(एक ड्राईवर की आत्मकथा-लप्रेक)

कार चलाने का मतलब ये नहीं कि हम सिर्फ सफ़र पूरा करते हैं। वैसे भी हमारा सफ़र तो होता नहीं। वो तो मालिक का पूरा होता है। हम तो बस एक होटल से दूसरे ढाबे के बीच की बस्तियों को गिनते चले जाते हैं। मैंने इतनी मंज़िलें तय की हैं लेकिन एक भी मेरी मंज़िल नहीं थी। किशोर से लेकर सुशीला रमण तक के गाने सुने हैं लेकिन एक भी गाना मेरी कल्पनाओं में नहीं बजता था। बीड़ी और माचिस सीट के नीचे दबी दबी सिकुड़ जाती थी। बगल की सीट पर दैनिक जागरण का टुकड़ा जिस देश की खबर बताता था वो तो कब का पीछे छूट चुका होता था। पीछे की सीट पर बैठे दोनों एक दूसरे को निहारते, मुस्कुराते और कभी कभी छू लेते थे। बीच बीच में अंकल चिप्स के टुकड़ें खाने लगते,जिसकी गंध मेरे पेट में उमड़ पैदा कर देती थी। जिसे शांत करने के लिए कपड़े में लिपटे कोक के बोतल को सीट के नीचे से निकालता और कार चलाते चलाते पीने लगता। सिहरन सी होने लगती थी। कुछ कुछ जलन भी। मुझे भी समझ नहीं आया कि दोनों जब नींद में मदहोश हो जाते थे तो मैं बैक मिरर देखकर कार क्यों चलाने लगता था। पीछे की सीट और आगे की सीट में कितना फर्क हो जाता है। कार में हम ड्राईवर साहब होते हैं मगर सफ़र उसका होता है जो मालिक होता है। हमारे पास मालिकों की पूरी सीडी है साहब जी। कैसे नहीं होगी। सत्तर लाख की कार में आगे की सीट पर एक ग़रीब जो बैठा होता था। वो उस सफर और मंज़िल को समझने के लिए मालिक की बातों को सुनता रहता है,उसे हैरत से देखता रहता है कि एक कार के भीतर दो तरह के लोग कैसे हो सकते हैं। मैं दो भारत की बात नहीं कर रहा।

23 comments:

Taj said...

दो तरह के लोग......

Unknown said...

nice story

manoj malik said...

bhut achi hai

aSTha said...
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aSTha said...
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aSTha said...

ironical it is..what we see is different from what we perceive and it's definitely different from what it is. But it's not about what actually it is coz every difference lies in what we see in it. For you, News Reading is job while for us it is a whole new experience of knowing what we should.

akhilesh said...

heart touching story

प्रवीण पाण्डेय said...

विकीलीक्स से भी अधिक आता है ड्राइवरों को।

Anonymous said...

Nice work. Reminded me of Arvind Adiga's "The White Tiger"

Ranjan said...

u just rocks sir,itni jaldi apni lekhni ka kammaal dikha dia. nice to read kabhi ams ko bhi link bhej dia kijiye.

Ranjan said...

u just rocks sir,itni jaldi apni lekhni ka kammaal dikha dia. nice to read kabhi ams ko bhi link bhej dia kijiye.

Arvind Mishra said...

मैंने सोचा कि वो सी डी कांड के ड्राइवर का कौनो कंफेसन है :)

nptHeer said...

:-| hind swaraj-book written by gandhiji-about 75 pages.swashray-khud ka aashray khud bano-vahi swaraj hai-baaki sab gulaami-sarkaar chahe kisiki bhi ho,apni angrejon ki.ye to swashray na honeka ek nanhasa natija hai:)

Anonymous said...

बढ़िया लप्रेक ।

sangita said...

शानदार कहानी है .बधाई.

मुनीश ( munish ) said...

admirable craft, inimitable style , moving account indeed.

Unknown said...

bahut khub shreeman ..

NARESH DOTASRA said...

kmal ka likha h

Aamir said...

Too Good hai Sir jee.....

Mahendra Singh said...

Bahoot khoobsurat varnan

कविता रावत said...

ese kahte hai apna-apna naseeb..
ab dekho baag to maalik ka hota hai lekin choukidar ko kya milta hai...
aage ke sheet aut peeche ke sheet mein yahi antar hai...
driver ke man mein chhupi ek kasak ko bade hi sundar dhang se prastuti kiya hai aapne...aabhar..

Rahul Malviya said...

kahin se Soniya madem ke driver ka pata lagaiye aur line par layie..isase bada deshhit aur manav hit ka kaam kuch aur nahi ho sakta.

rohini said...

dil ko jhakjhorne wali kahani..shining India and Suffering Bharat..