मयूर विहार में पत्रिका विहार
यमुनापार की सबसे बड़ी मैगज़ीन की दुकान है। जितने भी क्लियरिंग एंड फारवार्डिंग एजेंट हैं वो सब यहां अपनी पत्रिका दे जाते हैं। प्रदीप संकोच में बता रहा था। मैं अपने आई फोन से तस्वीरें उतारने और उसकी बातों को सुनने में लगा था। वो कुछ शक कर रहा था कि कहीं भाई साहब एमसीडी वाले तो नहीं हैं। टैक्सुआ अफसर तो नहीं हैं। घबराहट में वो कम बता रहा था। लिहाज़ा मैं देखने लगा और जो दिखा उसके बारे में पूछने लगा।
मयूर विहार के समाचार अपार्टमेंट के पास के मार्केट की पटरी पर पत्रिकाओं का अंबार आपको दिखेगा। ऐसी पटरियों में या तो चाय की दुकानें खुलते खुलते एक कड़ी में बन जाती हैं या फिर सिगरेट, ब्रेड,अंडा और चिप्स की दुकानें। मगर उसी पैटर्न पर मैगज़ीन की तीन तीन दुकानें आबाद हो जाए तो इलाकावार दुकानों के फलने-फुलने का ट्रेंड समझा जा सकता है। अठारह साल पहले प्रदीप बिहार से आया था। तब पत्रिकाओं की छोटी सी दुकान थी। पत्रिकाएं भी कम थीं। अब तीन दुकानें हैं। बीच में पान बीड़ी सिगरेट का स्टाल इस तरह से है जैसे पेमेंट काउंटर लगता है। मगर वो भी अपने आप में एक दुकान ही है।
इन पत्रिकाओं ने पटरी को काफी खूबसूरत बना दिया है। खंभे और पेड़ के तने पत्रिकाओं के पोस्टर में लिपटे नज़र आते हैं। प्रदीप ने कहा कि एक स्टाल पर तीन सौ से अधिक पत्रिकाएं हैं। हम योजना भी रखते हैं और इंपैक्ट भी। प्ले ब्वाय भी। मगर सबसे अधिक इंडिया टुडे बिकती है। हर हफ्ते पचास कापी तो निकल ही जाती है। समाचार अपार्टमेंट से ज़्यादातर पत्रकार रहते हैं। उसके आस पास भी पत्रकार भी रहते हैं। सुप्रीम कोर्ट से नज़दीकी के कारण मयूर विहार में बड़ी संख्या में वकील भी रहते हैं। मगर वकीलों की कोई भी पत्रिका नज़र नहीं आई। पूरे स्टाल को देखना कई तरह के कवर डिजाइनों से गुज़रना था। ऐसा लग रहा था कि कई स्टार मयूर विहार की इस पटरी पर अपनी नुमाइश कर रहे हैं। प्रदीप कह रहे थे कि सारी पत्रिकाएं बिकती हैं। धार्मिक भी और साहित्यिक भी। इसलिए हंस, समयांतर और नया ज्ञानोदय आदि आदि। आप पाठकों में से अगर कोई मयूर विहार वासी है तो अधिक जानकारी जुटाकर ज़रूर कमेंट छोड़ दे। आप यहां पत्रिकाओं की दुनिया में विहार कर सकते हैं। इस तरह की दुकान आपको दिल्ली के कुलीन खान मार्केट में ही दिखेगी। मगर यमुना पार के सबसे बड़े मैगज़ीन स्टाल होने की शेखी शायद कुछ और ही होगी। है न।
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10 comments:
acha blog hai.sir apne twitter kyon band kar diya.kya aap twitter se bore ho gye .i hope ki aap jaldi twitter per ayege.serch kiya to apka ek purana account mila woh updated nahi tha.best of luck sir.
वाह ! सचमुच पत्र पत्रिकाओं के इन विविध कलेवरों में ये पटरी बेहतरीन लग रही है। दिल्ली में काम के सिलसिले में कई बार इस इलाके से गुजरा हूँ पर इस पर नज़र नहीं पड़ी।
बहुत किताबें यहाँ से खरीद कर पढ़ी, जब मूल खरीदने के लिये पासे नहीं होते थे।
JAHA BHI MAINE AISI JAGHE DEKHI HI SIR WAHA PAR JO DIKHATA HI JAISE SADAK KINARE MANDIR YA MASJID JASE ME RUK KAR THODA BHAGWAN KO DEKH LE USI TARAH YE BHI KITABO AUR PADHANE WALO KE LIYE KAHI MANDIR YA MASJID SE KAM NAHI LAGTA HI .
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हां यह शानदार ठिया है। इधर कभी भी आना हो, यहां मन जरूर ललचाता है। मस्त बात ये कि आसपास अपनी हिंदी के कई बड़े लेखक भी रहते हैं और हिंदी के अखबार-रिसाले भी यहां आसानी से मिल जाते हैं। बस, बगल की मार्केट जरा बेहूदी सी है, सुबह के वक्त मुज़फ़्फ़रनगर या बनारस जैसा नाश्ता ढूंढ़े नहीं मिलता। अलबत्ता दिन में यहां से कोई मैगजीन-अखबार खरीदिए थोड़ा कुछ कदम चलकर पेड़ों के नीचे चल रहे सस्ते से ढाबे पर बैठकर खाने और पढ़ने का साथ-साथ लुत्फलीजिए।
बढ़िया!!
dhanyawad sir ,,.. kyoki kitabo ka shaukin mai b hun
Sahitya bechne k liye hota hai.aur vo bhi roadside as you have mention so many times in your shows also.dont you think its a western style of respect.i mean we indians believes in 'saraswati pujan' bhoolse paanv chhoo jaaye kitab ko to bhi hum samman pakat karte hai.aisa nahi lagta is chij ka koi naya najariya hona chahiye?naye tarah se business of these roadside 'haats' with more margin!vast space for enterprinuars:)
Accha thikana hai.... kafi patrikayen mil jaati hain yahan. Yadi is jagha ko chod de to aaspas aisi koi dukan nahin hain.
@Ek ziddi dhun ji... market ko behuda kaise kaha sakte hain aap jara bataiye....
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