अंदाज़ा लगाना मुश्किल है कि न्यूज़ चैनलों पर युवराज सिंह की श्रद्दांजलि लिखी जा रही है या जीवनी। ध्यान से देखने पर इन दोनों का मिश्रण दिखाई पड़ रहा है। वीर रस के भाव में सब कुछ कहा जाने लगा है। इसमें देशभक्ति के रस भी नज़र आते हैं। काल को हराकर नियतिवाद से होड़ भी है। युवराज सिंह की बीमारी ने क्रिकेट प्रेमियों को सन्न किया है। मगर न्यूज़ चैनल वाले ऐसे बर्ताव कर रहे हैं जैसे कैंसर युवराज को नहीं,उन्हें हो गया है। कैंसर जैसी गंभीर बीमारी का वो दाद खाज खुजली जैसा चित्रण कर रहे हैं। सारे अस्पतालों के कैंसर और कीमो विशेषज्ञ बुला लिये गए हैं। जैसा कि गंभीर बीमारियों के समय सामान्य मरीज़ बर्ताव करता है उसी तरह से चैनलवाले भी कर रहे हैं। वैद्य,ओझा और बाबा रामदेव भी बाइट दे रहे हैं। एक आम मरीज़ भी यही करता है। अपोलो से दिखा कर सीधा वैध और होम्योपैथी के पास जाएगा। फिर किसी के कहने पर टोटका भी करेगा। युवराज सिंह पर जो रिपोर्टिंग हो रही है, इस तरह की पहले भी कई बार हो चुकी है। सोनिया गांधी के समय भी ग्राफिक्स और एनिमेशन के ज़रिये और स्थानीय डाक्टरों के अंदाज़ी टक्कर प्रवचनों के सहारे टीआरपी बटोर ली गई थी। अब युवराज के बहाने यही काम हो रहा है। कोई अपवाद नहीं है। सब एक ही तरह से रिपोर्ट कर रहे हैं। बैकग्राउंड स्कोर ऐसा है जैसे सिनेमा में नासिर हुसैन को हार्ट अटैक होने पर सुनाई पड़ता था। पता नहीं कोई मेडिकल का छात्र इस तरह की रिपोर्टिंग को कैसे देखता होगा। भावुक परन्तु चीखू मार्का वायस ओवर से हरारत तो उठने ही लगती होगी। कंठ दबोच के बोलने वाले फिर से लौट आए हैं। काल से होड़ कर रहा है फाइटर। जल्दी लौटेगा कैंसर को हराकर युवराज। बाप रे बाप।
अंग्रेज़ी और हिन्दी दोनों एक ही भाव से रिपोर्ट कर रहे हैं। बात ये है कि हम अंग्रेज़ी में हर चीज़ अच्छी मान लेते हैं। मगर वहां भी खिलाड़ी से लेकर डॉक्टर तक कैंसर पर बता रहे हैं। कैंसर अब पहले जैसे असाध्य नहीं रहा। मगर चर्चा होनी थी तो इस बात पर भी होती कि हमारे डाक्टरों का क्या हाल है। जब युवराज जैसी हस्ती की बीमारी का पता चलने में इतनी देर हो सकती है तो आम आदमी का कितना नुकसान होता होगा। चर्चा इस पर भी हो सकती थी कि कैंसर क्यों फैल रहा है? ऐसे मौके पर बहुत सारे नशेड़ी गंजेड़ी कहने लगते हैं कि देखिये युवराज तो नियम से रहता होगा,फिर भी कैंसर हो गया तो हम तंबाकु बीड़ी क्यों छोड़ दे। बहुत सारे लोग मिलते हैं जो कैंसर को लेकर काम करते हैं। अपना कार्ड देते हैं,कहते हैं कि भाई साहब कुछ कीजिए। जागरूकता के लिए। ऐसे कार्ड और मुद्दों की कोई पूछ नहीं रह गई है। अब तो वहीं मना कर देता हूं। बता देता हूं कि आप ही समझा दीजिए मुझे कि स्पीड न्यूज़ और डिबेट से कैसे जागरूकता फैलती है।
यह लेख दर्शकों से संवाद के लिए हैं। युवराज पर तमाम तरह के रसों में लिखने और स्पेशल बनाने वाले आउटपुटियों को हतोत्साहित करने के लिए नहीं हैं। जब भारत अंकल सैम के आगे नतमस्तक हो जाता है, तो मामूली तनख्वाह पर काम करने वाले आउटपुटिये अंकल टैम( टैम मीटर) के आगे सलाम क्यों न बजाए। बल्कि उन्हें यह काम शान से करना चाहिए। जब हम सबकी प्रतिबद्धता रेटिंग ही है तो उसे लेकर शर्मिंदा कब तक रह सकते हैं? रेटिंग पर अब प्रबंधन बोले, बेऔकात पत्रकार क्यों स्टैंड लेता चले। अब काम से कोई मतलब नहीं है। काम वही है जो रेटिंग ला दे। जिनके घर अंकल टैम का मीटर नहीं है ऐसे दर्शकों को जल्दी भगाना शुरू कीजिए। कह दीजिए कि भाई जब आपके लिए हम काम ही नहीं करते हैं तो क्यों बकवास सुने। अगर कोई अंकल टैम का मीटर वाला भतीजा बोलेगा तो उसकी सुनेंगे। छक कर ऐसे प्रोग्राम बनाइये। जिसको हिन्दी चैनल ख़राब लगते हैं वो तमिल देख लें। अंग्रेज़ी के देख लें । कम से कम हिन्दी वाले ख़राबे में भी सृजनशील तो हैं ही। ग़ैरत मारकर रोते हुए आपके लिए ऐसे कार्यक्रम तो बना ही देते हैं जिन्हें देखकर आप हंस तो सकते ही हैं। मैं भी युवराज का फैन हूं। क्रिकेट नहीं देखता मगर यह कहीं नहीं लिखा है कि युवराज का फैन होने के लिए क्रिकेट देखना ही पड़ेगा। मैं भी चाहता हूं कि युवराज स्वस्थ्य हो जाएं। कैंसर जैसे काल से होड़ कर एक बार फिर से मैदान में आ जाए ये फाइटर। भारत मां का लाल, तुझे कुछ नहीं होगा। पूरा देश दुआएं भेज रहा है। तू लड़ेगा, तू जीतेगा, तू खेलेगा, तू दौड़ेगा, तू बनेगा सरताज,क्योंकि तू है युवराज। जय हिन्द।
14 comments:
kya kar sakte hai sir ji sab trp ke peeche bhag rahe hai ,sab market ka khel hai
sahi likha aapne.sab trp ke liye hee hoga.agar yuvraj aaj news channels dekh leta to theek hone ki bajaya aur bimar ho jaata.aaj se aapko ravish ji hee kehege .apka old blog read kiya likha tha mujhe sir kehte hai jo bilkul nai ache lagete unko to fine hona chaihe.eis liye aaj se aap ravish ji hee hai.aur aapka woh blog sweter wala to itna acha hai bahut hee acha.kya sweater tha aur nighty wala itne ache lage .aapko to apne blogs ko ek book bana ke pesha karna chaihye.
संतुष्ट....!आपके लेख से , सही कह रहे है आप
AP SHI KAH RAHE HI LEKIN SIR JANTA JANRDAN BHI TO YEHI CHAHTI HI KABHI GORAHPUR KE BACHCHO KI SUDH KOI NAHI LET KYOKI UN SE TRP NAHI BADHEGI JAISE HI DILLI ME EK KES HUA PURA MEDIA US DIN YEHI KHABAR CHAL RAHA THA . WAHA PE KAUN JAYEGA ?
Soch rha tha k kisi aur khel k marte hue khiladi k liye TRP kitna yogdan de skti hai? Ya humko pta bhi na chalega aur koi supurd-e-khaq ho jayega. In rating lalachiyon ka bas chale to yuvi ki chhati me ungli ghused kr cancer ki kya chalti h fefda nikaal laayen aur LIVE dikhaayen. Pta h ajeeb post kia h, rok nhi paya.sara din tv dekhte dekhte mere lungs yuvi k lungs k sath kuch rogatmak, bhavnatmak judav mahsus karne lage, taqlif ho gayi.
अब समाचारों में इतनी कैंसर कथा फैला दी है जो युवराज के ठीक होने के बाद ही जायेगी...
आज सुबह मुंबई लोकल में हमारी चर्चा का विषय यही था की किस तरह न्यूज़ चैनलों ने युवराज की बीमारी को सेलेब्रिटी बना दिया...सामान्यतया ये तो आम बीमारी है और अगर युवराज को इसकी शिकायत भी है तो आज टाटा कैंसर अस्पताल के सभी मरीज गौरवान्वित महसूस करेंगे!!!!हालाकि उनके लिए दुआओं का दौर उनके परिचितों तक ही सीमित है..एक Insurance Company भी इस बीमारी से मालामाल हो रही है...युवराज टीम में हूँ या ना हो फायदा तो किसी ना किसी का हो ही रहा है..इस बात पर शायद हमारे न्यूज़ चैनल गौर करेंगे और मुहीम भी चलाएंगे की सोनिया (unofficial) के बाद युवराज की इस बीमारी को राष्ट्रीय बीमारी घोषित किया जा सके..और ये बात सही भी है क्योंकि इस देश की व्यवस्था को कैंसर हो ही चुका है..
रविश जी, गूगल मेरी टिप्पणी गायब कर दे रहा है, जिस कारण फिर से दे रहा हूँ...
JC has left a new comment on the post "अंकिल टैम के आउटपुटियों का युवराज":
'भारत' में जब लड़का पैदा होता है तो पांच-छह छक्के आ जाते हैं - ताली बचाते हुए परिवार कि ख़ुशी में शामिल होने के लिए... (वैसे ही जब युवराज ने एक ही ओवर में छः छक्के मारे थे, और दर्शकों ने, जिनमें मीडिया वाले भी शामिल थे, तालियाँ बजायीं थीं???)...
हम सभी प्रभु से युवराज के स्वस्थ हो फिर से हमें ताली बजाने का मौक़ा देने हेतु प्रार्थना करते हैं!
शायद ये हम भारतियों का "चाट" ज्यादा खाने का शौक ही है कि, हर खबर चटपटी, चटखारेदार और सनसनाहट फैला देने वाली होती है. हम न भूलें कि आप चाट को खाने कि तरह खायेंगे तो बदहजमी हो जाएगी.
मुझे अगर निति निर्धारण का अधिकार मिले तो सब से पहले मैं समाचारों से बैकग्रौंड संगीत पे पुर्णतः प्रतिबन्ध लगा दूँ, ताकि समाचार, समाचार ही लगें चाट के ठेले और मिनट कि गोली नहीं. शुक्रिया आपका...लेकीन ट्विट्टर अपनी बाहें फैलाये और फोल्लोवेर्स नज़रे बिछाये बैठे-खड़े हैं.
मीडिया में से यह सब आप ही लिख सकते थे। बधाई!
उन्हें नकली देशभक्ति की लहर के बीच क्रिकेट को बेचना है, ताकि बाजार को नकली युवराज मिलते रहें, जो नकली विकास को असली दिखाकर लगातार बढ़ती आर्थिक असमानता और उसके वास्तविक कारकों से लोगों का ध्यान हटाए रहें.
सर रोज़ न सही कभी-कभी तो क्रिकेट देखते ही हैं ना, इस लेख को पढ़ कर आपका एक पुराना लेख याद आ गया, जिसमें आपने लिखा था कि आप ने क्रिकेट के साथ अच्छा व्यंजन भी किया था
wah
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