कोई भी फ़ैसला मुकम्मल नहीं हो सकता न ही कोई समीक्षा हो सकती है। परिवार में भाइयों के बीच जिस तरह ज़मीन का बंटवारा होता है,उसी तरह का बंटवारा है। बेहतर है तीनों छिट-पुट मनमुटावों के साथ-साथ एक व्यापक सहमति के साथ जीना सीख लें। उसी तरह जैसे गांव में बंटवारे के बाद भी तीनों भाई एक ही साथ अपने बच्चे का रिश्ता करने जाते हैं। उन्हें मालूम होता है कि तीनों भाइयों में दामाद को लेकर एक किस्म की प्रतिस्पर्धा होती है,फिर भी वो एक चौकी पर बैठे होते हैं, बताने के लिए कि हमारा परिवार कितना महान है। यह सब कुछ सिर्फ नौटंकी नहीं होती। कुछ रिश्ते तो फिर भी बचे ही रह जाते हैं जिसके नाम पर हम चाचा को प्रणाम करते हैं और बड़ी मां का दिया हुआ खा लेते हैं। जानते हुए कि बंटवारे के वक्त ज़मीन के एक कतरे को लेकर किस तरह से नरक रच दिया गया था। हिन्दुस्तान में हर दिन किसी न किसी का परिवार ज़मीन के टुकड़ों में बंटता है। फिर भी रिश्ते बचे रह जाते हैं। झगड़े चलते रहते हैं। यह हिन्दुओं में भी होता है और मुसलमानों में भी।
यह फ़ैसला इसी नज़ीर को आगे बढ़ाता है। ज़मीन तो सबको मिलेगी। कोई इसे पंचायत का फैसला बता कर खारिज कर सकता है। इसका फैसला पंचायती शक्ल में ही हो सकता था। कोई इसे यह कह कर भी खारिज कर सकता है कि आस्था पर अदालत का फैसला आया है। इसके परिणाम ज़रूर अच्छे नहीं होंगे। मगर इस फैसले को इसी मुकदमे के संदर्भ में रखकर सोचा जाना चाहिए। क्या हम यह मानकर चलते हैं कि अदालतें नास्तिक हैं। वो सिर्फ कानून पर चलती हैं। कानून कैसे बनता है? परंपराओं और परंपरा विरोधी दलीलों के बीच चलने वाले द्वंद से। जिसमें दोनों का पलड़ा भारी होता रहता है। यही हुआ। सेवानिवृत जस्टिस शर्मा ने अपनी ब्राह्मणवादी व्याख्या में पूरी ज़मीन राम को देने की बात लिखी है। मगर मानी नहीं गई। अगर उनके अनुसार फैसला आता तो मैं भी ब्रह्मा का बालसखा बनकर पूरी कायनात या नहीं तो कम से कम भारत पर दावा कर देता कि ये मुल्क किसी और का नहीं सिर्फ और सिर्फ ब्रह्मा का है। जो सृष्टि के रचयिता हैं। मैं उसी ब्रह्मा का मित्र हूं। ये और बात है कि कोई सृष्टि के रचयिता को पूछता तक नहीं। सब उनकी सृष्टि को टुकड़ों-टुकड़ों में बांट कर अपने-अपने हिस्से करने में लगे हैं। फिर भी एक बार सोचकर खुश हो गया कि वाह पूरा भारत मेरा। एक किसिम की ईस्ट इंडिया कंपनी बन जाता है। पोप्रटी डीलरों और बिल्डरों की एक नई सेना बनाकर उसका सुप्रीम कमांडर बन जाता। पूरे भारत में मेरी होर्डिंग लगी होती। ब्रह्मा सखा रवीश कुमार के मुल्क में एक घर आपका भी हो सकता है। टू बीएचके,थ्री बीएचके। इस फैसले के बाद मैं राम रूट बनवाना चाहता हूं। अयोध्या से श्रीलंका तक का एक्सप्रेस वे।
मुद्दे की आलोचनाओं से यह कहां साबित होता है कि पदों पर बैठे लोग धार्मिक नहीं हैं। उनकी सोच धार्मिक तत्वों से भी प्रभावित होती हैं। हमने ऐसा समाज तो रचा ही नहीं है। जब तक ऐसा समाज नहीं बनेगा तब तक मान्यताएं हमें अब अदालत की दहलीज़ से भी आदेश लेकर मनवाती रहेंगी। हमें जल्दी से याद भी कर लेना चाहिए कि यहीं वो अदालतें भी हैं जो कई बार मान्यताओं के ख़िलाफ़ भी खड़ी होती रही हैं। ईश्वर का वजूद शायद पहली बार किसी अदालत से तय हुआ होगा। यह चौरासी हज़ार देवी-देवताओं के लिए राहत की बात है। जल्दी से इनकी भी जनगणना कराकर एक सूची जारी कर देनी चाहिए ताकि हम बाद में पैदा होने वाले भगवानों को खारिज करते रहे। तीनों जजों ने राम की लाज रख ली। अब यह तय हो गया था कि भगवान राम एक जगह पर पैदा हुए थे। राम का वजूद लीगल हो गया। संघ परिवार कह सकता है कि राम सांस्कृतिक प्रतीक तो हैं ही,कानूनी भी हैं। जल्दी से अदालत सरकार से यह भी करे कि वो पूरी अयोध्या में खुदाई कर पता लगाए कि राम कहां-कहां खेले, स्वंयवर कहां हुआ और दशरथ ने दम कहां तोड़ा। इन सब का मंदिरनुमा स्मारक बनना चाहिए। पहली बार कोई भगवान लीगल हुए है तो जश्न में कोई कमी नहीं रहनी चाहिए।
कहीं हम यह मान कर तो नहीं चल रहे थे कि फैसला एक तरफा आयेगा। हिन्दुओं की तरफ या मुसलमानों की तरफ। क़ब्ज़ा मुखालिफ़त का कानून तो पहले से विराजमान है। तमाम तरह के लोग मकान मालिकों के घरों में इसी दलील के दम पर घुसे पड़े हैं और पांच- पांच रुपये में रह रहे हैं। हिन्दू भी और मुसलमान भी। जब हम आस्था के नाम पर सरकार से साल में दस-दस छुट्टियां ले सकते हैं तो सरकार उसके नाम पर फैसला भी करवा सकती है। समाज खुद को भी तो इस किस्म के दोहरेपन से मुक्त करें। ठीक है कि साफ नहीं कि मुसलमानों को किस हिस्से की ज़मीन मिलेगी लेकिन जो भी ज़मीन मिलेगी वो होगी तो वहीं की और उन्हीं की। कोई सोने का मंदिर बना ले और चाहे तो कोई हीरे की मस्जिद।
बीजेपी यह राजनीति ज़रूर कर रही है कि मुसलमान सहयोग करें। भई अब मुसलमान क्या सहयोग करे। आपको ज़मीन मिली है और आप अपनी ज़मीन पर बनाइये। दूसरे की ज़मीन की बात क्यों कर रहे हैं। सहयोग की राजनीति के बहाने क्या आप यह कह रहे हैं कि मुसलमान अपना दावा छोड़ दें। वो दावा छोड़ेगा तभी राष्ट्रीय एकता का पुनर्निमाण होगा। इस देश में धर्मनिरपेक्षता का इम्तहान मुसलमान ही क्यों दे? बीजेपी क्यों नहीं ज़मीन दान कर देती है कि लो भाई तुम दुखी हो तो हमारे राम को ले लो। खुश रहो। बीजेपी किस दलील के दम पर कह रही हैं कि मंदिर के निर्माण से राष्ट्रीय एकता का पुनर्निमाण होगा। आप क्या हमें यह बता रहें हैं कि तीस सितंबर से पहले हम किसी किस्म के राष्ट्रीय एकता के माहौल में जी ही नहीं रहे थे। जो एकता अभी है उसके पुनर्निमाण की ज़रूरत क्या है। मंदिर राष्ट्रीय एकता का प्रतीक कैसे हो सकता है? अव्वल तो बीजेपी को फैसले की शाम बैठकर प्रतिक्रिया ही नहीं देनी चाहिए थी। रविशंकर प्रसाद छद्म धर्मनिरपेक्षों को गरियाने लगे। अरे भाई आप भी तो छद्म राष्ट्रवादी हैं। आपकी पार्टी में जब रेड्डी बंधु जैसे देशभक्त हैं तो फिर छद्म धर्मनिरपेक्षों को क्यों गरिया रहे हैं। रेड्डियों और मुंडाओं और सोरेने से कर लीजिए न राष्ट्रीय एकता का पुनर्निमाण।
नरेंद्र दामोदर मोदी तो गुजरात की जनता को शांति के लिए धन्यवाद देने लगे। उसी शाम को धन्यवाद देना था इनको। आकर यूपी में देख लेते। प्रशासन की सख्ती के आगे किसी भी जनता की हिम्मत नहीं हुई कि बाहर निकर आ जाएं। मायावती के अफसर देर रात तक अपने अपने विभागों की लाल बत्ती वाली गाड़ियां लेकर घूमते रहे। ठीक है कि कुछ हिन्दू जनता को लगा कि चलो उनकी आस्था की बात रह गई लेकिन आप देखेंगे कि आम हिन्दू(सवर्ण) भी उत्तेजित नहीं है। वो अपने घरों में ही रहा। वर्ना कर्फ्यू को तोड़ने के लिए पब्लिक सड़क पर तो निकल ही आती है न। वो भी जानती है कि ये मुद्दा मंदिर भर तक है। बीजेपी और संघ परिवार ने अयोध्या मुद्दे की एटीएम मशीन से नगद पहले ही निकाल कर खर्च कर लिया है। इसी तरह की प्रतिक्रिया मुस्लिम इलाकों में भी है। उन्हें दुख ज़रूर पहुंचा है मगर कोई पहाड़ नहीं टूटा है। फैसले से पहले पंद्रह दिनों तक पुरानी दिल्ली में टहलता रहा। सब यही कहते थे कि क्या फैसले से पहले वहां अस्पताल नहीं बन सकता। स्कूल बनवा दीजिए। उनकी भी लिस्ट में मस्जिद नहीं थी। फैसले के बाद मौलाना देहलवी ने फोन कर कहा कि भाई अब इस मुद्दे को छोड़ देना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट नहीं जाना चाहिए। फैसले के अगले दिन लखनऊ एयरपोर्ट पर जेद्दा की फ्लाईट लेने के लिए बड़ी संख्या में मस्लिम परिवार आए थे। सब एक दूसरे को बिछड़ने के गम के साथ विदा कर रहे थे। कोई फैसले की बात नहीं कर रहे थे। एक सज्जन से पूछा तो मेरा सवाल रोक कर शमशाद को कहने लगे कि पासपोर्ट बनवा लेना। पलट कर कहा कि भाई अदालत का फैसला है। हम मानेंगे। हमें मंजूर नहीं हो तब भी मानेंगे। वाकई यह एक परिपक्व दौर है।
हाशिम अंसारी की प्रतिक्रिया के बराबर क्या किसी बीजेपी नेता की प्रतिक्रिया आपने सुनी? एक सदी के लगभग उनकी उम्र होने को आई। यह मुकदमा उनसे सिर्फ पैंतालीस साल ही तो छोटा है। फैसले के दिन पूरी मीडिया ने कटियार,आदित्यनाथ और कल्याण सिंह जैसे नेताओं पर रोक लगा रखी थी। इनको किसी ने पूछा ही नहीं। वो भी समझ गए हैं कि मंदिर मुद्दा नहीं है। अठारह साल पहले ही यह मुद्दा ध्वस्त हो गया था। बस कहने के लिए एक मुद्दा मिल रहा है कि देखो हम ठीक कहते थे। हमारी लड़ाई अदालत से साबित हुई है। कुछ चिरकुट लोग यह भी बता रहे थे कि भारत आगे बढ़ना चाहता है। वो ऐसे मुद्दों के भंवर में नहीं फंसेगा। ये लोग भारत को नहीं जानते। भारत जब 92 के बाद हुए दंगों और गुजरात के भयावह दंगों के बाद भी आगे बढ़ सकता है तो किसी फैसले से उसके आगे बढ़ने के टाइप्ड ड्रीम पर असर नहीं पड़ने वाला था।
अगर आप यह बतानें लगें कि भारत ब्राह्मणवादी नहीं रहा है तो नहीं मानूंगा। इस फैसले ने भी साबित किया है कि धर्म की व्याख्या इस देश में ब्राह्मणवादी ही होगी। गनीमत है कि राजनीतिक रूप से नहीं हो सकती वर्ना दलितो का उभार ठीक उसी वक्त नहीं होता जब देश में राम भक्तों का सियासी जलवा कायम हो रहा था। बेहतर है इस फैसले की संयमित राजनीतिक प्रतिक्रिया हो। उत्तेजित नहीं। दरअसल बात सिर्फ बीजेपी की नहीं है। सभी दलों में ऐसे कमज़ोर पक्ष हैं। उन्हें मालूम है कि कुछ कमज़ोरी और गलतियों के बाद भी उनका वजूद बना हुआ है। कांग्रेस हो या बीजेपी या फिर कोई भी सियासी दल,ये सब राष्ट्रीय एकता के कब ठेकेदार बन जाते हैं और कब धर्मनिरपेक्षता और तुष्टीकरण के वकील सबको मालूम है।
न धर्मनिरपेक्षता कमज़ोर हुई है न सांप्रदायिकता। इस गफ़लत में न रहें तो अच्छा होगा। देखना है तो हिन्दी के अखबारों की हेडलाइन्स देख लीजिए। नई दुनिया ने लाल लाल हेंडिंग लगाई और लिखा कि- वहीं रहेंगे रहेंगे रामलला। दैनिक जागरण ने लिखा- विराजमान रहेंगे रामलला। अमर उजाला- रामलला विराजमान रहेंगे। दैनिक भास्कर- भगवान को मिली भूमि। हिन्दुस्तान- मूर्तियां नहीं हटेंगी, ज़मीन बटेंगी। राष्ट्रीय सहारा- तीन हिस्सों में बांटी जाएगी ज़मीन। नवभारत टाइम्स ने लिखा- किसी एक की नहीं अयोध्या। राजस्थान पत्रिका की हेडिंग सबसे अच्छी थी-राम वहीं,पास में रहीम। छाती पीटने की ज़रूरत नहीं हैं। जैसा कि मैंने कहा कि कोई भी फैसला मुकम्मल नहीं होता और न ही उसकी समीक्षा। मुग़ल-ए-आज़म का डॉयलॉग याद आ गया- शहंशाहों के इंसाफ और ज़ुल्म में कितना कम फर्क होता है। टेंशन मत लीजिए।
56 comments:
अच्छे तरीके से बात रखी है :)
जैसा की आप से अपेक्षा की जाती है, आपने बिलकुल उसी प्रकार से इस फैसले की समीक्षा की है| लेकिन मेरे हिसाब से भी अब मंदिर या मस्जिद आम जनता के लिए मुद्दा नहीं रहा, रोजमर्रा की जिंदगी में और भी बहुत कुछ है तो मंदिर, मस्जिद और दूसरे सांप्रदायिक विषयों से हटकर और महत्वपूर्ण है|
सबकी तरह अदालत का फैसले का सम्मान मैं भी करता हूँ, लेकिन मेरी भी राय है की वहाँ अगर एक स्कूल या अस्पताल बनता तो ज्यादा अच्छा होता| खैर हम कौन होते हैं अपनी राय देने वाले| लेकिन हाँ एक आम आदमी और एक तथाकथित जिम्मेदार नागरिक होने के नाते इतना तो कर ही सकते हैं की ठेकेदारों की बातों पर ध्यान न दें|
kya ravish babu, lagta hai faisle se sabse zyada nirasha aapko hui hai. ye bhi batate ki ye nirasha unhe zameen nahi milne se hai ya ram ka astitva man liye jane se hai. aap bhagwan ram ko daya ka patra samjh rahe hain aur likhte hain ki tino judjo ne ram ki lag bacha li. jis desh me aap jaise log hain waha aisi sharmanirpeksh baate sun ne ki aadat dalni padegi. kyoki aap budhhijivi hain. aisa nahi kahte to samjhdar kaise kahate. mai dv sharma ke vichar par nahi jata. lekin 500 saal pahle media nahi tha. tab kya hua kisi ko nahi pata. us samay muglon ka shashn tha. tab koi adalat nahi thi mere bhai.isliye ye apne hi adhikar ki ladai itni lambi chali. is faisle se apko bura lage to 100 bar. lekin ek bat aur yadi yahi faisla unke paksh me jata, tab bhi aap yahi sab likhte. katai nahi. kyoki tab aap budhhijivi nahi sampradaiyik ho jate. bjp ko gariyana aapki hobby hai to us par mai kuch nahi kahunga.
द्वापर के कृष्ण पर निर्भर अर्जुन समान धनुर्धर, कालांतर में त्रेतायुग के पूज्यनीय धनुर्धर राम, और उनकी तथाकथित 'विवादित जन्मभूमि' आदि की बात हो, तो सुधि पाठक के ध्यान जा सकता है तुलसीदास जी के राम चरित मानस में भी राम जी के माध्यम से कथन, "भय बिन होऊ न प्रीत" की ओर, और गीता में कृष्ण के कथन कि गलतियाँ अज्ञानतावश होती हैं...यह ऐतिहासिक सत्य है कि स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व भारत सदियों से दास रहा है - विभिन्न उस से अधिक शक्तिशाली राजाओं का, जिन्होंने अपने-अपने काल में विभिन्न कानून बनाये, पहले से चले आ रहे में थोडा फेर बदल कर,,,, जिस कारण आज आम नागरिक ही नहीं अपितु प्रशासन से सम्बंधित व्यक्ति भी 'सही-गलत' क्या है अच्छी तरह से नहीं जानते,,,और इस प्रकार अनादिकाल से चले आ रही 'धार्मिक मान्यता' का तो हर कोई समझ सकता है कि क्या हाल हुआ होगा काल के कारण!
Dear Ravish,
The official 'war cry' of Rajputana Regiment has always been --"Raja Ramchandra ki Jay". In many regiments Jawans and JCOs always greet their superiors by uttering "RAM RAM SAHIB" and RAM is writ large on Bapu's samadhi as well . So, rest assured that Ram has never been illegal here :)
जय हो.
आपके इस शोक पत्र को पढा, आपके इस शोक और दूख पर मेरी भावभीनी सहानूभूति
khahe ka tension ...jo bhi likha badhiya likha hai... ram kahiye..rahim kahiye..insan bane rahiye....hindustan mein rahte hain to hindusatni bankar rahiye...
अभी कल ही की बात है मुलायम सिंह यादव ने कहा है कि फैसले से देश के मुसलमान ठगा-सा महसूस कर रहे हैं। राजनीति की यही तो खासियत है कि हिंदू होते हुए भी उन्हें मुसलमानों की पीड़ा का बड़ा अच्छा अनुभव हो रहा है। शर्म करनी चाहिए ऐसे नेताओं को जो देश की जनता को बरगलाने का काम कर रहे हैं। वैसी जनता को जिसने अपनी शांति प्रियता का परिचय दिया है। फैसले पर आपकी टिप्पणी संतोषजनक है। सभी को न्यायालय के फैसले का स्वागत और सम्मान करना चाहिए।
जेरुसलम पर क्या राय है आपकी. पाकिस्तान, बांग्लादेश, ईरान, ईराक, मलेशिया में भी धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा को लागू कराने के लिये कोई अभियान चलाना पसन्द करेंगे... या यह सिर्फ यहीं तक सीमित है.... पूरी दुनिया के बाशिन्दों के लिये नहीं..
कुर-आन और हदीस तथा शरीयती फैसलों तथा निजाम के बारे में क्या कहेंगे.... जेद्दाह में हर औरत को बुर्का पहनना है, इसके लिये क्या कहेंगे, अपने चैनल पर कोई चर्चा करेंगे कि जेद्दाह में ऐसा क्यों है, इसे खत्म क्यों न किया जाये...
हेडिंग आप ने कमतर नहीं लगाई है, बिलकुल रवीश स्टाइल | पड़ते ही पता चलता है किसने लिखा है | वैसे समीक्षा अच्छी है | बीजेपी को हर हाल में ठिकाने लगाने का मोह छोड़ नहीं पाए | अंतिम पैरे में एक जनरल सी लाइन सब पर कमेन्ट करके संतुलन दिखाने की कोशिश | सब कुछ आज के दौर के सेकुलर और प्रगतिशील लोग जैसे वैचारिक व्यवहार कर रहे हैं उसी के अनुरूप |
वैसे सब को देखिये और समझिए,उन्हें भी जो कहते थे अदालत इस का फैसला नहीं कर सकती यह आस्था का मामला है और उन्हें भी जो कहते थे अदालत का फैसला हर हाल में मानेगे | हाँ , किसी ने दंगा करने की कोशिश नहीं की इसके लिए सबका शुक्रिया जरूर करना चाहूँगा, इसका कारण चाहे जो हो |
बस एक बात और हर किसी की प्रतिक्रया वैसी ही है जैसी १९९० से आज तक सुनता देखता आया हूँ | किसी दल , किसी राजनेता , किसी बुद्धिजीवी और किसी पत्रकार ने अपेक्षा से अलग व्यवहार नहीं किया | बीजेपी पुराने फिर बिछुडे और अब नए दोस्त जेठमलानी और मुसलमानों के हितैसी होने का दम भरने वाले मुलायम , उनके दोस्त और अब दुश्मन अमर सहित | ये उदाहरण जानबूझकर दे रहा हूँ आप समझ ही रहे होगें की मंतव्य क्या है |
अच्छी समीक्षा के लिए बधाई हो |
रवीश जी राम राम
सबसे पहले तो मैं आपकी इस समीक्षा से बिल्कुल सहमत नहीं हूं। आपने इस पोस्ट का शीर्षक दिया है राम अब लीगल हो गए हैं तो क्या आप यह कहना चाहते हैं कि अब तक राम गैरकानूनी यानी इललीगल थे। ईसा के पैदा होने से 1450 वर्ष पहले पैदा हुए पुरुषोत्तम राम आपको कैसे गैरकानूनी लगे ये तो आप ही जानें।
आपने हाई कोर्ट ने तीन जजों में से सिर्फ एक शर्मा जी का उल्लेख किया है, जो लगता है कि जानबूझ कर किया गया है। एएसआई की रिपोर्ट के आधार पर शर्मा जी ने कहा कि वहां एक मंदिर था, जिसको अग्रवाल जी ने भी समर्थन किया और खान साहब ने इसका लगभग नकार दिया। आपको इस बात का भी अपनी पोस्ट में उल्लेख करना चाहिए था। फैसले की सबसे बड़ी बात की तीनों जजों ने इस जमीन को देव तुल्य माना है इसका किसने से उल्लेख नहीं किया। इस देश में हिंदुओं को विरोध करना धर्मनिरपेक्षा कहलाता है और आप ऐसा कर रहे हैं तो इसमें नया क्या है। आपने कहा कि मीडिया ने कल्याण सिंह जैसे नेताओं का बहिष्कार किया लेकिन क्या आप बता सकते हैं कि यह बहिष्कार तब भी किया जाता जब अदालत फैसला देती कि भई वहां न कभी राम जन्में और कभी राम मंदिर था वहां तो सदियों से मस्जिद ही थी और भविष्य में एक भव्य मस्जिद का निर्माण कराया जाएगा।
ये एक तटस्थ रिपोर्टर की रिपोर्ट है, जिसमे ये पता लगाना आसान नहीं कि उसका अपना विचार क्या है. निश्चय ही यह फैसला गंवई पंचायत की महक लिए है. हिन्दुस्तान में धर्मनिरपेक्षता को पुनर्परिभाषित किया जाना चाहिए और ये स्पष्ट हो कि धार्मिक व्यक्ति एक 'सेकुलर' से अधिक धर्मनिरपेक्ष हो सकता है. हमारा देश इसकी मिसाल है.
निर्णय आने के बाद चैनेल बदलते हुए गलती से एनडीटीवी पर चला गया। देखा सभी समाचार-वाचकों के गले रुंधे हुए हैं। क्या बोल रहे थे, कुछ समझ में नहीं आ पा रहा था। हर शब्द पर अतक रहे थे। फिर शब्द को सुधार कर बोलते किन्तु सही शब्द फिर भी नहीं निकलता।
आपकी हालत तो फिर भी ठीक है।
Ravish ji
Aapse jaisi apeksha ki jati hai usi anurup aapne is feslr ki samiksha ki lagta hai kisi budhijivi se badhkar socha or apna paksh rakha hai
HArdik Shubhkamnayen
मर्यादा पुरषोत्तम श्रीराम जब अयोध्या छोड़कर वन गए तो पूरा अयोध्या विलाप कर उठा. श्रीराम को जानकी से ब्याह किये हुए ज्यादा समय नहीं बीता था (आज की फिल्मी भाषा में कहे तो जानकी के हाथों से मेहंदी भी नहीं छूटी थी ) लेकिन उन्होंने विमाता कैकेयी के पुत्र मोह तथा पिता की आज्ञा को सर्वोपरि माना. हम साधारण मनुष्य की हैसियत से देखें तो एक ओर सम्पूर्ण योवन, सध्य ब्याहता अनिन्ध्य सुन्दर पत्नी और रघुवंश का विशाल साम्राज्य. लेकिन दूसरी ओर दंडकारण्य में चौदह वर्ष का वनवास. त्याग दिया सबकुछ तो रघुकुल की रीत निभाने के लिए. ऐसे ही तो श्रीराम सबके आराध्य नहीं बने. भाई! राम अब अयोध्या वासी नहीं बल्कि घट घट के राम हो गए हैं. केवल अयोध्या तक सीमित करना उनके आदर्शों का ही उल्लंघन है.
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शैली अच्छी है पर एक तरफा आलेख है। केवल राम पर सवाल क्यों उठाऐ जा रहे । एक संप्रदाय की बात करना धर्मनिरपेक्षता नहीं है। हर एक धर्म संप्रदाय के लिए कुछ चीजे पवित्र होती है। मुस्लिम भाईयो के लिए मक्का, ईसाइयों के लिए जेरूशलम, सिखो के लिए स्वर्ण मंदिर वैसे ही हिन्दु भाईयों के लिए गंगा और अयोध्या पवित्र है। अच्छा होगा मीडिया भी फैसले को स्वीकार कर ले अथवा तटस्थ रहे ।
So, its official now.
Lord was born at Ayodhya
Sudeep Rawat
Chandigarh
अयोध्या फैसले पे माइक्रोस्कोप रख "बौद्धिक अय्याशी ' में डूबे समझदार लोग... साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की टोह खोजती टोलियो को टोर्च दिखा रहे है ......ओर मै उकता गया हूँ...
अभी सुबह के आठ बजे है.किसी चैनल को खोल कर देखिये कोई किसी ज्योतिषी को लेकर बैठा है कोई किसी को.कोई ताबीज़ बंधवा रहा है कोई गंडे .तो क्या उन पर धार्मिक अंधविश्वास बढाने का मुकदमा ठोक दिया जाए ......?
भगत सिंह के जन्म दिन को गुजरे दो दिन नहीं होते ओर हम पूरे देश को एक जमीन के टुकड़े पर रोक देते है खास तौर से उस वक़्त जब कैसे भी हो कोमन वेल्थ के गेम के चलते हजारो मेहमान हमारे देश में मौजूद हो......हम चाहते है झगडा हो ओर सारी दुनिया के सामने हमारी इमाज वही हो सांप ओर सपेरे वाले देश की......ओर जब कोई झगडा नहीं होता हम इसकी बारीकियो पर डिस्कस करते है ......हम क्यों डिस्कस करना चाहते है .......?
मुझे नहीं मालूम आप पिछले दिनों कितने अस्पताल गए है ? सुना है गाजियाबाद ओर पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ये हाल है ....मेरठ में आयेगे तो आप को किसी अस्पताल में जगह नहीं मिलेगी.....डेंगू ओर वाइरल से जूझता हर आदमी है ...रोजगारी से दूर दिहाड़ी पर गया मजदूर जैसे तैसे हिम्मत जूता कर दो दिन बुखार में जाकर काम पे जाना चाहता है .......पर आप की बौद्धिक अय्याशी के चलते उस इघर पर बैठना अड़ सकता है ....खास तौर पे मेरे शहर को जिसकी आब्दी में प्रतिशत ५० -५० प्रतिशत है .... मेरे यहाँ काम करते बढई उस सुबह भयभीत है .आश्वाशन देने पर दोपहर तक काम करने को वे तैयार होते है .....शाम को मेरा क्लिनिक बंद है .....क्यूंकि स्टाफ किसी आशंका के चलते आना नहीं चाहता है .......हम २०१० में है .....उस देश में जिसके बारे में ओबामा कहता है के इस देश के नौजब्वानो से डरो वे तुम्हारी नौकरी खा जायेगे ........जिसके आई आई टी के बारे में अमेरिका में एक डोक्यु मेन्टरी बनती है .अमेरिका के टेलीविजन पर वहां के लोगो के जागरूक करने के लिए .......ओर हम यहाँ पड़ोस में बैठे सुसाइड करने वाले देश पाकिस्तान की तरह धर्म में सर से पैर तक डूबे रहना चाहते है .......
धर्म इसलिए बनाया गया था ताकि मनुष्य एक बेहतर इंसान बन सके ......पर आदमी ने अपने फायदे ओर वक़्त के हिसाब से इसका तजुर्मा किया ओर उसका मन मर्जी से इस्तेमाल .....
मेहरबानी करके पोस्टमार्टम करना छोड़ देश को आगे बढ़ने दीजिये ....इससे तल्खिया ओर बढ़ेगी.........इस देश के बहुसंख्यक समाज का अस्सी प्रतिशत तबका आगे बढ़ना चाहता है .....उसके लिए धर्म प्राथमिकता नहीं है .....रोजी रोटी ओर रोजगार ओर उससे जुड़े कई मसले है .....हम ओर आप जैसे लोग कंप्यूटर पर ब्लोगों ओर फेस बुक पर अपनी बौद्दिकता की तलवारे पैनी करके लड़ लेगे ......कुछ कविताएं लिख लेगे .......पर एक बड़ा तबके के लिए धर्म से ज्यादा कुछ ओर जरूरी चीज़े है
डा. अनुराग भी अपनी जगह सही हैं,,, आवश्यकता है अपनी मान्यताओं की पृष्ठभूमि समझने हेतु लाइन के बीच पढने की:
प्राचीन ज्ञानी शक्ति रुपी भगवान् को निराकार जान, और उनकी कार्य-प्रणाली को तीन भाग में बंटा जान (सांकेतिक ॐ द्वारा दर्शित) उन्हें भौतिक रूप में तीन विभिन्न शक्तियों में बाँट गए: ब्रह्मा, विष्णु, और महेश (शिव, यानी वो जो अनंत है); और उनसे जुडी तीन 'माताएं' या शक्तियां; क्रमशः सरस्वती, लक्ष्मी, और काली...इसलिए यह जानते हुए कि प्रकृति में विविधता, शून्य से अनंत आकार आदि, उपस्थित हैं, और मानव महाशून्य का प्रतिरूप है जान, गहराई में जा, 'धनुर्धर राम' को "विष्णु के नाभिकमल से उत्पन्न ब्रह्मा" यानि पृथ्वी पर सर्वोच्च स्तर तक विकसित शक्ति के स्रोत सूर्य का प्रतिरूप जाने, जबकि पृथ्वी और उसके केंद्र, जहां गुरुत्वाकर्षण की शक्ति केन्द्रित है, उनको क्रमशः विष्णु और शिव...इस कारण आश्चर्य नहीं कि तथाकथित विवादित क्षेत्र तीन भाग में बाँट दिया गया है, आज भी क्यूंकि सत्य काल से परे है, और ब्रह्मण वो है जो सत्य को जानता है...
आधुनिक खगोलशास्त्री भी मानते हैं कि प्राचीन काशी के पंडित (सिद्ध पुरुष) पहुंचे हुए खगोलशास्त्री भी थे, और उन्होंने पृथ्वी को ब्रह्माण्ड का केंद्र दर्शाया, यानि वर्तमान पृथ्वी के केंद्र को भी, जो इस प्रकार उसे उनके द्वारा दर्शाए 'नादब्रह्म', अथवा 'विष्णु' ('विषैला अणु') को श्रृष्टि का आरंभिक निराकार स्रोत भी दर्शाता है - गीता में दर्शाए 'कृष्ण' के आरंभ, (महाशून्य रूप में) मध्य, और अंत भी... जबकि विष का उल्टा शिव पृथ्वी को अमृत दर्शाता है,,, यानि जो एक हिमयुग से दूसरे हिमयुग के बीच निरंतर झूलती जानी जाती है, मध्य भाग में नाटक के स्टेज समान रामलीला अथवा कृष्णलीला का आनंद देते!
अपकी समीक्षा एक दम सही है। अमजनता का मुद्द अब मंदिर मस्जिद नही ये लोगों ने साबित कर दिया है। नेता चाहे छाती ठोंके या पीटें। राम लीगल जरूर हुये हैं मगर इस देश मे सब इल्लीगल ही चलता है। आपसी सद्भाव और प्रेम प्यार राम से जरूरी इस लिये है कि यही उनका सन्देश है। उनके भरत के लिये किये त्याग से सबक क्यों नही लिया जाता जब कि उन्हें हम भगवान मान कर चल रहे हैं अगर उन जितना त्याग नही कर सकते तो कम से कम प्रेम प्यार से इसे सुलझा तो सकते हैं। आभार।
"भाई अदालत का फैसला है। हम मानेंगे। हमें मंजूर नहीं हो तब भी मानेंगे। वाकई यह एक परिपक्व दौर है।"
रवीश सर, क्या ये वाकई ने भारत कि अंगडाई है? क्या मुस्लिम युवा सही में मुख्याधारा के साथ कदमताल मिला कर चलने लगे हैं? इस बात पर इतनी जल्दी निष्कर्ष नहीं निकालना चाहिए. ये भारत देश है, यहाँ रातोरात - फैसले लिए और बदले जाते हैं. कल क्या हो पता नहीं.
बहरहाल - बधाई, सवेदनशीलता कि चाशनी में अच्छी रिपोर्ट बनाई आपने.
jyada hi secular hone ki koshish zaari hai aapki.kahi kabhi aapke mansoobo par shaqe hota hai,kahi elecion - belection ladne ka mood to nahi bana rakha ya phi kisi se setting chal rahi hai rajyasabha mein jane ke liye.
khair justice sharma ka brahmanvaad to apko deekh gaya lekin justice khan ki musalmani soch kahi nazar nahi aayee ya phir aate hue bhi nazar-andaaz kar di gayi,kyunki secular hona hai na.
aur yeh jo aapki report aati hai dekhta hoon mein.ek mudda de raha hoo agar ho sakein to uss par research karein aur ek aisee report taiyyar karein jis-se sarkar chete vastaav mein chete.
halanki mudda aisa hai jismein bhrastachar out of limit hai,aur usmein medea bhi shamil hai,ummeed hai ki aap mein itani himmat ho sakti hai ki iss mudde ko thik se pesh karein aur aisa ho ki pehali baar isake against koi action bhi ho.
mudda seedha garibo se juda hua hai.bahut jyada na-insafi ho rahi hai sir bahut hi jyada.
mudda hai FPS yani ration evam Kerosin ka.fps office se lekar mukhyamantri karyalaya tak iske taar jude hue hai.50% se jyada card nakli hai,aur jinke asli bhi hai unko bhi poora rashan tel nahi milta utle inaam mein gaaliya aur be-ijjati ka tohfa jaroor milta hai.ek-ek ration aur kerosin dealer aaj ki tarikh mein 2lakh se15lakh mahine kama raha hai.ek dukaan khud ki hoti hai aur baki license kiraye par ya kharid liye jate hai.kabhi inaki kothiya aur shano shukat dekhiye.
aur ha isake liye aapko koi sting bhi nahi karna padega,khullam khulla niyamo ki dhajjiyan udaee ja rahi hai,kabhi aap log bhi imandaari aur gambheerta se dekhiye.kahi jane ki jarurat nahi hai dilli mein hi sabse jyada gadbad jhala hai.
sir plz ek kosish kijiye.
"सौंगंध राम की खाते है मंदिर वही बनायेंगे.." अब देखना ये है कि भारतीयों की आस्था के रखवाले कब तक मंदिर बना पाते है. अगर कभी गया उस मंदिर में इस जनम में तो भगवन राम से जरुर पुछु गां कहिये कैसा लग रहा है ?
रवीश की रिपोर्ट में बीजेपी की बढिया खबर ली है, कांग्रेस को हल्का सा छूते हुए अपनी कलम की निरपेक्षता भी बनाने की सधी हुयी कोशिश की है। वामधारा तो प्राणदायिनी है ही! (डा.राय जरूर खुश होंगें!).
आप लोगों के सिखाये "हिडिन एजेंडा" का परिणाम यह है कि हमें अब आपका हिडिन एजेंडा समझ आने लगा है।
जब रोम को लीगल बना दिया तो राम भी सही, रवीश बाबू!!
पहले तो अपना शीर्षक ठीक कीजिये क्योकि राम न तो इलीगल थे वे तो सभी के आदर्श थे अपने जो भी लिखा उसमे क्रम्बधता की कमी है दुसरे अपने सिर्फ बीजे पी को ही निशाने पर रखा मुलायम के उस बरगालने वाले बयान को जिसे स्वयम मुसलमानों ने ठुकरा दिया उसका कही जिक्र नहीं किया अप्प किस पक्ष में लिख रहे हैं इस का सपष्टीकरण नहीं हो पता है हाँ केवल इतना पता जरूर चलता है किकिसी धर्मे निरपेक्ष राजनितिक पार्टी का लिखा हुआ भाषण छाप दिया गया है जिसने नहीं सुना वह पढ़ ले
Kisne kaha ki hamesha se wahi Dharmnirpekhata ka imtehaan dete aa rahe hain hain...Tumhe Hindu dukhi nahi dikhayi dete ...Unka Dharmnirpeksh roop nahi dikhayi deta ki hamlogon ne aazadi ke baad bhi unhe gale lagaane me koi hichak nahi dikhayi...
Tum jaise log is baat ko kyun nahi ujaagar karte hain ki Muslim bhi haamre hi purkhon ke bandhu bandhav hain is desh me...Aur Ram mandir yeah Mudda se kahi jyada hamari Rastriya asmita aur pechaan ka hai...Kya hamne wo daag bachane ki sougandh kha rakhi hai, jo hamaare mastak pe kabhi daage gaye the aur jinke Nishaan abhi bhi pade hue hain
Musalmaaanon ki dukh-Vyatha ko batane waale ye kyun nahi bataate hain ki..Us Nirmaan ki vajah koi naya upasana kendra banana nahi..Balki ye batana tha ki..haum un barbar logon ke liye jangli se jyada kuch nahi hain...
Usne to Nirmaan kara diya...Sabse badi baat hai usi jagah pe usi 74 Acre me...Agar wo barbar itna hi sanyami tha to mujhe nahi lagta hai ki wo us jagah ki pratistha se anjaan raha hoga..jo usi jagah Masjid bana dala...Kaashi ka udaharan kya kisi se chipa hai..Sandeh ki to koi wajaha hi nahi hai...ye sab muslimon ko Hinduo ka dar dikhane ki tum jaise aadmiyon ki karamaat hai ..
Jo Is Hindu-Muslim ekta ki chhanwa me apni dookaan ke grahak nahi khona chhahte....
BJP ka yeh kahana ki mUslim aage aayen ...Unhen apmaani karna hai- Yeh ek sahyog ki appeal hai ...Sahyog kai maayne hote hain- Tumneapne lekh me kuch hi utahye hain, Muslimon ko dikha diya dekho tumhare liye itna hi kota hai...Tum sahi me dhanya ho bandhu..
tum jaise sankare dimamag ke logo ye bhi nahi samajh nahi paate hain ki, yeh apeal Sadvav ki hai ...
Aaz mulaayam singh kahata hai ki ..Muslmaano ke masjid wahi banana chahiye...Kal ko Amar sing ne Rajya sabha me "Ya ali" ke naare lagaye the..Is rajnitikaran kisne kiya hai,Tum jaise logon ne hi kiya hai..
Tum itne adarshvadita pe likhte ho .jara imaandari se khud se poocho...Kya tum wahi sab nahi likhte jo tum dikhana chahte ho..Tumhe lagta hai ki tum public ka mood banate ho..ha...ha.
Musalammmano ko Bhed-bakari samjhana band karo...
Unke dukhon aur Vyathaon ki itni hi chinta hai to ...Dharm ka hawaala mat diya karo- Unko alag se pehchaan dene ke liye...Sarm karo apni dookan ke liye kisi bebas ka sahara le rahe ho...
Aur haan BJP kis dalil pe keh rahi hai ki Rastriya ekta ka punarnirman hoga- Tum jaise typed aur Narrow-minded ko samajh me nahi ataa---Patrakarita chod do , Jo itna bhi nahi samajh sakte...
Ek baat aur- Reddy mundaon aur soreno ke saath ham akhil bharat baat karte hain- Jahan hamari ki astha desh se apni janambhoomi se juri hai, Dharm to baad ki baat hai...Itne nimn star pe ja ke tumne ye bindu uthaya hai...Chi...
Aur haan Court ke decision se Dukh to tumhe jyada hain..ki koi masaledaar khabar nahi mil paayi---
Janta ki sahi me samajhdaari hai, ashanti nahi faili. Agar kissi ne dhanyawaad diya to tumhe kya hua..
Ye kyun nahi dikhyi diya ki karunaanidhi ne bhi dhanywaad diya apni janata ko..Bahuton ne dhanyawaad diya...
Lekin tum to sudhar nahi sakate ...Binaa matlab ka tum pattar uchaal rahe ho...
Ek salaah -- Thode din aaram le lo, Aur apne des ke baare me achhi tarah socho..hamne(Bharatvasiyon ) ne hamesha Sah- Astitva par jor diya hai..Isliye ki naye vichar Panap saken,Manav jaati aur fale badhe.Yehan Nastik bhi hain aur astik bhi-sabhi ka swagat hai.Hamne kabhi kisis desh pe aakrman nahi kiya..Lekin apni
sanskriti bhi nahi chhodi...Ye baat Musalmaano ko bhi pta hai..We bhi hamare hi bhai hain...Agar unhen sahi rasta nahi dikha sakte to kam se kam bhadkao to nahi hi...
Kisne kaha ki hamesha se wahi Dharmnirpekhata ka imtehaan dete aa rahe hain hain...Tumhe Hindu dukhi nahi dikhayi dete ...Unka Dharmnirpeksh roop nahi dikhayi deta ki hamlogon ne aazadi ke baad bhi unhe gale lagaane me koi hichak nahi dikhayi...
Tum jaise log is baat ko kyun nahi ujaagar karte hain ki Muslim bhi haamre hi purkhon ke bandhu bandhav hain is desh me...Aur Ram mandir yeah Mudda se kahi jyada hamari Rastriya asmita aur pechaan ka hai...Kya hamne wo daag bachane ki sougandh kha rakhi hai, jo hamaare mastak pe kabhi daage gaye the aur jinke Nishaan abhi bhi pade hue hain
Musalmaaanon ki dukh-Vyatha ko batane waale ye kyun nahi bataate hain ki..Us Nirmaan ki vajah koi naya upasana kendra banana nahi..Balki ye batana tha ki..haum un barbar logon ke liye jangli se jyada kuch nahi hain...
Usne to Nirmaan kara diya...Sabse badi baat hai usi jagah pe usi 74 Acre me...Agar wo barbar itna hi sanyami tha to mujhe nahi lagta hai ki wo us jagah ki pratistha se anjaan raha hoga..jo usi jagah Masjid bana dala...Kaashi ka udaharan kya kisi se chipa hai..Sandeh ki to koi wajaha hi nahi hai...ye sab muslimon ko Hinduo ka dar dikhane ki tum jaise aadmiyon ki karamaat hai ..
Jo Is Hindu-Muslim ekta ki chhanwa me apni dookaan ke grahak nahi khona chhahte....
BJP ka yeh kahana ki mUslim aage aayen ...Unhen apmaani karna hai- Yeh ek sahyog ki appeal hai ...Sahyog kai maayne hote hain- Tumneapne lekh me kuch hi utahye hain, Muslimon ko dikha diya dekho tumhare liye itna hi kota hai...Tum sahi me dhanya ho bandhu..
tum jaise sankare dimamag ke logo ye bhi nahi samajh nahi paate hain ki, yeh apeal Sadvav ki hai ...
Aaz mulaayam singh kahata hai ki ..Muslmaano ke masjid wahi banana chahiye...Kal ko Amar sing ne Rajya sabha me "Ya ali" ke naare lagaye the..Is rajnitikaran kisne kiya hai,Tum jaise logon ne hi kiya hai..
Tum itne adarshvadita pe likhte ho .jara imaandari se khud se poocho...Kya tum wahi sab nahi likhte jo tum dikhana chahte ho..Tumhe lagta hai ki tum public ka mood banate ho..ha...ha.
Musalammmano ko Bhed-bakari samjhana band karo...
Unke dukhon aur Vyathaon ki itni hi chinta hai to ...Dharm ka hawaala mat diya karo- Unko alag se pehchaan dene ke liye...Sarm karo apni dookan ke liye kisi bebas ka sahara le rahe ho...
Aur haan BJP kis dalil pe keh rahi hai ki Rastriya ekta ka punarnirman hoga- Tum jaise typed aur Narrow-minded ko samajh me nahi ataa---Patrakarita chod do , Jo itna bhi nahi samajh sakte...
Ek baat aur- Reddy mundaon aur soreno ke saath ham akhil bharat baat karte hain- Jahan hamari ki astha desh se apni janambhoomi se juri hai, Dharm to baad ki baat hai...Itne nimn star pe ja ke tumne ye bindu uthaya hai...Chi...
Aur haan Court ke decision se Dukh to tumhe jyada hain..ki koi masaledaar khabar nahi mil paayi---
Janta ki sahi me samajhdaari hai, ashanti nahi faili. Agar kissi ne dhanyawaad diya to tumhe kya hua..
Ye kyun nahi dikhyi diya ki karunaanidhi ne bhi dhanywaad diya apni janata ko..Bahuton ne dhanyawaad diya...
Lekin tum to sudhar nahi sakate ...Binaa matlab ka tum pattar uchaal rahe ho...
Ek salaah -- Thode din aaram le lo, Aur apne des ke baare me achhi tarah socho..hamne(Bharatvasiyon ) ne hamesha Sah- Astitva par jor diya hai..Isliye ki naye vichar Panap saken,Manav jaati aur fale badhe.Yehan Nastik bhi hain aur astik bhi-sabhi ka swagat hai.Hamne kabhi kisis desh pe aakrman nahi kiya..Lekin apni
sanskriti bhi nahi chhodi...Ye baat Musalmaano ko bhi pta hai..We bhi hamare hi bhai hain...Agar unhen sahi rasta nahi dikha sakte to kam se kam bhadkao to nahi hi...
किसने तुम्हे कहा की केवल मुस्लमान ही दुखी हैं , और अगर हैं भी तो किसने कहा की हमेशा से वही धर्मनिरपेक्षता का इम्तेहान देते आ रहे हैं .तुम्हें हिन्दू दुखी नहीं दिखाई देते ,उनका धर्मनिरपेक्ष रूप नहीं दिखाई देता की हमलोगों ने आज़ादी के बाद भी उन्हें गले लगाने में कोई नहीं हिचक नहीं दिखाई .
तुम जैसे लोग इस बात को क्यूँ नहीं उजागर करते की मुस्लिम भी हमारे ही पुरखे के बंधू- बांधव हैं इस देश में ..और राम मंदिर मुद्दा मंदिर से कहीं ज्यादा हमारी रास्ट्रीय अस्मिता और पहचान का है.हम सारे भारतीयों का है...
क्या हमने कोई सौगंध खा रखी हैहै की , जो दाग हमारे मस्तक पे दागे गए थे कभी, और जिनके निशान अभी भी जिन्दा हैं, उन्हें संजो के रखा जाये..मुसलमानों की दुःख और व्यथा बताने वाले ये क्यूँ नहीं बताते हैं की उस निर्माण की वजह कोई नया उपासना केंद्र बनाना नहीं बल्कि यह बताना था की उन बर्बर लोगों के लिए हमारे तंत्र कोई मायने रखते थे ..और उनका विध्वंस का उद्देश्य हमारी सांस्कृतिक विरासत को अघात पहुँचाना थी . अगर वो बर्बर इतना ही संयमी रहता तो मुझे नहीं लगता की उस जगह की प्रतिष्ठा से अनजान रहता...उसके अपने तरीके थे युद्ध जीतने के...वो जीता..उसने उसी जगह मस्जिद बना डाला..संदेह की तो यहाँ कोई गुन्जायिश ही नहीं है...लेकिन फिर भी तुम जैसे लोग मुसलिमों को हिन्दुओं डर दिखा के इस हिन्दू-मुस्लिम विश्वाश को पनपने नहीं देना चाहते हो...
BJP का ये कहना की मुस्लिम आगे आयें - उन्हें अपमानित करना या डराना नहीं है यह तो
सहयोग की अपील है . सहयोग के काई मायने होते हैं ...तुम ने अपने लेख में कुछ ही गिनाए हैं ...और मुसलिमों को बता दिया की देख लो तुम्हारे लिए बस इतना ही है ..तुम सही में धन्यवाद के पात्र हो बंधू ... की तुम को यह सद्वाव की छोटी सी अपील इतनी बुरी लगी ...इतनी संकीर्ण सोच के साथ पत्रकारिता करते हो ?
आज़ मुलायम सिंघ कहता है की " मुसलमानो के मस्जिद वही बनाना चाहिए " ..कल को कोई अमर सिंघ राज्य सभा मे नारे लगाता है " या अली " यह सब तुम्हारी नज़र मे मायने नही रखते हैं...और छोटी सी सद्वाव की अपील तुम्हे खटक जाती है...इस मुद्दे का राजनीतिकरण मे क्या तुम खुद शामिल नही हो ? तुम इतने आदर्शवादिता पर लिखते हो ...ज़रा ईमानदारी से खुद से पूछो...क्या तुम वही सब नही लिखते जो तुम दिखाना चाहते हो.. ..हा...हा....
मुसलमानो को भेड़-बकरी समझना बंद करो...
उनके दुखों और व्यथा की इतनी ही चिंता है तो ...धर्म का हवाला मत दिया करो- उनको अलग से पहचान देने के लिए...शर्म करो अपनी दूकान के लिए किसी बेबस का सहारा ले रहे हो...
और हा बीजेपी किस दलील पर कह रही है की रास्त्रीय एकता का पुनर्निर्माण होगा- तुम जैसे टाइप्ड और नॅरो -माइंडेड को समझ मे नही आएगी ---पत्रकारिता छोड़ दो , जो इतना भी नही समझ सकते...
एक बात और- रेड्डी, मुंडा और सोरेनो के साथ हम अखिल भारत बात करते हैं- जहाँ हमारी की आस्था देश से अपनी जन्मभूमि से है, धर्म तो बाद की बात है...इतने निम्न स्तर पर जा के तुमने ये बिंदु उठाए है....
और हां, कोर्ट के डिसीजन से दुख तो तुम्हे ज़्यादा हैं..की कोई मसालेदार खबर नही मिल पाई--जनता की सही मे समझदारी है, अशांति नही फैली. अगर किसी ने धन्यवाद दिया तो तुम्हे क्या हुआ..
ये क्यूँ नही दिखाई देता की करुणानिधि ने भी धन्यवाद दिया अपनी जनता को ....बहुतों ने धन्यवाद दिया...
लेकिन तुम तो सुधार नही सकते ...बिना मतलब का तुम पत्थर उछाल रहे हो.....
एक सलाह -- थोड़े दिन आराम ले लो, और अपने देश के बारे मे अच्छी तरह सोचो..हमने(भारतवासियों ) ने हमेशा सह- अस्तित्व पर ज़ोर दिया है..इसलिए की नये विचार पनप सकें,मानव जाति और फले बढ़े.......यहाँ नास्तिक भी हैं और आस्तिक भी-सभी का स्वागत है.हमने कभी किसी देश पेर आक्रमण नही किया..लेकिन अपनीसंस्कृति भी नही छोडी...ये बात मुसलमानो को भी पता है..वे भी हमारे ही भाई हैं...अगर उन्हें सही रास्ता नही दिखा सकते तो कम से कम भड़काव तो नही ही...
ravish ji, mere hisab se aapko judge suprem court ka judge bna dena chahiye kyoki aapke hisab se ye faisala facts pe aadharit na hokar, dharm or jaati pe adharit hai, aap jaise blogero ko koE bhi sedhi bat ghuma kar kahane ki aadat si pad gaE hai aap jaise log comment k Etane bhukhe ho jate hai ki kisi bhi chij ko til ka tad banate der nahi lagta hai. sayad aapko pata hoga ki high court ne Es mudde par lagbhag 10,000 page ki report diya hai, sayad aap jaise mahan log Ese Etani jaldi padh lene ka Ek record sa pes kiya hai Es jaha ek taraph rastriya neta Es mudde par bina report padhe kuchh kahane se bach rahe hai wahi dusari taraph aap mulayam singh ko bhi pichhe chhod diya....
kahi bhawishy me chunav ladne ka Erada to nahi hai.?.?.?.?.?
शाबाश रवीश बाबू, अबकी दिवाली बोनस तगड़ा मिलेगा............... लक्ष्मी गिनते हुए राम को भूल न जाना (अब तो लीगल भी हो गए).
रवीश बाबू, अधिकांश टिप्पणियों को पढ़ के समझ में तो आ ही गया होगा कि तुम, और जिनके तुम तलुए चाटकर पैसा कमाते हो वे तुम्हारे आका, कितने लीगल हैं? ऐ मीडियाई भांडों, बंद करो अपनी रुदालियां......आम जनमानस की नजर में तुम जैसे चमचे पत्रकारों और चैनलों का वजूद क्या है, इसका सर्वेक्षण कराके सच्चाई जान लो.
रवीश जी आपके ब्लॉग के बारे में सुन रखा था, आपनी हिंदुस्तान में ब्लोग्वार्ता पढता भी रहा हूँ लेकिन संयोग ही था कि क़स्बा पर नहीं आया था.. खैर.. "राम लीगल हो गए" पढ़ा हूँ और अपनी प्रतिक्रिया दे रहा हूँ.. यह देश अयोध्या फैसले के बाद इतना संयमित व्यवहार करेगा यह उम्मीद ना तो राजनीतिज्ञों को थी ना ही मीडिया को.. मीडिया ने तो देश में अघोषित दंगे सा माहौल बना रखा था.. सकरार भी मान कल चल रही थी कि दंगे तो होने ही होने हैं.. वरना.. प्रधानमंत्री जी और गृहमंत्री जी बार बार अपील नहीं करते.. बड़े बड़े विज्ञापन नहीं छापे जाते... इस से यह तो स्पस्ट हो जाता है कि देश की जनता परिपक्व हुई है. खास तौर पर जिस तरह मुलायम सिंह जी की आग लगाने की कोशिशों पर मुसलमानों ने पानी डाला है.. लेकिन ए़क बात और कहना चाहता हूँ कि किसी भी देश में आधुनिक क़ानून बनाने से पूर्व संस्कृतियों, कर्मकांडों, परम्परों और आस्थाओं की मौजूदगी रही है.. ऐसे में उन्हें ए़क सिरे से नहीं नाकारा जा सकता.. और शुक्र है कि अदालत ने इस बात को स्वीकार किया है... वरना किसी भी निरपेक्ष या सापेक्ष हिन्दू या मुसलमान को अदालत से ऐसे फैसले की उम्मीद नहीं थी... राम का लीगल होना आस्था को स्वीकार करना है.. इसी विषय पर मेरी ए़क कविता है अयोध्या जो फैसले से कुछ दिनों पहले लिखी थी.. कभी समय मिले तो पढियेगा... http://aruncroy.blogspot.com/2010/09/blog-post_23.html
disgusting!! Ravish kumar, it is your ignorance & arrogance to say that "राम अब लीगल हो गए हैं" let the issue of mandir masjid be aside. you have chosen this heading to show your loyalties towards a certain group & i dont care for that but you have hurt the feelings of people like me who bother neither for mandir nor for masjid. we worship Lord Ram in private & get solace in shlokas & chaupai of Ramayan. Dont try to associate Lord Ram with BJP, VHP, Cong or Commuists
"पूज्यनीय को पूज्य मानने में जो बाधा क्रम है
वही मनुज का अहंकार है वही मनुज का भ्रम है ! " -----दिनकर जी कौनो गलत थोड़े बोले हैं.
यहाँ पूर्वाग्रह है....अफ़सोस पहली बार आपसे सहमत होने को मन नहीं करता ..ये व्याख्या रवीश वादी हो गयी है...यहाँ हर किसी को खुद को धर्मनिरपेक्ष साबित करने की नौबत आ जाती है कभी कभी ...किसे मंदिर चाहिए ? किसे मस्जिद चाहिए..? मुझे तो नहीं पता ..लेकिन ये अच्छा हुआ कि सब पहचाने गए..न जीतनेवाला खुश न हारने वाला ....आस्था से फैसले नहीं लिए जाने चाहिए ..ठीक है ..लेकिन जरूर कुछ साक्ष्य भी रहे होंगे..लेकिन इससे भी अब किसी को क्या फर्क पड़ता है ..सिवाय चंद निठल्लों के..रहा सवाल धर्मनिरपेक्षता का ..इसकी भी कोई रवीश वादी व्याख्या कीजिये न सर..हमें यकीन है कि आपसे बेहतर कोई और नहीं कर सकता .... बहरहाल लफ़्ज़ों के नैन -नक्श तराशने में आपका कोई जवाब नहीं ..आपके अंदाज़े बयां की तरह आपके शब्द भी सुकून पहुंचाते हैं ..सोचता हूँ जब कभी आप इन्ही शब्दों के सहारे आग उगलने की ठान लें तो आग और पानी की जंग जबरदस्त होगी...
ravish sir, sirf post likhna hi apki jimmedari nhi hai.itne jyada logo ne apse sawal kiye hain inka jawab diye bina apka lekh adhura hai.plz reply kre . http://facebook.com/anoopdreams
रवीश जी लोगों के सवालों का जवाब दीजिए। चुप बैठने से काम नहीं चलेगा।
bahut achchha
bahut achchha
आपके लिखे हुए को पढने और उस पर आईं प्रतिक्रियाओं को देखने के बाद मैं आपकी मनोस्थिति को थोडा समझ सकता हूं। मुझे लगता है कि आपको नारद वाला अहंकार हो गया था। अकसर चापलूस टाइप के कमेंट की वजह से आप अपने हर लेख को ब्रहम वाक्य समझते गए । पर इसमें आपकी गलती ज्यादा नहीं है। लेख से साफ झलक रहा है कि आपका एनडीवीकरण हो चुका है। वो भी इतने अच्छे तरीके से कि आपको पता ही न चले। आपने इतने सारे अखबारों की हेड लाइंस गिनाईं, टीवी वालों की भी गिनाते तो अच्छा रहता। समझ में नहीं आता कि आप और आपका चैनल कहां से यह सोच लेकर आए हैं कि हिंदू की जितनी छीछालेदर करोगे, उतना धर्मनिरपेक्ष कहलाओगे। आप यह नहीं समझ पाते कि आप भी वही कर रहे हैं जिस कारण आप दूसरे को गरिया रहे हैं। अगर यह नजरिया सिर्फ आपके चैनल का रहा हो तो मैं समझ सकता था, लेकिन रवीश से यह उम्मीद नहीं थी।
Hinduism ne ye mauka hum logo ko diya hai ki hum Ram ya krishna ke bhi aasitivaa ko bhi nakkar sakte hai...Hum hindus ko baat baat pe mandir bana dene ki aadat hai lekin agar woh Bhagwan ram ki janambhumi pe koi mandir nahi bana rakhet the yaa rakhe hai, main ye nahi maaunga, khiar sayad ek maszid ki keemat hindu ke naayak Raam se adhik hoga ...Kaas aap kabhi Gyanwapi maszid pe bhi likhe jaha aaj bhi Gauri ka face maszid ki taraf hai naa ki vishnath mandir ki taraf...Umeed hai ki aap ke andar ka secular dukhi ho jaayega...Main ye nahi chahata hu ki ab waha pe maszid todd ke mandir bane lekin aap ka lekh padhne ke baad ab mujhe lagta hai ki sayad bhagwan shiv ko bhi court ki taraf se birth certificate milna chahiye...
kehne wale.. keh gaye !
jane wale.. chale gaye!
rachne wale.. rach gaye!
murde kya khak kahenge...
ki hum hindu... aur hum musalman... hai ???
vakai ak naveen drashtikon k saath pesh kiya hai aapne.
bilkul sahi kaha apne
...और एक तथाकथित राष्ट्रीय चैनल पर ब्रेकिंग भी चली...पहली ब्रेकिंग मुस्लिम वक्फ बोर्ड का मुकदमा खारिज...
राकेश पाठक जी जब हाईकोर्ट ने मुस्लिम वक्फ बोर्ड का मुकदमा खारिज कर दिया था तो क्या ब्रेकिंग न्यूज *राम लला का मुकदमा खारिज* चलती। रवीश जी आप बताएं
राम जी बहुत लफड़े वाले भगवान् है. जिन्दा थे तो हर किसी से लड़ते रहते थे. अब मरने के बाद लोग उनके लिए लड़ रहे है. फैसला आने के बाद हिन्दू लोग मन ही मन खुश है ऊपर से भले दिखा रहे हो कि क्या मंदिर यार.......................मुस्लिम लोग थोडा दिखी है जरुर लेकिन अभी एक लाइफ लाइन उनके लिए बची है.
raam chandra kah gaye siya se
gaur farmaiyega
raam chandra kah gaye siya se
"aisa kalyug ayega"
janma hua tha kahan hamara
bhai logon ye highcourt batayega.......!
bhai logon wah wah to karo...
itna tension kyun lete ho yaar....
dharm jeewan se bada nahi hota..
khao piyo arey kalmadi se inspiration lo...
रवीश जी तटस्थ सिर्फ इसलिए हैं कि वो हिेंदू होकर मुस्लिमों के पक्ष में बात करते हैं और इन्हीं के एक सहयोगी कमाल खान भी फैसले के बाद हिंदूओं के खिलाफ बोल रहे थे.ये भी साहब तटस्थ है.
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