मेरा ग़रीब तेरा ग़रीब

राहुल की रैलियाँ मोदी की तुलना में कम होती होंगी मगर उनके भाषणों की संख्या तो और भी कम है । मोदी पाँच जगहों पर पाँच बातें बोलते हैं लेकिन राहुल पाँच जगहों पर एक ही बात । बात सिर्फ मोदी के भाषणों के विवादास्पद तत्वों की नहीं है बात है भाषणों को सुनने की उत्सुकता की । इस लिहाज़ से राहुल गांधी का भाषण नीरस सा लगने लगा है । पता है क्या बोलेंगे । मोदी को बारे में लगता है कि देखें अब क्या बोल रहे हैं । दोहराने का ख़तरा तो मोदी में भी है लेकिन मोदी ने अपने कपड़ों से भी दूसरी रैली के लिए नया कर लेते हैं । उनके भाषणों के साथ मंच पर मोदी के पहने कपड़ों की तस्वीर एक जगह रखेंगे तो पायेंगे कि एक ही आदमी के कितने रुप हैं । 

राजनीति में नेता आमतौर पर एक ही प्रकार के कपड़े पहनते हैं । राहुल,अखिलेश,लालू,रमन सिंह, नीतीश । शिवराज रंगीन कुर्ता पहनते हैं मगर कुर्ते की वेरायटी उनकी पहचान का हिस्सा नहीं है । रैली का चलन कमज़ोर होता जा रहा है । रैली में लोग कैसे आते है हम यह भी जानते हैं लेकिन इसके बाद भी मोदी ने अपनी रैलियों में रोचकता पैदा करने का प्रयास किया है । आप इसमें साज सज्जा की भव्यता, नाटकीयता, शाह ख़र्चीला और ऊब भी जोड़ सकते हैं । लेकिन इन सबसे अलग भाषण की विविधता यहाँ चर्चा के केंद्र में है । मोदी और राहुल दो दुनिया से बातें कर रहे हैं । राहुल के भाषणों की दुनिया में ग़रीब ही ग़रीब है । मोदी के भाषण का की दुनिया ग़रीब वे ख़ुद हैं । राहुल कहते हैं बीजेपी अमीरों की पार्टी है । उनकी चिन्ता करती है । मोदी उनके इस दावे को खुद चाय वाला बता कर चुनौती देते हैं । तीन बार मुख्यमंत्री रहने वाला शख़्स आख़िर क्यों पहली बार( शायद) खुद को चाय वाला बता रहा है । ये मोदी की काट है । मीडिया या लोगों को राहुल के भाषणों में भले कम दिलचस्पी हो मगर मोदी की है । चाय वाला अमीरों की पार्टी का नेता है तो एक खाते पीते परिवार वाला खुद को ग़रीबों का नेता बता रहा है । सच में तो दोनों में से कोई ग़रीब नहीं है । ख़ैर । 

राहुल जिस ग़रीब को ढूँढ रहे हैं वो अब गाँवों में नहीं रहता । मैं एक प्रक्रिया के तहत बात रख रहा हूँ । राहुल गांधी का ग़रीब अब वो ग़रीब नहीं है जो इंदिरा के समय था । मैं सिब्बल टाइप भी बात नहीं कर रहा कि ग़रीब दो सब्ज़ी खाते हैं । हालाँकि खानपान में सकारात्मक बदलाव आया है पर ये सिब्बल की विश्वसनीयता की कमी है कि सही बात भी पलट जाती है । मैं कहना चाहता हूँ कि शहरीकरण का विस्तार और प्रसार हुआ है । आप इस बात को ऐसे मत देखिये कि कितने शहर बने हैं । यह भी एक दिलचस्प है कि शहरों या शहरी क्षेत्रों की संख्या कोई चार हज़ार से बढ़कर आठ हज़ार हो गई है । मैं यह कहना चाहता हूँ कि शहरी क्षेत्र का विस्तार गाँव गाँव तक में हुआ है । गाँव में रहने वाला भी अब ग्रामीण नहीं है । गाँवों की भी बड़ी आबादी खानपान से लेकर परिवार के सदस्यों की तमाम शहरों में आवाजाही के कारण शहरी हो गई है । आप इन्हें ' ग्रामीण अर्ध शहरी' कह सकते हैं । अभी तक क़स्बों या गाँवों के शहर में बदलने को अर्ध शहरी क्षेत्र या 'रूर्बन' कहा जाता रहा है मगर आबादी की बदलती जगहों और आदतों से भी शहरीकरण फैला है । जो मज़दूर पुणे या दिल्ली में काम करता है और गाँव जाता है वो पुणे में शहरी है और उसका परिवार गाँव में अर्ध शहरी । हर गाँव में कम से कम दस शहर रहता है । दस शहरों में उस गाँव के लोग रहते हैं । हिन्दुस्तान यहाँ बदला है । ग़रीब ग़ायब नहीं हुए हैं लेकिन ग़रीबी कम तो हुई ही है । मोदी इस आबादी को टारगेट कर रहे हैं । हमारे यहाँ का अमीर भी अपने घर को ग़रीबख़ाना कहता है । सबकी पहचान में ग़रीबी आती है । अतीत से या वर्तमान को कम कर बताने के लिए । यह वही अर्ध शहरी आबादी है जिसमें जात पात कमज़ोर हुआ है । मोदी इनके नेता हैं । 

इसीलिए कहा कि राहुल का ग़रीब मोदी के ग़रीब  से अलग है । मोदी ने उस ग़रीब को चाय वाला बता कर पहचान दी है । चाय की दुकान वाला हर जात का होता है । वही चौक चौराहा है । राहुल अमूर्त ग़रीब को संबोधित कर रहे हैं । मोदी मूर्त को । यह चुनाव अमीर हो चुके मध्यमवर्गीय हिन्दुस्तान का है । सत्तर के दशक के ग़रीब हिन्दुस्तान का नहीं । ग्रामीण क्षेत्रों में शहरी मानसिकता का प्रसार राहुल को नहीं दिखता जिसका श्रेय वे आसानी से ले सकते थे मगर जैसा कि मैंने पहले लेख ( गाँव से लौटकर) में लिखा है उनके पास इसकी दावेदारी का नज़रिया और विश्वसनीयता नहीं है । इसलिए राहुल के भाषण संदर्भ से बाहर लगते हैं । यह चुनाव उस शहरी हिन्दुस्तान का है जो गाँव से लेकर महानगरों में कई रुपों में रहता है । जिसका एक वतन सोशल मीडिया भी है । मोदी ने इस तबके को रटा रटा कर अपनी ओर खींचने का प्रयास किया है कि देश गया गुज़रा है । कुछ करना है । हर खाते पीते को ग़रीब कहलाना भी ठीक लगता है !  राहुल उस तबके में खुद को तलाश रहे हैं जो ग़रीब तो है मगर ग़रीब की पहचान का केंचुल अपने जीवन स्तर में धीरे धीरे आ रहे बदलाव के कारण उतार रहा है । राजनीति हवा में नहीं बदलती है । हमारे नेता भी कम समाजशास्त्री नहीँ होते । इसलिए राहुल जी भाषण पर मेहनत कीजिये । कुछ होगा तब तो दुनिया बात करेगी । हाँ इतिहास गड़बड़ मत कर दीजियेगा लेकिन आप तो वर्तमान ही नहीं समझ रहे ।

32 comments:

Suchak said...

sir basic difference yaha se aata hai

Rahul kee speech ke input 1 -2 place se hi aate hai , khud kuch sochate hai aur kuch unke guide se

aur Modi ke case me input bahut hote hai , unki puri team subjects kee scrutney karati hai of best topic choose karate hai

Modi bhi aapki tarah bahut home work karate hai speech ke liye

Unknown said...

Bahut Khub Sir..Sir Kindly do a Prime Time programme regarding sting operation of AAP so that we all can get the real picture.

HOSHIARPUR said...

rahul gandhi congress party ka BHASMASUR HAI.JO KHUD BHI DOOBEGA AUR PARTY KO BHI LE DOOBEGA

Unknown said...

रविश जी इस विडम्बना की तरफ भी ध्यान दीजिये. पिछले १० वर्षों में जिस कॉर्पोरेट पूंजीवाद को कांग्रेस ने मजबूती से स्थापित किया वही इससे उत्पन्न सामाजिक बदलाव को नहीं समझ रही. जहाँ असमानताओं को सामाजिक स्वीकृति मिलती दिख रही, वहीँ राहुल गाँधी जैसा अपरिपक्व नेता अमूर्त में बात करता है.मोदी या उनके रणनीतिकार उस नब्ज पर ऊँगली रखते हैं जो पिछले एक दशक में बदला है.

nimeshchandra said...

narendrabhai is son of garib chai bechne vala & rahul is son of ex pilot- ex pm

शोभना चौरे said...

रवीशजी

बहुत बढ़िया आकलन ७० के दशक कि गरीबी और आज कि गरीबी का ।

आज मै आपको इसका ताज उदाहरण बताती हूँ करीब एक माह बाद हमरा धोबी कपडे लेने और देने आया प्रेस के ,और इस ऐरिये में उसने अपना एकाधिकार जमा रखा जिसके चलते हमे काफी परेशानी उठानी पड़ती है वो अलग बात है | मैंने उससे पूछा ?कर लिया प्रचार ?

उसने कहा -हाँ पर मैं जिसका प्रचार कर रहा था उन्हें वोट नहीं दूंगा मैं वोट दूंगा उसे जिसने मेरे घर के सामने से सड़क बनाई और जिसपर आज अपनी मोटरसायकिल पर कपडे रखकर लाया हूँ | प्रचार के तो मुझे और मेरे १५ दोस्तों को पचीस हजार रूपये मिले है | और आंटी अब आप भी जल्दी से दीवाली का इनाम निकल दो। ....

Unknown said...

your dissection of the poor and poverty is interesting!The appropriation of poor masses and poverty has been the trademark of Congress since a long time. So, In my opinion there has not been any serious effort by government to eradicate poverty from our country. Times have changed, so does the definition of poverty. But still government's definition of poverty has not changed. Urbanisation has increased in the whole country but the value of rupee has fallen so greatly that there is gloom everywhere. So, the quality of life has deteriorated over the period of time.
Who should stake claim of support of this mass of poors. The ones who kept them poor for so long or the ones who claims to have done it for his state n hopes to do it for the whole country.
Having said that I must say that things are not as black and white as you say or I say...
Rahul is a young man (pun intended) and Modi is a poor man aiming for the top job! Its not only the lackluster speech but also Congress fatigue of this country that expresses itself in his rallies.

चौधरी प्रशान्त चाहल said...

"मोदी और राहुल दो दुनिया से बातें कर रहे हैं । राहुल के भाषणों की दुनिया में ग़रीब ही ग़रीब है । मोदी के भाषण का की दुनिया ग़रीब वे ख़ुद हैं ।"

शानदार अवलोकन। सपाट शब्द। खुशी हुई पढ़कर।

Unknown said...

mann moh liya aapne sir ...

Unknown said...




Today at 2:18 PM






आज के भ्रष्ट्राचार से इलेक्ट्रोनिक मीडिया भी अछुता नहीं है, आपने भले ही आज जनसंचार में PH.D क्यों न कर रखी हो लेकिन आज का इलेक्ट्रोनिक मीडिया तो उसी फ्रेशर को नौकरी देता है जिसने जनसंचार में डिप्लोमा इनके द्वारा चालए जा रहे संस्थानों से कर रखा हो .. ऐसे में आप जनसंचार में PH.D करके भले ही कितने रेजिउम इनके ऑफिस में जमा कर दीजिये लेकिन आपका जमा रेजिउम तो इनके द्वारा कूड़ेदान में ही जायेगा क्यों की आपने इनके संस्थान से जनसंचार में डिप्लोमा जो नहीं किया है ..आखिर मीडिया क्यों दे बाहर वालों को नौकरी ? क्योंकि इन्हें तो आपनी जनसंचार की दुकान खोल कर पैसा जो कमाना है .आज यही कारण है की देश के इलेक्ट्रोनिक मीडिया में योग्य पत्रकारों की कमी है. देश में कोई इलेक्ट्रोनिक मीडिया का संगठन पत्रकारों की भर्ती करने के लिए किसी परीक्षा तक का आयोजन भी नहीं करता जैसा की देश में अन्य नामी-गिरामी मल्टी नेशनल कंपनियाँ अपने कर्मचारियों की भर्ती के लिए परीक्षा का आयोजन करती है. यह महाबेशर्म इलेक्ट्रोनिक मीडिया तो सिर्फ अपनी पत्रकारिता संस्थान की दुकान चलाने के लिए ही लाखों की फीस लेकर सिर्फ पत्रकारिता के डिप्लोमा कोर्स के लिए ही परीक्षा का आयोजन कर रहा है. आज यही कारण है कि सिर्फ चेहरा देकर ही ऐसी-ऐसी महिला न्यूज़ रीडर बैठा दी जाती है जिन्हें हमारे देश के उपराष्ट्रपति के बारे में यह तक नहीं मालूम होता की उस पद के लिए देश में चुनाव कैसे होता है? आज इलेक्ट्रोनिक मीडिया के गिरते हुए स्तर पर प्रेस कौसिल ऑफ़ इंडिया के अध्यक्ष भी काफी कुछ कह चुके है लेकिन ये इलेक्ट्रोनिक मीडिया की सुधरने का नाम ही नहीं लेता

Unknown said...

….इलेक्ट्रोनिक मीडिया तो पैसों से खेलने वाला वो बिगड़ा बच्चा बन चुका है जो पैसों के लिए कुछ भी कर सकता है. इतना ही नहीं खुद को देश के लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहने बाले इस महाबेशर्म इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए नियम-कायदे उस समय बदल जाते है जब यह खुद गलती करता है. अगर देश का कोई भी मंत्री भ्रष्ट्राचार में लिप्त पाया जाता है तो ये चीख-चीख कर उसके इस्तीफे की मांग करता है लेकिन जब किसी इलेक्ट्रोनिक मीडिया का कोई पत्रकार भ्रष्ट्राचार में लिप्त पाया जाता है तो ना तो वह अपनी न्यूज़ एंकरिंग से इस्तीफा देता है और बड़ी बेशर्मी से खुद न्यूज़ रिपोर्टिंग में दूसरो के लिए नैतिकता की दुहाई देता रहता है. कमाल की बात तो यह है की जब कोई देश का पत्रकार भ्रष्ट्राचार में लिप्त पाया जाता है तो उस न्यूज़ की रिपोर्टिंग भी बहुत कम मीडिया संगठन ही अपनी न्यूज़ में दिखाते है, क्या ये न्यूज़ की पारदर्शिता से अन्याय नहीं? हाल में ही जिंदल कम्पनी से १०० करोड़ की घूसखोरी कांड में दिल्ली पुलिस ने जी मीडिया के मालिक सहित इस संगठन के सम्पादक सुधीर चौधरी और समीर आहलूवालिया के खिलाफ आई.पी.सी. की धारा ३८४, १२०बी, ५११, ४२०, २०१ के तहत कोर्ट में कानूनी कार्रवाई का आग्रह किया है. इतना ही नहीं इन बेशर्म दोषी संपादको ने तिहाड़ जेल से जमानत पर छूटने के बाद सबूतों को मिटाने का भी भरपूर प्रयास किया है. गौरतलब है की कोर्ट किसी भी मुजरिम को दोष सिद्ध हो जाने तक उसको जीवनयापिका से नहीं रोकता है लेकिन एक बड़ा सवाल ये भी है की जो पैमाना हमारे मुजरिम राजनेताओं पर लागू होता है तो क्या वो पैमाना इन मुजरिम संपादकों पर लागू नहीं होता? क्या मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ नहीं है ? क्या किसी मीडिया संगठन के सम्पादक की समाज के प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं बनती है? अगर कोई संपादक खुद शक के दायरे में है तो वो एंकरिंग करके खुले आम नैतिकता की न्यूज़ समाज को कैसे पेश कर सकता है? आज इसी घूसखोरी का परिणाम है कि इलेक्ट्रोनिक मीडिया का एक-एक संपादक करोड़ो में सैलरी पाता है. आखिर कोई मीडिया संगठन कैसे एक सम्पादक को कैसे करोड़ो में सैलरी दे देता है ? जब कोई मीडिया संगठन किसी एक सम्पादक को करोड़ो की सैलरी देता होगा तो सोचिये वो संगठन अपने पूरे स्टाफ को कितना रुपया बाँटता होगा? इतना पैसा किसी इलेक्ट्रोनिक मीडिया संगठन के पास सिर्फ विज्ञापन की कमाई से तो नहीं आता होगा यह बात तो पक्की है.. तो फिर कहाँ से आता है इतना पैसा इन इलेक्ट्रोनिक मीडिया संगठनो के पास? आज कल एक नई बात और निकल कर सामने आ रही है कि कुछ मीडिया संगठन युवा महिलाओं को नौकरी देने के नाम पर उनका यौन शोषण कर रहे है. अगर इन मीडिया संगठनों की एस.आई.टी. जाँच या सी.बी.आई. जाँच हो जाये तो सुब दूध का दूध पानी का पानी हो जायेगा.. इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में आज जो गोरखधंधा चल रहा है उसको सामने लाने का मेरा एक छोटा सा प्रयास था. मैं आशा करता हूँ कि मेरे इस लेख को पड़ने के बाद स्वयंसेवी संगठन, एनजीओ और बुद्धिजीवी लोग मेरी बात को आगे बढ़ाएंगे और महाबेशर्म इलेट्रोनिक मीडिया को आहिंसात्मक तरीकों से सुधार कर एक विशुद्ध राष्ट्र बनाने में योगदान देंगे ताकि हमारा इलेक्ट्रोनिक मीडिया विश्व के लिए एक उदहारण बन सके क्यों की अब तक हमारी सरकार इस बेशर्म मीडिया को सुधारने में नाकामयाब रही है. इसके साथ ही देश में इलेक्ट्रोनिक मीडिया के खिलाफ किसी भी जांच के लिए न्यूज़ ब्राडकास्टिंग संगठन मौजूद है लेकिन आज तक इस संगठन ने ऐसा कोई निर्णय इलेक्ट्रोनिक मीडिया के खिलाफ नहीं लिया जो देश में न्यूज़ की सुर्खियाँ बनता. इस संगठन की कार्यशैली से तो यही मालूम पड़ता है कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में तमाम घपलों के बाद भी ये संगठन जानभूझ कर चुप्पी रखना चाहता है.
धन्यवाद.
राहुल वैश्य ( रैंक अवार्ड विजेता),
एम. ए. जनसंचार
एवम
भारतीय सिविल सेवा के लिए प्रयासरत
फेसबुक पर मुझे शामिल करे- vaishr_rahul@yahoo.com और Rahul Vaish Moradabad

अटल said...

Yes ...this is reality ...

sushant jha said...

बढ़िया विश्लेषण। कुछ ऐसा कि मन में तो उमड़-घुमड़ रहा था लेकिन सही शब्द नहीं मिल रहे थे।

Mahendra Singh said...

Ravishji gareebi ka vishneshan bahoot arthpoorna hai. Mere company me chalne walee sarry vehicle ke driver ke pass 2-2 mobiles hai. Maine pucha aise kyun to bataya ek asli kam ke liye hai doosre per film aur gaane sunta/dekhta hoon.Suchak patel sahib ke comments bilkul sahi hai. yeh Rahul vaish ji ka kya chakkar hai?

news said...

sahi hai sir

Pankaj said...

कुछ लोग हर जगह अपनी चमकाने में ही लगे रहते है, अब इनकी देखिये एक तो उबाऊ पकाऊ लम्बा चौड़ा लिखे है और निचे अपनी शान में कशीदे काढ़ रहे है !!!
राहुल वैश्य ( रैंक अवार्ड विजेता),
एम. ए. जनसंचार
एवम
भारतीय सिविल सेवा के लिए प्रयासरत
और ( शादी के लिए भी प्रयासरत )

ASHISH said...

बहुत ही सटीक विश्लेषण रवीश जी ,
कल 22.11.13 को मोदी की एक जनसभा इंदौर में प्रत्यक्ष देख के, लोगो को बाते करते सुन के मैंने भी ऐसा ही कुछ महसूस किया !

Unknown said...

Sir it is fantastic but i also request the same as manish requested in it please do humlog for AAP Sting operation and moral responsiblity of media. Except that the wealth earned by media persons @@@@!!!!!

I know u understand aapse hi sikha hai apke programs ko dekh ke !!!

ritu said...

अब गाॅव तो गाॅव बनकर रहना नही चाहते उन्हे जल्दी से जल्दी शहर बनना है या लोगों को शहर चले जाना है।राहुल अबभी गोबर,धुनियाॅ,भतेलु को सम्बोधित कर रहे है जबकि ये सब शहर के मजदूर बन चुके हैं जिन्हे मोदी मे एक देहाती शहरी बना हुअा,बेबाकी से विकास के सपने दिखा रहा है

Anonymous said...

"आप इन्हें 'ग्रामीण अर्ध शहरी' कह सकते हैं ।"
ये बात आपने बिलकुल सही कही| मैंने भी अब काफी टाइम से pure गाँव नहीं देखा|

nptHeer said...

सही कहा आप ने-
दोनों नेता शहरी ग्रामीण भारत को संबोधन कर रहें है।

एक उसको व्यख्यान्वित कर चूका है और सफल सञ्चालन भी=modi = RURBEN concept

जबकि दूसरा या तो शहरी या ग्रामीण ऐसी स्पष्ट भेद्रेखा खिंच के मानसिक वर्गीकरण के हिसाब से पूर्वजों के vison की याद दीलाके उसके vision के लिए मौका चाहता है

बाकी सब क्षितिज रेखा पर अपने दिखने के लिए दौड़ रहे है:)

क्या चुनें? यह voter को सोचना है

मुझे यह पढ़ रही थी तब एक अलग ही विचार आ रहा था...
नेपाल का....वहां माओ पकड़ ढीली हुई है...
जब की ओबामा केयर जैसे साम्यवादी vision लगता है...
SL briten को मानवता सिख रहा है:)
ऑस्ट्रेलिया और अफ्रीका की स्थिति भी तो क्रमशः हीम्शीला और दावानल जैसी ही तो है!
अगर कुछ नहीं बदलता तो वह हमारे पड़ोस मैं:)शत्रु के यहाँ

और विदेश नीति जो इस राजनीति का इस प्रधान्पद के दावे का अहम मुद्दा है उसमें दोनों की पर्क्ष है क्या?:)जो दोनों मैं से कोई नहीं कहता!

और अपने संजोग के हिसाब से चद्दर तान लेना मोदी की महारथ है-वें flexible हैफिर भी समय से आगे सोचते है जब की रहूल्गंधी forign copy पेस्ट की तरफदारी करते है

जो सभीशहरी ग्रामीण सब समझते है
बस दोनों corporates और साम्यवाद/nxal/etc से कैसे बचायेंगे उनकी नीतिओं को इसका उल्लेक नहीं कर रहे है

अजब नहीं ललगता?




पढ़

common man said...

ravish ap bhi badal rahe ho...dheery dheery aki kisi ko pata na chaley....

Amrita Tanmay said...

बढ़िया विश्लेषण..

Narayan Vats said...

राहुल अमूर्त ग़रीब को संबोधित कर रहे हैं । मोदी मूर्त को ।|||

thoughts at its comprehensive best :) :)
nicely observed sir :)

kahi padha aapke lekh me ki aap "ji"
aur "sir" se ubb gaye hai..but sir..
i tried hard but couldnt find that word which could fulfill my feeling of respect but "sir" is smthng which is soothing n perefect..

Once a fan..always a fan..

Narayan vats..

Narayan Vats said...

राहुल अमूर्त ग़रीब को संबोधित कर रहे हैं । मोदी मूर्त को ।|||

thoughts at its comprehensive best :) :)
nicely observed sir :)

kahi padha aapke lekh me ki aap "ji"
aur "sir" se ubb gaye hai..but sir..
i tried hard but couldnt find that word which could fulfill my feeling of respect but "sir" is smthng which is soothing n perefect..

Once a fan..always a fan..

Narayan vats..

Rajat Jaggi said...

राहुल जी आपने बहुत खूब लिखा है |

मीडिया के हाथ कानून से भी लम्बे हो चुके है जो किसी भी आम से ख़ास बना देते है | कोई भी न्यूज़ चैनल लगाओ तोह लगता है कि पृथ्वी पे सिर्फ भारत ही बचा है और भारत में मोदी , राहुल कि तू तू में में और बलात्कारों के इलावा कुछ होता ही नहीं है |

ASHRAF ALAM said...
This comment has been removed by the author.
ASHRAF ALAM said...
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ASHRAF ALAM said...

मेरा करीबी चाय वाला है वो कम से कम महीने का ३०००० हज़ार कमा ही लेता है..........और रही भासन तो बात बनाना है तो लिमिट कैसा

Unknown said...

रविशजी आपकी व्यक्तिगत पृष्ठभूमि का मुझे पता नहीं है किन्तु एक बात तो बिलकुल स्पष्ट है की आपकी व्यक्तिगत राय कोंग्रेस के समर्थन में होती है
आपके इस निष्पक्ष पोस्ट पर मै आश्चर्य में हूँ

GR said...

Ravish Ji...Aap bahut hi achha likhte ho...aapka fan ho gaya hun...Gyan

GR said...

Ravish Ji...Aap bahut hi achha likhte ho...aapka fan ho gaya hun...Gyan