ठीक है कि हम दंगों की आग में नहीं जले। लेकिन पेट की आग भी बड़ी चीज़ होती है। बंगाल के मुसलमानों की हालत ख़राब है। अपनी बात कहते हुए अलीमुद्दीन मस्जिद के नीचे बैठे गुलाम हुसैन टेलिग्राफ में छपे आंकड़ों को दिखाने लगे। ये देखिये केंद्र का मंत्री गलत बोलेगा। क्या हुआ मुसलमानों के साथ आप खुद देखिये न। पास में बैठे रसूल मियां मुस्कुराते हुए हज़ामत बना रहे थे. मैंने पूछा कि क्यों हंस रहे हैं? बोले १९६३ से यहीं बैठा हूं। मोतिहारी से कलकत्ता आया था। कमाने। ज्योति बसु का ज़माना ठीक था। कुछ उम्मीद थी। वाम दल ने हमको सड़कों से हटाया नहीं लेकिन कुछ बदला नहीं। हम तो यहां तब से है जब अलीमुद्दीन स्ट्रीट में सीपीएम का दफ्तर नहीं था। मेरे इस पेड़ के नीचे बैठने के बाद ही तो पार्टी बनी। पहले इस गली में सीपीआई का दफ्तर होता था। देखिये चार कमरे से कितना बड़ा दफ्तर हो गया।
आप जिन आवाज़ों को सुन रहे हैं वो उसी अलीमुद्दीन स्ट्रीट पर सुनाई दे रही थीं जहां सीपीएम का मुख्यालय है। मुस्लिम बहुल इलाका लगता है। कोई हलचल नहीं है। चौरंगी विधानसभा इलाके में पड़ता है सीपीएम मुख्यालय। तृणमूल का गढ़ माना जाता है। इसलिए यहां से सीपीएम नहीं लड़ रही है। लालू का लालटेन छाप है। यहां रहने वाले मुसलमानों में वाम सरकार को लेकर जाश नहीं दिखा। ब्रेड बिस्कुट बेचने वाले एक मुस्लिम दुकानदार का कहना था कि यहां तो लोगों ने बारात घर तक नहीं बनवाया। नाली-पानी तक का इंतज़ाम नहीं किया। तृणमूल के इकबाल साहब(नाम ठीक से याद नहीं) ने कितना काम किया। सीपीएम का पार्टी आफिस ही देख लीजिए। सफेदी भी नहीं कराते। कम से कम रंगाई-पुताई में ही दस लोगों को काम मिल जाता। अच्छा कपड़ा पहनने से लगता है कि आदमी काम का है।
बंगाल के मुस्लिम इस बार अलग तरीके से सोच रहे हैं। वो अपने हालात पर सवाल खड़े कर रहे हैं। बंगाल के घर-घर में चल रहे मुस्लिम कारीगरों की हालत रोटी-पानी के जुगाड़ तक ही सीमित है। काम तो मिल रहा है मगर यह काम उन्हें किसी काम का बनाने में मदद नहीं कर रहा। सेकुलर दलों को सोच लेना चाहिए कि इस देश का मुसलमान सिर्फ बीजेपी के भय से उसके साथ चिपका नहीं रहेगा। सांप्रदायिकता मुद्दा है मगर इसके अलावा भी कई ज़रूरी सवाल हैं। सीपीएम ने समझने में देर कर दी। सच्चर कमेटी की रिपोर्ट को खारिज कर देना और बताना कि हाल के दो साल में काफी सुधार हुआ है काफी नहीं है। दो साल के काम से किसी समुदाय की आर्थिक हैसियत में बहुत बदलाव नहीं किया जा सकता है। यही काम पांच साल पहले हुआ होता तो राजनीतिक वोट में भी बदल सकता था। मदरसा शिक्षकों को वेतन देने से मुस्लिम समाज का काम नहीं हो जाता है।
जहां भी गया आम मुसलमानों में ममता के प्रति खास लगाव देखा। ममता इसे समझ गईं हैं। इसलिए भाषण में ऊर्दू को दूसरी भाषा बनाने का लोकलुभावन नारा देती हैं। ममता ने बंगाल की राजनीति को ऊपर से हिन्दी,ऊर्दू और बांग्ला तीन खांचों में बांट दिया है। प्रवासी लोगों के लिए अलग से बातें करती हैं। सीपीएम बचाव की मुद्रा में अपनी बात रख रही है। ये और बात है कि ऊर्दू को सेकेंड लैंग्वेज बना देने से भी मुसलमानों को कोई भला नहीं होने वाला। मगर ममता के तालीबजावन नारों से ही एक नई उम्मीद पैदा हो रही है। तृणमूल के कार्यकर्ताओं के समूह को ठीक से देखिये। मुस्लिम कार्यकार्ताओं की सक्रियता खूब दिखेगी।
होज़ियरी के मामले में बंगाल ने पिछले पंद्रह सालों में काफी तरक्की की है। दिल्ली के गांधीनगर में ही व्यापारियों ने बताया था कि लड़कियों के फ्राक बनाने के मामले में कोलकाता का जवाब नहीं। कोलकाता गया तो शाहरूख, ह्रतिक,सनी,सैफ,अक्षय,नितिन मुकेश सब के सब गंजी अंडरवियर के प्रचार में होर्डिंग पर खड़े नज़र आ रहे थे। पता किया तो लोगों ने बताया कि पंद्रह हज़ार करोड़ रूपये का कारोबार है होज़ियरी का। मटियाबुर्ज़ का इलाका इसका गढ़ है। घर-घर में मशीनें चल रही थीं। सब मामूली कारीगर। किसी घर में दो सिलाई मशीन तो किसी में चार। कुछ की हैसियत बड़े व्यापारियों जैसी ज़रूर दिखी लेकिन हर दूसरी मशीन पर दस से बारह साल के बच्चों को कपड़े सिलते देखा तो लगा कि वाम राजनीति विचारधारा के ईंधन से ज्यादा समय तक नहीं चल सकती। पंद्रह घंटे काम करते हैं ये बच्चे। बच्चों के कपड़े बच्चे ही सिलते मिले। लोगों ने बताया कि क्या करें इन्हें पढ़ाई के लिए भेजें या काम करायें। ये बच्चे बटम टांकने का काम नहीं कर रहे थे बल्कि पूरी तरह के कुशल दर्जी की तरह कपड़ों को सिल रहे थे।
एक व्यक्ति ने कहा कि पूरा परिवार मिल कर काम करता है तो भी महीने की कमाई पूरी नहीं पड़ती। इलाके में एक स्कूल था। अब जाकर बन रहा है। हम लोग अपने बच्चों को स्कूल भेज रहे हैं। क्या करें इस धंधे से पेट ही भरता है बस। बदलाव नहीं होता है। होज़ियरी पर दस फीसदी का कोई टैक्स लगा है,उसे लेकर घर-घर में बातें हो रही हैं। ममता कहती हैं कि प्रणब दा से बोल कर हटवा देंगी। सीपीएम कहती हैं कि जब बजट पास हो रहा था तब क्यों नहीं सवाल उठाया।
बाहर निकला तो मुस्लिम बच्चे क्रिकेट खेलने में व्यस्त थे। मैदान न होने का दोष सीपीएम पर मढ़ रहे थे। सलमान ने कहा कि मल्लिका विक्टोरिया ने तो कोलकाता को कितना बड़ा मैदान दिया। हम लोगों को कुछ नहीं दिया। हम दूसरे मोहल्लों में जाते हैं तो विकास देखेते हैं। वहां सब कुछ होता है। मुस्लिम मोहल्ले में क्यों नहीं होता है। हमारा एरिया बैकवर्ड क्यों लगता है। अगर किसी को यह आवाज़ नहीं सुनाई देती है तो इसका मतलब है कि उसकी हार तय है। राजनीति को ज़िंदा रहने के लिए विचारधारा ही नहीं चाहिए। उसे अब क्रिकेट का मैदान और स्कूल की परवाह करनी होगी।
बंगाल की ग़रीबी ने प्रवास की एक नई पीड़ा को जन्म दिया है। यहां की औरतें पलायन कर रही हैं। अकेले। बिहार यूपी से मर्दों का पलायन ज्यादा हुआ। मगर बंगाल से औरतें के पलायन पर किसी का ध्यान नहीं गया है। अपने छह से दो साल के बच्चों को छोड़ कर ये औरतें घरों में काम करने निकल रही हैं। गांव-गांव में बच्चे सास,नानी,ननद के भरोसे हैं। मेरे घर में अब तक दस बारह लड़कियां काम कर गईं। इसलिए ज्यादा समय तक टिक न सकीं क्योंकि बच्चों की याद सताती थी। मैं खुद सोचता रहता था कि ये दिन भर अपने बच्चे को याद करती होगी, मेरी बेटी को कैसे प्यार से खिलाती होगी। जाने वाली हर बाई से पूछता था कि ज्यादा पैसे जमा हो जाए तब जाया करो। जवाब मिलता था कि हमारा पांच छह हज़ार में ही कई महीने तक काम चल जाता है। अब यह बंगाल के जीवन का सस्ता होने का प्रमाण तो है मगर यह भी सोचिये कि यही पांच हज़ार कमाने का साधन नहीं। यह संकट सिर्फ बंगाल का नहीं है। बिहार का भी है। पलायन पीड़ा दे रहा है। बागी बना रहा है। बंगाल की औरतों ने बंगाल के बाहर की हकीकत को देखा है। एक दूसरे किस्म का नरक भोगा है। शायद उनकी यही तकलीफ ममता से जुड़ जाती है। यही कारण है कि दिल्ली से बड़ी संख्या में कामवालियां अपने घरों को लौटी हैं, ममता को वोट देने।
बंगाल में ममता को संजीवनी इन्हीं नाराज़ आवाज़ों से मिल रही है जिसे सीपीएम के काडर सुन नहीं पा रहे। वो इसी धुन में हैं कि पिछले छह महीने में काफी सुधार कर लिया है। अब हालत उतनी बुरी नहीं है। ममता सरकार नहीं बना सकेगी। सवाल सरकार बनाने का ही नहीं उन सवालों का भी है जो बंगाल में उठ रहे हैं। देखतें हैं कि क्या होता है। सीपीएम सत्ता में आती है या जनता की ममता। लेकिन जब लेफ्ट के नेता पूछने लगे कि आपको क्या लग रहा है और जब आप यही सवाल उनसे कर दें और वे कहने लगे कि नहीं हमने काफी सुधार कर लिया है, तो यह समझ लेना चाहिए कि हवा खामोश है। कई आम लोगों से राय जानना चाहा। एक भी बाइट लेफ्ट के समर्थन में नहीं मिला। अब मैंने दस हज़ार से तो नहीं पूछा लेकिन जिन दस बीस लोगों से पूछा सब वाम सरकार के कामकाज पर खामोश हो गए। मगर तृणमूल और ममता को लेकर खूब बोलते दिखे। वो वाम दल का समर्थन करने का साहस नहीं दिखा पा रहे थे। माइक नीचे करते ही एक ही बात कहते मिले। चेंज चाहिए।
25 comments:
kal sahi shaadi mein news channel wale barati bane huye the... aise mein NDTV se thosi umeed hoti hai , time mile to news dekh lo... kal raat bangal par aapki report dekhi.. achcha laga... aur aaj ye khabar padhi..aur achcha laga... khushi hoti hai jab koi achcha karta hai...
जो चाहे बस दे दो प्यारे,
जीत गये तो कौन निहारे।
T.R.P ki ress se door, bahut door khadi nd tv india aur aap jaise honhar patrakaron ko salam. Bangal ,billi aur banian behtarin report aur uske saath hi behtarin aaklan ke saaath ek naya blog maja aa gaya ravish ji.Bangal ki halat bhi lagbahg bihar ki tarah hi hai bangal ke logon ko bhi change chahiye.
@हमारा एरिया बैकवर्ड क्यों लगता है।
मुस्लिम समाज गर्त में है..... खासकर बंगाल और बिहार जैसे राज्यों में.. पर मात्र बातें करने के अलावा कौन क्या कर रहा है...
हमारा एरिया बेकवर्ड क्यों है.... ये प्रशन समाज को अपने आप से कहने चाहिए.. जब तक ये लोग वोट बेंक बने रहेंगे इनके इलाके पिछड़े ही रहेंगे... आज़ादी तो मिली पर ये समाज अब भी मानसिक रूप में मुल्ला लोगों के गुलाम हैं. पढ़े लिखे से लेकर अनपढ़ तक सभी.
आभार इस जानकारी के लिये।
जानकारी देने हेतू आभार
Ravishji, Kabhi Mumbai aaiye. Roazana Taxi se Mahim se worli office jata hu pichhle 5 saal se. Kam se kam 5 darzan baar UP - Bihar ke taxiwalo ko Galiya khate dekha hai. Kayi baar pitne se bhi bachaya. Ye kiya hai yaha Pravasio ke saath MNS aur Shiv Sena ne. Congress aur BJP iss par chup rahti. Kam se kam left front ki sarkar ne ye toh nahi hone diya Kolkata main.UP, Bihar, Orissa, assam aur Bangladesh se logo ko kabhi doda doda kar sadko pe toh nahi mara. Unki Govt. change ho jaye koi dikkat nahi. ye sab hota rahta hai, lekin kam se kam itna toh unhe shrey diya hi ja sakta hi ki bahraiyo ko nafarat paida nahi hone di.
मुसलमानों की व्यथा पूरे देश में यही है, और सिर्फ मुसलमानों की ही स्थिति पर चिंता क्यूँ? बंगाल में साम्यवादी काल के दौरान पूरे समाज में समानता तो कहीं नहीं लेकिन उत्पीड़न ज़रूर दिखी. जिस बंगाल को कला, विज्ञान और साहित्य की बादशाहत हासिल थी वो आज किसी तरह रेंग रहा है.
लेकिन कहानी और भी दुखदायी हो जाती है जब वाम के अलावा हमारे पास विकल्प भी है तो ममता का! बंगाल मुझे कहीं आगे जाता नहीं दिख रहा. शायद चुनाव परिणामो के बाद नक्सलवाद और पाँव पसारेगा, बंगाल अभी और गर्त में जायेगा.
ravish ji,
aapki report dil choo liya. itni saadgi se aapne aisa bol diya - "jab main bihar se aaya tha toh mere paas bhi aisa hi ek baksa tha" -- dil ko choo gai aapki saadgi...kaash aisa hi har hindustani ho jaye toh india -- hindustan ban jaye....
29 april ki report TV pe dekhi accha laga , ab dekhna hoga kaisa hota hai bangal ka adal-badal. Didi ka bharosa nahi hai , CPM ka to sabko pata he hai....
change for change
सिख, यानि 'सरदार', पगड़ी के कारण दूर से दिखाई पड़ जाते हैं - जब हमारे स्कूल में सुबह सवेरे 'पी टी' होती थी तो टीचर केवल उनके अल्प-संख्यक होने के कारण, और उनकी पगड़ी के विभिन्न रंगों से किसी विद्यार्थी विशेष (हरी अथवा लाल पगड़ी आदि वाले 'सरदार'!) को ही टोकते थे, जबकि अन्य विद्यार्थी गलत करते हुए भी टोके नहीं जाते थे !
विभाजन के पश्चात अधिकतर (जन्म से फौजी) सिख और अन्य पंजाबी, लगभग शून्य हो, (अनंत) शक्ति के केंद्र, दिल्ली आ गए (काशी के पश्चिम स्थित क्षेत्र में,,, महाराष्ट्र में स्थित आर्थिक राजधानी मुंबई, गुजरात के अतिरिक्त,,, जबकि पूर्वी क्षेत्र, बंगाल. बिहार आदि तुलनात्मक रूप से गरीब होते चले गए),,, और आज व्यापार आदि जगत में छाये हुए हैं उनके साथ कन्धा मिलाते जो पहले से ही अमीर थे,,, और केवलअधिकतर गरीब मुस्लिम ही भारत में रह गए थे,,, शायद यही कारण कहा जा सकता है उनकी और पुराने भारतीय गरीबों के समान मौजूदा हालात का...
(काल की 'घोर कलियुग' के निकट द्रुत होती गति के कारण जनित 'चूहा दौड़' से) पैसा तो अंधाधुंध आया, किन्तु शक्ति और पैसा पा हमारे कुछेक 'नेता' मन पर नियंत्रण खो बैठे प्रतीत होते हैं, और जैसा हमारे ज्ञानी पूर्वज कह गए, "गेहूं के साथ घुन भी पिस जाता है", ऐसा आज महसूस होने लगा है कि काल ही अमीर गरीब के बीच की दूरी को पाट सकता है (जो 'स्वंतंत्रता प्राप्ति' पश्चात बढती ही चली गयी है),,,
मानव द्वारा रचित, कहीं भी और कोई भी, व्यवस्था संभव नहीं है, यह तो आधुनिक मानव भी शायद देख रहा है,,, किन्तु फिर भी गीता पढने वाला ही जानता है कि मानव को फल का अधिकार नहीं है (वो कृष्ण के हाथ में है, और पैसे की अधिकता अथवा कमी से अँधा हुआ व्यक्ति कहता है "मैं भगवान् को नहीं मानता" :D) ,,,
For this Muslims are also responsible because most of them still believe in the ideology of Osama bin Laden. After Obama death they must think again because road of terror goes to hell and not heaven.
sorry after Osama death
Left govt ne apne 35 salon ke karya kaal me Bhimi Sudhar ke alawa shayad hee koi bada kam kiya ho. Bengal main rahna khana bahut sasta hai lekin isse kuch jyada kee ummeed aaj ka admee karta hai.Itne lambe period main Bengal ko India ke richest state banaya ja sakta tha lekin 35 salon ke baad bengal aaj agar UP & Bihar ke saath hee khada hai aise shashan ka koi matlab nahin.Vaise Mamta ji se mujhe bhi bahut asha nahi hai.Lokpriya hone aur good goverace main bahoot difference hai.
Shailendra ji ne Bengal ki tulna Mumbai se kee hai yeh sahi nahi hai. Bengal ke Baboo Moshay ka UP aur Bihar se bahut hee antarang samband hai. Bengal ka aadmi shadi ke baad banaras mai gangasnan karne jaroor aata hai. Bengali novels bina banaras ke jikra ke poora nahin hota.
laal jhande ke niche punjiwadi mansikta,,,kaise kitna & kya ummeed kar sakte hain aap....mamta ji 1 man army hain bengal inke haath jaakar inki poor administrative skills ke aage gart mein jaa sakta hai,,,lekin siddhanth ke saath dagabaazi karne walon ka kya karein,,,,,,,kishor kumar ki lines "manjhi jab naav duboye,,ushe kaun bachaye"
अबकी बार तो लगता है कि कुछ उल्टा-पुल्टा होने वाला है।
ravish sir mai apka program rvishi ki report NDTV per dekhta hu , aur pasand bhi kartah huu. sir mainai navbharat times mai bigul blog ki report bhi padhi aur , padh kar accha laga , aur mai aik bar phir apka dhayn Gorakpur movement ki tarf karvana chata hu aur apkai blog per prtikriya ka intjar karunga .
http://bigulakhbar.blogspot.com/
ravesh ji jo bhi aap khabar karte hai.................. uski puri khili ukhad dete ho. padne ke baad to mujhe yahi lagta hai ki is baar left puri trh se khtam ho jyega ......... mamata ki mamata bangal me bani rehegi..
Ravish Sahab,
Bangal ki trasadi hum sabki trasadi ka hi roop hai. Aap ki report dekh kar apni hi bheeruta par apni hi tees par sharminda hone ka mauka mil jata hai. Kal aap ke channel ke exit poll ne to Mamta ji ko vijayee ghoshit kar diya h. Ab dekhte hai tathakathit "change" kya change karta hai.
बंगाल में नारा परिवर्तन का है . पर उम्मीद कम है . नाम का परिवर्तन जरूर होगा ." एम सी" से "पी" हट जायेगा "टी "जुड जायेगा . पर मिछिल , महामिछिल , बंध , कब्ज़ा , यूनियन , बुद्धीजीवियों, सर्वहारा, विरोध, बिल्डर राज , पाड़ा के दादा , पार्टी के चांदा, पानी से लेकर नाली तक राजनीती से बंगाल मुक्त होगा , नहीं लगता , लेफ्ट के सारे हथियार ममता ने हथिया लिए हैं , नवजागरण नहीं , बंगाल अपने बीते हुए १९७० के रोमांस को ढूँढ रहा है . यहाँ भाजपा नही है , पर यह प्रदेश आगे के बजाय सोने की चिड़िया की तलाश में लगता है , और वोह जाने कहाँ उड़ गयी है . उम्र को करवट लेनी बाकी है , बुर्जुआ समाज (भद्रलोक ) युवा हो जाएँ तो शायद . यहाँ तो नौजवान भी अड्डा देते हैं .
ravish ji jara mamta ka sashan bhi dekh lijye ga.unse railway to sambhal nahin raha.
ravish ji mamta ka sashan dekh lijye ga.abhi unse railway to samabhal nahin raha.
aapki baat sahi hai.aur apke aaklan ko chunaao nateejon ne sabit bhi kar diya hai.
zameeen se judi patrakarita shayad yahi hai..aage aur bhi achhi cheezein dekhne padhne mileingi aapke qalam ya microfoone se aisi umeed hai.salam
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