बैरकपुर कहां है? कोलकाता से कोई ६० किमी दूर एक छोटा मगर अच्छा सा लगने वाला शहर है। यहां एचडीएफसी के एटीएम काउंटर है। उमस भरी गर्मी। गंगा के किनारे बसा बैरकपुर। मंगल पांडे ने सबसे पहले यहीं से बिगुल फूंका था। अठारह सौ सत्तावन की क्रांति का।
मई के महीने में बैरकपुर गया। अच्छी सड़क। ड्राइवर से कहा बैरकपुर में देखने लायक क्या है? मंगल पांडे की प्रतिमा या स्मारक तक ले चलोगे? दस मिनट के अंदर वो हमें ले आया। शानदार पार्क। बच्चों के खेलने के स्लाइड। झूले। सामने अपनी दुनिया में मस्त गंगा। गंगा या किसी नदी के किनारे पूरे देश में ऐसा पार्क न होगा। मुंबई का जागर्स पार्क भी फीका। क्या है उसमें ? समंदर। बस। लेकिन बैरकपुर में मंगल पांडे के नाम पर बने पार्क में क्या नहीं है?
पार्क के बीच में मंगल पांडे की प्रतिमा। सेना इसका रख रखाव करती है। प्रतिमा के नीचे दो प्रेमी। मंगल पांडे की ओट में अपने लिए दो पल जी रहे हैं। पूरे पार्क में कोई सौ जोड़े मौजूद होंगे। भरा पूरा पार्क। गंगा फेसिंग बेंच हाउस फुल। छाते के नीचे प्रेमी व्यस्त। पीछे मंगल पांडे और सामने गंगा। प्रेम करने की इससे महफूज़ जगह क्या होगी। अठारह सौ सत्तावन के हर सबक को हम धो पी कर चाट गए। हिंदू मुस्लिम एकता को कबका भूल कर हम एक दूसरे को भिड़ा चुके हैं। मगर बैरकपुर के इस पार्क में मोहब्बत आबाद है। कम्युनिस्ट बंगाल में बुर्जुआ प्रेम क्रांति पनप रही थी। रेडियो से गाने की आवाज़ आ रही थी..सारा प्यार तुम्हारा मैंने बांध लिया है...जवान जोड़े मंगल पांडे की पनाह में दिल्ली मुंबई के प्रेमियों से बेहतर स्थान पा कर अपने हसीन पलों को यादगार बना रहे थे। कोई पुलिस नहीं। कोई बजरंगी नहीं। कोई किसी को छेड़ नहीं रहा था। कोई किसी जोड़े को करीब से देखने की कोशिश नहीं कर रहा था। इतिहास में भूला दिये गए या फिर फिल्मों में समेट दिए गए यूपी के मंगल पांडे ने बंगाल में अपनी याद में ऐसी बेहतरीन जगह प्रेमियों को दी है।
मंगल पांडे के अपने उत्तर प्रदेश में प्रेमियों के लिए कोई जगह नहीं है। मेरठ में एक दिन पुलिस किसी पार्क में धमक गई। प्रेमियों की पिटाई करने लगी। बैरकपुर में सेना इस क्रांतिकारी की याद में पार्क का रखरखाव करती है। मुफस्सिल टाउन के लड़के लड़कियां बिना किसी वाद विवाद का सामना किये अपने रिश्ते बुन रहे होते हैं। नदी के किनारे बने इस पार्क की खूबसूरती उनके प्रेम से भी गहरी है। कभी बैरकपुर जाइयेगा तो हो आइयेगा। अकेले भी जा सकते हैं। किसी को फर्क नहीं पड़ता।
वैसे शहर बदल रहा है। पहले कैसा था मालूम नहीं। छोटा सा शहर मगर किसी बड़े शहर से अनजान नहीं। बैरकपुर देश के कई कस्बों से बेहतर और उदार जगह है। शायद इसलिए भी हो कि लोगों का ध्यान सिर्फ मंगल पांडे की चर्चा तक ही सीमित रहा हो। और प्रेमियों का ध्यान मंगल पांडे को भूल कर अपनी ज़िंदगी के इस खूबसूरत पल को जीने में। पार्क में आने वाले जोड़े किसी अमीर घराने के नहीं। बंगाल के मामूली परिवारों के जोड़े। जो महानगर से पीछे छूट जाने के तनाव में नहीं है। बल्कि जो सामने हैं..उसी को गर्व के साथ जी रहे हैं। हर उम्र के लोग इस पार्क में मिलेंगे। कोई कार या बाइक से आया हुआ नहीं मिला। सब कहीं दूर से पैदल चलते हुए आ रहे थे। थका कर घंटों इस पार्क में आराम के लिए। प्रेम के लिए। बैरकपुर में प्रेम की क्रांति के बिगुल बज रहे हैं। मंगल पांडे की प्रतिमा की आड़ में। मंगल पांडे के नाम पर उत्तर प्रदेश में कोई पार्क होता तो आप कल्पना कर लीजिए? मेरठ में एक स्मारक है। रिटायर्ड लोग कभी कभार मिलते हैं वहां। बैरकपुर में सब जवान। मिलते हैं तो कई सामाजिक मान्यताओँ को तोड़ कर। चुपचाप। हिंदुस्तान में प्रेम करना किसी न किसी स्तर पर विद्रोह है। मंगल पांडे की याद में बने इस पार्क में आज भी विद्रोह हो रहा है। बस आपको बैरकपुर जाना होगा।
8 comments:
कुछ पुरानी बातें याद दिला दीं आपने.कभी हम भी इस पार्क में बैठा किये थे अपनी माशूका के साथ नहीं वरन दोस्तों के साथ.वैसे कलकत्ता में ऎसी बहुत सी जगह आपको मिल जायेंगी जहां प्रेम पल्लवित होता है.अगली बार जायें तो कुछ जगह जरूर घूम लें जैसे विक्टोरिया मैमोरियल,साल्ट लेक का सैट्रल पार्क,अलीपुर जू,मिलिनियम गार्डन और भी बहुत जगह हैं जहां आप बेरोकटोक प्रेम की झांकी देख पायेंगे.
क्या देश है, प्यार के लिए छिपना पड़ता है, पर नफरत खुलेआम बँटती है।
डर है कि यह सब पढ़ कर कहीं बैरकपुर के पार्क में भी धर्म-संस्कृति के ठेकेदार न पहुंच जाएं जोड़ो को परेशान करने व भगाने!!
मुझे भी लेख पढ़ते समय इस बात का डर सता रहा था कि कहीं इन प्यार करने वालों के लिए कोई मुसीबत न खड़ी हो जाए। किसी बजरंगी या ऐसे ही ठेकेदार वहां भी न धमक जाएं। लेकिन बंगाल में ऐसा कम ही होता है।
कभी दिल्ली के पार्क की आंखों देखी सुनाएं। सुना है यहां भी प्यार फलता और फूलता है पार्कों में। बताएंगे तो कम से कम दिल्ली के पार्क तो घूम आउंगा।
-ओम
बैरकपुर मे जो कुछ हो रहा है वो अजूबी बात नही है। हमारे यहा के सारे एतिहासिक स्थान आज जोडो के मिलने कि जगह बन चुके है। जिस जगह पर कभी क्रान्ति का बिगुल बजा था वहा प्रेम का बिगुल बज रहा है तो ये वक्त के बदलाव का घोतक है।
कामरान परवेज़
www.intajar. blogspot.com
आपने बैरकपुर के पार्क की कहानी बताई| बदीया है क्रान्ति का बिगुल बजाने वाले प्रेमियो के काम आ रहे है
Ashok Kaushik ke vichar--
Huzoor premi jode is park mein sirf fursat ke 2 pal talaash karne aate hain Bhai Jaan, Mangal pande ko yaad karne nahi.Agar park mein Mangal pande ki jagah maharani Victoria ki pratima hoti to bhi premiyon ko kaoi fark nahi padta. tab aap kya kya kahte- yahi na ki- ghulami ki nishani ke aagosh mein pal rahi hai hindustani mohabbat??
---ashok--
Huzoor premi jode is park mein sirf fursat ke 2 pal talaash karne aate hain,Mangal pande ko yaad karne nahi.Bhai Jaan Agar park mein Mangal pande ki jagah maharani Victoria ki pratima hoti to bhi premiyon ko kaoi fark nahi padta. tab aap kya kya kahte- yahi na ki- ghulami ki nishani ke aagosh mein pal rahi hai hindustani mohabbat??
---ashok--
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