जितना मैंने देखा और समझा है मैं मोदी की टीम की रैली और छवि प्रबंधन शैली का क़ायल रहा हूँ । मोदी ने रैलियों में आई या लाई गई भीड़ का इस्तमाल सिर्फ अपनी लोकप्रियता जताने के लिए नहीं किया बल्कि राजनीति में बड़ी रैलियों को पुनर्जीवित किया है । आम तौर पर पिछले कुछ वर्षों में किसी एक राज्य में तमाम छोटी छोटी रैलियाँ हुआ करती थीं और मतदान क़रीब आने पर राजधानी में एक बड़ी रैली हो जाती थी । नेताओं कार्यकर्ताओं ने यह विश्वास खो दिया था कि लोग नहीं आयेंगे तो फ्लाप शो कहा जाने लगेगा । इससे उम्मीदवारों का भी काम प्रचार कार्य रूक जाता था । इसीलिए संकुचित आकार का मैदान ढूँढा जाता था । नरेंद्र मोदी ने खेल पलट दिया है । वे एक ही राज्य में कई बड़ी रैलियाँ करना चाहते हैं । बड़ा मैदान चुनते हैं । विधानसभा चुनावों को छोड़ दें तो मोदी की हर रैली बड़े पैमाने पर हो रही है । सिर्फ आकार नहीं बल्कि इस बात का ख्याल रखा जाता है कि नाम से भी मोदी की रैली बड़ी और आकर्षक लगे । गर्जना,महागर्जना, सिंहगर्जना, ललकार, चिंघाड़, फुंफकार विजय संकल्प । आम तौर पर शेर और साँप की तमाम ध्वनियों से उनकी रैली के नाम लिये जाते हैं । जब ये नाम समाप्त हो जायेंगे तब देखते हैं कि मोदी की क्रिएटिव टीम किस जानवर की ध्वनि से रैलियों के नाम गढ़ती है !!
इतना ही नहीं मोदी की टीम ने मंच को भी नेता के अलावा आकर्षक बनाया है । आम आदमी पार्टी की कामयाबी के बाद भव्य आकर्षक लिखने में पैसे का भी बोध हो जाता है । खैर । मंच के पीछे 'वाचआउट' तकनीक का महँगा पर्दा होता है जिस पर आप प्रोजेक्टर से तस्वीर डालकर सिनेमा के पर्दे की तरह भव्यता पैदा कर सकते हैं । वीडियो स्क्रीन भी लगा होता है । कार्डबोर्ड से लाल किला और संसद की प्रतिकृति बनाई जाती है । कुछ दिन में प्रधानमंत्री निवास और साउथ ब्लाक( जहाँ पीएम का दफ़्तर होता है) भी बनने लगेगा । मोदी की टीम ने यह आइडिया कोलकाता के दुर्गा पूजा पंडालों से लिया है । जहाँ हर पूजा समिति महीनों सोचती है कि इस बार का पंडाल किस पर होगा । अमरीका के व्हाइट हाउस की तरह या ब्रिटेन के राजकिले की तरह । मैंने तो कोलकाता में कर्नाटक के विधानसौदा की नक़ल में पंडाल देखा है । दुर्गा पूजा पंडालों पर ताप्ति गुहा ठाकुर्ता ने अच्छी किताब लिखी है । कोलकाता में पंडालों में भीड़ का यह एक मुख्य कारण होता है । मोदी की टीम ने इसे राजनीतिक रैलियों में आज़माया है ।
अब इतना सबकुछ करने के बाद वहाँ सिर्फ और सिर्फ मोदी की छवि न हो तो क्या फ़ायदा । बीजेपी की अपनी मर्ज़ी कि वो क्या करें । पार्टी को पता है कि राजनाथ अकेले रैली करेंगे तो यही अनुशासित कार्यकर्ता दो हज़ार लोग भी नहीं जुटा पायेंगे । इसलिए पार्टी ने या राजनाथ ने खुद को मोदी के साथ अटैच कर लिया है । मगर मेरी नज़र में इससे मोदी को नुक़सान हो रहा है और सुनने वाले के दिमाग़ में कंफ्यूजन । किसी भी बड़ी रैली में बड़ा नेता एक ही होता है । उसके पहले के वक़्ता मजमा लगाने वाले होते हैं । इस लिहाज़ से राजनाथ सिंह को मोदी की रैली से दूरी बनाकर रखनी चाहिए । मुझे नहीं पता कि आडवाणी जी भी यही करते थे । जहाँ जहाँ अटल जी की रैली होती थी वहाँ वहाँ होते थे और अटल जी से पहले भाषण देते थे । याद तो नहीं आ रहा है । राजनाथ जी क्या नया अटल आडवाणी बन रहे हैं । मोदी युग में राजनाथ मोदी युग्म !
राजनाथ सिंह अपना और मोदी दोनों का नुक़सान कर रहे हैं । वे अपने दमदार भाषण से मोदी के आने से पहले जो असर पैदा करते हैं उससे श्रोता को निकल कर मोदीमय होने में वक्त लगता है । क्योंकि राजनाथ की आवाज़ असर पैदा करती है । जब वो घर लौटता होगा तो कंफ्यूज़ हो जाता होगा कि फ़लाँ बात राजनाथ ने कहीं थी या मोदी ने । मोदी की रैलियों के उबाऊ होने की ख़बरों में एक कारण यह भी हो सकता है । हैसियत के लिहाज़ से मीडिया राजनाथ के भाषण को भी लाइव दिखाता है । इस अनुपात के कारण मोदी का कोटा थोड़ा कम हो जाता है । टीवी में पहली बाइट मोदी की चलती है और दूसरी बाइट राजनाथ सिंह की । लोकपाल वाला राजनाथ बोलते हैं तो मोदी राहुल पर कुछ और बोलने के लिए मजबूर होते हैं ।अख़बार में रैली के बाद राजनाथ के भी बयान मोदी के साथ उसी कापी में छपते हैं । ऐसा लगता है रैली नहीं प्रेस कांफ्रेंस हुई थी । इसका मुख्य कारण है कि अध्यक्ष और उम्मीदवार दोनों का भाषण भावार्थ में एक होता है । सिर्फ पंक्तियाँ अलग होती हैं । एक पत्रकार कितना अलग करेगा । वो सोचेगा राष्ट्रीय अध्यक्ष के बयान को कैसे छोड़ सकते हैं । मोदी का काट कर राजनाथ का भी एक लगा दो । मोदी समर्थक मुझे कितनी गालियाँ देते हैं । कम से कम इस लेख के लिए तो शुक्रिया अदा कर ही सकते हैं !
पिछले एक साल से जब भी मोदी के प्रधानमंत्री का उम्मीदवार बनने की बात होती थी मैं अक्सर कहता था कि विरोध की सारी ख़बरें कमज़ोर हैं । आज तक पार्टी के भीतर नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ कोई भी बड़ा विरोध कामयाब नहीं हुआ है । हाँ उस तथाकथित विरोध की उम्र मीडिया में थोड़ी लंबी रही जिससे यह संदेश जाने में कामयाबी मिली की मोदी लड़ाके हैं । विरोध का सामना करते हैं । क्या मोदी के मंच पर अनिवार्य रूप से राजनाथ का होना उसी अंदरखाने की राजनीति का नया विस्तार है ?
लगता है मोदी भी राजनाथ सिंह को अपनी रैली में एडजस्ट करने के लिए मजबूर हैं । कोई राष्ट्रीय अध्यक्ष को कैसे कहे कि आप मत आइये । ठीक मुझसे पहले मत बोलिये । एक बड़े नेता का भाषण सुनकर पब्लिक थक जाती होगी । मैं अंत में थकी हुई पब्लिक में जोश तो भर देता हूँ मगर अकेला रहता को और भर देता । चूँकि मोदी की रैली सुनी जाती है इस लिहाज़ से भी राजनाथ आकर उत्सुकता कम कर रहे हैं । तभी मैंने कहा कि क्या राजनाथ सिंह मोदी की रैली को कंफ्यूज़ कर रहे हैं ! या बीजेपी मोदी को लेकर कंफ्यूज़ है !
14 comments:
Interesting point, coincidentally I tweet quite a similar line in diff tone, even yesterday I must say the content of Rajnath Ji speech was better than Mr.Modi,but the focal point is here different, Atalji use to do public address in small gathering public meeting, he is a poet too,so his fan following comes from different hemisphere also. BUt Rajnath Singh comes from that section of party where he has to depend on others to keep alive himself. May be he is president by post but also by choice (no other alternative too). In the larger picture still Shivraj Singh Chaouhan may fit the shoe, He is a farmer,son of soil and able administrator, conclusive. there are more to come in time. let's wait. till now its all NAMO NAMO. Have a wonderful year ahead. And it is a good observation.
ravish sir ,to yah kaha jaye ki aane wale dino me rajnath singh hi modi ke liye sir dard honge .ya dusari bat jo aapne last me likha hai ki bjp modi ko lekar abhi tak kasmokash me para hua hai .agar ye sahi hai to bjp ke liye aane wala bakt sahi nhi hai .
Rajnath is a serious contender for PM post in the eventuality of 'consensus candidate'like Atal over Advani.
Rajnath is a serious contender for PM post in the eventuality of 'consensus candidate'like Atal over Advani.
कल की राँची की रैली में भी राजनाथ ज्यादा असर पैदा करने में सफल रहे...लोग कहते हुए निकले कि मोदी ने कुछ खास नहीं कहा...
Ravish correctly expressed, lekin agar aise hi Lord Krisna wali sarthi ki kursi par baithne ki Rajnath ki niti jari rahti hai to log confusia jayenge
नि:संदेह आपने एक बारीक लेकिन बहुत ही महत्वपूर्ण बिंदु का आकलन किया है । मैं आपको बधाई देता हूँ ।
राजनीति के दृष्टिकोण से आपका यह लेख कई प्रकार से मिल का पत्थर है। राजनीतिक प्रबंधन, कार्यकुशलता, और मार्केटिंग कि रणनीति पर एक बहुत ही वृस्तित प्रकाश डालती है।
कोई भी युवा या व्यक्ति जो भविष्य में राजनीति को जीवन के एक प्रासंगिक मुकाम के के रूप में देखेगा उसके लिए इसमें कई सारे बारीक सुझाव थे। बहुत असंद आया।
बेहतरीन लेखनी और एक अलग नजरिये से आपने जिस विचार को विस्तार से पेश किया है वह चर्चा के योग्य है... क्या वाकई मैं भाजपा में प्रधानमन्त्री उम्मीदवार को लेकर कोई संशय चल रहा है?
एक आसान, और शायद गलत/अपर्याप्त कारण ये भी हो सकता है कि राजनाथ , मोदी की प्रकाश के कारण खुद पर ग्रहण नहीं लगवाना चाहते। बात बेकार हो सकती है, पर मोदीजी का भविष्य बनाते बनाते, उनके बहुत से "मेंटर्स" इतिहास बन गए। कहना का मतलब ये कि राजनाथ शायद अपनी प्रासंगिगता, मोदी की चकाचौंध में गवाना नहीं चाहते। मंच पर साथ रहने का, पहले भाषण कहने का ये एक राजनैतिक, मनोवैज्ञानिक कारन हो सकता है।
(एक और संभावना हो सकती है जिसमें मुझे ज़यादा दम नहीं लगता। वो ये कि राजनाथ लगातार खुद को मोदी का अल्टरनेटिव दिखाना भी चाह रहे हों.कल चुनाव बाद यदि मोदी की सिंघगरजना से कुछ दल डर जाएँ, तो राजनाथ अपनी बैरीटोन आवाज़ में उनसे कह सकेंगे - मैं हूँ न।)
नोट : ये न्यूज़ चैनल/पेपर से दूर रहने वाले एक आलसी दिमाग कि सोच है। इसलिए इसे गंभीरता से लिया जाए।
https://www.facebook.com/hemendrajha123/posts/10200528252488519
Sachin ji baat me dum hai.vaise ek saal se door hoon lekin sokoon me hoon. BBC kee hindi service anu AIR kee news se kaam chal jata hai. Haan 'Prabhat Khabar jaroor roj padhta hoon.
TV se door hoon.
rajnath modi ke liye majboori hai
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