अजीब दास्ताँ है ये

मुबारक तुम्हीं के तुम 
किसी के नूर हो गए 
किसी के इतने पास हो 
कि सबसे दूर हो गए 
अजीब दास्ताँ है ये 
कहाँ शुरू कहाँ ख़त्म 
ये मंज़िलें हैं कौन सी
न वो समझ सके न हम 
किसी प्यार लेके तुम 
नया जहाँ बसाओगे 
ये शाम जब भी आएगी 
तुम हमको याद आओगे 
अजीब दास्ताँ है ये
कहाँ शुरू कहाँ ख़त्म 
( - सुनता चला गया , लिखता चला गया फिर नींद आ गई ) 

10 comments:

sachin said...

ये मंज़िलें हैं कौन सी न वो समझ सके न हम …
--तुम भी खो गए, हम भी खो गए
एक राह पर चलके दो क़दम

दो गीत एक जज़्बात। दो दिल, एक हालात

Unknown said...

महाबेशर्म इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए नियम-कायदे उस समय बदल जाते है जब यह खुद गलती करता है. अगर देश का कोई भी मंत्री भ्रष्ट्राचार में लिप्त पाया जाता है तो ये चीख-चीख कर उसके इस्तीफे की मांग करता है लेकिन जब किसी इलेक्ट्रोनिक मीडिया का कोई पत्रकार भ्रष्ट्राचार में लिप्त पाया जाता है तो ना तो वह अपनी न्यूज़ एंकरिंग से इस्तीफा देता है और बड़ी बेशर्मी से खुद न्यूज़ रिपोर्टिंग में दूसरो के लिए नैतिकता की दुहाई देता रहता है. कमाल की बात तो यह है की जब कोई देश का पत्रकार भ्रष्ट्राचार में लिप्त पाया जाता है तो उस न्यूज़ रिपोर्टिंग भी बहुत कम मीडिया संगठन ही अपनी न्यूज़ में दिखाते है, क्या ये न्यूज़ की पारदर्शिता से अन्याय नहीं? हाल में ही जिंदल कम्पनी से १०० करोड़ की घूसखोरी कांड में दिल्ली पुलिस ने जी मीडिया के मालिक सहित इस संगठन के सम्पादक सुधीर चौधरी और समीर आहलूवालिया के खिलाफ आई.पी.सी. की धारा ३८४, १२०बी,५११,४२०,२०१ के तहत कोर्ट में कानूनी कार्रवाई का आग्रह किया है. इतना ही नहीं इन बेशर्म दोषी संपादको ने तिहाड़ जेल से जमानत पर छूटने के बाद सबूतों को मिटाने का भी भरपूर प्रयास किया है. गौरतलब है की कोर्ट किसी भी मुजरिम को दोष सिद्ध हो जाने तक उसको जीवनयापिका से नहीं रोकता है लेकिन एक बड़ा सवाल ये भी है की जो पैमाना हमारे मुजरिम राजनेताओं पर लागू होता है तो क्या वो पैमाना इन मुजरिम संपादकों पर लागू नहीं होता? क्या मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ नहीं है ? क्या किसी मीडिया संगठन के सम्पादक की समाज के प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं बनती है? अगर कोई संपादक खुद शक के दायरे में है तो वो एंकरिंग करके खुले आम नैतिकता की न्यूज़ समाज को कैसे पेश कर सकता है? आज इसी घूसखोरी का परिणाम है कि इलेक्ट्रोनिक मीडिया का एक-एक संपादक करोड़ो में सैलरी पाता है. आखिर कोई मीडिया संगठन कैसे एक सम्पादक को कैसे करोड़ो में सैलरी दे देता है ? जब कोई मीडिया संगठन किसी एक सम्पादक को करोड़ो की सैलरी देता होगा तो सोचिये वो संगठन अपने पूरे स्टाफ को कितना रुपया बाँटता होगा? इतना पैसा किसी इलेक्ट्रोनिक मीडिया संगठन के पास सिर्फ विज्ञापन की कमाई से तो नहीं आता होगा यह बात तो पक्की है.. तो फिर कहाँ से आता है इतना पैसा इन इलेक्ट्रोनिक मीडिया संगठनो के पास? आज कल एक नई बात और निकल कर सामने आ रही है कि कुछ मीडिया संगठन युवा महिलाओं को नौकरी देने के नाम पर उनका यौन शोषण कर रहे है. अगर इन मीडिया संगठनों की एस.ई.टी. जाँच या सी.बी.आई. जाँच हो जाये तो सुब दूध का दूध पानी का पानी हो जायेगा.. इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में आज जो गोरखधंधा चल रहा है उसको सामने लाने का मेरा एक छोटा सा प्रयास था. में आशा करता हूँ कि मेरे इस लेख को पड़ने के बाद स्वयंसेवी संगठन, एनजीओ और बुद्धिजीवी लोग मेरी बात को आगे बढ़ाएंगे और महाबेशर्म इलेट्रोनिक मीडिया को आहिंसात्मक तरीकों से सुधार कर एक विशुद्ध राष्ट्र बनाने में योगदान देंगे ताकि हमारा इलेक्ट्रोनिक मीडिया विश्व के लिए एक उदहारण बन सके क्यों की अब तक हमारी सरकार इस बेशर्म मीडिया को सुधारने में नाकामयाब रही है. इसके साथ ही देश में इलेक्ट्रोनिक मीडिया के खिलाफ किसी भी जांच के लिए न्यूज़ ब्राडकास्टिंग संगठन मौजूद है लेकिन आज तक इस संगठन ने ऐसा कोई निर्णय इलेक्ट्रोनिक मीडिया के खिलाफ नहीं लिया जो देश में न्यूज़ की सुर्खियाँ बनता. इस संगठन की कार्यशैली से तो यही मालूम पड़ता है कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में तमाम घपलों के बाद भी ये संगठन जानभूझ कर चुप्पी रखना चाहता है.
धन्यवाद.
राहुल वैश्य ( रैंक अवार्ड विजेता),
एम. ए. जनसंचार
एवम
भारतीय सिविल सेवा के लिए प्रयासरत
फेसबुक पर मुझे शामिल करे- vaishr_rahul@yahoo.com

nptHeer said...

mood में sadness है या साद होने का मूड :)
क्या हैन कुछ लोग खुश हो उठते है तो भी सोचते है-अरे!मैं खुश कैसे हूँ? (वैसे दुनिया ऐसे जिंदादिल लोगों से ही जिवंत है :) otherwise.... नरकतुल्य? )

S. M. Rana said...

Nikalna khuld se aadam ka sunte aaye hain lekin
Bahut be-aabroo ho kar tere kuche se hum nikle

प्रवीण पाण्डेय said...

एक अलग ही विश्व में ले जाते हैं, इसके बोल

sure376 said...

Khali pili mujhko tokne ka nahi tere dogy ko mujh par bhokne ka nai main tere agal bagal hu tu mere agal bagal hai..... Bharat ki rajniti ka goodh rahasya...

sure376 said...

Khali pili mujhko tokne ka nahi tere dogy ko mujh par bhokne ka nai main tere agal bagal hu tu mere agal bagal hai..... Bharat ki rajniti ka goodh rahasya...

sure376 said...
This comment has been removed by the author.
Aanchal said...

ये रौशनी के साथ क्यूँ
धुंआ उठा चिराग से
ये ख्वाब देखती हूँ मैं
के जग पड़ी हूँ ख्वाब से
अजीब दास्ताँ है ये...

SeemaSingh said...

Khoobsurat gana mena kumari khud bhi bauth acha likhti thi unohnay antim samay mai apni dayri gulzar sahab ko di thi