किसी को हटा सकने की असीम ताकत प्राप्त नारद एग्रीगेटर पर बहुत ही कष्टप्रद विवाद चल रहा है। हिंदू और मुस्लिम सांप्रदायिकता के खिलाफ बोलने से सबकी सहनशक्ति क्यों टूट जाती है? क्यों लगता है कि इस चर्चा से ज़हर फ़ैलती है? ज़हर की चर्चा से सावधान रहने की समझ आती है। आपने किताबों में पढ़ा होगा न। कि सांप काटने के थोड़ी दूर पर कस कर पट्टी बांध देने से ज़हर का विस्तार रूक जाता है। इसीलिए तो हम लोग भी सांप्रदायिकता पर खुल कर लिखते हैं। हम यह स्पष्ट कर दें कि कांग्रेस, बीजेपी और लेफ्ट हर तरह के दल के ऐसे किसी भी कदम का विरोध करते हैं जिनसे सांप्रदायिकता की बू आती है। संजय जी आपको क्यों लगता है कि ब्लाग पर लिख देने से ज़हर फैल जाएगा। और नारद जी आपको क्यों लगता है कि ज़हरीले सांप के नाम पर किसी भी सांप को मार दो।
हम कहते हैं कि सांप की पहचान हो। उसे मारो नहीं। उससे बचने का रास्ता समझो। सांप की ज़हर से बेवजह डर के कारण ही हमने कई निर्दोष सांपों को मार दिया। कई सांप विलुप्त हो रहे हैं। मोदी को मारो नहीं। बल्कि उन दरख्तों की पहचान करो जिस पर सांप्रदायिकता का हरा सांप रहता है। यह हमारी नीति है। लोकतांत्रिक नीति। हम बहस और वोट के ज़रिये मोदी को हराने का ख्वाब देखते हैं। ये और बात है कि पिछली बार हमारा ख्वाब टूट गया। मोदी जीत गया। मगर उसके बाद भी हम ऐसे सपने देखते हैं।हिंसा के रास्ते से मोदी का विकल्प नहीं ढूंढते।
अब रही बात नारद के फैसले की। भाई और क्या कर सकते हैं? ब्लाग रूपी बीघे के आप ज़मींदार होंगे। इसीलिए टोले से बाहर कर दिया। राहुल ने खेद जता दिया। प्रियंकर ने खत लिख दिया। अविनाश ने नारेबाज़ी की। तब भी फर्क नहीं पड़ा? क्योंकि इतिहास में ऐसा ही हुआ है। ज़मींदारों को कोई फर्क नहीं पड़ता। बस टोले के लोग दूसरे रास्ते से विदेश जाकर अपनी किस्मत बदल लेते हैं। बाद में गांव में एनआरआई होकर लौटते हैं और गांव को बदल देते हैं। हर दूसरे गांव में पुराने ज़मींदार का घर खपरैल का लगता है। और पुराने मज़दूर का आजकल पक्के का।
मैं कहना चाहता हूं कि आप लोग राहुल के ब्लाग पर प्रतिबंध न लगाएं। मोदी सांप्रदायिक है। गुजरात में ज़हर फैला है। यह बात कहने से अगर ज़हर फैलती हो तो क्या करें। ज़हर किससे फैल रही है इसका फैसला कौन करेगा। नारद? बातों से हम टकराते हैं तभी तो हमारी राय बनती बिगड़ती है। पहले भी मोहल्ला और इरफान, आरफा के लेख को लेकर बवाल मचा था। पंगेबाज़ जी पंगा करने आ गए। सबके बीच खूब गरम संवाद हुआ। पंगेबाज ने मुकदमा नहीं किया और नारद ने भी किसी को नोटिस जारी नहीं किया। या पता नहीं किया भी होगा। मैं ऐसी नोटिसों को नहीं पढ़ता। लेकिन नतीजा क्या हुआ? उस बहस का यह नतीजा निकला सब आपसे में संवाद करना सीख गए। पंगेबाज गुस्से की बजाए दलीलों पर आ गए। और मोहल्ले पर अविनाश ने लिखा भी कि अगर उनके ब्लाग के किसी लेख से दुख पहुंचा तो उन्हें अफसोस है। मगर एक ब्लाग ने राहुल का साथ देने वालों को दीमक और आतंकवादी तक कहा है। क्या यह इंटरनेटीय गुंडागर्दी है? क्या ब्लाग आधिपत्य का अखाड़ा बनाया जा रहा है?
ब्लाग किसी की बपौती नहीं है। किसने पहले लिखा इसका इतना गर्व क्यों? क्यों नहीं आप लिमका बुक वाले के पास चले जाते हैं? वहां पहले दूसरे का रिकार्ड रखा जाता है। मैंने एक जवाब में पढ़ा है कि मैं तब से लिख रहा हूं जब से आप नहीं लिख रहे थे। ये किसी और के बारे में कहा गया है। जो लोग पहले से ब्लाग लिख रहे हैं तो जान लें कि सारे अधिकार सिर्फ इसी आधार पर उन्हें नहीं मिलेंगे। किसी ने कहा कि हम से कई लोग अपने चैनलों में क्यों नहीं अपनी भड़ास निकालते? यह कोई सवाल है? वो एक पेशेवर जगह है। वहां खबरे दिखाते हैं। ब्लाग हमारी निजी अभिव्यक्ति है। जिसका एक सार्वजनिक उद्देश्य है। चैनल में कहने की चुनौती देंगे तो हम पूछ दें कि राहुल की जगह आपके परिवार के किसी बड़े ने ऐसा लिखा होता तो क्या आप घर से बाहर कर देते? हमने किससे सवाल किया कि आप विरोधी जन कहां काम करते हैं? ईमानदार हैं या नहीं? हम सिर्फ आपके लिखे को फेस वैल्यू पर लेते हैं।
मुझे लगता है कि हम किसी न किसी बहाने असहनशील होते जा रहे हैं। राहुल के बाजार को हटा कर अच्छा नहीं हुआ है। मैं व्यस्त था। इसलिए चुप नज़र आ रहा था। मुझे लगता है कि राहुल के साथ मेरे ब्लाग को भी चलता कर दीजिए। आखिर यहां रह कर क्या फायदा? कल मेरी भी किसी बात पर आप भड़क जाएं और बाहर कर दें। कुजात कर दें।
नारद जी। आपका काम कहीं का कहा और कहीं का सुना है। पुराणों में नारद के और भी महीन विवरण होंगे मगर परंपराओं में नारद का यही काम समझा जाता है। इस घर की बात उस घर में। ऐसा मत कीजिए। बल्कि ऐसे मौकों के लिए मध्यस्थ का काम कीजिए तो ठीक रहेगा। जज मत बनिये। वैसे भी हम आपसे दूर कहां जा सकते हैं। जाएंगे भी तो आप पहुंच जाएंगे। पता करने कि वहां क्या हो रहा है। नारायण । नारायण।
14 comments:
मित्र रवीश.. जब आप काम में व्यस्त थे.. तब बजार प्रकरण हुआ.. और फिर एक साथी हैं नासिरुद्दीन.. उन्होने भी आपकी ही तरह अपने ब्लॉग को नारद से हटाये जाने की पेशकश कर डाली.. उनको जो जवाब मिला वो यहाँ चिपका रहा हूँ ताकि सनद रहे..
Narad Muni said...
यदि आप अपना ब्लॉग नारद से हटवाना चाहते है, तो इत्ती बड़ी पोस्ट लिखने की आवश्यकता नही थी,
बस एक इमेल लिख देते, कि आपके ब्लॉग को नारद से हटा दिया जाए।
आप इमेल भेज रहे है क्या?
June 13, 2007 3:56 PM
वैसे आप को भी यही जवाब मिलेगा.. ये कोई ज़रूरी नहीं.. आप रवीश हैं और वो नासिर.. कुछ तो फ़र्क है..
अभय जी
मुझे पता है कि क्या करना है। मैं क्या हूं यह मेरा भ्रम नहीं है। दूसरों का बनाया हुआ ज्यादा है। बर्हिगमन से पहले बात रखने की परंपरा है। संसद या विधानसभा में। वहीं से आदत पड़ गई है। नारद से क्या जवाब मिलेगा मैंने इसकी पूर्व कल्पना नहीं की है।
इस पोस्ट को ईमेल ही समझा जा सकता है। लेकिन लोगों को पता तो हो कि मैं क्यों बाहर हो रहा हूं। क्या करना है मेरा इरादा पोपुलर होकर चुनाव लड़ना नहीं है। बल्कि बात रखने का है। जब इसी में खलल हो या धौंस हो तो उससे अच्छी तो नौकरी है। जो मेरे सहित आप सब और ये नारद के वीर बालक उसकी शर्तों को मानते हुए चुपचाप करते हैं। और बाद में मुझे चुनौती देते हैं कि मैं क्रांतिकारी हूं या नहीं? या मैं अपने दफ्तर में विरोध करता हूं या नहीं? जैसे कि वीर बालक रोज अपने दफ्तरों में करते
हम चाहते हैं कि नारद सहनशील होना सीखे। वर्नी इस पोस्ट को ई मेल समझ कर बाहर कर दे। यह कोई भारत सरकार नहीं है जिसके यहां आवेदन भेजना संवैधानिक दायित्व
रवीशजी, क्या आपने राहुल का ओरिजनल पोस्ट पड़ा. पहले उसे पढि़ए. वह सहनशीलता से बाहर बाद में, मर्यादा से बाहर पहले है. संसद की बात उठाई आपने. अच्छी कही. यह बताएं कि संसद में गाली-गलौज को आप जायज मानते हैं. इस पर अब तक मैंने चुप रहना बेहतर समझा, मगर कल इस पर अपनी बात अपनी पोस्ट में रखी जाएगी.
विशेष जी
मैंने पढ़ा है। संसद में गाली गलौज को जायज नहीं मानता। आप अपनी जानकारी ठीक कीजिए कि संसद में गाली गलौज के बाद ही बहिर्गमन होता है।
बेशक पोस्ट लिखिये। आप क्यों चुप थे अभी तक। हम आपकी राय पर आपके कहीं से बाहर कर दिये जाने की अपील नहीं करेंगे। मैंने ऐसी कोई बात नहीं लिखी है जो मर्यादा के बाहर हो। इतना पता है।
आपके लिखे का इंतजार रहेगा।
राहुल का लिखा हुआ पुराना हो गया। उसके बाद जिस तरह की धमकिया प्रतिक्रिया के नाम पर दी जा रही हैं वो भी कम नहीं। आप भी एक और हो जाएंगे। क्या फर्क पड़ता है? जी करेगा तो कहीं मिल जाऊंगा तो सर फोड़ दीजिएगा।
मैं कोई लाचार गांधीवादी नहीं बन रहा। पर राहुल से पहले और बाद में कही गई बातों को समग्रता से देखिये। एक ने पत्थर मारा तो हज़ारों ने उठा लिये।
क्या बात है साहब। ऊपर से लिखना भी गुनाह।
रवीश इन विदा गीतों को गाना बंद कीजिए- धुरविरोधी अपनी विदा पोस्ट लिख ही चुके हैं। ये कोई सुखद नहीं है कि लोग चाहें कि असहमत स्वर अपना डेरा उठा के चलते बनें और उन्हें झट तथास्तु कह दिया जाए।
हम भले ही उतनी शिद्दत से ये न मानते हों कि ये कोई सांप्रदायिकता के खिलाफ चल रहा महायुद्ध है पर इतना जरूर मानते हैं कि आपको ये मानने का पूरा हक है। और किसी को ये हक नहीं कि आपको ऐसा मानने से रोके- कहने से रोके।
बाकि बहिर्गमन भी भले ही प्रतिरोध ही है पर यह आऊटनंबर होने की विवशता की स्वीकृति भी है--- ऐसा अभी सिद्ध नहीं हुआ है-- हॉं आप बहिर्गमन कर बैठेंगे तो जरूर हो जाएगा। इसलिए थमे रहें।
रवीश भाई, आपके पोस्ट की भावना के साथ न होने का सवाल ही नही है। अभय जी ने उस भाषा और टोन की ओर ध्यान दिलाया है, नारदमुनि जी जिसकी नुमाइंदगी कर रहे हैं। आज दिन भर जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल कर उन लोगों को सम्बोधित किया गया, जो इस कार्रवाई से असहमत थे, वो नारदमुनि जी को नहीं दिखता। पत्रकारों और ब्लॉगरों का एक कृत्रिम विभेद नारदमुनि जी ने शुरू किया और अब सब उनके साथ कोरस गान कर रहे हैं। न जाने कौन सी खुशफहमी में ये जी रहे हैं, जैसे लगता है इंटरनेट की दुनिया, इनका घर है और हम उस पर कब्जा करने में लगे हैं। अगर पत्रकार ब्लॉगर नहीं हो सकता तो दो का चार बनाने वाला व्यवसायी क्यों कर ब्लॉगर होगा और वहां तो वह शुभ लाभ करेगा और हमें नैतिकता का पाठ पढायेगा।... भई हम लिखते हैं, हमारा पसंद नहीं आता... तुम अपना लिखो... नहीं ये तो टांग अडाने की आदत से मजबूर हैं... हिन्दुत्व वादियों (हिन्दू धर्म और हिन्दुत्व में फर्क है) का गुनगान करो भई किसने रोका है... लेकिन दूसरे कुछ और कर रहे हैं तो उन्हें करने दो...लेकिन नहीं...हम तो कोरस गान करेंगे... मिल गया बलि का बकरा बाजार... इसलिए इस पूरी कार्रवाई से एक बात तो साफ हो गयी है... ये सहिष्णु नहीं है... चाहे जो हों...
दूसरी बात अगर नारदमुनि जी की कार्रवाई निष्पक्ष होती तो तो आज कम से कम छह सात ब्लॉग तो नारदमुनि बंद ही कर देते अपशब्दों के इस्तेमाल के आधार पर... रवीश भाई रवि रतलामी जी ने कहा है... नारद से आगे जहां और भी है... है... होगा... ये देखेंगे
रवीश जी , आपके विचारों को पढ़ लगा जैसे ये मेरे ही विचार हैं ,नारद मे इधर एक बदलाव आया है वैसे अन्दर अन्दर तो ये काफी पहले से चला आ रहा था पर इनका कोरस "मालिकों "जैसा रुप लेता जा रहा है. "उनके" और "इनके" जैसी बातें शुरु हो गईं है,जो दुर्भाग्यपूर्ण है खेमेबाज़ी की ह्द तक मामला पहुंच गया है अपने निर्णय को नारद गौरवान्वित करते हुए प्रचार में पूरी ताकत से जुट गया है जबकि नारद का असली मकसद ज़्यादा से ज़्यादा चिट्ठो को जोड़्ने का है. पर सबको साथ लेकर चलने की भावना थोड़ी कमज़ॊर पड़ी है.अगर ये कहा जाय कि तुरत फ़ुरत मे प्रतिबन्ध लगा कर मामले को तूल देने मे नारद की अहम भूमिका रही है तो इससे इन्कार नही किया जा सकता.सौहार्दपूर्ण माहौल बने. क्रिया-प्रतिक्रिया तो होती रहेगी और ऐसे मौके पर नारद को बुद्दिमत्तापूर्ण कदम उठाने की ज़रुरत थी.जो हो ना सका. और किचाइन पर किचाइन चल रहा है इसकॊ रोकने के बजाय ये गुट बना कर अपनी बात पर इतरा रहे हैं जो निराशाजनक है.
मुझे लगता है कि हम किसी न किसी बहाने असहनशील होते जा रहे हैं। राहुल के बाजार को हटा कर अच्छा नहीं हुआ है।
यह बात सही है कि हम किसी न किसी बहाने असहनशील होते जा रहे हैं। राहुल के बाजार को नहीं हटाया गया। उनका ब्लाग बाजार में अतिक्रमण को नारद से हटाया गया है। लिखने पर कोई प्रतिबंध नहीं है। वे लिखें खूब लिखें। सांप्रदायिकता/भेदभाव आदि पर लोग लिखते ही आ रहे हैं। नारद को भी अक्सर लोग कोसते गरियाते ही आये। ज्यादातर जानकारी के अभाव में। लेकिन जब व्यक्तिगत रूप से गरियाने की बात आयी तो उस ब्लाग को नारद की सूची से हटा दिया गया। अब इसको आप नारद का अपराध मानते हैं तो आपको मानने का पूरा हक है।
व्यक्तिगत रुप से तो नारद पर पहले भी ना जाने कितनी बार कई लोगो को गरियाया गया , उन्हें अपमानित किया गया। लेकिन तब नारद कहॉ था ? तब नारद ने कोई भूमिका क्यो नही निभाई ? और अब जब बजार ने नारद के संचालक मंडल मे से एक संचालक- कम- ब्लॉगर- कम- कम अक्ल सज्जन को अपनी बेवकूफी गलत जगह दिखाने के लिए डाट दिया तो अनूप शुक्ल जी , आपको इतनी मिर्ची किस बात की लग रही है ? आप तो ऐसे ना थे। इस पूरे प्रकरण से एक बात तो साफ है कि नारद संघियों की बपौती बाना हुआ है और उनके खिलाफ एक शब्द भी बर्दाश्त नही कर सकता। इसलिये नारद के लोग कोरस गान मे जुट गए हैं कि जो हुआ अच्चा हुआ इससे अच्चा हो ही नही सकता था। इसी बात से देख लीजिये कि आप और आपके सहयोगी कितने असहिष्णु और असहनशील हो गए हैं। दोहराता हूँ कि हो रहे नही है , हो गए हैं। मेरे विचार से किसी फीड गेटर का काम सिर्फ पोस्टों की सूचना देना होता है ना कि उन्हें एडिट करना। नारद के लोग , खासकर आप और जितेंद्र जी एडिटर बन कर तानाशाही कर रहे हैं । लेकिन जैसा रुझान आ रह है , उससे तो यही पता चलता है कि नारद अपनी खट खटिया तोड़ने ही वाला है । इतनी तानाशाही और असहनशीलता के साथ आप लोग नारद को जाहिर है , गुजरात की ही तरह गुल्फाम करना चाह रहे हैं। और देखिए , यहाँ भी आपका तन्ज़ कम नही हुआ है ,
"लिखने पर कोई प्रतिबंध नहीं है। वे लिखें खूब लिखें। सांप्रदायिकता/भेदभाव आदि पर लोग लिखते ही आ रहे हैं।"
ये अकड़ आप लोगो को पाताल मे ही लेकर जायेगी।
हम कोई मोर्चा बनाकर नारद पर व्यक्तिगत हमला नहीं कर रहे हैं। नारद की हिंदी ब्लागिंग में अपनी एक एतिहासिक भूमिका है। मगर नेहरू की गलतियों के विरोध में गैरकांग्रेसी आंदोलन के खड़े होने का यह मतलब नहीं वह सब आज़ादी की लड़ाई में कांग्रेसी नेताओं के योगदान को नहीं मानते। यह बड़ा उदाहरण दे रहा हूं। जिसके प्रति नारद को उदार, सचेत और गंभीर होना चाहिए। नारद को सांप्रदायिक ताकतों के बहकावे में नहीं आना चाहिए।
पुलिस बनना आसान नहीं। लेकिन पुलिस बनने की एक मुश्किल है कि आप एक समूह द्वारा संचालित सरकार के इशारे पर चलने लगते हैं। नारद के साथ वही हो रहा है। नारद को समझना होगा वरना लोग पुलिस से डरने लगेंगे। लिखने से पहले सोचेंगे। और बाद में हो सकता है कि नारद को दिल्ली पुलिस की तरह नारेबाज़ी करनी पड़े कि हम आपके लिए हैं।
जियो, रवीश कुमार!..
जुग-जुग जियो्..
मैं तो केवल इतना कह सकता हु नारद जज ना बने तो ज्यादा बेहतर है । एक बात और मैं मृतुय्दंड देने के भी खिलाफ हु। उसने तुम्हारी एक आंख फोड़ दी बदले में तुमने भी उसकी एक आंख फोड़ दी । ऐसे में सारा शहर काना हो जाएगा और कुछ दिनों बाद अँधा ।
दुनिया में कई ऐसे लेखक हैं जिन्हें हम पसंद नहीं करते उनकी शक्ल या अक्ल के आधार पर लेकिन इससे यह निर्णय नहीं किया जा सकता कि इसे दुनिया से चलता कर दिया जाए। सलमान रशदी को ईरान पसंद नहीं करता लेकिन वे दुनिया में है और लोग उन्हें पढ़ रहे हैं। उनके दिवाने भी हैं। हर चीज में अच्छाई मौजूद होती है और हमारा काम उसे ग्रहण करना होना चाहिए न कि हम बुरे या नापसंद पहलू को लेकर बवाल मचाएं। जिसे दुनिया में जगह बनानी है वह संघर्ष कर अपनी जगह बना ही लेगा, रोके से नहीं रुकेगा। समुद्र मंथन में विष भी निकला और अमृत भी। एक को शिव ने ग्रहण कर लिया और एक को देवताओं ने। लेकिन शिव ने यह नहीं कहा कि यारों मुझे जहर क्यों पिला रहे हो। सीखों और समझो। लड़ना कोई अच्छी बात नहीं है। भाई रवीश जी आपने जो कहा वह एक समझदार व्यक्ति के लिए काफी है। गुगल, एमएसएन, याहू जैसे सर्च इंजन भी तो हमें अपने शामिल करते जा रहे हैं और उसने हमारी उपस्थिति अंतरराष्ट्रीय स्तर पर की है, है कोई उस उपस्थिति को रोकने वाला। भ्रम मत पालो कि मैं सृष्टि का रचियता हूं, भाई रवीश जी की इस रिपोर्ट से लोगों को सदबुद्धि आएगी, ऐसी उम्मीद है और सभी लोग मतभेद, मनभेद दूर कर फिर साथ होंगे, यही कामना है।
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