सिन्दूर के तीस रंग
मध्यप्रदेश के ओरछा में राम राजा मंदिर के बाहर बिक रही सिन्दूर की कठौतियों की तस्वीर है। दुकानदार ने बताया कि पिछले दो दशकों से देहात की औरतें साड़ी के रंग से मिलान करके सिन्दूर लगाने लगी हैं। ये रंगोली बनाने के लिए अबीर-गुलाल नहीं हैं बल्कि सिन्दूर ही हैं। ओरछा के राम राजा मंदिर में देहातों से महिलाएं आती हैं। अपने साथ ग्रे, ब्लू, बैंगनी और गुलाबी रंग के सिन्दूर खरीद कर ले जाती हैं। सिन्दूर का लाल रंग भी कई वेरायटी में मिलता है। कत्थई से लेकर सुरमई और गाढ़ा लाला। तीस से अधिक प्रकार के रंग दिखे। पता करने की कोशिश की कि कहीं सीरीयलों का असर तो नहीं हैं लेकिन यहां बिजली की कमी और भयंकर गरीबी के कारण कई घरों में टीवी नहीं है।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
22 comments:
क्या बात है ! सिन्दूर भी मैचिंग ! दिलचस्प जानकारी ।
hmm..
interesting......
jhansi se ek baar bachppan mein gaya tha... betwa nadi ufaan par thi... aapne vahan ki aur tasviren zarur li hongi..post kar den to achcha lagega..yaade taza ho jayengi..
जानकारी और मनोरंजन का संगम
सार्थक पोस्ट
जब पति मैचिन्ग नही मिलता तो बेचारी सन्दूर मन पसंद का लगा कर अपनी चाहत पूरी कर लेती हों। सीरीयल मे हर बदलते पति के साथ सिन्दूर का रंग तो बदलाना ही पडेगा न? अच्छा बदलाव है। बधाई।
Jaankar achha laga....
Is it possible ???? or just a imagination ......
कई वर्ष पहले एक अमेरिकेन लड़की ने भी मुझे इ-मेल द्वारा इसी प्रकार जानकार दी थी कि अमेरिका में आइस क्रीम के ४८ किस्म के फ्लेवर उसे उपलब्ध थे,,,मुझे ओरछा के सिंदूरों कि विविधता के बारे में आपसे जान उसका कथन याद आया...और कोलकाता के एअरपोर्ट में (७० के दशक के अंत में मिली) एक स्विस महिला का कथन कि हम अभी भी पश्चिम के ही गुलाम थे...
bahut khoob rahi .
sindoor ke tees rang.
sindur ka asli rang to lal hi hota ...............Milawat ke is daur me agar sindur me milawat ho gai to koi aschraj nahi hona chahiye........Yahi Aadhunikata ki parivhasa hai .......
राजा राम मन्दिर के बाहर संस्कृति से जुड़ी कई रोचक वस्तुयें मिल जाती हैं। पर सिन्दूर के तीस रंग, सूक्ष्म अवलोकन।
agree with Nirmalaji
Nirmalaji ka shandaar vyang ! god bless......
ye tv searial se nahi serail in se prbavit lagta hai
ज़माना बदल रहा है ..ज़माने के रंग भी बदल रहे है ........सोच विचार की और उसको अमल में लाने के तरीको में भी बदलाव हुआ है...
अब माथे के सिन्दूर के रंग भी बदल गए ...अच्छा है ...इन्सान सब कुछ अपनी इच्छा के मुताबिक बदलना जानता है ..पर दुःख इस बात का है ..वो बहुत सी बदलने लायक चीजों को नहीं बदल पा रहा ..........पृथक पृथक समाज में मानव को बाटने वाली समाजवाद की की कुंठित सोच का रंग अब भी पक्का है और इसका अब भी रंग वही है... ...
सिन्दूर पर भी बदलते जमाने का रंग चढ़ रहा है..
क्या बात है...सूक्ष्म अवलोकन....सार्थक जानकारी
रवीश सर,
मैं आपके बोलने का कायल हूँ, आपकी रिपोर्टिंग मुझे बहुत बहुत बहुत अच्छी लगती है, आप बिना अपने चेहरे के भाव को बदले हुए अपनी बातों से गंभीर मुद्दों को जिस सहजता से कह जाते हैं...उसके लिए आपकी जितनी भी तारीफ करूँ कम हैं...मैं भी जिंदगी में कभी आपकी तरह पत्रकारिता करना चाहता था लेकिन जिंदगी ने खींच के कॉरपोरेट जगत के सीखचों में पहुंचा दिया...फिर भी आपके जैसे लोगों को पत्रकारिता में देखता हूँ तो ह्रदय बाग़ बाग़ हो जाता हूँ ...आप वास्तव में एक अजस्र प्रेरणा श्रोत हो..अद्भुत एवं विलक्षण...
yeh to hidustan ki sanskriti hai...lekin us gaon ki garibi ko kya kahen..yeh to desh ka durbhagya hai ki india aur bharat ke gap ko nahi pata ja raha hai...media ki bhumika bhi sarahnie nahi kahi ja sakati..aap se bahut ummiden hai...desh ko samajsevi patrakaro ki sakhat jarurat hai...
Post a Comment