साग-चूड़ा-चाय-गोईंठा


एक कतार से साग की टोकरियां देखकर लगा कि इसका एलित नाम होना चाहिए। साग स्ट्रीट। बथुआ, खेसारी और चना के साग। चना बीस रुपये पसेरी भाव मिल रहा था। सुबह-सुबह सागों की ऐसी हरियाली दिखी कि दिल्ली का मल्टी सब्ज़ी मॉल ठेला याद आ गया। एक ही ठेला में सब ठूंसे रहता है। ऐसी एक तस्वीर ब्लॉग पर है भी। एक्सक्लूसिव आइटम का सिस्टम खत्म ही होता जा रहा है।बड़का सेम भी बीस रुपये पसेरी था।

दूसरी तरफ चूड़ा का कारोबार है। कतरनी धान का चूड़ा न खाये त का खाये। पैंतासील रुपये किलो। कतरनी के स्वाद भी गिरावट आ रही है। फिर भी यह बेतिया साइड के मिर्चा धान के चूड़े की बराबरी तो कर ही लेता है। एक चूड़ा का वेरायडी हज़ारा धान का भी थी। अच्छा नहीं था।



चाय की दुकानों में भीड़ सुबह चार बजे से ही काबिज़ हो जाया करती है। ऐसा लगता है कि चार बजे न उठे त दोकनिये बंद हो जावेगा। पूरब के शहर पहले जागते हैं। स्टेशन से टांय टूईं की आवाज़ रात भर जगाए रखी। यात्रीगण कृप्या ध्यान दें टाइप की कान फोड़ू ध्वनियों से ये खामोश तस्वीरें अच्छी है। पांचे बजे भांग की गोली बिकते हलऊ। फोटो न लेवे देलक। बोला चोरी नहीं कर रहे हैं न। कमा खा रहे हैं। जीय राजा। क्या लॉजिक दिहीस है। मैगजीन-पेपर के स्ट्रीट कार्नर पर भी गए। जलती जवानियों को बुझाने वाली पत्रिकाएं बिक रही हैं। कुछ पत्रिकाओं पर ज़ूम इन किये ही थे कि बिहार सरकार के राजपत्रित वाले कलेंडर से ढंक दिया। कहां दिल्ली में विजय माल्या के कलेंडर का क्लासी स्वाद और कहां तीन रुपये वाला ई कलेंडर।




लास्ट में ई फोटो गोईंठा का है। चूल्हे के संसार में गैसागमन से पहले के आधुनिक भारत की रसोई में कोयले का दोस्त गोईंठा। गैस आज पाइपलाईन से बह रही है,गोईंठा आज भी बिक रहा है। कल भी बिकेगा। बीस रुपये का सैंकड़ा मिलता है। हमारे बचपन में डेढ़ रुपये सैंकड़ा हुआ करता था। हमी नहीं बुढ़ाये हैं खाली, इन्फेसनवा भी तो बढ़ा है न जी। भागलपुर तस्वीरों का शहर है। अभी माल खत्म नहीं हुआ है। अपलोड करेंगे। धीरे-धीरे।

27 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

जाड़ा दिखायी पड़ रहा है चित्रों में।

निशांत मिश्र - Nishant Mishra said...
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Rahul Singh said...

तस्‍वीरों में गुंथी जन-जीवन की कहानी. गोइंठा या कंडा के लिए छत्‍तीसगढ़ी में मीठा सा शब्‍द 'छेना' है.

Unknown said...

sunder sankalan

ravishndtv said...

छेना शब्द बहुत ही प्यारा है।

एस एम् मासूम said...

गोबर का उपला. बहुत दिनों बाद देखा.. धन्यवाद्

दीपक बाबा said...

@बड़का सेम भी बीस रुपये पसेरी...

दिल्ली में पंसेरी सुने मुद्दत हो गई...... सुसरा प्याज और आलू का भाव पंसेरी के हिस्साब से तय होता था...... पर आज २५० ग्राम में मिल रहा है..........

बाउजी कुछ दिन और रुक जायिएये .... गिनती में खरीदोगे ..

असार यही लगते है.......

योगेश कुमार 'शीतल' said...
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योगेश कुमार 'शीतल' said...

जीय राजा ...एनाही गर्गारैले फुर्र फुर्र पत्रकारिता कैने जा...उठौना दू चाइर गो फोटू देखि के मोन बम्बमाई जाइल बा...

अजय कुमार झा said...

का बात है महाराज ,
फ़ोटो तो धर धर के खैंच मारे हैं ..एक बार फ़ोटो बिछाने के बाद आसपास शब्दों को बुन कर एक खूबसूरत चटाई का रूप देना तो कोई आपसे सीखे ..

मेरा नया ठिकाना

डॉ टी एस दराल said...

सुन्दर बिहारी एल्बम ।

Unknown said...

Dear Ravish. Please keep it up. Many regularly visit your blog without leaving comments. I am one such. Your Bihari slangs & colloquials convey better & reach farther. Hammhun Bhagalpurai Ke Chhikiye. Parnaam. Sunil

Unknown said...

Gobar ka upla ya goitha milna ab mushkil hai..khaskar shehron mein..abhi litti banane ke liye khoj kar reha hoon lekin chandigarh se high tech shehar mein shayad hi mile.

Mahendra Singh said...

Gointha ko hamare Amethi,UP main Upri bhi bolte hain.

Unknown said...

नमस्कार!
एक ब्लाग लिट्टी चोखा पर हो जाए. जाड़े में और अछ्छा लगेगा.

Unknown said...
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Unknown said...

नमस्कार!
चट लिट्टी पट भंटा.

iqbal abhimanyu said...

अनीति की राहों पर !!..(हम भी चले थे कभी..भटक कर शराफत गली में पहुँच गए..)

sanjay said...

रविश सर, इतनी सारी तस्वीरें आप कईसन लगा देते हो?
गजब की स्फूर्ति है जी!
जब फोटू सब बहुत कुछ बतिया रहें है तब हम का कहेजी!
सवजी चौधरी, अहमदाबाद, ९९९८० ४३२३८.

Nikhil said...

ULTIMATE....हाहाहाहाहहाहाहाहाहााहहाहाहाहाहहाहा...आपके कुछ जुमले चुरा लेने का मन करता है, कसम से...

Ram N Kumar said...

bahut hi khubsurat tasvire. agli baar aap press photographer contest me bhag lijiye, jarur jitiyega!

sumanji said...

ravishji kab woh din bahurenge???

Dr.Vimala said...

ए हो रवीश बाबू,

गोइंठा के गुमान एतना तू ही बढ़ा सकत हो ,जीय बबुआ,अधमरन के जियावेवाले खूबे जीय .

Dr.Vimala said...

ए हो रवीश बाबू,

गोइंठा के गुमान एतना तू ही बढ़ा सकत हो,जीय बबुआ,अधमरन के जियावे वाले खूबे जीय.

David M Tirkey said...

रवीश जी, मैं ना जानें कब और कैसे आपका प्रशँसक बन गया हुँ आज भी सोचता हूँ तो बस सोचता ही रह जाता हूँ। खैर, आज अनायास ही आपका ये ब्लाग पढनें को मिल गया औऱ फिर क्या था, एक ऐसी दुनिया में फिर चला गया जिसे पंन्द्रह-बीस साल पहले छोड आय़ा था। तस्वीरों ने उन पलों को फिर से जिन्दा कर दिया।

Unknown said...

दिल्ली का मल्टी सब्ज़ी मॉल ठेला..जलती जवानियों को बुझाने वाली पत्रिकाएं बिक रही हैं ..क्या लॉजिक दिहीस है।
पढ़ के हंसी रुकब ॄ ना करे ल ा।

Gp.Capt.AKChatterjee said...

Ravish bhai aj ke jamane ke sare rubbish mane jane wale chijon ko apne aisa sundar mishran banakar pesh kia ki hamare peshanio par bal par gaye.Ashesh dhanyabad.Waise ap magahi aur bhojpuri bhashaon ka achcha mel milap karaya par maithil chhut gaiyl.
Any way a lovely presentation for all dil se biharis.
ALOK CHATTERJEE
AIR HEAD QUARTER
NEW DELHI