पाखंड विज्ञान की गोद में पलते ही विश्वसनीय हो जाता है। राज पिछले जनम का और ये भविष्य जाननेवाला सैनबोर्ड इसी फार्मूले पर विकसित होता है। इसे अगर आप सात दिनों में गोरापन,आठ दिनों में स्लिम और हेल्थ ड्रिंक से शेर जैसी ताकत हासिल करनेवाले विज्ञापन के जरिए समझने की कोशिस करें तो अंदाजा लग जाएगा कि इन विज्ञापनों का कस्बाई स्तर पर कितना विस्तार हुआ है।..
जिस प्रकार मेरे बाबूजी अपने जीवन के अंतिम पडाव में मेरे साथ रहे '८५-'८६ में, तब वो टीवी के हर प्रोग्राम देखते थे - और देखने के बाद कहते थे "वाहियाद!"...वैसे ही भविष्यवाणी (मौसम की भी, समाचार पत्र/ टीवी में जैसे - जो अधिकतर गलत ही होती हैं) सुनने या पढने या देखने में हर कोई दिलचस्पी रखते हैं...यदि वो सत्य साबित हो जाये तो उनका विश्वाश अटूट हो जाता है किसी न किसी विधा पर, भले उसका कुछ भी नाम रहा हो, 'हस्तरेखा विज्ञान', 'अस्त्रोलोजी' या 'शस्त्रोलोजी' आदि, आदि...उस विश्वास को बनाये रखने के लिए कृष्ण के मामा कंस द्वारा सुनी गयी भविष्यवाणी की कहानी एक बड़ा रोल अदा करती है...
दिल्ली में अंग्रेजी का 'लिंटेल' मिस्त्री लोग 'लंटर' उच्चारते हैं...एक कहावत है, "जो घोष लिखता है / उसे बोस सही समझता है."...
रविश जी, हिंदी में तो नहीं मगर जहाँ तक बिहारी बोलचाल कि भाषा का सवाल है आपसे एक त्रुटी हो गयी। सर्कुलेशन या सरकुलेशन नहीं सर्कुलेसन या सरकुलेसन होना चाहिए। :):)
हर व्यक्ति को भारत में ही हजारों भाषाएँ सुनने को मिलती हैं, जिसमें से कुछ ही, देसी या विदेशी, उसकी समझ में आती हैं: कुछ अच्छी तरह तो कोई कुछ कुछ-शब्द ही...
जिसने मुझे आश्चर्यचकित किया वो था शब्द 'ओँ' जिसका अर्थ भूटान में, भारत के पहाड़ी प्रदेशों, कुमाओं में, और आसाम में भी 'हाँ' ही होता है!
भाषा कभी- कभी अनर्थ भी कर देती है...जैसे मजाक में दर्शाया जाता है यदा-कदा एक पंजाबी और एक दक्षिण भारतीय के माध्यम से:
चेन्नई पहुंचे सज्जन से किसी लोकल ने पूछा, "तमिल तेरिमा?" (यानि तमिल भाषा जानते हो?)
(क्यूंकि पंजाबी अधिकतर गरम खून वाला होता है उसको समझ आया कि वो उसे कोई 'माँ' की गाली दे रहा है)
namaskar sir . welcome back. news@10 mein suna apko uske baad wali report bhi dekhi(ahirwal ji).chalo sir aaap jaise log hi kuch uddhaar kra de ganga maiya aur hindu dharma ka. sc/st wale panda ji ki report achchi lagi,lekin jitani aapne dikhayi us-se saaf saaf laga ki woh bhi ek dukan hi chala rahe hai aur unke nihit swarth unki bato se prakat ho rahe hai.
प्रभात दीक्षित जी... तो क्या समाज के सारे अच्चे कामों की जिम्मेदारी गरीबों के कंधे पर ही हैं क्या... क्या ये कम नहीं है कि उस कुलीन पंडित ने कम से कम एससी, एसटी से दान तो लिया... वो भी अपनी ही बिरादरी के लोगों के द्वारा खुद के दमन के बावजूद... उसे थोड़े ही पता था कि एक दिन उसका यजमान भी आरक्षण की औजार से अमीर और सामर्थवान हो जाएगा... जाति के जंगल में कोई तो निकला जिसने हिम्मत दिखाई... रिपोर्ट दिखाने के लिए रवीश बाबू का शुक्रिया...
shabhu ji achcha laga mere comment par apka comment.ab mujhe bhi thoda sa lagta hai ki meri bato par bhi log dhyan de lete hai kyunki mein to apne aap ko murkha hi manta hoo.hindi madhyam se to PG tak ki shiksha payi hai lekin ek visay ke roop mein hindi kewal 1999 tak rahi aur uske baad commerce ka student raha "pita ji" ki ichcha se, isliye mera ye manna hai ki mujhe achcha likhna nahi aata.ab yahi dekh lijiye aap baat mujhe apse karni hai lekin comment ravish ji ke blog par de raha hoo kyunki yeh hi nahi pata ki hindi mein comment likhte kaie hai aur apko seedhe comment karte kaise hai.naya naya hoo sir blog par abhi jaise taise accont to bana liya lekin use karna nahi aata. ravish ji ki report se koi shikayat nahi hai,lekin panda ji ka bhagat mein abhi bhi nahi hoo.unmein kya gadbad laga ye mein apko jarur bataunga jara blog likhna sikh lene dijiye.
16 comments:
अजब गजब यह दुनिया...
सर्कुलेशन nahi सर्क्युलेशन sir...matra ki truti kardi aapne :)
regards
http://allthecrap.wordpress.com
बिल्कुल नहीं की। अंग्रेजी के हिसाब से हर शब्द क्यों लिखें जायें। भोजपुरी हिन्दी में ये या तो सरकुलेशन है या सर्कुलेशन
पाखंड विज्ञान की गोद में पलते ही विश्वसनीय हो जाता है। राज पिछले जनम का और ये भविष्य जाननेवाला सैनबोर्ड इसी फार्मूले पर विकसित होता है। इसे अगर आप सात दिनों में गोरापन,आठ दिनों में स्लिम और हेल्थ ड्रिंक से शेर जैसी ताकत हासिल करनेवाले विज्ञापन के जरिए समझने की कोशिस करें तो अंदाजा लग जाएगा कि इन विज्ञापनों का कस्बाई स्तर पर कितना विस्तार हुआ है।..
भविष्य देखने की इतनी प्राचीन विधाओं के बाद भी जब भविष्यवाणी करने में दिक्कत आ रही हो .. क्या एक और नई विधा पर विश्वास किया जा सकता है ??
जिस प्रकार मेरे बाबूजी अपने जीवन के अंतिम पडाव में मेरे साथ रहे '८५-'८६ में, तब वो टीवी के हर प्रोग्राम देखते थे - और देखने के बाद कहते थे "वाहियाद!"...वैसे ही भविष्यवाणी (मौसम की भी, समाचार पत्र/ टीवी में जैसे - जो अधिकतर गलत ही होती हैं) सुनने या पढने या देखने में हर कोई दिलचस्पी रखते हैं...यदि वो सत्य साबित हो जाये तो उनका विश्वाश अटूट हो जाता है किसी न किसी विधा पर, भले उसका कुछ भी नाम रहा हो, 'हस्तरेखा विज्ञान', 'अस्त्रोलोजी' या 'शस्त्रोलोजी' आदि, आदि...उस विश्वास को बनाये रखने के लिए कृष्ण के मामा कंस द्वारा सुनी गयी भविष्यवाणी की कहानी एक बड़ा रोल अदा करती है...
दिल्ली में अंग्रेजी का 'लिंटेल' मिस्त्री लोग 'लंटर' उच्चारते हैं...एक कहावत है, "जो घोष लिखता है / उसे बोस सही समझता है."...
रविश जी, हिंदी में तो नहीं मगर जहाँ तक बिहारी बोलचाल कि भाषा का सवाल है आपसे एक त्रुटी हो गयी। सर्कुलेशन या सरकुलेशन नहीं सर्कुलेसन या सरकुलेसन होना चाहिए। :):)
Ravish bhaiya yaha aise v log hai jo sharminda hai k wo kaha se hai? Aapme ye sahas sufal hone k baad aaya hai?
हर व्यक्ति को भारत में ही हजारों भाषाएँ सुनने को मिलती हैं, जिसमें से कुछ ही, देसी या विदेशी, उसकी समझ में आती हैं: कुछ अच्छी तरह तो कोई कुछ कुछ-शब्द ही...
जिसने मुझे आश्चर्यचकित किया वो था शब्द 'ओँ' जिसका अर्थ भूटान में, भारत के पहाड़ी प्रदेशों, कुमाओं में, और आसाम में भी 'हाँ' ही होता है!
भाषा कभी- कभी अनर्थ भी कर देती है...जैसे मजाक में दर्शाया जाता है यदा-कदा एक पंजाबी और एक दक्षिण भारतीय के माध्यम से:
चेन्नई पहुंचे सज्जन से किसी लोकल ने पूछा, "तमिल तेरिमा?" (यानि तमिल भाषा जानते हो?)
(क्यूंकि पंजाबी अधिकतर गरम खून वाला होता है उसको समझ आया कि वो उसे कोई 'माँ' की गाली दे रहा है)
उसने तपाक से उत्तर दिया, "पंजाबी तेरा बाप."...;)
अब समझा कि क्यों कहते है कि विज्ञान ने बहुत तरक्की कर ली है
विज्ञान की तरक्की तो वो थी जब व्यक्ति एक स्थान से दूसरे स्थान पलक झपकते ही पहुँच जाता था, इत्यादि, जैसे "न लूण (नून) लगे न फिटकिरी/ फिर भी रंग चोखा!"
namaskar sir . welcome back. news@10 mein suna apko uske baad wali report bhi dekhi(ahirwal ji).chalo sir aaap jaise log hi kuch uddhaar kra de ganga maiya aur hindu dharma ka. sc/st wale panda ji ki report achchi lagi,lekin jitani aapne dikhayi us-se saaf saaf laga ki woh bhi ek dukan hi chala rahe hai aur unke nihit swarth unki bato se prakat ho rahe hai.
प्रभात दीक्षित जी... तो क्या समाज के सारे अच्चे कामों की जिम्मेदारी गरीबों के कंधे पर ही हैं क्या... क्या ये कम नहीं है कि उस कुलीन पंडित ने कम से कम एससी, एसटी से दान तो लिया... वो भी अपनी ही बिरादरी के लोगों के द्वारा खुद के दमन के बावजूद... उसे थोड़े ही पता था कि एक दिन उसका यजमान भी आरक्षण की औजार से अमीर और सामर्थवान हो जाएगा... जाति के जंगल में कोई तो निकला जिसने हिम्मत दिखाई... रिपोर्ट दिखाने के लिए रवीश बाबू का शुक्रिया...
Ravishji zyaadar logon ka to "Khoon" "Paani" ho chuka hain unka "future" ye saheb kaise bataiyenge...????
shabhu ji achcha laga mere comment par apka comment.ab mujhe bhi thoda sa lagta hai ki meri bato par bhi log dhyan de lete hai kyunki mein to apne aap ko murkha hi manta hoo.hindi madhyam se to PG tak ki shiksha payi hai lekin ek visay ke roop mein hindi kewal 1999 tak rahi aur uske baad commerce ka student raha "pita ji" ki ichcha se, isliye mera ye manna hai ki mujhe achcha likhna nahi aata.ab yahi dekh lijiye aap baat mujhe apse karni hai lekin comment ravish ji ke blog par de raha hoo kyunki yeh hi nahi pata ki hindi mein comment likhte kaie hai aur apko seedhe comment karte kaise hai.naya naya hoo sir blog par abhi jaise taise accont to bana liya lekin use karna nahi aata.
ravish ji ki report se koi shikayat nahi hai,lekin panda ji ka bhagat mein abhi bhi nahi hoo.unmein kya gadbad laga ye mein apko jarur bataunga jara blog likhna sikh lene dijiye.
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