आज सुबह दफ़्तर में एक फ़ोन आया । फ़ोन रखते ही मैं एक अनजान वृद्ध महिला के एकांत से घिर गया । दिल्ली के नीतिबाग में रहने वाली ये महिला किसी बड़े अफ़सर की पत्नी हैं । पहले तो अपनी कविता सुनाई । फिर कहने लगी तुम इतना बीमार क्यों रहते हो । मैंने मज़ाक़ में कह दिया कि छुट्टी मिलती है । वो रोने लगी । कहने लगीं कि मैं माँ हूँ । तुम मेरे बेटे हो । मैं रोज़ रात को नौ बजे तुम्हारा इंतज़ार करती हूँ । तुम नहीं आते हो तो अच्छा नहीं लगता है । वो अब फूट फूट कर रोने लगी थीं । कह रही थीं कि जहाँ पैदा हुए वहाँ का सब छूट गया । तुम मेरी पुरानी भाषा के शब्द दोहराते हो तो सब लौट आता है । नहीं आंटी ऐसा क्यों कहती हैं । आप प्लीज़ मत रोइये । मैं तुम्हारी आंटी नहीं हूँ । माँ हूँ । तो ठीक है आशीर्वाद दीजियेगा । मैं दूसरी तरफ़ चुप और वो उस तरफ़ रोये जा रही थीं । रोते रहीं किसी तरह फ़ोन रख दिया । पहले भी बात हुई थी । तब क्या झटाकेदार अंग्रेज़ी में अधिकार से फ़ोन किया था । नंबर सेव कर लिया था । ( मैं यह अपनी तारीफ़ और शो के प्रचार में नहीं लिख रहा ) मुझे उनका वो आलीशान घर खंडहर की तरह नज़र आने लगा ( जिसे देखा भी नहीं बताया था कि बड़ा घर है ) और उसमें इस शहर में भटकती रूह की चित्कार । हम किस किस के घर में किस किस रूप में उतरते हैं अंदाज़ा नहीं कर सकते । मगर उनका रोना काट रहा है । घर जाने का वादा तो कर दिया मगर उस घर में कैसे जायें जहाँ कोई सब कुछ पाकर एकांत के मातम से घिरा हुआ है । लेकिन जाऊँगा । कितना भयानक अलगाव है ये ।
हम सिर्फ ख़बर या बहस लेकर आपके ड्राइंग रूम में नहीं आते हैं । हम आपकी गुदगुदी बेचैनियां और ग़ुस्से का भी हिस्सा हैं । आप दर्शकों की ज़िंदगी की किस तकलीफ़ में हम मरहम की तरह काम कर जाते हैं ये लिखना आसान तो हैं मगर समझना बहुत मुश्किल । पहले भी रिपोर्टर एंकर की इन अनाम और अनगिनत रिश्तेदारियों पर लिख चुका हूँ । हमारे ख़ून के रिश्ते तो ख़ून के प्यासे रहते हैं , नहीं निभता फिर भी निभाते रहते हैं । ये वो लोग हैं जो ख़ून के रिश्तेदार नहीं हैं । काम में ईमानदारी और बेहतर प्रस्तुति के अलावा कोई ज़रिया भी इन रिश्तों को निभाने के लिए । कई लोगों से मिल लेते हैं । घर भी गया हूँ । एक के बारात में चला गया था । बाज़ार में रोज़ अपने देखने वालों से मिलता हूँ । उनके साथ फोटो भी खिंचा लेता हूँ । मगर इस भीड़ में ख़ुद के अकेलेपन की प्रक्रिया भी चलती रहती है । खुद के लिए भी किसी को ढूँढता रहता हूँ । माता जी की व्यथा को समझ सकता हूँ । आगरा में एक किराने की दुकान चलाने वाले इक़बाल भाई को भी समझ सकता हूँ जिन्हें फ़ोन किया तो कहा कि दो मिनट होल्ड कीजिये । कार में बैठ लूँ । फिर इक़बाल भाई रोने लगे कि हमें क्यों नहीं अपना समझा जाता है । हम क्यों किसी हिन्दू मुस्लिम डिबेट में बाहरी की तरह दिखाये जाते हैं । रोते ही रहे । अकेलापन कितने स्तरों पर आदमी की पहचान का पीछा करता है । आज रात नौ बजे क्यों नहीं आए , जब भी ऐसा एस एम एस आता है , यह बात खटक जाती है कि आज कोई अकेला रह गया होगा ।
चलते चलते: एनडीटीवी में एक मित्र हैं पीटर । आफिस की कार चलाते हैं । पीटर चुप रहते हैं । बहुत साल पहले एक शूट के दौरान पीटर ने कहा कि केक खायेंगे । किसी का इंतज़ार लम्बा हो रहा था । उस केक पर झूम गया । पीटर ने कहा कि ये रम केक है । क्रिसमस में बनता है । पहली बार रम केक खाया था । पीटर हर साल क्रिसमस का रम केक मेरे लिए बना कर लाते हैं । शानदार । गले मिलते हैं और केक पकड़ा देते हैं । आज भी केक पकड़ा गए । कहा कि कब से इंतज़ार कर रहा था । रोज़ ला रहा था पर आज मिले ।
64 comments:
भाई, ये बात सच है हम 9 बजे आपको ढूंढते है फिर आपको पाकर खुद को देखते है ।
भाई, ये बात सच है हम 9 बजे आपको ढूंढते है फिर आपको पाकर खुद को देखते है ।
# जब हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह नरेंद्र मोदी को मास मर्डर कहते हैं तो वह यह भूल जाते हैं कि 59 रामभक्तों को जिंदा जलाकर मारने में अदालत से फांसी की सजा पाने वाला हाजी बिलाल उन्हीं की पार्टी का था.
# मनमोहन सिंह भूल जाते हैं कि उनकी ही पार्टी के तत्कालीन जिला कांग्रेस कमेटी के सचिव फार्रुख बाना व अब्दुल रहमान दांतिया ने हिंदुओं को किस तरह जलाया था.
# वो भूल जाते हैं कि एहसान जाफरी की हत्या में उनकी ही पार्टी के नेता मेघ सिंह चौधरी को सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित एसआईटी ने गिरफतार किया था.
# वो भूल जाते हैं कि उनकी पार्टी का सलीम पानवाला करांची में दाउद की मेहमाननवाजी में आज तक रह रहा है.
# वह यह भी भूल जाते हैं कि तत्कालीन अहमदाबाद म्यूनिसिपल कारपोरेशन के प्रमुख हिम्मत सिंह पटेल का नाम न केवल एहसान जाफरी की हत्या में सामने आ चुका है, बल्कि दंगे का आड़ लेकर उन्होंने वली दक्कनी के मजार को बुलडोजर से रौंद दिया था.
# हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह शायद यह भी भूल चुके हैं कि गुजरात दंगे में निहत्थे हिंदू-मुस्लिमों को मारने वालों में उनकी पार्टी के करीब 25 कार्यकर्ता व पदाधिकारियों को अदालत से सजा हो चुकी है।
# मिस्टर मनमोहन सिंह शुक्र मनाइए कि आपके कार्यकाल में हुए 2जी, कोलगेट, कॉमनवेल्थ गेम्स के घोटाले की में प्रेस्टीटयूट मीडिया बराबर की साझीदार है, अन्यथा यदि देश की मीडिया निष्पक्ष होती तो आप इतने दिनों तक प्रधानमंत्री की कुर्सी पर विराजमान नहीं होते...।
Ye Prem sabhi anchor patrkaron ko prapt kahaan hai sir! Aap apne se lagte hain...aapki bhasha anchorish nahi hai...lagta hai koi apne hi beech ka apni hi Baat keh raha hai...aap fake nahi lagte...aap jaise hain waise aapki prasruti hai..aapke aas pass yadi bana rehta hoon toh social understanding better hoti hai meri...shukriya achha dikhane sunane aur samjhane ke liye
Ravisha...thik kaha na apake friend ki tharah...us lihaj se to aap mere guru kyoki jab school me tha to aap 'Special Report ' karte the Ndtv par aur jab journalism hua to aap baharse andar aaye yani Reporter se Anchor ho gaye...pahale apko dekh kar repoter ka sapna dekhata tha aj Anchor ka dekhata hu...tks to god aj mai Anchor hu AIR mai !! Ye vistar se bataya prachar ke liye nahi ek patrkar ek joneration banata hai iss par mera vishwas hai...Ravish har roj aapko dekhane ke liye roj rat aakh lagakar baitha rahata hu. Charcha par dosto se bat karata hu. Ek milenge aur khub bate karenge ...journalism aur apaki presentation par...sry apanoko khat likhate vakt labzo par dhan nahi jata !!
Really Sir, 9 baje nazare bss aapko hi dhundti rahti hai...
Sach hai sir prime time may aap ko na pakar nerasha hoti hai
sach hai me Dallas texas se aapka 50 min ka video roj dekhta hu...phir bhi lagta hai shayad bahut chhota hai aapka show. god bless you and your style your language
ये दर्शाता है आपसे लोग किस कदर तक जुड़ चुके हैं आप जिस बारीकी और सादगी से अपनी बात रखते हैं वो सबको अपनी सी लगती है हम भी कहीं भी हों 9 बजे टेलीविज़न के सामने होतें हैं आप नहीं आते तो अच्छा सा नहीं लगता।
Sir kuch ek Namo ke Comment ko chod de to mujhe uper ki sari baaten sahi lagi or es blog me like ka button to hona chahiye.
ajj bhut hi nirasha huwi apko prime time pai nahi payaaa too
ajj bhut hi nirasha huwi apko prime time pai nahi payaaa too
Ravish Jee... wo ek gaana hai na...
Pyar ko Pyar hi rahane do koi Rishte ka naam naa Do...
Aap bhi aam aadmi hai, khair me aapko us rang me nahi dhal raha(Aam Aadmi Party ke). par is me mujhe thoda jalan hoti hai. Bade kismat wale hai aap jo dusro ke dil me ja kar baste ho aur TV ke dwara unse mil bhi lete hai. Hum bhi to aise kitno ko na chahte hue bhi piche chod aaye hai.
mujhe hamesha rat 9 baje ka intzar rahta hai..........kal raat aap nahi aaye.....shayad isliye ki kal dophar ko aap the tv par thori der k liye......kal ki aapki kahani ki tarah main b judi hun aapse......mujhe nahi pata aap ye comments padhte hain ya nahi......pr jab agli baar aap tv par aayen to ye jajur sochiyega ki........kitni hi nigahen aapko talashti rahti hai............jo aapse buri tarah judh chuki hai........hamesha k liye.......
हमसे दूर होकर हमारे पास हो तुम ,
हमारी सुनी जिन्दगी की आस हो तुम,
कौन कहता है हमसे बिछड़ गए हो तुम,
हमारी यादो मे हमारे साथ हो तुम
सामूहिक रूप में अकेलापन, आधुनिक शहरी जीवन का श्राप है । ( वैसे गाँव भी अब इस मामले में पीछे नहीं। ख़ासतौर से पलायन के प्रखर होने के बाद। मुझ जैसे लोग, जिन्होंने अपना ज़्यादातर जीवन शहर/क़स्बे में बिताया है, वे अक्सर गाँवों को म्यूजियम में लगी किसी शांत, निर्मल तस्वीर के फ्रेम में देखने की गलती कर बैठते हैं ) ।
बहरहाल, यहाँ बात बहार की रिहाईश कि नहीं, अंदर बसे वीराने की है । हम ट्वीटर / फेसबुक पर इतना बोलते हैं, फिर भी कहने को कितना कुछ रह जाता है। बाहर भीड़ से गुज़रते हुए , शहर का अकेलपन हमारे भीतर से गुजरने लगता है। घर से दफ़तर को जाते जाते सड़क, अचानक अपने किसी पुराने माकन,स्कूल, या यूँही कहीं दूर को मुड़ने लगती है। हम सबका खालीपन हमेशा किसी की काल्पनिक उपस्थिति से भरा रहता है। रेडियो में वो गाना बजा और आह ! कितने तार छिड़ने लगते हैं। सबको तलाश है उस सुनने वाले की जिसपर अपने अंदर का खालीपन खंगाल कर खाली कर दिया जाए।
बात केवल सामाजिक रूप से अकेलेपन की नहीं। मानसिक एकांत की भी है। एकांत । हिंदी का ये शब्द बड़ा बहरूपिया है । अंग्रेजी के दो शब्द हैं : लोनलीनेस , सॉलिट्यूड। दोनों का तर्जुमा (शायद) एकांत ही है। पर जहाँ सॉलिट्यूड में शांति है , वहीं लोनलीनेस में हतशा है। सबसे घिरे रह कर भी अकेले रह जाने की निराशा । सवाल ये भी है कि हम क्यों अपने आस-पास वालों से मन ही बात कह पाते ? ये कैसे बंधन हैं जो मुँह और मन दोनों को बाँधने पर मजबूर कर देते हैं?
दोस्त , बेटी, भाई भले ही रोज़ नहीं मिले, पर टीवी पर वो शख्शियत घड़ी की सुइयों के पीछे पीछे रोज़ चली आती है। दिनभर हम अकेले में उससे बोलते हैं और वो कुछ नहीं कहता। रात को वो अकेले कहता रहता है और हम कुछ नहीं बोलते। किसी अनजाने के इंतज़ार में कटते रहना, ये आदत भी अजीब है। अचानक मन्नादा का गाना याद आ गया .... " दिल की गिरह खोल दो, चुप ना बैठो, कोई गीत गाओ....."
''kaun aaya hai yahan, koi na aaya hoga, mera darwaza hawaon ne khat-khataya hoga.''
..milne zaroor jaayega, khushkismat hain aap.
ज़िंन्दगी में यदि किसी एक चीज़ से नफरत हुई है तो वह चमचागिरी है लेकिन मेरा मानना है कि आज के टेलीविजन का एक ही नायक है ---रवीश कुमार, उनका प्रोग्राम छूट जाता है तो अफ़सोस होता है। रवीश मीडिया के "आम आदमी" है।" क़स्बा" को "झाड़ू" का सलाम ।
:)
Ravish ji, i wish you would inform your "fan viewers" on twitter that you would come on prime time or not or even during the day news. was pleased to see you anchoring during PM press meet. pls find a way to inform viewers in advance about your shows and news reporting... i specially like your repo with Abhay Dubey of CSDS... he is one person whose views i find most rational. aap usko jyada time diya kijiye apne shows me.. mostly to sab shor machane aate hain yaa illogical baate bolte hain... my best wishes for your good health... Mast Rahiye.. Vyast rahiye..swasth rahiye...... A Son of Bihar
sir es blog ka kucch hissa aapne fb pe bhi likha tha aur maine usko padha tha likhna waha chahta tha but likhna waha allowed nhi tha khair wo aapka personal id hai koi baat nhi lekin sach me hum bhi Monday to Thursday and sunday ko aapka wait karte haijis din aap nhi aate ho remote ko patak deta hu pata nhi kyu khud pe gussa aane lagta hai kyuki aapki baatein wahi hoti hai jo hum feel kar rahe hote hai ya jo hum kehna chahte hai but words ke abhav me keh nhi paate, jab bhi time milta hai net pe aapko search karn elag jaata hu chahe wo facebook ho twitter ho ya you tube ya fir aapka blog, aapko padh ke ya sun ke mujhe rishikesh mukherji ke filmo ki yaad aa jaati hai jinme vyang ke saath ek sandesh chhupa hota hai..pata nhi aapse kya lagav hai but kucch to hai jo akelapan me aapki yaad dilati hai and mai sirf aapka show dekhta hu hindi news me another mai english news dekhta hu...mujhe samajh nhi aa raha hai ki mai apne dil ke baton ko kin shabdon me vyakt karu ha raat ko aapka ye status padh ke kucch to th ajo dil ko khatak gya tha...
Best REgards to you
Ravish Ji, Monday-thursday 9.00 PM is like wow a great time.. ghar mein family wale bolte hain ENGLISH NEWS dekho... par kya karein..hum sirf debate ke liye prime time nahi dekhte hai..aap ke one liner.. comment..bilkul aise lagta hai jaise apne doston ke bich discussion ko hum silentlu soon rahein hai...
BUT ek shikayat hai... aap "AAP" ko kuch jyada hi "HONEST", SINCERE maan baithe hai... thoda critically analyse kariye...
"मगर इस भीड़ में ख़ुद के अकेलेपन की प्रक्रिया भी चलती रहती है । खुद के लिए भी किसी को ढूँढता रहता हूँ ।"
यूँही ढूंढते रहिये किसी को इसी बहाने किसी का अकेलापन दूर हो जायेगा.. और विनोद दुआ जी का ठिकाना तो बताइए.. कितने लोग पुछ चुके हैं.. एकाध कमेंट पढ़ भी लिया कीजिये! मानते हैं की वक़्त की कमी रहती है आप पर..
उप्पर सचिन जी का कमेंट बड़ा सटीक सा था रवीश जी.. इस पोस्ट के लिए धन्यवाद ... खैर.. मिलने जरुर जाईएगा आंटी से और हमसे भी मिलते रहिये ९:०० बजे.. :)
aapse aagrah hai ki blog ko social site pe share karna ki ijjajat dein..mera maanna hai ki log aapko issiliye pasand karte kyonki aap hindi patrikarita mein aanchlik bhasha ka pryog karte hain,,,aap hindi patrakarita ke Renu hain
Ravishji, yeh matee ke saath ka prem hai. Bahoot paise hone ke baad bhi Ekakipan me aadmi apnee jadon ko khojta hai.Mataji ke sath bhi yahi hoga. Unhone apnee santano ko bahoot padha diya hoga, voh sab America ya Singapur me hoge.Iseekaran voh aapme apne bete ko khoj rahi hai.Yeh aaj ke daur kee talkh haqqiqat hai.
"हमारे ख़ून के रिश्ते तो ख़ून के प्यासे रहते हैं , नहीं निभता फिर भी निभाते रहते हैं । "
क्या बात कह दी आपने,बस आपकी ऐसी ही वाणी के लिए रोज रत इन्तेजार रहता हे प्राइम टाइम का.
९ बजे मैं देखते रहता हूँ और रवीश की रिपोर्ट को बहुत शिद्धत से मिस करता हूँ । चीन में रहता हूँ। अंग्रेजी का पत्रकार रह चूका हूँ।
बोल चाल की भाषा, संतुलित उलाहना, डाँटना , डपटना , चुपके से मुस्कराना, कड़वाहट का कोई ईजहार नहीं करना , निष्पक्ष न कि तटहस्थ रहना, व्यंग कसना क़िसी को छोटा नहीं दिखाने के लिए बल्कि एक किस्म कि चुटकी लेने जैसा, किस टीवी शो में देखने को मिलता है ?
हम जैसे लोग जो उठा पटक देख नहीं पातें हैं वे सब आपकी रिपोर्ट और शोज के मुरीद हैं।
उस दिल्ही की महिला ने आपको फ़ोन किया। अच्छा ही किया। नहीं तो कैसे पता लगता कि लोग आप को बिना जाने अपना मान रहे हैं? कहीं क़ुछ तो आप छू पा रहे हैं।
संवेदना (साहित्य जिसका बिम्ब हैं ) और पत्रकारिता (यथार्थ ) का मिश्रण बिना किसी अपने आदर्श या एजेंडा कि कसौटी पर कसे - ऐसा कुछ जब तक आप यह कर पाएंगे हमारे लिए तो आप स्टार ही रहेंगे। ndtv को भी बधाई कि आप जैसों की प्रतिभा को प्रस्तुति दी हैँ। और उम्मीद करते हैं कि विनोद दुआ कि तरह कभी दम्भी नहीँ बनेँगे ।
Ravish, After all that fan fare, I hope you will have the stomach for some criticism (even after that rum cake!). The blog reads like an emotional cauldron with the following ingedrants thrown in - some 70's bollywood script Amar Akbar Anthony, Mere pas ma hai, and some 60s movies where the duki hero is searching for eternal love. Why are we Indians so emotional?
हमारे ख़ून के रिश्ते तो ख़ून के प्यासे रहते हैं , नहीं निभता फिर भी निभाते रहते हैं ।
True line..
सर जी आप जो भी सोचो लेकिन रात को 9 बजे आप का नहीं आना सबको बहुत अखरता है। मैं खुद भी ..........आपको तो क्या बोलें। आप तो आलसी हो।
सर जी आप जो भी सोचो लेकिन रात को 9 बजे आप का नहीं आना सबको बहुत अखरता है। मैं खुद भी ..........आपको तो क्या बोलें। आप तो आलसी हो।
काश सबके पास इतना समय रहता कि वे सबकी सुन लेता और तभी जाकर निष्पक्ष छवियाँ बनाता।
बहुत खूब
पर शिकायत यह है कि कल आप क्यों नहीं आये?
बहुत खूब
पर शिकायत यह है कि कल आप क्यों नहीं आये?
अमिताभ बच्चन का वह युग याद है रवीशजी जब स्क्रीन पर उनकी इंट्री होती तब दर्शक समझ जाते थे कि अब यह पाच पंद्रह को धूल में मिला देगा। और जब वे कमर पर हाथ रखकर नायिका की तरफ देखते थे रोमांस की गुदगुदी ठाठिया टाकीज में बेठे दर्शक को भी शिद्धत से होती थी। ठीक आप जब इन हुक्मरानों की धज्जिया बिखेरते है तो आप हमारा ही बदला ले रहे होते है। एक अंजाना रिश्ता तो आपने बना ही लिया है। आपने महसूस किया यह मायने रखाता है।
During Debate show,phone call faciality for Common men shold be start.....Dr.suresh(rajasthan jaipur)
Happy New Year Ravish ji...Bahut achha lagta h Aapko sunna...my favorite program on Tv is NEW,but NDTV is best & specialy Aapke Sath...dr suresh
आपकी इस प्रस्तुति को आज की बुलेटिन हिंदी ब्लॉग्गिंग और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जगा दिया गुजरात को जिसने,देश जगाने वाला है।विजय पताका फहराकर वोजो दिल्ली आने वाला है।।शंखनाद हो गया शुरू,अब तो रण होने वाला है।आजसुना है अपने कानो सेकी मोदी आने वाला है।।मत डरो अंधियारो सेअब भोर होने वाला है।गर्जना सुन पा रहा हुकोई शेर आने वाला है।।जल रहा है पुरा भारतअब शासन हिलने वाला है।सुन लो सब कान खोल के,अब मोदी आने वाला है ।।
अकेलापन तो हर व्यक्ति की नियति है विशेषकर जब वो खुद के साथ होता है ..... शायद इसका कारण यही हो सकता है कि कोई भी व्यक्ति हमारी सोच से पूर्णत: नहीं मिल सकता और विचारों की भिन्नता ही भीड़ में भी अकेला कर देती है ......
Sachin ji aap nay akant shabad ki bauth sundar vyakha ki aap ka koee blog hai kya
हम वह रिश्तें कभी भी नहीं खोते जिस में हमने अपने आप को सच्चा project किया हो शुरुआत से ही :)
और वह रिश्ते टीक न पाएंगें जिस में हम ने खुद को अच्छा project किया हो!
और यह सच्चाई से अच्छाई का फासला तय करने में हम ज़िंदगी गुज़ार देते है
औरों से तो दूर हम खुद से खुद के फासले को भी कहाँ मिटा पाते है?
और इसी फासले का नाम अकेलापन है
खुद से सच न बोल पाएं रिश्तों में सच कहाँ से लाएंगे
अच्छा होना अजनबीयों से सही है अपनों से थोड़ी न?
वैसे माधुरी दिक्षित और सलमान खान अच्छे भले ही 'दीखते' हो सच्चे तो 'डॉ नेने' है :) :-p
@seemaSingh शुक्रिया ! जी है एक : चरखा - inchoateexpressions[dot].blogspot[dot ].com
ravish ji , bahut khatakta hai jab intjar ke pal ko din/dino me badal dete hai. achha lagata jab humare ulahane aur dil ki kasak ko aawaj dekar "parosate" hai..
aapke sath ek ajib sa attachment hai sir....jamini attachment kah sakte ho....aapki bate apke sabd life ko jhakjhor deti hai
सर अब नेक्स्ट पोस्ट " हम साथ साथ है" होना चाहिए
हमें भी आपसे बात करनी है, ना नंबर मिल रहा है आपका और ना ही आपकी email id...कैसे, पता नहीं....twitter पर message किया है आपको...reply कर दीजिये....
snoiice(@)gmail(dot)com
Sachin ji. Bahut umda likha aapne.
सर का पोस्ट तो होता ही है बढ़िया, लेकिन आपका ये पोस्ट के जितना बड़ा ही कमेंट सुपरहिट है :) छा गए आप...
ye baat to sahi hai sir, koi na koi akela reh hi jata hai.... apne ye blog aaj likha.. maine apne facebook wall par kai din pehle hi likha tha.. Ravish Kumar ke bina din adhura-2 sa lagta hai ..!!
ye baat to sahi hai sir, koi na koi akela reh hi jata hai.... apne ye blog aaj likha.. maine apne facebook par kai din pehle hi likha tha.. Ravish Kumar ke bina din adhura-2 sa lagta hai ..!!
कमाल का बोलते है आप।
आज कल मेरा जीवन तीन लोगो से बहुत प्रभावित है पहला अरविन्द , दूसरा रवीश और तीसरा कपिल।
मेरे लिए तीनो महानायक है आप सभी का मेरे जीवन को दिशा देने के लिए धन्यवाद और प्रणाम।
रवीश भाई, कुछ रिश्तों के नाम नहीं होते। आप जब बढ़नी मार, चहेट दिया जैसे शब्द प्रयोग करते है तो ये अपनापन और बढ़ जाता है। आपके प्रस्तुति मे अजीब तरह का जादू है। "इसकी भाषा से संगीत निकलता है"(matter of rats: Amitava Kumar) आपके प्रोफेसर के इस बात से शायद ही कोई टीवी का दर्शक असहमत होगा। आप जब प्राइम टाइम में नहीं आते है तो लगता है आज कुछ कमी रह गई। चैनल कि तरफ से ये जानकारी(आपके नहीं आने) अगर थोडा पहले मिल जाता तो मुझ जैसे दर्शक को थोड़ी कम निराशा होगी।
Sayad yahi karan hai ki apne apna surname apne naam se hata diya.. taaki koi apna na bana le.
kathin hai in purani fake rishton se apne aap ko lag rakhna aur unse lage bhi rahna.
rishte benaam hi rahe to achha hai.
sir g aap na to number dete ho aur na hi fb pe add krte ho...bdi nainsaafi h ye.. jb b aapko TV pe dekhta hu ye sawal puchta hu aapse k bhai mujhe b dost bna lo..nmbr de do..lekin sune kaun? itne msg kiye fb pe bhi aapko..lekin koi rply nhi..kuch to bolo sir g. plz kuch to rply kijiyega.
Anil Nehra
09468590441
i promise aapko bewajah pareshan nhi karunga..i knw aap bht busy rehte h...kaam b hota h aur family ko b time denaa pdta h..so.. waitn for ur rply sir g.. :)
किसने वादा किया है आने का,
हुस्न देखो .गरीब.खाने का..!!
रूह को आईना दिखाते हैं,
दर-ओ-दीवार मुस्कुराते हैं..!!(जोश मलीहाबादी )
itne din ho gaye apko dekhte par ab bhi har roz intezar rehta hai aapke show ka,jab aap nahi aate toh bahaut nirasha hoti hai....mere college me mera pura group aapka bahut bada fan hai aur har roz aapke blogs par kuch na kuch charcha hoti hi hai...
bas aap swasth rahe aur chutti na lein :)
रवीश जी मेरा बेटा 10वीं में है और आपके प्रोग्राम को मेरे साथ पूरी ईमानदारी के साथ देखता है और शो के बाद उसकी चर्चा भी करता है,आपने कमाल कर दिया है सर!!!!
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