मैं(इन पंक्तियों के लेखक)तो मर्द हूं। अब वो भी हैं। आज मुंबई के शिवाजी पार्क में उद्धव ठाकरे ने साफ कर दिया कि वे नामर्द नहीं है। वो बोलते जा रहे थे और न्यूज़ चैनलों पर फ्लैश चमकते जा रहा था।
1. मैं नामर्द नहीं हूं
2. मुंबई मेरे बाप की है
3. मेरे बाप ने शेर को जन्म दिया है।
बयान है या खंडन पता नहीं। उद्धव ठाकरे ने बता दिया कि वे मर्द हैं। किसने कहा कि वे मर्द नहीं है पता नहीं चला। उद्धव को उकसाने वाले को सज़ा मिलनी चाहिए। उद्दव मर्द थे और हैं और आगे भी रहेंगे। शांत से दिखने वाले शौक से फोटोग्राफी करने वाले इस युवा नेता को किसने क्या कह दिया। वो चिल्लाने लगा कि मेरे बाप ने शेर को जन्म दिया है। मर्दानगी का चरम शेर होना है। राजनीति के इस जंगलवाद में उपमाओं का शूरमा है अपना शेर। जंगलों से मिट गया है मगर शिवाजी पार्क में खुला घूम रहा है। शेर ने खुद को शेर नहीं कहा होगा। प्रागैतिहासिक काल में किसी इंसान ने ही कहा होगा कि ये शेर है। जब इंसान जानवर को शेर कह सकता है तो खुद को क्यों नहीं। इसी तरह उसने भारत से विलुप्त हो रहे शेरों का संरक्षण कर दिया है। अब शेरों की आबादी एक अरब से ज़्यादा है। वाह यूनेस्कों का कोई पुरस्कार दिलवाओ भाई।
मर्द फिर शेर और अब बारी थी हिंदुत्व की। उसका नंबर बाद में आया पहले कहा कि महाराष्ट्र में हम मराठी हैं और देश में हिंदू। ये शानदार परिभाषा है। जिस महाराष्ट्र से देश के बाकी हिंदुओं को लतिया के, गरिया के और धकिया के निकाल दिया उससे देश के स्तर पर रिश्ता जोड़ने की यह उदारता उद्धव ही कर सकते हैं। दक्षिण भारतीयों को उनके पिता ने निकालने की कोशिश की। जिस दक्षिण भारतीयों को वे मुंबई में बर्दाश्त नहीं कर सके उनके यहां जाकर ठाकरे जी हिंदू होना चाहते हैं। मैं जानता था यही हिंदुत्व की औकात है। पहले पेट भरेंगे फिर माला फेरेंगे। पूर्वांचल के भैयों, बिहार के मज़दूरों लगा लेना गले उद्धव भाई को। उद्धव कोई पराये नहीं हैं। कम से कम हिंदू तो हैं। देश में।
नोट- औरतों को जल्दी बुलाओ। आरक्षण छोड़ो। राजनीति में कूदो। लेकिन औरतें क्या कहेंगी..मैं मर्द नहीं हूं। हमारी राजनीति की बोली में औरतों के लिए जगह नहीं है। उन्हें अपनी जगह बनानी होंगी। ब्लॉगर महिलाओं कूदों इस आग में। बोल देना दुनिया से कि न हम नामर्द हैं और न मर्द हैं।
55 comments:
उद्दव मर्द थे और हैं और आगे भी रहेंगे।
वैद्य जी थे, हैं और रहेंगे :-)
आखिर ई सवाल के केकर बा कि उद्धव मर्द नैंखे... परिवार के मसला बा सर...कीचड़ से खेल रहे हैं...और उम्मीद करते हैं कि छींटे भी ना पड़ें...ई कैस्से पासिबिल बा सर जी...पहले मुसलमान फिर बिहारी अब शेर...भगवान बचाए शेर को इन गीदड़ों से
राजनीति में अपराधी, भ्रष्ट और धोखेबाज लोग तो काफ़ी पहले से ही बहुतायत से थे अब लगता है पागल भी कई सारे आ गए हैं। पता नहीं क्या क्या बकबकाते रहते हैं।
a fresh and witty post after a string of preoccupied gibberish, i am a fan again.
By giving reactions , comments , importance to such things , we are playing in their hands. That is what they want.
Pahli baar bola aur kya khoob (?) bola. Apne mard hone ki kaifiyat kyon deni padi. Thakre khandaan ke beech mein he banti ja rahi hai Mumbai, baaki aam logon ka kya hoga. Aakhir hum aise Oche Rajnetaon ko kyon bardasht kyon karte hain?
Vaigyanik batate hein ki sabse pehle is dharti per bacteria aya, aur adi-manav sabse ant mein. Arambha mein sher ki nakal ker aadmi 'prakritik' gufa mein rahne lag parda... Kya khana hai aur kya nahin usne chirdiyon or bander adi se seekha (vishakt bhojan padarth ke bhaya se). Short athva sankshipta mein nakal mar ker 'Pappu' pass ho gaya!
Kalanter mein kritrim gufa mein rahna seekh gaya (concrete/ patthar se bane makanon mein)...ityadi, ityadi...per gadhe ka gadha hi raha - usike saman (mike per) rainkta hai aaj!
Aur - kshama-prarthi hoon kahne ka adhikar samajh aur jante hue ki satya katu hota hai - jo 'patrakar' jab TV/ radio adi nahin aye the aur logon ke patra likha karte the 'papi pate ke karan', aur anjane ke bhaya se 'shivlinga' ki puja karte the, aj unke haath mein shivling-numa mike deekhta hai aur 'til ka tard' banane mein 'sheron' (yathart mein geedardon - jo sher ka jootha khate the kabhi) ki chamchagiri kar rahe hain - Kaliyuga athva Kalyuga ke prabhav se...jo gyani pehle hi likh gaye!
अच्छा हुआ उद्ध्व जी ने बता दिया.. नहीं तो लोग तरह-तरह कि बातें कर रहे थे..
सभी को पब्लिकली ये बताना चाहिये कि वे मर्द है..
aap ki blog report har hafte hindustan hindi main padhata hoon. Bahut achha lagta hai.nai nai blogs ke bare main jankari dene se hindi blogging ko kafi badawa mil raha hai.
अच्छा हुआ बता दिया, वरना शक होने लगा था :)
अच्छा किया उन्होंने खंडन कर दिया.. :)
संभवतः बेचारे उद्धव को कुछ शक रहा होगा तो उसने साफ़ कर दिया लोगो की भीड़ के सामने
ख़ुद को शेर तो बता दिया पर चिडिया घर वाला शेर या सर्कस वाला या फ़िर जंगल वाला ये नही बताया
मौका दशहरा का है हो सकता है दुर्गा जी का वाहन हो
विसर्जन से बच के शिवाजी पार्क पहुँच गया हो
कुछ भी हो बेचारा अभी ख़ुद को पहचान रहा है उसे पहचानने दे
रवीश जी, अगर उद्धव खुद को शेर और अपने पिता को एक शेर का पिता कह रहे हैं तो बेचारे की बात मान क्यों नहीं ली जाती। शेर को बेचारा कहने की जरूरत इसलिए पड़ी कि उसने कभी खुद को शेरनी नहीं कहा, फिर भी कुछ लोग उसकी "मर्दानगी" पर शक कर रहे हैं और उसे इस बात की मुनादी करना पड़ रहा है कि वह "मर्द" है।
बहरहाल बंधुओं, उद्धव वही करने की ओर अग्रसर हैं, जो "शेर" करता है। "बकरी" मिली तो मिली, नहीं मिली तो बाहरी इंसानों की बस्ती में घुसो और इंसान को नोच-नोच कर खाओ। इससे "मराठापन" भी बच जाएगा, लोग देख कर "मर्द" भी मान लेंगे और सबसे बड़ी बात कि अपने "हिंदुत्व" की ताकत का इजहार भी हो जाएगा...।
मर्दपना और शेरपना तो लोग देखेंगे ही...।
रवीश जी, अगर उद्धव खुद को शेर और अपने पिता को एक शेर का पिता कह रहे हैं तो बेचारे की बात मान क्यों नहीं ली जाती। शेर को बेचारा कहने की जरूरत इसलिए पड़ी कि उसने कभी खुद को शेरनी नहीं कहा, फिर भी कुछ लोग उसकी "मर्दानगी" पर शक कर रहे हैं और उसे इस बात की मुनादी (करनी) पड़ (रही) है कि वह "मर्द" है।
बहरहाल बंधुओं, उद्धव वही करने की ओर अग्रसर हैं, जो "शेर" करता है। "बकरी" मिली तो मिली, नहीं मिली तो बाहरी इंसानों की बस्ती में घुसो और इंसान को नोच-नोच कर खाओ। इससे "मराठापन" भी बच जाएगा, लोग देख कर "मर्द" भी मान लेंगे और सबसे बड़ी बात कि अपने "हिंदुत्व" की ताकत का इजहार भी हो जाएगा...।
मर्दपना और शेरपना तो लोग देखेंगे ही...।
koi namard hai ya sher ka baccha hai yeh sawal kisne uthaya tha. is tarah ki baton ka aaj kya matlab hai
उद्धव की टिप्पणी पर आप भी बिल्कुल शेर की तरह ही दहाड़ते हुए लिखे हैं ....इस पोस्ट के जरिए आप भी अपने शेर होने का ऐलान तो नही करना चाहते हैं या आप को लगता है कि लोगों ने आपको पहले ही शेर मान लिया है..........
जनाब ! ब्लोगर तो उन लड़कियों और महिलाओं को मर्द ही समझते और मानते हैं जो ब्लॉग लिखती हैं...मानो ब्लॉग लिखना मर्दों का ही पैदायशी हक़ हो...और लड़कियों में ब्लॉग लिखने की सलाहियत ही न हो...क्या इन ब्लोगरों को पहले ज़हनियत नहीं बदलनी चाहिए..साथ ही.इन बलोगरों से मुआफ़ी चाहते हुए एक सवाल पूछना चाहती हूं की अगर इन्हें महिला के तौर पर संबोधित किया जाए तो इन्हें कैसा महसूस होगा...?
we can ask uddav that if his father has gave birth to a lion then where is that lion kis circus me hai? and uddav ka bap kaun hai ?? kauki u to amdi ba nu??
इतने कमेन्ट पढने के बाद मैं यही कहुंगी कि इंसान "कर्मो" से जाना जाता है ना कि कहने से।
हमें किसी की आड रख़कर अपनी तारीफ़ नहिं करनी चाहिये।
मैं तो उन्हें मर्द कहुंगी जो बूरे काम होते रोकदे।
जो कमज़ोरों पे ज़ुल्म ना होने दे।
जो अपनी बात को सही-साफ अल्फ़ाज़ में रखे।
जो सच्चाइ को सामने लाये।
ना कि अपनी गली में..........?
sher unke ghar aya tha, ya phir unki maa jangle gyi thi.
सबसे पहले आप मेरे ब्लांग पर आये इसके लिए बहुत-बहुत धन्यवाद । रही बात मुम्बई की बहुत दिनो से सोच रहा हूं कि मुम्बई पर लिखू । आपने इतना सुंदर लिखा है कि मन बदलता जा रहा है । मसलन मुम्बई राज ठाकरे के बाप का है । सियासत की आंधी ने राज ठाकरे को बिसात बिछाने का अच्छा मौका दे दिया है । लेकिन सवाल हर वक्त यह तलाशती रही कि आखिर मुम्बई किसकी है । मुम्बई पर प्राचीन काल की बात करे तो मौयॆ का शासन था । मौयॆ शासन के बाद इसका इतिहास बदला । वहां से लेकर गुजरात ,तमिलनाडु के लोगो ने भी मुम्बई को अपना आशियाना बनाया । इसी वक्त मुम्बई मे बाल ठाकरे जैसा एक राजनेता सामने आया जो घर का शेर ज्यादा दिखता है । जो भी हो उसने अपनी राजनीति को नई चमक देने के लिए मराठी का नारा दिया । गुजरात और तमिल में विकास की बयार चली लोग मुम्बई छोड़कर चले गए । उसके बाद विहार-यूपी के लोग वहां पहुंचे उसके बाद जो हुआ बताने की जरूरत नही है । मुम्बई की मंडी में अकेला शेर राज ठाकरे है । चाहे राजनीति हो या युध्द का मैदान भाषा से लेकर फिल्मो तक में उनका चलता है । दुकानदारो को किस भाषा में पोस्टर और बैनर लगाना है शेर साहब को तय करना पड़ता है । अब देखना तो यह है कि अपनी दुकान को कब तक चमका कर रखते है । या चाचा की तरह घर के डांन बनकर सिंमटे रहते है । फिलहाल तो मुम्बई उनका है । शेर क्या आप जितना वजन लगा ले ।
शुक्र है ये नही कहा की देश मेरे बाप का है !
अगर यही मर्दानगी है तो गैरत भेजिए ऐसी मर्दानगी को। इससे अच्छा तो छक्का होना है।
ravish ji
mai aap ki kafi ijjat karta hu , lekin mumbai mai rahen ke liye sab kuch sunana padata hai , ab aap ishe bujdili kahiye ya phir aur kuch , yadi aap mumbai mai rah kar ish tarah ka blog likhte to shayd aap ko phi pareshani utani pad sakti hai .
latikesh
mumbai
"Apni gali ka kutta bhi sher hota hai," is 'satya' ko pehle bhi jana gaya.
Pracheen 'Hindu' soch ke anusar jo kaal ke prabhav se nahin badalta wo hi satya hai...Kintu nirakar Brahma hi param stya hai kyunki wo kaal ke pare hai - achoota kyunki wo shunya akar kintu param shakti roop mein sadaiv vidyaman hai...
Is natak mein hum sub shayad vidooshak ka role kar rahe hain!
मुझे नही पता कि ये वक्तव्य उद्धव ने हिन्दी मै ्दिया था या नही पर हम हिन्दी वाले टिप्पणी करने के उत्साह मे ये भूल जाते है कि हर भाषा अपने साथ संस्कार लिये होति है और जो सिर्फ़ इसे संपर्क भाषा के तौर पर इस्तेमाल कर्ते है वे शब्दो को उनके महीन अर्थो के साथ प्रयोग नही कर पाते
संजय व्यास
एक कहानी पढी थी शेर और खरगोश की। शेर को हमेशा लगता था कि वो शेर है या नहीं। इसलिये चाहता था कि हर कोई उसे शेर कहे, और बार बार कहे। फिर एक दिन खरगोश को शरारत सूझी और उसने कहा शेर जी आपके इलाके में एक शेर आ चूका है, पास के कुएं मे छुपा बैठा है। शेर ने आव देखा ना ताव, खरगोश के साथ निकल गया, दूसरे शेर का काम तमाम करने। कुएं में झांककर देखा, वाकई एक शेर दिखायी दिया। उससे कहीं तगडा। शेर ने दहाढ लगाई, सामने वाला शेर डरा नहीं, उसने कहीं और तगडी दहाढ लगाई। दुगूनी आवाज़ में।
फिर वो कूएं में कूद पडा, दुसरे शेर का सफाया करने।दरअसल जंगल में तो एक ही शेर रह सकता है। नतीज़तन शेर मारा गया। बेवकुफों की मौत। एक पिद्दी भर खरगोश के हाथ।
उध्धव ठाकरे और राज ठाकरे बीच के बीच एक ज़ंग चल रही है, पूरी दुनिया को ये बताने कि कौन शेर है।असल में ये ज़ंग है दो भाईयों की। अपने लोगों को बता रहे हैं कि वो मर्द है।वो शेर हैं। किसने कहा कि आप शेर नहीं गीदड हो।
सार यही है कि राज़ को देखकर बडे भाई की हवा पतली हो रही है। इसलिये हल्ला कर रहे हैं।
शेर-शेर होता है। शेर को चलते देखा है। वो चलता है तो उसकी दहाड से शिकार ख़ुद ज़मीन पर गिर जाता है। लेकिन दुसरी कहावत है, कुत्ता भी अपने घर के सामने शेर होता है। लेकिन जब अपने एरिया से बाहर जाता है तो ऊसकी पूँछ नीचे चली जाती है। राज़ और ऊध्धव दोनों को भ्रम हो रहा है शेर होने का।
असली शेर तो शिवाजी थे। गुरु गोविंद सिंह थे। भगत सिंह थे। तिलक थे, लाल लाजपत राय थे, सरदार पटेल थे, वीर कुंवर सिंह थे। इनको कैसे भ्रम हो गया शेर होने का। एक चुहा तो मारा नहीं, और बन गये शेर।
ज़्यादा शौक है दोनों भाइयों को शेर बनने कि तो भेज दिजिये सियाचीन पर। पता लग जायेगा कौन शेर है।
ya kaagaj ke sher hai.marathi asmita ke naam pe gair marathiyo pe atyachar karke sher samjhte hai ye apne apko.kabhi shivshena ko ground based issues raise karte to nahi dekha.
सब कुछ सही है रवीश जी, आपके लेखन में धार है, पकड़ है, बारीक़ी है। लेकिन न जाने क्यूं मैं कुछ दिनों से देख रहा हूं कि आप एक अजीब से पक्षपाती हो गए हैं। कट्टर लोगों के खिलाफ़ आपने मोर्चा खोला है, स्वागत के योग्य है, लेकिन हैरानी इस बात की है कि जिस तरह आप कुछ पथभ्रष्ट लोगों, जो विश्व भर में आतंक का पर्याय बन चुके हैं, की करतूतों के कारण पूरे समुदाय को कलंकित या दोष देने का विरोध करते हैं, ठीक उसी तरह आप हिंदू और हिंदुत्व के साथ क्यूं नहीं करते? आप सीधे लिखते हैं कि 'मैं जानता था यही हिंदुत्व की औकात है। पहले पेट भरेंगे फिर माला फेरेंगे। , मुझे इस पर घोर आपत्ति है। बेशक आपने ये बात उद्धव के प्रपेक्ष्य में कही हो लेकिन ये दर्शाती है कि आप सब छोड़छाड़ कांग्रेस या किसी दूसरी पार्टी का टिकट लेकर चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं। इस तरह के लेख लिखने से आपको मल्टी लाभ हो रहे हैं, एक तो चंद चाटुकार लोगों के बीच आप कौतूहल का विषय बन रहे हैं और लोग बिना आपके लेख को पूरा पढ़े अनाप-शनाप टिप्पणियां छोड़ देते हैं। दूसरा कि आप एक धर्म निरपेक्ष छवि के स्वामी बनते जा रहे हैं जो देश के 'विचारक' तबके में माननीय हो गए हैं, तीसरा आपकी पॉपुलेरिटी और ये धर्म निरपेक्ष सोच चुनाव में आपकी मदद करेगी।
रवीश जी राजनेता बनने की राह पर आप निकल चुके हैं और यकीन मानिए आप एक सफल नेता बनेंगें और आप जैसे अच्छे लोगों की वाकई राजनीति को ज़रूरत है। आपका अगर ऐसा विचार नहीं भी है तब भी कृपया सोचिए, एक पत्रकार रहते हुए आप उतना नहीं कर पाएंगे देश के लिेए जितना एक राजनेता बनकर कर सकेंगे।
शुभकामनाएं
'Bharat' that is 'India' ke do nam kyun hain aaj?
'Bharat' nam Bharat ke nam per rakha gaya. Mana jata hai ki wo Shakuntla aur Raja Dushyant ka putra tha jo bachpan se hi Sheron se larda karta tha! Aur Bharat bhumi ko Durga mata ka sher bhi kaha gaya - sanketik bhasha mein.
[Shayad yeh sab 'pardhe-likhe' bhratvasiyon ko pata hi hoga ki kaise Dushyant Shakuntla ke sath uske ashram mein vivah kar apne rajya laut ker usko bhool gaya tha...aur kaise uski yad-dast phir ek sukhdayi ant mein laut ayi!]
Doosra nam, 'India', ise videshiyon ne diya.
[Ek nadi-ghati ke tat per rahne walon ke karan jo jab Europe mein junglee log raha karte the tab bahut tarakki ker chuki shaktishali sabyata payi gayi thi.
Kyunki we apne sare tyohar ityadi Chandrama per adharit calendar per karte the, aur ek bahuvikasit bhasha, Sanskrit, ka prayog karte the, unhone unehin 'Hindu', aur us nadi ko 'Indus', kaha. Kyuni Sanskrit mein 'Indu' chaand ko kahte hein...]
Hindu Yogi astronomy (khagolshastra) per adharit vishayon, 'astrology', palmistry, adi vishaya aur unka manav sanrachna mein yogdan adi ke liye prasiddha hue...
Kintu jaise suryast ke samay andhera pratidin ujale per havi ho jata hai, aur chandrma ke bhi do paksha hote hein, kaal ke prabhav se Hinduon ki buddhi Kaliyuga mein lupta hoti chali gayi (6 century B.C. ke baad)...aur we andhere mein hi teer marte dikhayi pardete hain aaj!
Is karan Gita tote ki tarah hi aaj pardhi jati hai...'Krishna' ke kathanusar ismein dosh agyanta ka hai...Navratri haal hi mein manayi gayi, aur Dussehra bhi, kagazi Ravan ko jala ke! Ab amavasya ki raat patakhe bhi baja lenge!
Jai Mata ki!
बड़ा अच्छा सवाल है था जिसका पता हम सबको चल गया.
उद्धव ठाकरे को साधुवाद !
आख़िर कह तो दिया की वह मर्द हैं ; हम सब में वह औकात कहाँ ?
हरी जोशी जी , संजय बेंगाणी ,रज़िया "राज़" ,kumar Dheeraj ,डॉ .अनुराग की टिप्पणियों से मैं सहमत हूँ.
" मैं जानता था यही हिंदुत्व की औकात है। पहले पेट भरेंगे फिर माला फेरेंगे।"
इस कथन से मैं असहमत हूँ.
आख़िर आदमियों की असफलता का ठीकरा धर्म के माथे पर कैसे?
आदर्श
बेहतर होगा जो लिख रहा हूं उसे ही पढ़ा जाए। आप मेरे लिखे हुए पर यह सवाल न उठाएं कि मैंने कांग्रेस या समाजवादी पर क्यों नहीं लिखा? और नहीं लिखा तो इसका मतलब यह नहीं कि मैं उनसे टिकट ले रहा हूं। हिंदुत्व की राजनीति कांग्रेस के भीतर भी है बाहर भी। समाजवादी पार्टी से कोई कैसे सहमत हो सकता है। सारे विषयों पर न लिखने का अपराधी कैसे साबित कर सकते हैं। कुछ आप भी लिखिये। कल को आप कहेंगे कि क्रिकेट पर क्यों नहीं लिखा या अमिताभ पर क्यों नहीं। तो इसका कोई मतलब नहीं। जिस पर मुझे लगता है कि लिखना चाहिए लिखता हूं। कोई अखबार थोड़े निकाल रहा हूं कि सभी पक्षों पर लिखता रहूं।
रही बात हिंदुत्व की तो इस राजनीति का विरोधी हूं। लेकिन यह कहना गलत होगा कि हिंदुत्व का हर विरोधी कम्युनिस्ट,कांग्रेसी या फिर समाजवादी ही है।
रही बात पाठकों की टिप्पणियों की तो मैं आपमें या किसी में फर्क नहीं करता। सबको टिप्पणी करने का अधिकार है। इसका मतलब यह नहीं कि वे चाटुकार हो गए और आलोचना कर आप चाटुकार हो गए। कोई यह भी तो कह सकता है कि जानबूझ कर आलोचना इसलिए कर रहे हैं ताकि नोटिस हो जाए। मैं कोई भारत सरकार नहीं हूं जिससे सत्ता लाभ पाने के लिए मेरी चाटुकारिता की जाएगी। छोटे से समूह में तारीफ या आलोचना से कोई नेता बनता तो हो चुका।
आपको हिंदुत्व वाली लाइन से आपत्ति है तो आपको विकल्प बताना चाहिए। आप बताइये कि मैं किस तरह गलत लिख रहा हूं कि उद्धव जी कहते हैं महाराष्ट्र में मराठी और देश में हिंदू। जब वे अपने राज्य में देश के दूसरे हिस्से से आए हिंदुओं का स्वागत ही नहीं करना चाहते। हिंदुत्व की इस औकात को मैं जानता हूं। मन आए तो गांधी को मार दो मन आए तो बिहारी को भगा दो। मुझे जो चीज़ गलत लगती है उस पर लिखता हूं।
बहुत दिनों बाद ही सही , रवीश जी को इस लिंक के लिए धन्यवाद्!
http://epaper.hindustandainik.com/Web/Article/2008/06/18/010/18_06_2008_010_008.jpg
प्रवीण जी
हिंदुत्व और हिंदू धर्म में फर्क है। मैंने् हिंदुत्व की राजनीति करने वालों की आलोचना की है। हिंदुओं की आलोचना नहीं की। सारे हिंदू शिवसैनिक या भाजपाई नहीं होते। कुछ कम्युनिस्ट होते हैं, कुछ कांग्रेसी और कुछ बसपाई भी। इस धर्म का इस्तमाल कर जो लोग राजनीति करते हैं उनका एजेंडा है हिंदुत्व।
हिंदुत्व का मतलब हिंदू समुदाय नहीं है। शिवसेना, संघ और बीजेपी है।
Ab Deepavali bhi kuch dinon baad manayi jayegi. Andhkar per ujale ki jeet ka dyotak, mahishasur (kala akshar bhains barabar) per Ma Durga ki vijay...ityadi...ityadi...
Bengal mein ise Kali Puja kahte hein. Bachpan mein hum bachche inka bhayankar roop dekhker hi bhaya khate the...Convent of Jesus & Mary School ke pas sirf Ma Kali ka hi mandir hota tha (jiska ab vistar ho chala hai aur Hinduon ke sare devta ityadi ab wahan pooje jate hain)...
Hum ab bhi kabhi kabhi wahan chale jate hain - kintu ab hamein pata chal gaya hai ki Ma Kali ka sthan kyun Shiva ke hridaya mein mane jane ka arth kya hai, jis karan ab bhaya nahin lagta!
mardangi dikhani hai to maharashtra se bahar nikal kar dikhayen to jane. kahte hain ki apni gali main to kutta bhi sher hota hai.
अरे उद्धव भई, पहले यह तो तय कर लो कि आप मर्द हो, शेर हो, मराठी हो, हिन्दू हो या भारतीय।
एक ही जीव में इतनी चीजें कैसे समा सकती हैं, यह किसी की भी समझ से परे है।
रविश जी
कुछ लोग आइना देखने पर ऐसे भड़कते हैं जैसे की सांड को लाल कपड़ा दिखा दिया गया हो. ऐसा क्यों होता है ? उध्हव ठाकरे की हिंदुत्व की पोल अगर खुल जाए तो लोगों को बुरा लगने लगता है. हिंदुत्व का असली चेहरा अगर देखना हो तो ठाकरे परिवार के कुकृत्यों पर आप गौर करें .इन लोगों ने गंध मचा रखी है . हर तरह के प्रदुषण का स्रोत बन चुके हैं ये लोग . भाई अगर उध्हव ठाकरे अगर सार्वजानिक जीवन में हैं और इस तरह की घटिया सोच रखते हैं और उनका पुश्तैनी धंधा इतना निंदनीय है तो इस चर्चा में हिन्दुत्व तो आयेगा हि.उनके बालों और उनकी फोटोग्राफी की चर्चा तो नहीं होगी. कहने की जरूरत नहीं है की हिंदुत्व की इस घिनौनी राजनीति और महान हिंदू धर्म और परम्परा के गौरवशाली मूल्यों के बीच छत्तीस का आंकडा है .
आप अपनी समझ और प्रतिब्ध्हता पर मजबूती से टिकें रहें . जब भी आप सही बात लिखेंगें तो कुछ लोग इधर उधर की बात और व्यर्थ दोषारोपण करते रहेंगें.
सादर
रविश जी
कुछ लोग आइना देखने पर ऐसे भड़कते हैं जैसे की सांड को लाल कपड़ा दिखा दिया गया हो. ऐसा क्यों होता है ? उध्हव ठाकरे की हिंदुत्व की पोल अगर खुल जाए तो लोगों को बुरा लगने लगता है. हिंदुत्व का असली चेहरा अगर देखना हो तो ठाकरे परिवार के कुकृत्यों पर आप गौर करें .इन लोगों ने गंध मचा रखी है . हर तरह के प्रदुषण का स्रोत बन चुके हैं ये लोग . भाई अगर उध्हव ठाकरे अगर सार्वजानिक जीवन में हैं और इस तरह की घटिया सोच रखते हैं और उनका पुश्तैनी धंधा इतना निंदनीय है तो इस चर्चा में हिन्दुत्व तो आयेगा हि.उनके बालों और उनकी फोटोग्राफी की चर्चा तो नहीं होगी. कहने की जरूरत नहीं है की हिंदुत्व की इस घिनौनी राजनीति और महान हिंदू धर्म और परम्परा के गौरवशाली मूल्यों के बीच छत्तीस का आंकडा है .
आप अपनी समझ और प्रतिब्ध्हता पर मजबूती से टिकें रहें . जब भी आप सही बात लिखेंगें तो कुछ लोग इधर उधर की बात और व्यर्थ दोषारोपण करते रहेंगें.
सादर
शेर हैं ये तो हम समझ गए, पर इंसान नहीं ये भी समझ गए !
Adarsh Rathore ji ne usi purane satya ki pushthi ki hai ki "dosh rasna ka hai" athva jeebh/ juban ka kanth/ gale (Vishuddhi Chakra) ke prabhav mein ajana - jismen 'rakshash guru shukracharya' ka nivas jana gaya yogiyon dwara...
Yeh vaisa hi jaise lathi/ goli maar jan-na ki sahi pashu ko nahin mara. Purane log udaharan dete the shikari ka hiran samajh gau mata ko teer mar pachhtana...ya Dashrath ne jaise Shrawan Kumar ko pashu samajh andhkar ke karan 'shabda-bhedi-baan' se mar dala tha, aur uska khamiyaja apne bete Ram ke banwas ke karan bhugata...Aadmi ko is karn 'galti ka putla' bhi kaha gaya! Aur, "Ant bhale ka bhala"! ("All's well that ends well")...
कुछ लोग जो हिंदुत्व की आड लेकर दूसरों दूसरों को उसके हिंदू होने या ना होने की चुनौती दे रहे है ..यह अब एक फैशन का रुप ले चुका है ...हिंदु और हिंदुत्व का मतलब भाजपा , शिवसेना , बजरंग दल ,विहीप और आरएसएस हो गया है ..व्यक्ति या विचारधाराऐं जब जब कमजोर या मंद पडने लगती है तो ऐसे जुमले से ही अपने आपके अस्तित्व के होने का अहसास कराया जाता है ...उद्वव के साथ भी यही परेशानी है ..क्यूंकि जिस लिक पर चलकर बूढे शेर जी ने अपना आधार बनाया उस आधार का इस्तेमाल ही नही बल्कि लगभग हथिया सा लिया है राज भइया ने ..ऐसी स्थिती में इस तरह के बयान स्वभाविक है ..
और हां आर्दश भाइ बहुत जल्द आपको अपने किए पर पछतावा हुआ उसके लिये आप बधाइ के पात्र है ।
ओडीसा में हिंसा जारी है । मामला ओडीसा के आदिवासी समुदाय का ईसाई धमॆ में परिवत्तॆन को लेकर है । जारी हिंसा इतना तेज हो चला है कि कई लोगो को वहां जान गंवानी पड़ी है ।३०० गांव को तहस-नहस कर दिया गया ,४३०० घर जला दिये गये । ५० हजार लोग बेघर हो गये । लगभग १८००० लोगो को चोट आई १४१ चचॆ तोड़ दिए गए । १३ स्कूल को बन्द कर दिया गया । ये आंकड़े है उड़ीसा में आदिवासी समुदाय पर हुए अत्याचार का ।यू कहे तो बजरंग दल १९९५ से इस प्रकार की हिंसा करते आ रहे है । आस्टेलिया के ईसाई मिशनरी ग्राहम स्टेट और उनके बच्चे की हत्या इसका प्रमाण है । राज्य के मुख्यमंत्री बीजू पटनायक बजरंग दल को समॆथन दे रखे है । सीधे तौर पर कहा जाय तो कि भाजपा के साथ सरकार में शामिल पटनायक ने धमाॆतरण को रोकने के लिए अपने दल और अन्य साथी समूहो को छूट दे रखी है । लेकिन मसला यह है कि बजरंग दल बार-बार कहती आयी है कि ईसाई मिशनरी पैसे का लालच देकर धमॆ परिवत्तॆन करा रही है । लेकिन राज्य में कानून है और एक भी मामला अभी तक इस तरह के मामले का सामने नही आया है । फिर सरकार के पास कानून है तो उसने इसका ठेका बजरंग दल को क्यो दे रखा है । समझ से परे है । सवाल यह भी है कि धमॆ परिवत्तॆन की जरूरत क्यो पड़ी । और इस परिवत्तॆन के पीछे कौन जिम्मेवार है सरकार ने गरीव आदिवासी तबको के लिए ऐसे उपाय क्यो नही किये जिससे इसे रोका जा सकता था । और जहां तक मामला पैसे लेकर कराने का है तो अभी भी ईसाई की संख्या ओडीसा में केवल ९ लाख है जो राज्य की पूरी जनसंख्या का ढाई प्रतिशत है । अगर ऐसा होता तो आदिवासी के लिए सबसे अच्छा वक्त अंग्रेजो के समय का था जब वे आसानी से अपना धमॆ बदल सकते थे । लेकिन उस समय ऐसी कोई बात नही थी ।
भाजपा १९६० से ही ओडीसा पर शिकंजा कसने की फिराक में है । जो १९६४ में राउरकेला ,१९६८ में कटक और १९८६ में मदक और १९९१ में पूरे देश में हुए हिन्दु -मुस्लिंम दंगो से पटा है । इतना ही नही जिसका खामियाजा १९६६ के बाद के साल में भाजपा को लक्ष्मिनंद सरस्वती की मौत से मिला है । १९६६ में संध और भाजपा ने मिलकर सरस्वती को मुसलमानो औऱ ईसाईयो पर शासन करने और उसे शांत करने के लिए भेजा था । इस तरह भाजपा का इतिहास यहां क्या रहा है कहना ठीक नही है । लेकिन ताजा जो स्थिति है उसमें बजरंग दल के ऊपर लगाम लगाने का काम ओडीसा सरकार का है नही तो जिनके घर औऱ बच्चे जलेंगे उनके बारे में क्या कहा जाए । जो भी हो अच्छी फसल तैयार नही हो पायेगी । जिसका खामियाजा आज देश झेल रहा है । इसलिए ऐसा कोई कदंम न आगे बढे जो समाज को दिशा से भटकाये और फसलो को ही बबाॆद कर दे ।
उद्धव जी, शेर हुए तो क्या हुआ रहे तो जानवर के जानवर ही।
वाह प्रबुद्ध जी
क्या बात कही है, आपने सही उपमा दी है,
इसके अलावा कहने को कुछ नहीं रह जाता,
नाम को सार्थक करती बात कही है आपने
आदर्श
भूल चूक लेनी देनी। होता है दोस्त।
Bahut accha likhte hain aap... ab uddhav khud me use talash rahe honge jisne unki mardaangi par sawal khada kiya hoga.....
धन्यवाद रवीश जी
रविशजी आपका जो मन करे लिखो खूब लिखो अखबार का पन्ना भरो या ब्लॉग... लिखना आपका जन्मसिद्ध अधिकार हैं.
मर्द का डेफिनेशन जो उद्धव ने शिवाजी पार्क में खड़े होकर दिया है ... शायद उसे इसकी सख्त ज़रूरत थी ... खैर मर्दानगी की ये राजनीती आगे कौनसा मोड़ लेगी इसकी फ़िक्र भी औरो से ज्यादा उद्धव को ही होगी . शायद उद्धव अपने आप को मर्द साबित करना इसलिए चाहते है ताकि उत्तर भारतिए जब मुंबई में फिर से आए तो उन निहत्थे लोगो को फिर से पीट सके ... यही है उद्धव की मर्दानगी .
apney ghar me to chuha bhi sher hota hai....
agar sahi me mard hai to bihar ya purvanchal me aa ke dikhaye pata chal jayega unki mardanagi...
मैं राज ठाकरे से पूरी तरह सहमत हूँ तथा यह कहता हूँ कि
• अगर किसी व्यक्ति का बच्चा कक्षा मे द्वितीय स्थान पर आये तो उसे प्रथम आने के लिये ज्यादा मेहनत नही करनी चाहिये अपितु प्रथम स्थान पर आने वाले बच्चे को पीटकर स्कूल से बाहर खदेड़ देना चाहिये।
• पार्लियामेंट मे सिर्फ दिल्ली के निवासी ही होने चाहियें।
• बॉम्बे मे कोई हिन्दी फिल्म नही बननी चाहिये, सिर्फ मराठी फिल्म ही बननी चाहिये।
• जितने भी मराठी अन्य राज्यों मे कार्य कर रहें हैं, उन्हे वापस महाराष्ट्र मे भेज देना चाहिये, क्योकि वे वहाँ के स्थानीय लोगो का रोजगार छीन रहें हैं।
• शिव, पार्वती व गणेष की पूजा महाराष्ट्र मे नही होनी चाहिये क्योकि ये सभी देवी-देवता उत्तर भारत(हिमालय) के हैं.
• ताजमहल के दर्शन सिर्फ उत्तर प्रदेश के लोग ही करेंगे।
• हमें काश्मीरी आतंकवादियों की मदद करनी चाहिये क्योकि वे अपनी कौम की सुरक्षा हेतु ये सब कर रहें हैं।
• महाराष्ट्र से सभी मल्टीनेशनल कंपनी को बाहर निकाल देना चाहिये।
• कोई भी इंडस्ट्री महाराष्ट्र मे नही लगनी चाहिये क्योंकि मशीने व कच्चा माल बाहर से आता है।
• महाराष्ट्र का प्रत्येक बच्चा राज्य से बाहर नही जाना चाहिये, क्योकि उन्हे सच्चा मराठी मानुस बनना है।
एस के जैन रुड़की (उत्तराखंड)
मर्द को मर्द बताने की जरूरत कहां होती है। बताना,दावा करना आैर सिद्ध करना उसे पड़ता है जो होता नही।उद्धव जी हमे तो आप न मर्द लग रहे हैं न शेर ,शोर आपने अभी देखा नहीं,
शेर कहना कोई आसान नही ए दोस्त,
पेंट खराब हो जाती है जब शेर निकल आता है
अरुण भारद्नाज S1
चलो उद्घव जी ठीक है जो आपने बता दिया कि आप मर्द हो वरना लोग तो अंधेरे में ही रह जाते कि आप क्या है।
Post a Comment