मुझे अब डर नहीं लगता है
घेर कर मार दिये जाने से
देखते देखते कितने मर गए
अपनी ही आंखों के सामने
जानता हूं मार दिए जाने के बाद
आना जाना होगा कुछ नेताओं का
कुछ कहानियां मेरे बारे में छप जाएंगी
मुआवज़ों की राशि कोई बढ़ा जाएगा
मेरे दोस्तों को बहुत गुस्सा आएगा
आतंकवाद और राजनेताओं की करतूत पर
मैं आराम से पड़ा रहूंगा कहीं पर
किसी स्टेशन या किसी मॉल के बीचों बीच
ख़ून से लथपथ, आंखें बाहर निकलीं होंगी
पर्स में अपनों की तस्वीरों के नीचे
दोस्तों के पते मिलेंगे और सरकारी नोट
एटीएम की दो चार रसीदें होंगी और
साथ में थैला,जिसमें होगा वो खिलौना
जो मैंने खरीदे हैं अपनी बेटी के लिए
मोबाइल फोन में आया वो आखिरी एसएमएस
मेरे दोस्तों का, तुम कहां हो, जल्दी बताना
मेरी बीबी का मिस्ड कॉल
दो लोग उठा कर रख देंगे मुझे
स्ट्रेचर पर और अपडेट कर देंगे
मरने वालों की संख्या और सूची
भेजा जाऊंगा पोस्टमार्टम के लिए
कितनी लगीं गोलियां और कितने बजे
पता लगा लिया जाएगा ठीक ठीक
मैं रवीश कुमार,दिल्ली के एक मॉल में
घेर का मार दिया गया आतंकवादी हमले में
33 comments:
लाजवाब कर दिया आपने । आम आदमी के लिए आतंक्वाद की कडवी हकीकत यही है । दहशतगर्दी का ये जुमला तो नेताओं और श्रेष्ठि वर्ग में फ़ैसन परस्ती का बायस हो चला है ।
डर नहीं ही लगेगा रवीश जी. हम अभ्यस्त हो चले ऐसा कुछ घट जाने के लिए - 'दर्द का हद से गुजरना है दवा हो जाना '.
पर शायद इस अभ्यस्तता में, या इस तरह निडर हो जाने से हम एक संदेश दे सकें आतंकियों को कि तुम्हारा असली मंसूबा तो हमने ध्वस्त कर दिया है - निडर ही कर .
प्रभावकारी पोस्ट . धन्यवाद.
फिर चलेगी खबर
एनडीटीवी से लेकर इंडिया टीवी तक
वरिष्ठ पत्रकार रवीश नहीं रहे,
चढ़ गए बलि आतंकवाद की
बनेगा एक वृतचित्र
संस्मरण आपकी यादों का,
आपके ब्लॉग का होगा उल्लेख
और आपसे हुए संवादों का
कोई नहीं पूछेगा लेकिन
रवीश के बगल में आदर्श गिरा था
लेकिन वो तो संख्या में होगा शामिल
क्योंकि आम आदमी की मौत मरा था
आम आदमी की दो कौड़ी की
हस्ती की जान महान है,
लाशों का भी तो होता है वर्गीकरण
भूलकर ये कि सब इंसान हैं
लाजवाब रवीश जी, आम आदमी के दर्द को कोई नहीं समझता.
bahut marmik ravish ji :-(
सर, आपने अपनी कविता में एक आम आदमी के मन की बात उतार दी है। काफी अच्छी और शानदार अभिव्यक्ति है। अविनाश से आपके बारे में काफी कुछ सुना है। आपकी बाढ़ के समय रिपोरटिंग देखी थी। शानदार था।
फुंक चुकीं मोमबत्तियां
हो चुके प्रदर्शन
आ गए इस्तीफे
मिल चुकीं सरकारें
बढ़ चुकीं दरारें
इंटरनैशनल सहानुभूतियां भी आ गईं
चलो अब उठो
जिंदगी चलाते हैं
रोटी कमाते हैं
जांच-वांच होती रहेगी
हम अगली बार के लिए
हिम्मत जुटाते हैं
jabardust bhawanao ka sabd chitra ravish ji apko iske liye dher sari subh kamanayen.
रवीश जी
आपकी रचना पढ़ी, पास से गुजरती है
मुझे याद आती हैं वे पंक्तियाँ
सूख गयी संवेदना, मरी मनों की टीस
अब कोई रोता नहीं , एक मरे या बीस |
प्रशांत दुबे, भोपाल
www.atmadarpan.blogspot.com
dil ko chhoo jane wali marm saparshi aur haalat ke bhanwar me fanse aam aadmi ki peeda ko bakhan karti hai aapki kavita. badhai.
http://manzilaurmukam.blogspot.com/
लेकिन रवीश के मरने से कस्बा वीरान हो जाएगा....इसलिए हे रवीश तुम्हें कस्बे के सभी नागरिकों की कसम अभी मत मरना ....क्योंकि आतंकवादी हमले तो अभी और भी होते रहेंगे....मरने की अभी इतनी भी क्या जल्दी है....
पस्तहिम्मत न हो कर बैठो अभी से
और भी सख़्त है आगे रात यारो
आतंकवाद एक कड़वी हकीकत है और आपकी यह रचना उसे प्रमाणित करती है।
मुझे अभी मरने से लगता है बहुत डर
मेरे सपने अभी बहुत छोटे-अधूरे हैं
अभी दर्द है गम है,मातम है
अभी उम्मीदें,भरोसा,विश्वास हिला हुआ है,
अभी सच धूंधला है,दूर गहरा अंधेरा है
अभी आम आदमी जिंदगी से डरा है
अभी मॉल,बस,रेल में दहशत का बसेरा है
मुझे अभी मरने से लगता है बहुत डर
आंतक की हर गोली को शांत होते देखना है
मौत के हर बम को खाक में मिलते देखना है
वैहशत की हर आंधी को रूकते देखना है
मुझे असम,कश्मीर,मुंबई,दिल्ली में देखनी हैं..
बहुत सारी जगमगाती दीवाली,मीठी ईद,अरदास
मुझे अभी मरने से लगता है बहुत डर
अभी चिंता है,डर है,गुस्सा है,खौफ है
गोली है,बम है,आरडीएक्स है
मुझे देखना है बहुत सारे बच्चों को..
हंसते,खेलते,लड़ते,रोते,फिर हंसते
मुझे देखना है गांधी बनते दर्जनों नेताओं को
सैंकडों सच्चे टाटा,प्रेमीजी और नायारणमूर्ति को
मुझे देखनें कई धोनी,सचिन,सानिया,बिंद्रा,विजेंद्र
मुझे देखना है फूटपाथवालों को,अपने घऱ में सोते
मुझे भी देखना है अपने बेटे को बड़े होते
मुझे अभी मरने से लगता है बहुत डर
आखिर कब तक ऐसा होगा?
वतन को आतंक की ललकार,
आखिर कब तक झुकेगी सरकार।
कब तक लहू वीरों का,
धरती रंगता रह जाएगा।
मासूमों का खून कब तक,
यूं ही बहता रह जाएगा।
क्या बेबस और लाचार जनता
अब और खौफ झेल पाएगी।
गूंजती रहेगी आवाज यूं ही,
लोगों के चीत्कार की।
बढ़ती रहेगी फौज और भी,
पीड़ित, बेबस और लाचार की।
क्या नाकामी नेताओं की
यू हीं बढ़ती रह जाएगी।
और संख्या धमाकों की,
यूं ही बढ़ती रह जाएगी।
देश के दुश्मनों का हौसला
यूं ही बढ़ता रह जाएगा।
और पौरूष जनता का
यूं ही सोता रह जाएगा?
अमर आनंद
http://manzilaurmukam.blogspot.com/
wah, really kya khoob likha, Ravish ji. Lekin jab tak hum darte hain hame dar lagega, parantu agar hum nahin darenge, to dar nahin lagega, Ab dekhiye, Mumbai main phir chaloo ho gaya, aam jeevan, Please mera blog dekhiye www.voiceofkanpur.blogspot.com Atankwad se nipatne ka ek formula.
kuchh kahane ko nahi rah jaat ye bhav padhane ke baad
कविता रेत में तडपती मछली के समान है जो सागर की तलहटी को छूने के लिये बेताब हो..मन की उद्दात भवनाओं ने इस संवेदनशील विषय पर आखिर अपने दिल की बातों को जुबां पर ले ही आयी । बहुत सुन्दर और सहज रचना है ।
Khak ho jayegi janta netaon ko khabar hone tak .Ravish ji jis tarah khosla ka ghosla mai anupam kher nai apni mout {death} ke baad ka manzar filmayaa thaa aapne bhi aatankwad ki bhayavataa ,netaon ki akarmanyataa aur janta ki bechaargi ko kalam di hai uske liye saadhuvaad.
kya fark padta hi ravis sir. jindagi phir patri par jyage. aam admi pardashan karange, mombatiyan jalayenge,kavi kavya likhenge,aur hum padhenge.bhul jayenge. par ye neta hai hamere desh ki,salaaaaaaaaaam desh ke en honhaaaaaar RAJNETON ko.
good evening sir i m from raxaul i wish to talk to u would u like to give me ur tel no ?however my mo no is 9471477755 n name is chandra prakash i wish to serve my life for the deprived children can u help me ?
http://dilsemohit.blogspot.com/
aap sab sadar amantrit hai...
शायद हर रोज़ बढ रहे आतंकी हमले अब लोगों को नहीं हिलाते। अगर मीडिया ना हो तो हमारे नेता सारा देश बेच दें।बेईमानी की हद हो गयी है। बेशर्मी की सीमा पार कर चुके हैं हमारे नेताजी, गल्ती हमारी भी है कि हम इन सापों को दूध पिलाते हैं।
भाई रवीस, पत्रकार बने कवि, अच्छी बात है, बस थोडा एंकरिंग पर भी ध्यान दीजिये...
Adarneeya Raveeshji
Apkee kavita Gher Kar Mar Diye Jane Ke Bad...men pichhle dinon jo kuchh hua..uska vastvik rekhankan hai.Darasl aj har vyakti kee lagbhad ek jaisee manah sthiti hai.Kaun.. kab..kahan... kaise ..?
Kuchh pata naheen.
Lekin is manah sthiti se to hamen nikalna hee hoga.Hamen ek bar punarvichar karna hoga apne suraksha prabandhon par.
Baharhal apne apnee kavita men ek am admee ke bhaya Aur dard ko bakhoobee chitrit kiya hai.Hardik badhai.
Hemant Kumar
आदमी आकडा ही हो गया है और क्या?
Jeev vaigyanik ka man-na hai ki jeev ki utpatti sagar ke khare pani se hui. Sagar mein aj bhi jitne prani hain un sab ke vishaya mein shodh adhura hi hai...
Teenon lok, yani Prithvi, Akash aur Pataal ('underground') per dikhne wale prani sab sagar-jal se hi arambh hue. Aur Hindu Yogiyon ke anusar prithvi per jal Chandrama se aya. Is prakar Chaand ko sab jeevon ki janani kaha ja sakta hai - jeevanu se manav tak sabhi prithvi per pardesi aur kuchh samay ke hi liye...
Aryans ki talwar kanse ki thi jabki videshi lohe ki talwar le ker aye aur saralta se vijayi hue... Aaj desi police ke hath mein lathi aur atanki ke haath mein AK 47/ 56 dekh kya kuchh badla dikhta hai? Aur gyaniyon ke anusar satya wohi hai jo samay se achhota hai...
पर रवीश भाई, क्या डर का यूं ही चला जाना हमारी मजबूरी नहीं? डरने से हो भी क्या जाएगा...कहते तो हम यही है न कि आतंकी हमला या कुछ और मुंबई रूकती नहीं- दिलवालों की दिल्ली थमती नहीं...पर वो लोग जो इस तरह के हमलों में अपनों को गंवा बैठते हैं उनसे पूछना चाहिए क्या ये सिर्फ कहने भर की बातें हैं या सच्चाई,क्योंकि मुंबई का ना रूकना और दिल्ली का ना थमना हमारी अपनी ही मजबूरी है...तो अच्छा ही है कि जितनी जल्दी ये डर निकल जाए कि कहीं मैं मार ना दिया जाऊं...
रविशजी, आतंकवाद के ख़िलाफ़ एक बहुत ही सुंदर हथियार है आपकी कविता. आपको साधुवाद!
Aur fir ek aur RAVISHKUMAR janm lega janta ke liye SACHCHI ghatnaon ki RIPORT lekar!!!!!!!!!!!!!
Airport par 4/5 ki raat ko chali thi goli
Yadi 4/5 ki raat ko Main Airport hota
Main Bhi chhupta kisi pillar ke peechhe
Ya kisi counter ke neeche
Nazaron mein 26/11 aa gaya hota
Ya haath uthakar main fidayeen ke samne khara ho jaata
Kyunki “Zaahid-e-tang nazar ne mujhe kaafir jana,
Aur kaafir ye samajhta hai musalman hoon main”
Lekin main sarkaari aadmi aur ek Hindustani musalman
karta rahunga sarkari kaam
Aur apne samaj aur colleagues ko
deta rahunga unke anthak sawaalon ke jawab
Lekin main us raat tha apne janak ke paas
jo hospital mein daakhil the
theek hone ke intizar mein, phir….
Main mobile par deta raha khairiyat
apne khairkhwahon ko
dear ravish kumar
i am regularly reading your blog in hindustan hindi and i am very much impressed with your kind and warm thoughts. i am getting inspiration from your blog and i have started recently my regular blog i.e. http://kotharisairam.blogspot.com pls do visit to me .and give your most valuable suggestions. i will be highly obliged to you. thanking you . regards. divyesh kothari ( delhi ) 17th dec 2008
aaj aam aadmi ki yahi aukat rah gayi hai. aap to phir bhi aam aadmi nahin hain lekin aam aadmi ka dard bayan kar diya aapne.
bahut sanvedansheel aur gambhir rachna hai.
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