने करवटें कहाँ हों ज़िंदगी से भाग कर
तीव्रता और शीघ्रता से इस विपदा को बयान करने के लिए बधाई।
its nice ravish bhai that u have taken up the issue so fast and aptly written on it.
congrats
वाकई कोई जवाब नहीं , किस खूबसूरती से बिहार ,बाड़, बेरोजगारी ,बाजार को समेट कर बिस्तर पर उलट दिया .
रात के 11 बजे का समय...सोने...खोने...और संजोने का समय
...11बजे रात को एसएमएस आना
और सपनों का टूट कर चूर-चूर हो जाना...
इस बीहड़ समय को शब्दों में पीरोना,
उसमें जीने जैसा ही जीवंत बनाता है!
guptasandhya.blogspot.com
pata nahi, toda samay lijiye aur thoda jada sabdo ka upyog kar thoda behtar likhiye jo aap kar sakte hai padkar lagata hai jaldi me likh kar khatam kar dena chahte hai.
muje bhi bura nahi laga ye par bahut aacha ho sakata tha
please ise jaldi me likha comment mat samajhiye.
mujhe aap se lakho logo ki samvednao ki sahi abhivyakti ki umid rahti hai
sadhuwad!!
क्या बात है.....
अलग ही नजरिया... बढ़िया...
सादर...
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