ज़हर खाए मरीज़ों का अस्पताल



यह साइन बोर्ड दो साल पहले देखा था। विजेंद्र के ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने पर मीडिया ने भिवानी पर धावा बोल दिया था। तब से यह साइन बोर्ड मुझे परेशान कर रहा था। इस कहानी को आप तक लाने के लिए कई कोशिशें की। कई बार आत्महत्या की कोशिश करने के बाद बच गए मरीज़ों ने कैमरे पर बात करने से मना कर दिया तो कई बार डॉक्टरों ने हिम्मत नहीं दिखाई क्योंकि यह मेडिकल नैतिकता का मामला था। इस बीच सल्फास और कीटनाशक स्प्रे खा या पीकर आत्महत्या की कोशिश करने वालों की संख्या बढ़ती जा रही थी। आप भी किसी अस्पताल के बाहर इस तरह के साइन बोर्ड देखकर सोच रहे होंगे कि कोई न कोई कहानी तो होगी इसके पीछे। अंततोगत्वा जब हिसार और भिवानी पहुंचा तो एक बार फिर से यह कहानी बीच में ही दम तोड़ने लगी। फिर डॉ जे बी गुप्ता ने ही मदद कर दी। कुछ मरीज़ों को तैयार किया बोलने के लिए। उनका चेहरा और पहचान न दिखे इसकी पूरी कोशिश की गई।


कहानी यह है कि हरित क्रांति के बाद कीटनाशक दवाएं घर-घर में उपलब्ध हैं। डॉक्टरों ने बताया कि आत्महत्या की कोशिशें करने वाले मरीज़ों या कहें तो लोगों की संख्या काफी बढ़ी है। एक डॉक्टर ने बताया कि दो साल पहले उनके अस्पताल में एक ही वेंटिलेटर था। अब तीन तीन है। एक डॉक्टर ने दावा किया कि अट्ठाईस साल के कैरियर में इस तरह के दस हज़ार मरीज़ों को ठीक किया है। इनमें वो संख्या शामिल नहीं है जो मरीज़ कीटनाशक दवा लेने के बाद गांव में ही मर गए या अस्तपाल पहुंचने से पहले। आत्महत्या की इन कोशिशों में कर्ज़ बड़ा कारण नहीं है। वो भी कई कारणों में से एक है मगर ज्यादातर मामलों में औरतें पति के बात न मानने पर या पराई स्त्री से संबंध होने के मामले में कीटनाशक दवायें पी लेती हैं। हालत यह है कि अब अस्पतालों ने ज़हर खाए मरीज़ों के लिए बकायदा पैकेज बना दिया है। सरकार के पास इसके आंकड़ें नहीं हैं क्योंकि सरकार प्राइवेट अस्पतालों से आंकड़े नहीं लेती। ज्यादातर मरीज़ झूठ बोलते हैं कि गलती से सल्फास या कीटनाशक दवा ले ली। अब यह बात समझने लायक है कि हर महीने एक अस्पताल में इस तरह के बीस मामले आ जाते हैं। क्या इतने लोग गलती से सल्फास या स्प्रे ले रहे हैं। कुछ किसान अनजाने में अपनी लापरवाही के कारण स्प्रे के ज़हर से मर जाते हैं। मगर यह मामला अलग है।



आप इस शुक्रवार रात 9:28 बजे रवीश की रिपोर्ट देखेंगे तो अच्छा लगेगा। कार्यक्रम अच्छा लगे तो किसी को देखने के लिए ज़रूर बताइये। शनिवार की सुबह 10:28 बजे और रात 10:28 बजे रवीश की रिपोर्ट दुबारा दिखाई जाती है। नीचे की बाकी तस्वीरें भिवानी और हिसार की हैं। एक तस्वीर परमिट कक्ष वाली करनाल की है।









21 comments:

अजित गुप्ता का कोना said...

रवीश जी, सोचने पर मजबूर करता विषय। क्‍या इतने लोग आत्‍महत्‍या का प्रयास करते हैं? हम जरूर देखेंगे कार्यक्रम।

eklavya said...

रवीश जी अपनी मार्केटिंग खुद ही करते ज रहे हो वाह

ravishndtv said...

rohit,

apni marketing? koi sabun nahi bech raha dost. bata raha hun..report ki time. is hisaab se to likhna bhi marketing hi ho gaya. thanks.

दीपक बाबा said...

कहते हैं, तस्वीरें बोलती है........... अगर आप इस बात को सिद्ध करते हैं है : हाँ साहिब तसवीरें बोलती है...........

काश नेता लोग भी खेती करते और उनके घर भी सल्फास की गोलियां रखीं होती - और उन भावुक क्षणों में जब सी बी आई वाले घर घुस रहे होते तो ....... नेता लोग खुद का लेते...........

हाँ का कमाल का आईडिया सर जी,

Rahul Singh said...

कैसा होगा पुलिस और इस अस्‍पताल का रिश्‍ता.

डॉ टी एस दराल said...

रविश जी , सभी तस्वीरें बोल रही हैं अपनी कहानी ।

सल्फास की गोलियां हरयाणा के घर घर में मिल जाएँगी क्योंकि इन्हें गेहूं में डाला जाता है ताकि कीड़ा न लगे ।
ये बेहद तेज़ ज़हर का काम करती हैं । ज़ाहिर है आसानी से मिलने की वज़ह से इनका इस्तेमाल भी हो जाता है ।
आत्महत्या की वज़ह कोई भी हो , लेकिन इनकी उपलब्धता ही विनाश का कारण है ।

वैसे इसकी गंध इतनी खराब होती है कि आश्चर्य होता है कि लोग इसे खा कैसे लेते हैं ।

Abhishek Anand said...
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Abhishek Anand said...

अच्छी हैं. आपकी स्टोरी, आपका स्टाइल और आपका विषय. स्टोरी का विषय जानकर आश्चर्य तो नहीं होता पर अच्छा जरुर लगता हैं, कि चलो कुछ तो अलग मिलेगा देखने को.

आपका फोटो भी बेहतर हैं, आपकी ही तरह युनुस खान भी फोटोग्राफी करते हैं, उनके ब्लॉग का भी मैं पुराना पाठक रहा हूँ. युनुस तरंग वगैरह ब्लॉग लिखते रहे हैं. आपकी फोटो देखकर उनकी याद आ गयी. और मैंने फेसबुक पर उनके पोस्ट पर कभी आपकी टिप्पणी भी देखी थी. तो जानना चाहता हूँ कि आप उनसे प्रभावित हैं कि वे आपसे, या बस दोनों एक तरह सोचते हैं और मित्र हैं.
वैसे एक चीज बताऊँ, वे मुझे फेसबुक से न जाने किस कारण से मुझे अपने फ्रेंडलिस्ट से खल्लास कर चुके हैं, और दुबारा अनुरोध भेजने पर पेंडिंग हैं, मैंने ऐसा कुछ भी कमेन्ट या कोई एक्टिविटी नहीं किया था जिससे की...
खैर एक चीज और आप गुजरात के एक सज्जन जो मीडिया से गहरा ताल्लुक रखते हैं, विचार के दृष्टि से, भले ही किसी और प्रोफेसन से ताल्लुक रखते हो, उनकी शायद आपकी कई बार चैटिंग भी हुई हैं...
और आपने उन्हें(http://www.facebook.com/akhanisatyamg) अपने फ्रेंड लिस्ट से साफ़ कर दिया है.. :((

सुनील अमर said...

अदम गोंडवी के एक शे'र से अपनी बात कहना चाहूँगा रवीश जी ---'' इस व्यवस्था ने नयी पीढ़ी को आख़िर क्या दिया ? सेक्स की रंगीनियाँ और गोलियां सल्फ़ास की !'

सम्वेदना के स्वर said...

रवीश जी

परंतु यह समझ नहीं आता कि जब इतनी सम्वेदंशील घटनाऑं का "पूरा स्पेक्ट्रम" आपके सामनें हैं,तो आप इतने हल्के रंग क्या कुछ समय के मुलतवी नहीं कर सकते...गढ का मेला, शादी के कार्ड..और अब ये!

अपनी मार्केटिंग वाली बात पर आपको जबाब देना पढ़ा? क्यों? इसीलिये क्योकि आज की राडिया-एक्टिव पत्रकारिता हर किसी मीडियाकर्मी को इसी नज़र से देखती है कि कहीं वो भी तो संक्रमित नहीं है?
जितने टेप हमनें सुने हैं उनसे तो लगता है कि चुप रहना, इधर उधर की बात करना, मुद्दे से भटकाना...इस सब के उस्ताद "स्पिन डाक्टर"..मीडिया नाम के अस्पतालों में सक्रिय हैं!

ब्लोग जगत लोकतंत्र का पांचवा खम्बा बनकर उभर रहा है, यदि आपका अस्पताल आपकों लिखने की इज़ाज़त नहीं देता तो आप अपने ब्लोग पर तो इन विषय़ पर लिख ही सकते हैं!

बाकी आप स्वम ज्ञानी हैं हमें तो आप एक सम्वेदनशील व्यक्ति लगे तो इतना सब कह दिया! अन्यथा न लीजियेगा!

दर्शन said...

आपके चुनी हुए विषय हमेशा intersting होते हैं ..और आपकी रिपोर्ट सच में काबिले तारीफ ... गढ़ के मोबाईल चार्गिंग के व्यवसाय की झलक मजेदार थी ...

ये रिपोर्ट जरूर देखने की कोशिश करूंगा !

गिरधारी खंकरियाल said...

अच्छा होता की सभी कारणों को आप यहाँ विस्तार देते ताकि रिपोर्ट न देख सकने वालों को भी कुछ लाभ होता

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

पटना के इंजीनियरिंग कॉलेज से गंगा के किनारे बैठकर मनोरंजन के साथ नितीश जी की जीत का जश्न या पहाडगंज के एक तंग कमरे में रह रहे एक सुखी परिवार से ज़बरदस्ती उनकी मजबूरियां कबूलवाते आप, आज खुदकुशी का नज़ारा पेश कर रहे हैं. कितना दर्द है आपके मन में भारत के कोने कोने में बसे अनेक गुमनाम परिवार के लिए.
एक और परिवार है जिसके विषय में आप तो क्या, पूरा कुनबा ही खामोश है. उनके विषय में मौन,“फ्रैटरनिटी के प्रति आपके उत्तरदायित्व” का बोध है या और कुछ!! या फिर आप भी बंधे हैं उसी “अनाचार संहिता” से. सच कर दिखाया आपने भी कि सभी प्राणी बराबर होते हैं, हाँ कुछ लोग ज़्यादा ही बराबर होते हैं. आप ज़्यादा बराबर वाले कुटुंब के बारे में क्यों चुप साधे बैठे हैं.
रवीश जी! दूसरों के घर में घुसकर, उनकी मजबूरियों और तकलीफों, उनकी जिंदगियों और मौत की रिपोर्ताज इस देश में बहुत आसानी से बिक जाती है, क्योंकि हम ठहरे इमोशनल फूल... लेकिन जब अपने घर की बारी आती है तो आपका माइक भी बंद हो जाता है, की बोर्ड लौक हो जाता है, कलम खुश्क हो जाती है, आर्क लाइटें मद्धम हो जाती हैं. राडियाएक्टिव किरणों का संक्रमण सल्फोस से ज़्यादा खतरनाक है, क्योंकि यह एक व्यक्ति की जान नहीं लेता पूरी नस्ल की जान लेता है, उनके भरोसे की जान लेता है, जो उन्होंने आपकी संवेदनशीलता को देखकर आपसे लगाईं होती हैं.
बाहर निकलिए इस छद्म संवेदनशीलता से और हकीकत कि आर्क लाईट डालिए अपने भी घर पर!!

JC said...

रविशजी, हिन्दू मान्यतानुसार हम, सारे 'अस्थायी = जीव', वर्तमान में महायुग के सबसे छोटे अंश, कलियुग, का नज़ारा फिर एक बार कर रहे हैं, जो अनंत ब्रह्मा के एक दिन (पृथ्वी के चार अरब वर्ष से अध्हिक) की कहानी में १०८० बार आता है,,,और 'क्षीरसागर मंथन' की कथा संकेत करती है कि कैसे आरम्भ में हलाहल (कालकूट विष) उत्पन्न हुआ था जिस से 'राक्षश' (स्वार्थी जीव) और 'देवता' (परोपकारी जीव) दोनों प्रभावित हुए थे,,, और क्यूंकि 'मंथन' देवताओं के अंततोगत्वा सतयुग के अंत में अमृत प्राप्ति के उद्देश्य से रचित था, (महा)शिव, नीलकंठ, को अपने गले में हलाहल विष धारण करना पड़ा था (जो उनके गले को शुक्र ग्रह कहे जाने की ओर संकेत है, क्यूंकि उस ग्रह के वातावरण में विष अनादी काल से व्याप्त है,,, और मानव रूप में उसका सार भी व्यक्तियों के गले में, उसको हर व्यक्ति की रोकने की प्राकृतिक क्षमतानुसार)...

Unknown said...

तसवीरें बोलती है...........

प्रवीण पाण्डेय said...

सुन्दर चित्रमाला।

anoop joshi said...

sir me maanta pahele se hi tha. ab janane bhi laga hun ki, aap sirf alochana ka hi jabab dete hai. wainse mene google me dhhond liya hai ki, debang sir ne NDTV se istifa de diya hai, kher koi baat nahi, sir me, ''ravish ki report'' dekhna nahi bhulta,

PRABHU NETRA said...

raveesh ji
maine aapki report dekhi. ye hakikat hai lekin iska samadhan unbroken container nahi hai. iske liye system ko unbroken banane ki jarurat hai. samasya ye hai ki har 18 se 28 sal ke yuva ke halat salfan khane vale hai. use apne sapno ki duniya nahi milti. milti hai to uske liye paseene se jyada khoon jalana pad raha hai. upar se desh ki rajdhaniyo me chal raha nanga nach in yuvaon me hatasha bhar raha hai. ab jamana badal chuka hai. baap ya bhai se hi prabhav nahi padta. puri duniya har aadmi ko prabhavit kar rahi hai. agar yahi daur raha to salfas aur jyada bikega. anaj me rakhne ke liye nahi. khali pet me rakhne ke liye. shayad aapko jyada batane jarurat nahi.

Unknown said...

नमस्कार!
देश में निजी चिकित्सालयों में चिकित्सा कराने वालों की संख्या अत्यधिक है. अत: आवश्यक हो गया है की सभी पंजीकृत चिकित्सकों और चिकित्सालयों में चिकित्सा करा रहे लोगों की सांख्यिकी सरकार इकट्ठा करे तभी सही तस्वीर मिल सकती है. वैसे तो सरकार यही चाहती है कि रोगियों की संख्या कम दिखाई दे.

आप के ब्लॉग पर जो कमेन्ट बाक्स है उसे हिंदीवाला बना दें जिससे सभी की तिप्पदियाँ हिंदी के देवनागरी लिपि में दिखाई दें रोमन लिपि में नहीं.

नमस्कार.

मुकेश "जैफ" said...

रवीश जी, आपने फिर नेपथ्य के पीछे की कहानी को उजागर कर दिया। सुंदर प्रस्तुति ..

sanjay said...

आदरणीय अभिषेक आनंद भाई- @ गुजरात में से कौन से सज्जन को लेकर जलन होती है? भाई जी, दोस्ती दादागिरी से नहीं होती.
र. कु. जी- @ ज़हरीली दवाइयां न केवल वो पीड़ित मरीजों के जीवन की मगर जमीन की भी बरबादी कर रही है.
वैसे तो आपके ब्लॉग पर आता हूँ मगर कमेन्ट नहीं लिखता था. आज से वो भी शुरू...
सवजी चौधरी, अहमदाबाद. ९९९८० ४३२३८.