मैं एक दिन सबसे अच्छी कविता लिखूंगा
सुमित्रानंदन की तरह मैं कूड़ा नहीं लिखूंगा
जो भी लिखूंगा सारा का सारा बेहतर लिखूंगा
पंत की तरह आधा बेहतर आधा कूड़ा नहीं लिखूंगा।
मैं एक दिन सबसे अच्छी कविता लिखूंगा
सारे विषय और सारे विश्लेषण पर लिखूंगा
प्रेमचंद, प्रभा खेतान के लिए कुछ नहीं छोडूंगा
इतना लिखूंगा कि आलोचक को भी कहना पड़ेगा
तुमने भी जो कुछ भी लिखा अच्छा लिखा है
कम से कम पंत की तरह कूड़ा नहीं लिखा है।
मैं हिंदी का सबसे नामवर कवि बनने वाला हूं
नामवर मेरी कविता का पाठक बनने वाले हैं
मैं नामवर को जान कर कविता लिखने वाला हूं
अपने लिखे के आस पास कूड़ेदान नहीं रखने वाला हूं
दुनिया मेरे साहित्य को धरोहर कहती रहेगी
मैं अपने लिखे के कूड़े को सोना समझता रहूंगा
बात नामवर की हो या कहें उसे वाजपेयी
मैं एक दिन सबसे अच्छी कविता लिखूंगा।
32 comments:
विचार अच्छे हैं लेकिन कविता नहीं.
मनुष्य आप अच्छे हैं लेकिन तंजनिगारी अच्छी नहीं.
बहुत अजीब लगी .... सच कहूँ तो समझ ही नही पाया कुछ
हल्के फुल्के चिंतकों/रचनाकारों पर गजब का satire लिखा है आप ने -- शास्त्री जे सी फिलिप
अगर यह व्यंग्य है तो अच्छा व्यंग्य है,
अगर यह खुद पर लिखी कविता है तो बहुत बुरी कविता है.
जुगनू करने चला रोशनी,क्या वो सूरज बन पायेगा
दिन मे निकल गया गर बाहर भस्म वही हो जायेगा
इच्छाये तो है तेरी,पर अपनी यू औकात तो देख
समझ रहा जिसको तो कविता कूडे से है बदतर लेख
साईकल सीखा नही सही से,हवाई जहाज उडायेगा
कुये का मेढक है तू बेटा,कोलम्बस नाम धरायेगा
जब तू लिखेगा तब देखेगे,अबी तो बेटा चलना सीख
कन्धे से उतार जुआ,मैदान मे आकर मिलना सीख
कमंद बाधनी आई नही और गांव मे डंका पीट रहा
बिच्छू काटे का पता नही और साप का मन्तर सिखा रहा
पंत की बाते छोड तू बेटा,दो लाईने ही जोड दिखा
उपर से तू ठीक भले हॊ,दिल मे सबको तेरे कोढ दिखा
लिखेगा अच्छा सब मानेगे,पर बुरा तो लिखना छॊड जरा
संकीर्ण विवार से निकल के बाहर,दिल तो सबसे जॊड जरा
पजामे से बाहर निकल रहा,तू नाडा बांधना तो सीख जरा
फ़टे मे दूसरो के खुब डाल टांग,पर अपनी तो हालत देख जरा
यह कविता है या कविता की चिता?
नीरिजा जी की सलाह पर अमल करें पहले, बाद में हम भी नामवरजी की तरह आपका लिखा (???)जरूर पढ़ेंगे।
कितना आसान है अपने अलावा सब के लिखे को कूड़ा कह देना।
इस कविता पर में एवं मेरी टिप्पणी के बारे में कई लोगों ने मुझ से सम्पर्क किया, अत: एक स्पष्टीकरण आवश्यक है:
इस कविता में कवि अपनी भावना नहीं लिख रहा है. वह उन लोगों पर व्यंग कर रहा है जो कल लेखन की दुनियां में आये है, एवं स्थापित लेखकों को नीचा देख कर अपने आप के बारे में सोचते हैं कि वे इन स्थापित लेखकों से अच्छा लिख लेंगे.
यह व्यंग की एक विधा है जिसे satire कहा जाता है. हल्के फुल्के लेखकों की सोच को लेखक ने इस कविता में व्यक्त किया है. यह समझ लें तो नीरिजा जैसे लोगों ने जल्दबाजी में जो लिखा है वह कितना गलत है यह समझ में आ जायगा.
कृपया टिप्पणी करने से पहले यह समझ लें कि यह किस विधा की कविता है, एवं कौन है जो हिन्दी के इन महान हस्तियों के विरुद्ध इस कविता में बोल रहा है.
हल्के फुल्के एवं अहंकारी लेखक/रचनाकर है जो इस तरह से सोचते हैं, एवं इस कविता के लेखक ने उनकी आलोचना satire विधा में किया है.
मेरे माननीय मित्र किसी विधा को न समझते हों तो कोई ताज्जुब नहीं है. हम में से कोई भी सर्वज्ञ नहीं है. लेकिन कम से कम जल्दबाजी में अशोभनीय टिप्पणी कर अपने अज्ञान को प्रगट न करें
-- शास्त्री जे सी फिलिप
पुनश्च: इस विषय पर मेरा लेख पढिये सरथी (www.Sarathi.Info) पर जो जून 2 को 2 बजे के आसपास छपेगा
बहुत अच्छा व्यंग्य है,आज यही तो हो रहा है,..कहें तो बुरा ना लग जाये कौवा चला हँस की चाल...हम उन कविओ से अपना मुकाबला कैसे कर सकते है भला...हाँ कोशिश कर सकते है उनके जैसा बनने की...बहुत सुन्दर और गहरा व्यंग्य है..समिक्षा के लिये शास्त्री जी का भी धन्यवाद।
सुनीता(शानू)
बढ़िया लिखा है, इसे ज़रा अच्छी रचनाओं वाली केटेगरी में सेव किया जाए।
मैं शास्त्री जी से सहमत हूँ। रवीश भाई की इस Satire विधा की कविता का मर्म नीरजा जी तथा अन्य लोग समझ नहीं पाए।
मैं शास्त्री जी की बात से सहमत हूं...
करारा व्यंग है । परसाई और जोशी कि तरह का । वो भी तात्कालिक लिखते थे आप ने भी तात्कालिक लिखा है । और निरिजा जी ने भी कोई कम नही लिखा है । आप सब कि बातो के बाद अज्ञेय कि एक पंक्ति याद आ रही है ...
मैं सवाल उठाऊंगा और बैठ जाऊंगा, सवाल अपने जगह पर तो बना रहेगा ।
ई का लिख मारे हो, जरा लाइन बाइ लाइन समझाया जाए। जैसे बचपन मे स्कूल मे पढते थे, सन्दर्भ सहित व्याख्या, ऊ की जाए।
नीचे या ऊपर एक वैधानिक चेतावनी भी टिकाए दो, हम तो ऐसे है, ऐसे रहेंगे। प्रायोगिक तौर पर कवि है, प्रयोग सफ़ल असफ़ल दोनो हो सकते है, दिल मत लिया जाए।
अब इत्ते लोगों ने पक्ष और विपक्ष मे लिखा है तो जरुर कुछ काम का ही होगा, सच बताए, हमको तो पल्ले ही नही पड़ा।
एक चुटकुला याद आ गया, दो डाक्टर सड़क किनारे खड़े थे, एक आदमी लंगड़ाता हुआ आया, तो डाक्टरों मे शर्त लग गयी, एक बोला इसकी टांग मे दिक्कत है, दूसरा बोला नही, इसके घुटने मे चोट है। दोनो पक्ष/विपक्ष मे तर्क देते हुए और लड़ते लड़ते, उस आदमी के पास पहुँचे तो उस आदमी ने बताया :
"अरे यार! ना तो मेरी टांग टूटी है और ना ही घुटना। अलबत्ता मेरी चप्पल जरुर टूटी है,इसलिए लंगड़ाकर चल रहा हूँ। तुम लोग बेवजह ही आपस मे पिल्लम पिल्ली किए हो"
अब तुम कब बताओगे, कि इस कविता काहे लिखी ?
इस कविता की लघु-समीक्षा देखिये: http://sarathi.info/archives/208
मैं एक दिन सबसे अच्छी कविता लिखूंगा।
वह कविता भी सबसे अच्छी न हो तो भी बहुत अच्छी तो है ही, क्योंकि हो सकता है जो कविता बाद में आप लिखें वो सबसे अच्छी हो।
रवीश जी..
आप ने व्यंग्य लिखा होगा लेकिन रचना से झलका नहीं। व्यंग्य की भी अपनी एक दिशा है और आपकी यह रचना वहाँ तक नहीं पहुँचती। कुछ पंक्तियाँ कम पड गयी हैं। कविता ऊँन के लच्छे की तरह उलझी हुई है..सुलझाईये।
*** राजीव रंजन प्रसाद
किसी भी टिप्पणी से पहले शास्त्रीजी की टिप्पणी जरूर पढें !
ravish jee kee is kavita ko jald hee schoolee pathyakram main shaamil dekhne kee ummeed ke sath...
दोस्तों
बहुत दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि कुछ लोगों के अनुसार मैं कविता और कविता में व्यंग्य लिखने की कोशिश में नाकाम हो गया है। पर मैं सिर्फ उस प्रयास का मज़ाक उड़ाना चाहा था जिसमें नामवर सिंह जी ने सुमित्रानंदन पंत की कविता का मजाक उड़ाया था। तो सोचा कि क्यों न हम भी कुछ उड़ा दें। लेकिन हमारा ही मज़ाक उड़ गया। अच्छा लगा। जो लोग खुद को गंभीर समझने की अगंभीर कोशिश करते हैं उनके साथ यही होना चाहिए।
रवीश
कविता लिखने का आपका हक कोई नहीं छीन सकता रवीश, मैं आपके साथ हूँ। और हाँ इसके पहले की शास्त्री जी फिर से याद दिलायें मैं ही लिख देता हूं, उन्होंने http://sarathi.info/archives/208 पर इस पोस्ट के बारे में लिखा है :) मुझे रिश्ते ही रश्ते वाले दीवारी विज्ञापन याद आ गये जो बिना अनुमति लोग हर खाली दीवार पर लिख दिया करते हैं ;)
Ravish ji,
main pehle aapki kavita ka sandarbh nahi samajh payi thi,aur jab sandarbh samajh aaya to apni samajh par badi sharmindagi mahsoos hui.shastri ji ka bahut bahut dhanyawaad.
य्ह कविता बड़ी है कि नहीं पता नहीं . पर इस कविता की मार बड़ी है . कविता अपने उद्देश्य में सफल है .
kaafi dinon baad aapke panne tak pahuncha...aap wakai khushkismat hain ki itne saare aapke chahane wale abhi tak aapke saath hain...sahmat ya asahmat hona ek alag vishay hai par jab log is neeyat se aapke blog par tippani karate hain jaise wo aapko sahityakar mein tabdil hote dekhana chahate hain to unki samajh par rona aata hai..baharhal is desh mein namvar koi vyakti nahin ek biradari hai...aur ye anadi kaal tak vilupt nahin hone wali...mera yakeen maniye.
acha likha aapne shashtri ji, logo ko kahne do logo ka kaam hai kahna, mujhe acha laga, likhte rahiye
"समझने वाले समझ गए हैं. जो ना समझे वो अनाड़ी हैं". वैसे तुकबंदी में निरिजा का कोई सानी नहीं... रविश जी, इतनी अच्छी और सरल कविता लिखने के लिए बहुत बहुत बधाई.
Bahut badiya likhe ho ho Guru..
achanak kasbe me pahuch gaya. kayee baaten saaf aur beelaag kahee hai aap ne. par kya karooge bhai sahitya ke duniya me likha hua he sach hoota hai bhale he insaan kitana he makkar aur jhuta kyo na ho.
rakesh manjul
प्रिय रविश जी..,
आप टीवी पत्रकारिता और ब्लॉग पत्रकारिता दोनों में ही बहुत अच्छा कार्य कर रहे है..., किन्तु दोनों ही विधाओं में सत्य, तथ्य और कथ्य का सही तालमेल ही किसी खबर अथवा रचना को बेहतर बना सकता है..।
हम जिस नामवर का मजाक उड़ाना चाह रहे है उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन हिंदी सेवा के लिए दिया है। इसलिए यदि संभव हो पाए तो नामवर सिंह का महादेवी जन्म शताब्दी पर दिया गया भाषण अपने ब्लॉग में प्रकाशित करने की कृपा करें।
क्योंकि जब तक मूल भाषण को ना देख ले कुछ भी कहना सही नहीं हैं।
मेरी आपसे भी एक जिज्ञासा है कि क्या आपने नामवर सिंह का मूल भाषण सुना अथवा पढ़ा है?
एक सामान्य पाठक की हैसियत से मेरी जिज्ञासा को शांत करने की कृपा करें। यदि आपके पास उस मूल भाषण की कोई प्रति हो तो सभी ब्लॉग पाठकों को उससे रूबरू करवायें। क्योंकि शब्द, अर्थ और संदर्भ को जाने बिना कुछ भी कहना बचकानी हरकत होगी..।
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