अचानक से फ़ोन पर परिचित होगा अरे भाई साहब सब कह रहे हैं कि रवीश जी आपके मित्र हैं और आप हैं कि कोई मदद नहीं कर रहे हैं । सबको कैसे पता कि आप मेरे मित्र हैं और हम मित्र कैसे हुए । हम तो कभी मिले नहीं । तो क्या हुआ आपका नंबर है न मोबाइल में । वही दिखा के सबको बता देते हैं । हवा पानी टाइट रखना चाहिए न । पर ये तो ठीक नहीं है । अरे रवीश जी ठीक है पता है आप ये सब नहीं करते लेकिन समाज यार दोस्तों के लिए कुछ करिये दीजियेगा तो क्या हो जाएगा । मान लीजिये आप किसी को जानते हैं । मिलवाइये दिये । इसमें तो कोई हर्ज़ा नहीं है । हम लोग भी तो किसी टाइम आपका ख्याल करेंगे । बुरे वक्त का ख़ौफ़ दिखाने के बाद क्या कहें । कितना डाँटें चिल्लाये । सब चाहते हैं कि उनके बीच का कोई इस दुर्लभ संपर्क क्षमता का हो । मजबूरी में कह देता हूँ कि हाँ ठीक है लेकिन हमसे होता नहीं है । ऐसा कुछ होगा तो देखेंगे । मेरा फोन तो कोई नेता उठाता ही नहीं है ।
अरे रभीस जी आपको लोग नहीं जानता है ! एतना भी सुध्धा मत बनिये । मीडिया का ही तो पावर है । जिसे चाहे उसे बना दे । पर हम उस पावर का इस्तमाल नहीं करते । पता है नहीं करते लेकिन क्या बाकी नहीं करते । आप क्या कर लेते हैं । उ सब के साथ रहते हैं कि नहीं । हम थोड़े न कह रहे हैं कि ग़लत काम कीजिये । उसी में से अपने लोगों के लिए तो करना पड़ता है । समझ में नहीं आता है कि मदद मांग रहा है या बुरे वक्त के नाम पर धमका रहा है । कितना हाँ में हाँ किया जाए मन रखने के लिए । मन तो ख़राब हो ही जाता है । अक्सर मैंने देखा है इस टाइप के दलाल संक्रमित लोग दलील अच्छी देते हैं ।
एक दिन इसी तेवर में फोन आ गया । भाई जी आशीर्वाद दीजिये । ले लीजिये । वैसे नहीं । त कइसे । एम एल सी का चुनाव लड़ रहे हैं । तो हम क्या मदद करें । अरे उसी में मदद तो कर ही सकते हैं । इसमें क्या होता है । अरे वार्ड काउंसलर, पंचायत परिषद का सदस्य और मुखिया वोट करता है । बहुत ख़र्चा है भाई । वो क्या ?
हर पंचायत में पंद्रह सोलह वार्ड काउंसलर होता है । एक वार्ड मेंबर को पंद्रह सोलह सौ देना होता है । डेढ़ ही हज़ार में वोट दे देगा ? हाँ त यही चलबे करता है । मुखिया ज़रा ज़्यादा माँगता है । कितना ? पचीस हज़ार । अच्छा । लेकिन उतना नहीं देंगे । पाँच सात हज़ार देकर काम चल जायेगा । वो व्यक्ति कितनी आसानी से सब कहे जा रहा था । दो साल से फ़ोन पर बात कर रहा है । मुलाक़ात तक नहीं । पता नहीं किस किस को बताता है कि मैं उसका मित्र हूँ । आशीर्वाद दीजियेगा न भइया । हाँ हाँ । विधान परिषद की सदस्यता का आलम यह है तो इसे आज ही समाप्त कर देना चाहिए ।
फ़ोन रखने के बाद यही सोचने लगा कि हम क्या समझें जा रहे हैं और यह कैसा समाज है । कोई फ़ोन कर यह नहीं कहता कि ईमानदारी से पत्रकारिता करो । कुछ होगा तो हम लोग हैं न मदद करने के लिए । एक रिश्तेदार ने तो लोजपा के टिकट की पैरवी के लिए फ़ोन कर दिया । आम आदमी की सफलता के बाद इसके टिकट के लिए भी लोग फ़ोन कर देते हैं । सब परिचित ही होते हैं । मुश्किल हो जाता है कि कैसे बात करें । हाँ देखते हैं भइया । अरे देखो नहीं करो । टाइम नहीं है । एक सजज्न दफ़्तर आ गए विशालकाय गुलदस्ते के साथ । कहा बीजेपी से टिकट दिलवा दीजिये । सुना है मोदी जी आपको मानते हैं । उनसे कहा कि हम ये सब नहीं कर सकते । पता चलेगा तो दर्शक नाराज़ हो जायेंगे । बिल्कुल पहली बार इस व्यक्ति ने भी यही कहा कि अरे साहब मदद कर अपना आदमी बनाइयेगा तभी न हम लोग बुरे दिन में काम आयेंगे ।
क्या कर सकते हैं । इस समाज को ख़ारिज कर कहाँ चल दिया जाए । सारे संबंधों की ऐसी व्याख्या करते हैं कि राहु केतु से प्राथर्ना करने लगता हूं कि बचा लेना । कोई मित्र नाराज़ हो जाता है तो कोई परिचित । कभी हाँ तो कभी हूँ बोलकर टाल तो देता हूँ मगर बहुत मामूली महसूस करने लगता हूँ । तब तो और जब क़रीब के मित्र भी समझने की जगह गाली देते हुए विवेचना करते हैं कि किसी काम का नहीं है । स्वार्थी है । अपने लोगों के लिए क्या किया इसने ।
इन सब को बीच कुछ फ़ोन ऐसे भी आते हैं जो जीवन रक्षक और ज़रूरी होते हैं । पर फ़ोन करने वाला पहले से तय कर चुका होता है कि होना ही है । हमसे किसी की मदद हो जाए तो क्या बात, करने के लिए भी तत्पर रहता हूँ लेकिन मदद के नाम पर यही सब हो तो बात शर्मनाक है । करना पड़ता है और नहीं करेंगे के बीच कुछ तो बोलना पड़ता है जिसे बोलते हुए सौ मौंते मरता हूँ । ये समझा जाना कि हमारे पास पावर है और हम अरविंद मोदी राहुल से एक फ़ोन पर टिकट दिला देंगे कितना बेबस करता है ।
पहले भले ही यह सब बातें सामान्य रही होंगी या हमारे पेशे के लोग ये सब आसानी से कर गुज़रते होंगे पर अब समय बदल गया है । किसी भी पत्रकार को इन सब मजबूरियों के बारे में सोचना चाहिए और बचने का तरीक़ा निकालना चाहिए । ऐसा नहीं है कि दुनिया मदद नहीं करेगी । एक परिचित के पास पैसे नहीं थे । अस्पताल वाले को फ़ोन किया कि ये हालत है आप उनसे पैसे मत माँगना । अपना अकाउंट नंबर दे दीजिये मैं उसमें जमा कर दूँगा । परिचित को पैसे की पेशकश इसलिए नहीं की क्योंकि उन्हें शर्मिंदा नहीं करना चाहता था । उधर से आवाज़ आई आप रवीश टीवी वाले बोल रहे हैं । हाँ । अरे सर मज़ा आ जाता है आपको देखकर । आप चिंता मत कीजिये । मैं हैरान रह गया । उस आदमी ने मदद कर दी । समाज इतना भी गया गुज़रा नहीं है । ऐसा हो तो क्यों नहीं फ़ोन करूँगा । पर हम क्या से क्या होते जा रहे हैं और इतनी बहस के बाद भी अगर किसी को भ्रष्टाचार पर इतना भरोसा है तो फिर इसके ख़िलाफ़ बहस में शामिल कौन है ? वही जो भ्रष्ट है !
52 comments:
kejariwal ke drame pe aapne apne vichar vyakt nahi kiye.aashcharya hua.
लो बोलो जो विचार व्यक्त किये हैं उन पर विचार देने की बजाय लोग नए विचार मांग रहे हैं ...हद है
केजरीवाल को या तो राजनीती आती नहीं ,
या वे ऐसी राजनीती कर रहे हैं जो हमको समझ नहीं आती |
सोमनाथ भारती ने जो कुछ भी किया वो जादा जोश में आकर किया है ,थोडा चालाक और समझदार बके करते तो ठीक रहता,
सोमनाथ ने सोचा होगा की media पब्लिसिटी दे देगी ,वैसे ही आज कल AAP की लहर है,
पर उन्होंने गलती कर दी ,काम तो ठीक किया,
पब्लिसिटी चाहिए इस समाये AAP को अगर वो लोकसभा में सीट जीतना/जिताना चाहते हैं तो,
पर "खिड़की एक्स " में जो हुआ उसके करने का तरीका ठीक नहीं था |
कांग्रेस बीजेपी को भी पता होगा की वहाँ क्या होता है,पर राजनीती करनी है इन दो पार्टिओं को ,ऐसा मौका कैसे छोर सकते हैं ,
media को ,कांग्रेस,भाजपा सब की नाक के नीचे होता है ये सारा रैकेट ,पर कोई कुछ नहीं बोलता,क्यंकि इन सब के कारण ही काला धन आता है |
कांग्रेस भाजपा ड्रामा कर रहे हैं,
और ये महिला आयोग का तो सिर्फ बहाना है,
टीवी पर कह रहे हैं,की सोमनाथ को 7 साल की जेल हो सकती है ,हाँ बिलकुल हो सकती है ,पर में कांग्रेस भाजपा से पूछना चाहता हूँ,आपके यहाँ किसीको कोई सजा हुई,और तो और किसी मंत्री को सजा हुई ,क्यं ? क्यंकि आप में दम नहीं है,छापे पद्वाने का ,
अगर सोमनाथ भारती गलत हैं तो "खिड़की एक्स " की जनता सच न बोलती ,जो परेशां होता है ,वही जानता है |
सब राजनेति है |
केजरीवाल जी आप IAS ही ठीक थे,
इंसान तो थे ,आपको गुस्सा जादा आने लग गया है ,राजनीती में गुस्सा तो बहुत दूर रखना चाहिए ,इससे गलत संदेश जाता है ,
आप जिस अच्छाई की बात कर रहे हैं वो media और राजनेताओं ने नहीं सीखी,
सब कुछ एक दम से बदलना संभव नहीं ,
अगर आपने दिल्ली पर ही फोकस किआ होता ,तो आपको इतनी तकलीफ नहीं होती,
आप दुबारा चुनाव में जाते ,ह्जनता आपको 60 सीट दे देती ,आराम से सब कुछ करके दिखाते ,लोगों का विश्वास जीतते |
अब जनता आप पर विश्वास खो रही है ,
आपका वोट बैंक निचे जा रहा है ,
आपने अन्ना आन्दोलन खड़ा किया,आप बहुत आचे सैयोजक हैं,परन्तु राजनीती में अभी बहुत कुछ सीखना पड़ेगा आपको,media को गाली देकर बात नहीं बनेगी,media आपकी अच्छाई का गुणगान करती है ,तो बुराई का भी करेगी,
media बिका हुआ है ,पर सब कुछ भी बिका हुआ नहीं है ,media पर प्रहार करने से कुछ भी हासिल नहीं होगा,सावधानी ,चतुराई की राजनीती करिए ,आपके विपक्षी आपसे भी ज्यादा हुशियार हैं ,जनता को इतना भोला मत समझिये,जिस जनता ने आपको आँखों पर सजाया है,जो इमानदारी सिर्फ एक बार परखती है,और बेईमान को हर बार वोट देती है,
आपने भी कुछ नहीं किया तो आपके इमानदार होने पर भी जनता आपकी न सुनकर ,बेईमान को वोट देगी,इमानदारी से कुछ हो सकता है इस बात से लोगों का विश्वास उठ जाएगा |
जनता ऐसी ही होती है |
सपा बसपा कांग्रेस भाजपा बेईमान होने पर भी राज इसलिए कर रहे हैं क्यूंकि लोग इमानदार को सबसे कम समय देते हैं ,और बेईमान को लम्बे समय तक |
Itna sab padhne ke baad jab kisi garib ki madad ho gai to laga ke wakai me ham patarkar kisi aam aadmi ke kaam to aa sakte hai. amoman logo ka nazriya yahi hota hai. patarkar hai to kisi bhi neta ko phone karwa ke kaam kara lenge. lekin wo ye nahi samjhte ki patarkar kisi garib ki madad khusi se kar dega lekin dalali nahi. Ravish ji aap Patarkarita ke samman ho. Kabhi BJP walo se TV par hi puch lena ki MODI ji CM pad se istifa kyun nahi dete kya darte hai ko PM nahi bana to CM kyun Choro.
Itna sab padhne ke baad jab kisi garib ki madad ho gai to laga ke wakai me ham patarkar kisi aam aadmi ke kaam to aa sakte hai. amoman logo ka nazriya yahi hota hai. patarkar hai to kisi bhi neta ko phone karwa ke kaam kara lenge. lekin wo ye nahi samjhte ki patarkar kisi garib ki madad khusi se kar dega lekin dalali nahi. Ravish ji aap Patarkarita ke samman ho. Kabhi BJP walo se TV par hi puch lena ki MODI ji CM pad se istifa kyun nahi dete kya darte hai ko PM nahi bana to CM kyun Choro.
Itna sab padhne ke baad jab kisi garib ki madad ho gai to laga ke wakai me ham patarkar kisi aam aadmi ke kaam to aa sakte hai. amoman logo ka nazriya yahi hota hai. patarkar hai to kisi bhi neta ko phone karwa ke kaam kara lenge. lekin wo ye nahi samjhte ki patarkar kisi garib ki madad khusi se kar dega lekin dalali nahi. Ravish ji aap Patarkarita ke samman ho. Kabhi BJP walo se TV par hi puch lena ki MODI ji CM pad se istifa kyun nahi dete kya darte hai ko PM nahi bana to CM kyun Choro.
रोचक, आप भी संस्तुति देने के लिये कमेटी बिठा दीजिये।
रविश जी नमस्कार।
आप पर बहुत से लोगों को विश्वास है। इतना सब कहने की जरूरत नहीं है। रही बात उन लोगों की जो फोन पर आपसे सिफारिस के लिए कहते हैं,आपकी फटकार से दोबारा जुर्रत भी नहीं करते होंगे।
पर रविश जी आपकी ब्रादरी के पत्रकारों का तो बहुत टोटा(कमी) हो गया है। बहुसंख्यक बगुलों का पेट पानी से तो नहीं भर पायेगा।परन्तु बिडम्बना ये है की वो छोटी-बड़ी, अच्छी-बुरी सभी को अर्जी फर्जी तरीके से अपना निवाला बनाना चाहते हैं और इसी चक्कर में मासूम पिस जाते हैं तथा स्वं सड़ कर पत्रकारिता के पवित्र तालाब को गन्दा करते हैं।
Ravishji, special/super 60 jaisee koi sanshtha bana dijiye. Bahti ganga me hath na bhi dhoyen nakhoon to bhigo hee sakte hai aur phir uska lutf , Lajwab.
Ravish जी, मैं उन लोगों में से १ हुआ करता था जो समाचार चैनल और समाचार वाचकों से नफरत करते हैं। बुरी तरह से। समाचार चैनल और एंकरों के लिए मेरे मन में नफरत का कारण थे मेरे पिता जी। जब भी मुझे क्रिकेट मैच या फ़िल्म देखनी होती वो हमेशा समाचार चैनल खोल कर बैठ जाते :) लेकिन पिछले कुछ दिनों से मैंने खुद बड़े उत्साह के साथ समाचार देख शुरू कर दिया है . ....दोष जाता है राजनीति के खेल के नए खिलाड़ियों को जिन्होंने पुराने जंग लगे ढाँचे को झकझोरने की कोशिश की है।
मुख्य रूप से मैं अंग्रेजी चैनल ही देखता रहा हूँ. हिंदी चैनलों के लिए बचपन से ही मेरी धारणा रही है कि वे केवल मसाला परोसने के सिवा और कुछ और नहीं करते।
मैंने लेकिन पाया है की आप ने आज भी निष्पक्ष एवं निर्भीक पत्रकारिता के उच्चतम मानकों कायम रखा है और भीड़ से कहीं दूर खड़े हैं। आपका सादगी भरा अंदाज़ स्वतः ही दिल को छू जाता है
पेशेवर होने कि वजह से समय की कमी रहती है अतः अक्सर आपके कार्यक्रम देख नहीं पाता। "the buck stops here", "left right & center", "the big fight" और "we the people" के podcast तो कार्यक्रम ख़त्म होने के बाद में भी सुन लिया करता हूँ लेकिन आपके किसी कार्यक्रम का कोई podcast है ही नहीं। हिंदी के साथ ये सौतेला व्यवहार क्यों? इस बारे में मैंने आपको @ ravishKumarNDTV पर ट्वीट कर के दरख्वास्त भेजी भी थी। आज लेकिन जब मुझे १ @ravishNDTV साहब दिखे तो समझ में आया की शायद में गलत दरवाज़ा खटखटाता रहा हूँ :) उम्मीद करता हूँ कि आप अपने प्रशंसकों के लिए अपने कार्यक्रमों के podcast की मांग ज़रूर करेंगे। अगर कुछ न बन पड़े तो १ बार बता ज़रूर दें। हम भी अपनी मांग के लिए धरना देने पहुँच जायेंगे :)
यह ब्लॉग पोस्ट बहुत अच्छा लगा पढ़ कर। एक अन्तर्दृष्टि मिली आपकी अजीब दुविधा के बारे में में। कृपया ऐसे मित्रों से दूरी ही बनाये रखें जो जो आप को पायदान बना कर अपना उल्लू साधने के लिए तत्पर रहते हैं।
हाहाहा.....कहाँ फँस गए रभीस बाबु.... पर चिंता न कीजियेगा... भलाई की बुराई पर जीत होनी भले बंद हो गयी हो पर अभी भी भलाई पूरी तरह हारी नहीं है.... भले लोग भी हैं....भरोसा रखिये.....
सही में लोगो को लगता है कि पार्टी वाले टिकेट ऐसे ही दे देते हैं। सच्चाई बिलकुल अलग है। कई बार तो एक एक सीट पर पार्टी के बहुत बड़े नेताओं तक की भी नहीं सुनी जाती है। बहुत ही कठिन प्रक्रिया और जीत की संभावनाओं को देखते हुए ही टिकट वितरित होता है। अभी कुछ दिन पहले की ही घटना है दिल्ली विधानसभा के समय की है। अरुण जेटली के घोर विरोध के वावजूद दक्षिणी दिल्ली में एक सीट पर जीतने लायक उम्मीदवार को ही टिकट मिला जो पहले भी दोबार mla रह चुके थे पर दो बार कांग्रेस से लगातार हार मिली थी। यह तो अंतिम समय में हर्षवर्धन जी की वजह से टिकट मिला वरना आज bjp सिर्फ 30 सीट होती और bsp की एक सीट होती। क्योंकि bsp ने अपना उम्मेदवार रोका हुआ था उनके लिए और वोह 16 हज़ार वोटो से जीते भी। इतना आसन नहीं होता टिकट दिलवाना। जब जेटली जी जैसे कद्दावर नेता की न चले तो अंदाजा लगाया जा सकता है की हर सीट के लिए कितनी स्क्रीनिंग होती है।
पर क्या करेंगे रविश जी। यह पब्लिक लाइफ में रहने के साइड इफ़ेक्ट हैं। इससे तो आपको जिन्दगी भर झेलना ही होगा। आप सोचिये सन 2005 में मेरे स्कूल मित्र के पिता जी बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष थे और दिल्ली में पता नहीं एक व्यक्ति मेरे पास पहुच गये कांग्रेस के टिकट वोह भी बिहार विधान सभा के लिए। वो बार बारमुमुझे कहने लगे मेरे मित्र से बात करने के लिए। मैंने बार बार उन्हें समझाया की न मैं न मेरा मित्र का राजनीती से लेना देना है और मेरे पिता जी बीजेपी से mlc और भारतीय मजदूर संघ के नेता रहे हैं। इसी लिए यह नैतिक तौर पर गलत होगा। पर टिकट के इच्छुक प्राणी कहाँ मानने वाले। फ़ोन करवाके दम लिया। बाद में दुबारा फ़ोन करके मैंने अपने मित्र को परिस्तिथि समझाई और हम हसने लगे। पर उस टिकेट के इच्छुक ने सुब्रमण्यम स्वामी वाली जनता पार्टी से टिकेट लेकर पुरे 67 वोट के साथ अपनी जमानत जप्त करवाई। अभी वो फिर दिल्ली के दौरे पर है, इसबार उन्हें आप से टिकट चाहिए। वोह ढूंड रहे हैं फिर किसी केजरीवाल या योगेन्द्र यादव के मित्र को। उन्हें चाहिए नालंदा लोकसभा का टिकट आप से। रविश जी इस बार आप भी उस महानुभाव के रडार पर है जैसा वोह बतला रहे थे की आप को जानने वाले कुछ लोगो को वो जानते है जो patparganj और mayurvihar में रहते है। जरा बच के रहिएगा। ये ऐसे जोक हैं को किसी भी नमक से नहीं छुट ते। 2005 में वोह कपिल सिब्बल के पीछे भी पड़े थे जोक की तरह। कांग्रेस के टिकट के लिए। मेरे उसी मित्र ने बताया था। वोह एक ngo चलाते है, अपना घर चलाने के लिए। आपकी व्यथा को भली बहती समझ सकता हूँ। और सारी पार्टियों के नेतागण भी समझते हैं। वो बिचारे भी इसी समस्या से जूझते रहते हैं।
aapka blog padhkar nirasha hui.. Aise neta hai..tabhi to ye haalat hai.. Dukh hota hai ye sab jankar..
बाप रे। पढ़ कर हैरान हूँ। कम तजुर्बा कहें या कम समझ, पर मुझे ये अंदाज़ा बिलकुल नहीं था कि टिकट के लिए लोग पत्रकारों को फ़ोन लगाते होंगे। पर अब आपकी "बॉल -बेअरिंग " वाली बात ज़हन में रखकर सोचता हूँ, तो समझ आने लग रहा है। पर हैरत तो इस बात पर भी है, कि किसी को सामने वाली कि कमज़ोरी या किसी बुरे वक़्त में कमज़ोर हो जाने कि परिस्थिति पर कितना यकीं है कि जिसके बारे में, इस प्रकार की रेपुटेशन नहीं है, उसके पीछे भी पड़े हुए हैं। शायद उनके समझ से ये बात परे है कि किसी सच्चे ईमानदार वक्ति के लिए बुरा समय, पैसा का अभाव नहीं , लोगों का उससे और उसके काम पर से विश्वास उठ जाना होता है। समाज से अलग न रह पाने कि आपकीबात भी समझ सकता हूँ। बड़ी कठिन है डगर पनघट की। मेरे बाबा भी सरकारी नौकरी में थे। ऐसा ही हाल कुछ वहाँ भी था। न कभी अपने लिए कुछ किया न अपने पहचान वालों के लिए। (कुछ किया से मतलब अनैतिक काम से है )। बताते थे कि कैसे लोग उनपर हँसा करते थे। उनकी कही बात/जवाब आज तक याद है। "honesty pays,but at last"
arvind ki wahi baat yaad aati hai..."sachhai ka rasta koi assan rasta nahi hai"
aisa hi hota hai yahaan.....
kitna ajib hai, jo bure wqt me kaam aane ki baat karte hain, wahi aapke liye bura wqt leke aa jate hain.........
achha laga....aapne apni preshani sajha ki.
पब्लिक लाईफ कि अपनी परेशानियाँ. किसी की कम तो किसी की ज्यादा. अब जब इन सबमें हैं तो झेलिये. :)
रविश जी जो लोग आपसे मदद मांग रहे हैं उनकी क्या गलती है.मीडिया की जो हालत है उससे कोई इमानदार मदद की उम्मीद भी कैसे कर सकता है.अपवाद गणित के नियम के लिए होते हैं भेडचाल वाली मीडिया के लिए नहीं. नहीं बदले तो कहीं हासिये पे फेक दिए जायेंगे .
हमें भी टिकट दीजिए.... सिनेमा के ही सही । हम भी रौब दिखाएँगे आपसे जान पहचान का । ही ही ही!
देने वाला बड़ा होता है । रविश जी,आज के समय में धन बहुत है लोगों के पास, पहचान के भूखे हैं । जो नया पैसा कमा रहे हैं, उनको राजनीति ही दिखती है । कोई नहीं, भगवान आपको दानी बनाए रखे ।
रवीश भाई, ईमानदारी से पत्रकारिता करते रहिये, यही सबसे बड़ा सहयोग है।
टिकट मागने वाले को एक टिप्स दीजिए क्या वह पार्टी और टिकट के लफड़े में पड़े है। रोड़ पर से कुछ इन्टलिजेन्ट भिखमगो को लिजिए और एक पार्टी बनाये उस पार्टी का वह लिडर बन जाए ।भिखारियों को उसी भेष- भुषा में एक हाथ में मिट्री का तेल एक हाथ माचिस थमा दे ।वह भिखारी आम आदमी के पास जाकर कहेगा आप मुझे वोट दे। नहीं दीजिएगा अगर में नहीं जिता तो में यह तेल अपने उपर डालकर आग लगा लुगा ।जनता यह सोचकर इन्हें वोट दे देगी । आजतक 65 सालों में हमलोगों का भला नहीं हुआ । कम से कम इन भिखारियों का तो हो जाए ।इस तरह वह भी जित जाएगा भिखारियों का भी भला हो जाएगा ।
Ravishji aise dalaalon se duur rahiye....Bura Waqt kabhi nahi ayega
Bas hamesha is Imandari ko kayam rakhiyega.
good
AAp ne abhi tak aapke koe vichar modiji ke economic aur education policy ke bare mai nahi diye usse herani hai muje. Agar koe vsicharik debate hota hai to sirf aap ke.Mr. Modi has done a good job. I am also impressed by his policy on education but I would like to asked why he has not applied it in Gujarat. Gujarati have given a such a good period in Gujarat. So, I would like to asked ke ye na-insaafi kyu bhai, warna aaj Guajrat Education me top karta, aaj jo halat hai education ki Gujarat mai wo nahi hoti.
NDTV IS NARROW MINDED CHANNEL. COZ U ALWAYS THINK ABT UP N MP RAJ GUJRAT DELHI GOV. U NEVER BROADCAST MANIK SARAKAR INTERVIEW HE IS ELECTED FORTH TIME AS CM IN TIRPURA . U NEVER BROADCAST LATHAN HALBA GOV. HE IS SO POWERFUL CM IN NORTH EAST... U ALWAYS RUN BEHIND KEJRI.. LIKE A CAT N MOUSE.. REALY INDIAN JOURNALISM GOING TO DICLINE.. COZ U R ALL NERROW MINDED
AAp ne abhi tak aapke koe vichar modiji ke economic aur education policy ke bare mai nahi diye usse herani hai muje. Agar koe proper debate hota hai to sirf aap ke.Mr. Modi has done a good job. I am also impressed by his policy on education but I would like to asked why he has not applied it in Gujarat. Gujarati have given a such a good period in Gujarat. So, I would like to asked ke ye na-insaafi kyu bhai, warna aaj Guajrat Education me top karta, aaj jo halat hai education ki Gujarat mai wo nahi hoti.
Kuchh log yaha bhi lekhak ko bandhna chahte hain. kehte hain is bare me nahi likha, is vyakti ke barey me nahi likha, aisa kyon nahi likha uski badaaii kyon nahi ki, uski booraii kyon nahi ki. had hai. limit hona chahiye dabdabaa bananae ka. freedom of speech kahin hai hi nahi. marde jo lekhak ke man me ayega wahi na likhega ya apke kahne sunane se likhega. free chhor dijiye kam se kam yaha unko. studio me to ek se ek aarop lagaye rahte ho, yaha to bakhsh do, Sir. Jai Hind.
bahut achhe
समस्या यही है, कुछ लोगो छोड़ दे तो हर कोई अपनी शक्ति और युक्ति के अनुसार सिस्टम को मेन्युपुलटे कर रहा है। जिसके पास जीतनी ताकत है वो उतना कर रहा है पर औरो से अपेक्षा करता है कि वो गलत काम न करे। पहेली भी लिख चूका हु "हम किसी और कि गलती होने पर सभी नियम कानून का पालन करते हुए आलोचना में लग जाते है। और अगर हमारी गलती हो तो झट से सिक्के के दूसरे पहलू पर चले जाते है।" अपना काम बनाने कि लिए हम कुछ भी करने को तैयार है और यही हमारे देश कि दुर्दशा का सबसे बड़ा कारन है।
रवीश जी एक बात कहें , किसी चक्कर में मत पड़िये , एक तो सब पार्टी वाले अपनी मर्ज़ी से टिकट देते हैं (चाहे पैसे लेकर ही दें ), अगर टिकट मिल गया किसी को तो ज़माने भर में ग देगा अरे रवीश भाई महान हैं फिर टिकट ही दिलाते रहिएगा, दूसरा पार्टी वाले आपको भी दलाल टाइप समझने लगेंगे, फिर ये पवार ख़तम। ये पवार ईमानदारी की है दलाली की नहीं। नहीं तो अमर सिंह और चौरसिया जी से पूछ लीजिये।
Sir I am a very big fan of yours. I just watched the PrimeTime on President's speech. It was superb, only an anchor like you could have pulled it off. You have actually helped me developing an interest in politics and political debates. Your show is not just a chat show but it also goes deep down in technicalities of politics without deviating from the main topic. I don't know whether you will read this message or not but i couldn't help myself writing it after watching today's episode. Thank you for such an unbiased and this unique kind of reporting.
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Pata nahi tha pehle prime time ke bare me...aapke ndtv ki hi galti hai vaise...aapke jaisa show kisi aur channel par hota toh har teesre minute par show ka gudgaan hota..aapka hai ki chupchap aata hai aur chala jata hai...vaise shayad isi liye aap vaise hain jaise hain... jis jis ko maine aapka show recommend kiya hai...aajkal wo sab 9 baje sab chor kar dekhne baith jata hai..kuch toh aise bhi hain jo politics se itne door the ki election result ke din bhi haseena maan jaayegi type picture laga kar baithe rehte the... aapka show se alag hi interest jag gaya hai... isliye kehta hun ki aapka bhi dayitva banta hai apne ki yuvaon se aur jyaada connect hone ka mauka de...aap unbiased tareeke se youth ko informed bana sakte hain.. aapke pass hunar hai isliye aap ki jimmedari banti hai...
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पत्रकारिता , टीवी पत्रकारिता की स्टारडम , अरिचय -परिचय को अरचित -परिचित टीभी पर देखते हैं।
गाँव -जवार -पथार के लोग आस्वस्ति महसूस करते होंगे अपने टीवी वाले रभीश में।
समाज एक रेखीय नहीं होता। ऐसे में कुछ अर्जी -फर्जी और अन्य अनेक लोग 'जो चलता है ' के चलन के अनुसार फोन -फान कर देते होंगे।
चाहने पर , सबका फोन नम्बरवा मिल ही जाता है !
और देखिये , कई पत्रकार भी तो अपने हित -मित्रों , अरचित -परिचित , लोकल में रॉब गांठते तो हैं ही कि अरे ओ मोदी , ओ केजरीवाल , ओ राहुल …ये डाइरेक्ट हमार फोनवा उठा लेते हैं।
अपने पटना में ही देख लीजिए कई अइसे -वइसे पत्र -कार हैं , टीभीकर हैं जो लालूजी के समय भी यूँ कर के 1 , अणे मार्ग घुस जाते थे , चुहानी तक…और नीतीशजी के समय भी ! यही तो पत्रकारिता है न !
लखनऊ के एक पत्रकार महोदय के बारे में सुन रखा है , उनके खास लोगो से . पहले एक प्रतिष्ठित अखबार में थे। अब टीवी में हैं।
मुलायम , कलराज , कल्याण सबके यहाँ दो -चार पांच टिकट दिलवा देते थे। आज भी जो काम हरिबंस जी , सुरेन्द्र किशोर जी नीतीशजी से
करवा देंगे , वह 20 -30 साल से मरने खपने वाला कार्यकर्ता क्या करवा पायेगा !
चलन है रवीश (जी ) ! का करियेगा। कोई आस लगा के आपसे जुगाड़ भिड़ाने को कह देता होगा। वह देखता है न कि हर पार्टी के बड़े नेता , बड़े नेता के प्रवक्ता , सलाहकार आपके साथ टीवी पर बक -झक करते हैं !
खैर , आपकी अंतरात्मा को आम आदमी कैसे समझेगा ? और यह जो आदमी है न वह भी भी किन्ही कारणों से जुगाड़ू है ! भ्रष्ट हो गया है। बना दिया गया है। किसान क्रेडिट के आधार पर सरकार से मुफ्त पइयासा लेकर गॉवों में सूद पर 10 -प्रतिशत की दर पैसा देता है। वह भी आम जन है।
यह किसान , मजदूर , यह आम इतना भी सुधा नहीं है ! जो चल रहा है , सब लोग चला रहे हैं। शोषण की श्रृंखला है ! मैंने अपने गाँव देखा है हर कोई एक दूसरे को क्षमता अनुसार सता रहा है। उसमें कुछ अंतरात्मा वाले भी हैं। जो सन्नाटे में भी , अनजाने में भी किसी का नुकसान नहीं कर सकते ? यह ईमानदारी , पत्रकारिता का ही संकट नहीं है , समाज का संकट है !
Ravish ji aap jis dubidha mein hai lagta hai desh ka har thoda bhaut kamyab nagrik isi dubidha mein rehta hai (agar woh aisi baaton ko favour nahi karta hai to)..mein ek company mein engineer hoon jiski filhal koi haisiyat nahi hai lekin mere ristedar jo umra mein mujhse chhote hain aur expect karte hain ki ek bar woh diploma kar lenge to main unki naukari lagwa dunga..dusari taraf mera ek bhai hai jo ye jante huye bhi ki mera bada bhai is tarah ka raste pe mera kabhi saath nahi dega mujhe kai baar sanketik tareeke se bolta hai ki naukari ke liye uski jagah paise dekar kisi aur se written exam clear karwa liya jaye....halanki kabhi maine uska paksh nahi liya aur hamesha isi baat mein tatasth raha ki mehnat karo aur agar sarkari naukari nahi mile to private kar lena... lekin ye sochkar afsos hota hai ki y jugaad ka silsila kab tak chalta rahega..hamne kaise samaj ka nirman kiya hai jahan har koi jugaad ko itna tabajjo deta hai...fir chahe contractor ho, ya koi worker, ya fir koi employee, har koi jugaad ko dhyan mein rakhkar apne aaka ya boss se behave karta hai aur expect karta hai ki jugaad se uski naiya paar ho jayegi... Halanki is baat ki bhi khushi hai ki din prati din jugaad ke saare raste band kar diye ja rahe hain..tenders mein transparency, naukariyon ke liye ek prakriya ko follow karna etc... fir bhi JUGAAD kitni powerful hai ye hum sab jaante hain..isne achchhe gadhon ko bhi sher bana diya hai..
एक फिक्र मेरी कलम से
वो चूल्हा याद आता है.. मिट्टी से बना वो चूल्हा हमारी तहज़ीब का हिस्सा हुआ करता था कभी।.. बावरचीखाने की ज़ीनत वो चूल्हा- कि जिसके इर्द गिर्द घेरा बनाकर बैठा करते थे हम सब सर्द मौसम में।.... कभी लकड़ी कभी कुछ झाड़ पत्तों से सुलगता वो चूल्हा.. गर्म सौंधी रोटियों का एक खज़ाना था।..कभी सोने से पहले उसी चूल्हे की गर्म राख में आलू दबाकर छोड़ देते थे.. कभी फुंकनी से बुझती आग को फिर से ज़ोर देते थे ।... वो चूल्हा अब अजायब घरों की अमानत है, बहुत मायूस लगता है वो चूल्हा, बहुत गुमसुम सा रहता है, गैस चूल्हे ने उसकी रौनकों को फीका कर दिया है.. मगर रोटी का वो सौंधापन और गूंजते कैकहे बावरचीखाने के, उसी मिट्टी के चूल्हे की तरह नदारद हो चले हैं।.....
Pramodji kee baaten gaur karne layak hai. Bihar me pichle ek saal se rahte hue main "Prabhat khabar" padh raha hoon. RS ke chunav me Sampadak Haribanshji kee chayan ka vajah pooree tarah se maloom hue.Nitish kumar ke bare main mashhoor hai ki Patna ke sare Newspaper ko manage karte hai par Prabhat Khabar ke baren main yeh 100% sahi hai. "Prabhat Khabar" ke hisab se Bihar me "Ram Rajya" aa gaya hai. Govt. se BJP ke hatne ke baad pure Bihar me CRIME ka graph upar bhagta ja raha hai. GAYA ke hee Mastermind ne Patna rally me bisfot kiya.Aajkal Nayagaon,Chapra ka High profile Kidnapping surkhiy0n me hai. Batate hai yeh phirauti 9-60 crore ke beech me hai. Negotiation Patna ke No 1 Hotel Maurya me hui. Govt ke action ke baren me kahin kuch nahi likha gaya. Isi paper ke Sunday edition me EK Tewari ji likhte me. Usi samay ek ghatna Aurangabad me hui jisme so called Naxlies ne EK Bihar Police KE Thana incharge aur 6 SAP Jawano ko Land Minse seuda diya.Maine Tewari ji ko unke mail ID per apna rosh vyakt kiya" Modi khanse ya cheenke yeh aapke khabar hai aur Bihar me 7 Police wale uda diye voh aapke liye koi khabar nahi hai. Uske baad voh Prabhat khabar me nahi chap rahe hai.
''मैं अमेरिका का नागरिक हूँ और इस तरह अमेरिकी नीतियों के लिए जिम्मेदार भी। और यह एक नागरिक का प्रमुख कर्त्तव्य है कि
वह उन नीतियों की आलोचना करे जिन्हे वह गलत समझता है …। '' --------प्रो नोम चोमस्की
'' यह जरूर है कि तुम्हारे पास रायफ़ल है लेकिन ---मैं मुसकराता हूँ और अपनी जेब से एक कोरा पन्ना निकालता हूँ
' मेरा मोर्चा यह है। यह कागज जिस पर मैं तुम -जैसों को तो क्या , अपने और अपनों को भी माफ़ करना नहीं जानता ! ''
--अपना मोर्चा (उपन्यास )- काशीनाथ सिंह
रवीश (जी )! पत्रकारिता , साहित्य , संस्कृति और बौद्धिकता की दुनिया में चुनी हुई चुपियां विश्वसनीयता गवां रही हैं।
जब इंसान कामयाबी के शिखर पर पहुँच जाता है तो लोगों की आशयेइ और उम्मीदें उससे बढ़ ही जाती हैं.यह एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया है. एक स्थापित पत्रकार होने के नाते आप इस बात को भली भांति जानते हैं. हाँ हमारे लिए यह संस्मरण अवश्य ही मार्गदर्शन का काम करेगा.
रवीश जी, मैं कई वरसो से न्यूज़ चैनल देख रहा हु, पर आपका शो आज पहली बार देखा, देखने पर लगा जैसे आज भी पत्रिकारिता बाकी है. Plz keep it up.
ultimate piece of wwriting!! baaqi to jo hai so haiye hi hai.... :P :P
रवीश भाई, कल का प्राइम टाइम काफी अच्छा था। के सी त्यागी जैसे लोगो को बुलाया कीजिये हमारा इतिहास कि जानकारी बढ़ जाती है। सबसे बड़ी बात आपने जो उठाई वो है अपनी गलतियों को स्वीकार कर माफ़ी मागने की। एक अनुरोध हैं कभी-कभी राजनितिक लोगो के बिना प्राइम टाइम कीजिये।
Aap ka koi jawab nhi ravish ji
Dear Sir,
Matter Ye Nahi Hai Ke Logg Aaap se Ticket k Call Krte Hain Balke aaj logg bina mehnat aur Jald Se Jald Paise Kama kr Ameer Banna Chahte hain.... Unka Maqsad MLA ya MP banna Nahi balke Uske raste aane wale paiso k liye hota hai... Wo jante aaj kl paisa kamana hai to Neta bano athwa Business K paisa chahiye aur Time bhi lag jayega isme to kuchh nahi election Jitne k baad sb kuchh apna... Hai...
Aap ne Last me jo kisi Bimaar k liye phone kiya usne ya sidh kr diya k duniya waqayi achhe loggon se chalti hai... Baharhal Aap ki soch badi hai aur uspr aamal krne ka jo jazba hai wo to mashallah kamal ka hai mai chahta hoon k Reporter Un logon tk pahuche jo is duniya me sochne ki bhi himmant nahi kr pate k unke bachhe ko kya krna hai.. aap log sirf Netaoon k pichhe bhagte hai aur badle me TRP ka aap k channel ko award milta hai... lekin ek garib jb khuch hota hao aur uske baad jo muskan uske chehre pr hoti hai usse dekhiya kahbi bada aanand aayega... TRP Badhne se bhi zayad ..
ravish(ji):) 'बातचीत' 'सड़क का सहयात्री' और 'ना भई ना' तीनों ब्लोग्स में कमेंट लिखने की कोशिश की थी-comment box accept ही नहीं कर रहा था-but i रीड आल ऑफ़ थेम:)
Sari bate padhi aik cheejh samajh ahi aaya ki aap kahty hai koi ye nahi kehta ki Imandari se ptrkarita kyu nahi karty. Kyunki kayi bar tv pe aap jhuke huye lagty hai kisi side to logo ko lagta hai ye to apna aadmi hai kam karwa dega . Isiliye log pahuch jate hai.
पता नही हमारे समाज को कोनसा लकवा मार गया है।
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