और कितने सरदार

आदरणीय सरदार वल्लभ भाई पटेल जी,

मैं यह पत्र आपको और आपके ज़रिये दूसरों को भी लिख रहा हूँ । समस्या यह है कि आप कौन है, आप क्या क्या हैं और आप कैसे कैसे दिखते हैं । मुझे दुख है कि आपको देखने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ । पहले पहल आपको स्कूल की दीवारों पर देखा था । स्कूल में पढ़ ही रहा था कि गांधी फिल्म आ गई । पहली बार जीवंत रूप से गांधी नेहरू और आपको चलते फिरते देख रहा था । सईद जाफरी साहब सरदार बने थे । उनके कारण आपकी सख्ती और सौम्यता दोनों की छवि मेरे दिमाग में बनी । बाद में इतिहास का विद्यार्थी हुआ तो खेड़ा किसान सत्याग्रह में आपकी शानदार भूमिका के बारे में पढ़ा । रजवाड़ों को मिला कर भारत संघ को साकार करने में आपकी भूमिका से प्रभावित हुआ । किन्हीं अज्ञात कारणों से मैं इस चिन्ता से मुक्त हो गया कि आप दिखते कैसे थे । बाद में सरदार फिल्म आई जिसमें परेश रावल ने आपकी सख्ती को नाटकीयता के स्तर पर पहुंचा दिया । फिर भी परेश रावल वाले सरदार पटेल की छाप ज़हन में रही जो बड़ी बड़ी आँखों से घूरते रहते थे । 

पर जब से आप इतिहास से जुड़े मसले पर न्यूज़ चैनलों में आने लगे हैं मैं इस चिंता में डूबा जा रहा हूँ कि अगर आप किसी रूप में मिल गए तो मैं अपने इष्ट को पहचानूँगा कैसे । ये बात इसलिए कह रहा हूँ कि आप की तस्वीर, सईद जाफ़री और परेश रावल तक तो ठीक थी लेकिन अब हर दूसरे टीवी एपिसोड में कब कौन सरदार बन जाता है पता नहीं रहता । जो भी थोड़ा बूढ़ा होता है, जिसके सर के बीच में बाल नहीं होते वो सरदार पटेल बन जा रहा है । टीवी पर रोज़ाना आने वाले इन अनगिनत पटेलों को लेकर मैं असुरक्षित महसूस करने लगा हूँ । एक चैनल के सरदार पटेल दूसरे चैनल के सरदार पटेल से अलग दिखते हैं । दोनों एक ही टाइम में लाइव आ रहे होते हैं । मैं क्या करूँ आप ही बता दीजिये । इन चैनलों की वजह से मुझे हर तंदरूस्त और बिना वालों वाला शख़्स सरदार पटेल दिखने लगा है । 

यही कंफ्यूजन आज की राजनीति में आपके इस्तमाल को लेकर होने लगी है । अचानक से आपको गांधी और नेहरू के ख़िलाफ़ गढ़ा जाने लगा है । एक ऐसे बाग़ी और सख़्त उप प्रधानमंत्री के रूप में जिसके जीवन का कोई दूसरा पक्ष ही नहीं है । वो सिर्फ रजवाड़ों को मिलाता है और नेहरू से अलग राय रखता है । जो कभी हंसता नहीं है । जिसका कोई जीवन नहीं है । शायद यह सब किसी लौह पुरुष की कल्पना के कारण हुआ है या नेहरू नेहरू की ऊब से । मुझे यकीन है कि आपने आर एस एस के बारे में जो लिखित रूप में कहा है वो मोदी जी आपकी विशालकाय प्रतिमा के पास ज़रूर लगवायेंगे । ये इस आधार पर कह रहा हूँ कि संघ की आलोचना के बाद भी संघ या बीजेपी के लोग आपसे नाराज़ नहीं हुए । वे आपको आदर्श पुरुष हमेशा मानते रहे हैं । 

नरेंद्र मोदी आपकी मूर्ति अमरीका की स्टैच्यू आफ़ लिबर्टी से भी ऊँची बनाने वाले हैं । हर गाँव से लोहा मँगवा कर । आज कल किसी नेता के भाषण में आपका ज़िक्र नहीं होता है तो वे नाराज़ हो जाते हैं । आप तो आजीवन अनुशासित कांग्रेसी रहे लेकिन कुछ दिनों से ऐसा लग रहा है कि बीजेपी असहयोग आंदोलन के पहले बनी थी और आप उसके पहले अध्यक्ष थे । बीजेपी को पूरा हक़ है कि आज़ादी के किसी नायक को अपना नायक चुन ले क्योंकि असलियत में ये जो कांग्रेस है वो आज़ादी की लड़ाई वाली कांग्रेस नहीं है । ये तो कई बार टूटती हुई आज किसी और शक्ल में है । इंदिरा कांग्रेस, तिवारी कांग्रेस पता नहीं क्या क्या । आप कांग्रेस के नहीं देश के नेता है । हर कमज़ोर क्षणों में आपको ही याद किया जाता है ।  लेकिन लौह पुरुष की मूर्ति लोहे की ही क्यों बने मालूम नहीं । 

नरेंद्र मोदी को एक श्रेय दूँगा कि वे आपकी लौह पुरुष की छवि में एक और छवि जोड़ रहे हैं । किसान नेता की । खेड़ा सत्याग्रह ने ही आपको किसान नेता के रूप में ख्याति दिलाई थी । लेकिन जब पहली बार लालू से अलग हुए नीतीश की पटना रैली में आपकी तस्वीर एक कुर्मी नेता के रूप में देखा तो और कंफ्यूज़ हो गया था । कई कुर्मी महासभाओं में आपकी तस्वीर देखता हूं तो हैरानी होती है । अब लोग कह रहे हैं कि मोदी जी पटेल का नाम इसलिए ले रहे हैं क्योंकि उनकी नज़र पिछड़े वोट बैंक पर है । पिछड़े वोट बैंक में किसान नेता की छवि चलेगी और बिहार यूपी में कुर्मी नेता के रूप में जिससे नीतीश को चुनौती मिलेगी कि उनकी जाति के सबसे बड़े नेता की मूर्ति मोदी बनवा रहे हैं । वैसे शायद गुजरात को पटेल और बिहार के पटेल अलग होते हैं । 

कहने का मतलब है कि आपका बहुत इस्तमाल हो रहा है । सिनेमा वाले किसी को पटेल बना दे रहे हैं तो टीवी वाले जाने किस किस को और राजनीति वाले तो पूछिये ही मत । इसलिए सोचा कि यह पत्र लिख कर दिल का बोझ हल्का कर लूँ । यह समस्या आपको ही लेकर नहीं है । खुद जवाहर और रौशन सेठ के बाद इतने जवाहर बन गए हैं कि अब नेहरू का रोल करने के लिए कोई कलाकार नहीं बचा है । गांधी और जिन्ना को लेकर भी दृष्टि भरम का शिकार हो रहा हूँ । प्लीज़ बचा लीजिये । 


आपका अनुयायी 
रवीश कुमार 'एंकर'

10 comments:

sachin said...

मेरे ख्याल में, सरदार पटेल को "लोह-पुरुष" (ये कौन से किस्म का पुरुष होता है, आपको पता चले तो प्लीज बताइएगा) के रूप में वैसे ही ढाला जा रहा है, जैसे ९० के दशक में गली की दीवारों से लेकर घरों के कैलेंडरों तक, तीर-धनुष लिए राम की उग्र तस्वीर बनाई गई थी। कांग्रेसियों को एक लोह मानव अपने हाथों से जाता देख, तुरंत एक हिंदुस्तानी "आयरन लेडी" की घोषणा कर दी। सिम्बल्स राजनीती के लिए ज़रूरी हैं। पर नेताओं के बीच, चंद पुराने जन-नेताओं को लेकर ऐसी मारा-मारी हास्यास्पद लगती है। नेहरु, गाँधी , पटेल, आदि देश के लिए लड़ गए। अब आज के नेता इन्हें, मरणोपरांत, आपस में ही लड़ा रहे हैं।

Arvind said...

ha ha ha. . .

Suchak said...

अगर किसी को उदार दिल होने की छबि बनाने की राजनीती करनी हो तो उन्हें वल्लभभाई का नहीं परन्तु उनके बड़े भाई विथ्थलभई की छबि साथ लेना चाहिए

rajeshmeena said...

भाजपा को पूरा हक हैँ कि वो आजादी के नायकोँ मेँ से किसी को अपनाये लेकिन समान विचारधारा आवश्यक हैँ। विरोधी विचारधारा के नायकोँ को अपनाना तर्कसंगत नही हैँ। उधार के नायकोँ के सहारे जंग नही जीती जाती, हर समाज और विचारधारा को अपने नायक खुद ही गढने पडते हैँ।

rajeshmeena said...

भाजपा को पूरा हक हैँ कि वो आजादी के नायकोँ मेँ से किसी को अपनाये लेकिन समान विचारधारा आवश्यक हैँ। विरोधी विचारधारा के नायकोँ को अपनाना तर्कसंगत नही हैँ। उधार के नायकोँ के सहारे जंग नही जीती जाती, हर समाज और विचारधारा को अपने नायक खुद ही गढने पडते हैँ।

tech said...

:)
Koi rang roop chal dhal se,
gandhi patel sa lagta hai,
Tum chahe kitni murat banalo,
koi karm kaha waisa karta hai,

wo(mr ravish) ek asha tha andhiyare mein,
wo ek asha tha andhiyare mein,
jo baat pate ki karta tha,
baat baat mein hi suna k jata tha!!!!!!!

Dedicated to you Mr.Ravish kumar

tech said...

:)
Koi rang roop chal dhal se,
gandhi patel sa lagta hai,
Tum chahe kitni murat banalo,
koi karm kaha waisa karta hai,

wo(mr ravish) ek asha tha andhiyare mein,
wo ek asha tha andhiyare mein,
jo baat pate ki karta tha,
baat baat mein sach suna k jata tha!!!!!!!

Dedicated to you Mr.Ravish kumar

nptHeer said...

सूर्य वंश भले ही हो-सूर्य एक ही रहता है :)

वैसे ही 1 गाँधीजी--1नेहरू--1इंदिरा--1वाजपई--1मोदी--

वैसे एक बात है 'एंकर' भी 1 ही उपलब्ध होते है

हाँ दर्शक Kg Kg में और पाठक gm मैं :)

Unknown said...

bahoot khub;;;;;;

प्रवीण पाण्डेय said...

लौह कहाँ से लायेंगे सब..