यह तस्वीर सुपौल के किसी जगह पर ली थी। रिक्शे पर कोशी प्रोजेक्ट लिखा देखा तो रहा न गया। जिस प्रोजेक्ट ने सब कुछ छिन लिया वो किसी की कल्पना का सुंदर चित्र भी हो सकता है यकीन नहीं हुआ। उसके बाद नज़र अपने आप वहां जाने लगी जहां कोसी से जुड़ा कुछ भी लिखा होता था। न्यू कोसी जनरल स्टोर,होटल कोसी निवास,कोसी ट्रैवल्स,कोसी मेडिकोज़ आदि आदि। बाढ़ से इस तस्वीर का बहुत गहरा रिश्ता है।
16 comments:
सही कह रहे हैं!!!!
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निवेदन
आप
लिखते हैं, अपने ब्लॉग पर छापते हैं. आप चाहते हैं लोग आपको पढ़ें और आपको बतायें कि उनकी प्रतिक्रिया क्या है.
ऐसा ही सब चाहते हैं.
कृप्या
दूसरों को पढ़ने और टिप्पणी कर अपनी प्रतिक्रिया देने में संकोच न करें.
हिन्दी
चिट्ठाकारी को सुदृण बनाने एवं उसके प्रसार-प्रचार के लिए यह कदम अति महत्वपूर्ण है, इसमें अपना भरसक योगदान करें.
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समीर लाल
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उड़न तश्तरी
सुन्दर सपने का क्या हाल कर डाला...
एक मशहूर कहानी या कविता की पक्ति हैं. मुझे किसी और ने बताया था.... बहुत गजब और प्रभावित करने वाली लाइन है....
विभिषका या तांडव कितनी भी भयावह हो, नदी की धारा हमेशा कल कल करती ही चलेगी, चिडि़यां सुबह सुबह चहचहाती रहेंगी, बच्चे स्कूल जाते हुए उसी मासूमियत से रोते रहेंगे....
रही बात इस चित्र की तो मेरा अपना मानना है कि रचनात्मक कार्य करने वाला कोई भी इंसान में सबसे उपर चित्रकार होता है. बिना शब्द और भाव के वह ऐसा झंझावात कर सकता है कि नेताओं के भाषण, टीवी की चिल पों.... सब गायब...
चित्रकार को सलाम
कल्पना की कोशी और यथार्थ की कोशी में काफी अंतर दिख रहा है।
Raveeshji,ek achhi phot laye hain aap. kisi bhi kalakaar ki aisi sakaratmak soch hi jindgi ko aage badhne ke liye prerit karti hai.
माँ आपका ब्लॉग बहुत दिनों से पढ़ रही हूँ। आज पहली बार मनन किया कि कोई कमेन्ट भी छोड़ दूँ। आपके ब्लॉग को पढ़के हिन्दी लिखने और पढने का मन करता है। इतने सालों इंडिया से बाहर रह कर हिन्दी पढने की आदत बिल्कुल छूट गई थी, यहाँ आके वोह आदत फिर दाल रही हूँ। शुरू शुरू में थोडी मुश्किल हुयी थी, पर अब तोह मैं आराम से हिन्दी पढ़ सकती हूँ, और यह सिर्फ़ इसीलिए की आपका लिखा हुआ पढने की चाह थी, तोह आपने आप को हिन्दी पढ़ना फिर से सिखाया। इसके लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया।
आगे भी कमेन्ट करती रहूंगी।
नेहा
पैनी नज़र..
बढ़िया पोस्ट
Ravishji
paini drishti hai aapki.
Koshi ki tandaw leela par aapse kuchh aur apechhit hai. tathakathit positive aur manaviya marmsparshi paksh
saadar
अच्छी तस्वीर ढूंढ़ लाये हैं आप. !
अरे गुरूजी, कोशी नहीं कोसी....मैंने भी ग़लती की थी, किसी ने सुधरवा दिया....।
रवीश जी क्या कोशी मइया पटना के बाद दिल्ली तक नही आ सकती अगर हो सके तो उन्हें दिल्ली तक भी आने का न्यौता जरूर दीजिएगा....
naamvar sing aur ashok vajbai
samajh nahin paata aap aur avinash ko kya khitaab dun.
khair aapka dushman bhi manega k
आपकी रचनात्मक मेघा सराहनीय है.
हमारी शुभ कामनाएं.
कभी समय मिले तो इस तरफ भी आयें, और हमारी मुर्खता पर हंसें.
http://hamzabaan.blogspot.com/
http://shahroz-ka-rachna-sansaar.blogspot.com/ http://saajha-sarokaar.blogspot.com/
bhahut acchi tarah se ek - ek bato par jor diya hai apne, aur bahut hi acchi tarah se sabke samne koshi ke darawane swaroop ko rakha hai apne thanks
mera blog hai : taarkeshwargiri.blogspot.com
ravish ji,
jab humlog chhotey thhe tab ki baat hai, log barey fakr k saath kahte thhe ki ''Kosi Project Mein Kaam Karte Hain, Executive Engineer hain''.. aise hi jaanewalwy ek sahab jo kosi ko barbad karkey aabad huey thhe, is baar kosi k rukh badalney k karan barbad ho gaye.. saayad ye kosi ka badla lene ka apna tarika ttha. baat sirf yahin par khatm nahi hoti laakhon logon ke tabahi k tandav k bich purv mukyamantri jinhoney satyanaas karney mein koi kasar nahi baki rakhi, aaj wohi sawal utha rahey hain aur badey releif package ki ghosna kar rahey hain train chalakar, kahan tak jati hai train, saayad unke liye sabkuch ek majak k siwaye kuch nahin hai? ad toh saayad yahi lagta hai ki ek din ki tankhwah jo humlog donate kar rahey hain , saayad woh bhi nahin pahuchpayegajaroorat mandon k paas....
सर ये इस देश और इस देश के सबसे पिछड़े लोगों का दुर्भाग्य है कि कोई भी सरकारी परियोजना केवल कागजों तक ही सिमट कर रह जाती है. उसमे कागज से निकल कर यथार्थ के धरातल पर आने का साहस हमारे कथित राजनेताओं के डर से नहीं हो पाता है.
koshi, (kosi nahin) me paida hua,use dekh-bhogkar bada hua ek parakar kuch likh raha hi. kripya dekhiyega
link hi
http://koshimani.blogspot.com
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