क्या आप बिहारियों को भी अच्छा लग रहा है?

बिहार से अच्छी ख़बर आने का मतलब आप समझते हैं। हम सब वहां से भागे प्रवासी नागरिक आज कल खुश तो होंगे ही कि बिहार तरक्की कर रहा है। अपने राज्य को लेकर इतना सकारात्मक और सतर्क भाव कभी नहीं आया। पिछले तीन चार सालों में जितनी बार पटना गया,लोगों को डरा हुआ नहीं पाया। उससे पहले घरों और चौराहों की आम बातचीत में भय और विवशता झलकती थी। नीतीश ने यही दूर कर दिया,काफी है। मेरा भी यही मानना है कि बिहार को सिर्फ अच्छी सड़क, बिजली और कानून व्यवस्था चाहिए। कानून व्यवस्था का संबंध कार्य संस्कृति से है। यह खराब होती है तो व्यक्तिगत प्रयासों पर असर पड़ता है।

अपरहरण के टाइम में लोग इतने हताश हो चुके थे कि अपनी दुकान बंद कर दिल्ली बंबई की तरफ रूख करने लगे थे। गांव गया तो पहली बार जम कर घूम रहा था। यह किसी आज़ादी से कम नहीं थी। पहले कब कौन सी गाड़ी रूक जाए और बोलेरो से कोई तिवारी पांडे का भाई बंदूक लिये उतर आता था। हालचाल ऐसे पूछता था मानो अब गोली भी मारेगा। पिछले साल गांव गया था तो इस संस्कृति के अवशेष तो नज़र आए मगर इमारत ढह चुकी थी। बिहार के नेताओं और लोगों ने खतम व्यवस्था के साये में अपराधीकरण का सामाजिकरण कर दिया था। आम संपन्न लोग भी अपराधी रिश्तेदारों को नाम गर्व से लेते थे। अब काफी बदल गया है।


बिहार के ११ फीसदी से अधिक की विकास दर ने साबित कर दिया है कि बिहार की प्रगति बड़े उद्योगों से नहीं होनी है। बिहार की उपजाऊ ज़मीन और पानी की अधिकता उसे बिना उद्योगों के ही तरक्की के रास्ते पर ले जाएगी। कृषि और कृषि आधारित व्यावसाय का जितना विकास होगा,आम बिहारियों की भागीदारी उतनी बढ़ेगी। पलायन रूकेगा और लोगों की कमाई का शेयर बढ़ेगा। इस तरक्की से भले ही कोई शहर खूबसूरत न लगे लेकिन आम घरों में लोग सूकून में नज़र आयेंगे।


एक पहचान के रूप में बिहारी होने का मतलब कई सारे नकारात्मक तत्वों का सार होना है। यह जब भी बदलता है, जितना भी बदलता है अच्छा लगता है। महाराष्ट्र से धकियाये जाने की इतनी दलीलों के बाद भी बिहार के लोगों में क्षेत्रीयता नहीं पनपी। वो इस संकीर्णता से बचे रहे तभी बिहारी होना अच्छा रहेगा। कई लोग हैं जो बिहार की तरक्की की खबर को आशंकाओं से भी देख रहे हैं। उनकी आशंकाएं वाजिब है। इन्हीं आशंकाओं से जब आशा की किरण निकलती है तो बेहतर लगता है।


बिहार के प्रवासी लोग अपने अपने शहरों में राज्य की छवि को लेकर काफी चिंतित रहते हैं। ये उनकी किसी भी कामयाब पहचान को प्रभावित करता है। अगर आप यू ट्यूब देखेंगे तो उसमें पटना शहर को लेकर कितने तरह के वीडियो हैं। विदेशों में बसे लोग पटना की चंद इमारतों को खूबसूरत लगने वाले एंगल से शूट कर उन्हें अंग्रेजी गाने के साथ परोस रहे हैं। दावा करते हैं कि देखो, ये है पटना। किसी की मत सुनो,अपनी आंखों से देख लो। और बिस्कोमान का एफिल टावर नुमा शाट घूमने लगता है। कोने में पड़ा कृष्ण मेमोरियल वीडियो में बुर्ज दुबई की तरह दिखने लगता है। वीडियो अपलोड करने वाला कहता है,देखा पटना गांव नहीं हैं। बिहार को लेकर नई किस्म की इस उत्कंठा पर और नज़र डालनी चाहिए। दिवाली के दिन मैंने अपने इसी ब्लॉग पर वीडियो में बसता एक शहर लिखा था। जिसमें पटना को लेकर बिहारी अभिलाषाओं की झलक मिलती है।


सतह पर भले ही बदलाव कंक्रीट रूप में न दिखे लेकिन इतना तो है कि समझ और सोच में दिखने लगा है। राजनीति होती रहेगी। नीतीश क्या हैं और लालू क्या हैं। लेकिन नीतीश ने कुछ तो किया। शून्य से एक राज्य को यहां तक पहुंचा दिया है। कमियां होंगी तो उनकी आलोचना करते रहिए ताकि नीतीश काम करते रहें। तारीफ करने लायक बात हो तो जम कर कीजिए। बिहार की उन समस्याओं और तस्वीरों को भी सामने लाइये जिनके बारे में अभी कुछ नहीं किया गया है।


तभी हमें भी लोग महफिलों में कह सकेंगे कि ओह...आप बिहार के हैं। वाह। अभी तो लोग कहते हैं...ये सारे के सारे बिहारी। कहने का मतलब होता है कि चोर होते हैं और हर वक्त चोरी की ही बात करते रहते हैं। एक बंडल में समेट कर फेंक दिये जाने का दुख तो होता है लेकिन संकीर्ण न होने की ताकत कहां से आ जाती है,यही समझ नहीं आता। शायद यही बिहारी होना होता है। प्रवासी होकर भी हम संकीर्ण नहीं होते। हम दुनिया को विचार देने वाले लोग रहे हैं। बीच के पचास सालों में सार्वजनिक और व्यक्तिगत संस्कार कम हो गये थे और विकास खतम। ये दो सुधर जाएं तो जितनी कामयाबी बिहार के लोग दूसरे प्रदेशों और मुल्कों में प्रवासी जीवन व्यतीत कर पा रहे हैं,उससे कहीं अधिक कामयाबी अपनी मिट्टी में पा लेंगे।


दूसरे राज्य के पाठक बिल्कुल न सोचें कि हम संकीर्ण हो रहे हैं या हमारे भीतर कहीं किसी दमित रूप में बिहारीवाद बसा था। हम बस हल्का सा खुश हो रहे हैं। इतनी गाली सुनी है कि सरकार का ये आंकड़ा अपने घर का लगता है। बाकी हकीकत आप भी जानते हैं और हम भी जानते हैं।

44 comments:

मधुकर राजपूत said...

रवीश जी, आपका लेख पढ़कर अच्छा लगा। बिहार की तरक्की समुचित राष्ट्र के लिए जरूरी है। हम सब एक राष्ट्र हैं, और विकास चाहिए तो हर अंग का फलना फूलना जरूरी है। आपने कहा कि नीतीश काम कर रहे हैं। अच्छा लगा। उम्मीद बंधी है कि अब बिहारी कहलाना गाली नहीं गौरव होगा।

Kundan said...

Ravish Ji, yeh sach mein khushi ki baat hai. Sayag ghar gane ka wakt nikat aa raha hai.

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

बेचारे लालू के लिए तो यह एक बहुत ही बुरी खबर के समान है !

JC said...

सन '५८ से पहले की एक घटना की याद आ गई: डीयू में एक सहपाठी, जो तबला बजाता था, एक दिन बोला कि यह तो सब जानते हैं कि तबले के बिना कोई भी संगीत का कार्यक्रम सफल नहीं हो सकता - अधूरा है. किन्तु यदि आप वायोलिन या गिटार लेकर सड़क से निकल जाएँ तो जनता आपको श्रद्धा भाव से देखेगी...और तबला हाथ में देखती है तो सब कहते हैं, "साला तबलची है!"

अभिषेक सत्य व्रतम said...

Sahi kaha sir aapne. Bihar ke border pe ghar hai Ghazipur mein, bihar se khoon ka rishta hai kyunki meri dadiji wahin ki hai. Pehle bihar mein train jyonhi ghusti thi deh mein dar sama jata tha khaskar sham mein. Lekin ab aisa nahin hai. and obviously the credit goes to Nitish Kumar.

ghughutibasuti said...

जब बिहार की ११ फीसदी से अधिक की विकास दर के बारे में पढ़ा तो मैं भी बेहद खुश हुई। यह समाचार न केवल बिहारियों के लिए खुशी और गर्व की बात है अपितु सारे देश के लिए है। मुझ जैसों के लिए तो, जिन्होंने जीवन के कुछ वर्ष बिहार में बिताए हैं, यह जिस बात को हम सदा से जानते थे कि बिहारी कहीं भी सफल हो सकता है बस उसे अवसर की आवश्यकता है, को सिद्ध करता है। बधाई।
घुघूती बासूती

Unknown said...

ravish bhaaii namaskaar
bihaar ka vikaas puure bhaarat ke liye anukaraniiy hai yah manmohan chidambaram aur montek ke liye bhii ek paath hai. visheshkar chidambarm ke liye bhii jo bhrastaachaar ko bhaarat ka dushman nambar ek nahiin maanate hai.
namaskaar.
j.p.pathak

Unknown said...

ravish bhaaii namaskaar
bihaar ka vikaas puure bhaarat ke liye anukaraniiy hai yah manmohan chidambaram aur montek ke liye bhii ek paath hai. visheshkar chidambarm ke liye bhii jo bhrastaachaar ko bhaarat ka dushman nambar ek nahiin maanate hai.
namaskaar.
j.p.pathak

संगीता पुरी said...

पिछले वर्ष ही बिहार जाने का मौका मिला .. तरक्‍की के निशान स्‍पष्‍टत: दिखाई देते हैं .. झारखंड के बिहार से अलग होने पर अफसोस ही कर सकती हूं .. यह साथ होता तो आज झारखंड के कदम पीछे न जा रहे होते !!

Sanjay Grover said...

"पहले कब कौन सी गाड़ी रूक जाए और बोलेरो से कोई तिवारी पांडे का भाई बंदूक लिये उतर आता था। हालचाल ऐसे पूछता था मानो अब गोली भी मारेगा। पिछले साल गांव गया था तो इस संस्कृति के अवशेष तो नज़र आए मगर इमारत ढह चुकी थी। बिहार के नेताओं और लोगों ने खतम व्यवस्था के साये में अपराधीकरण का सामाजिकरण कर दिया था। आम संपन्न लोग भी अपराधी रिश्तेदारों को नाम गर्व से लेते थे। अब काफी बदल गया है।"
"अभी तो लोग कहते हैं...ये सारे के सारे बिहारी। कहने का मतलब होता है कि चोर होते हैं और हर वक्त चोरी की ही बात करते रहते हैं। एक बंडल में समेट कर फेंक दिये जाने का दुख तो होता है लेकिन संकीर्ण न होने की ताकत कहां से आ जाती है,यही समझ नहीं आता। शायद यही बिहारी होना होता है। प्रवासी होकर भी हम संकीर्ण नहीं होते।"
"दूसरे राज्य के पाठक बिल्कुल न सोचें कि हम संकीर्ण हो रहे हैं या हमारे भीतर कहीं किसी दमित रूप में बिहारीवाद बसा था। हम बस हल्का सा खुश हो रहे हैं। इतनी गाली सुनी है कि सरकार का ये आंकड़ा अपने घर का लगता है। बाकी हकीकत आप भी जानते हैं और हम भी जानते हैं।"

is sab par khushi aur sahmati hi zaahir ki ja sakti hai.Jeete rahiye.

अजय कुमार झा said...

रविश भाई, अभी दस दिन भी नहीं बीते बिहार से लौटे और जो आपने कहा वो सच न सिर्फ़ दिखता है बल्कि महसूस भी हो रहा है। आम जनता को लालू नीतिश से कोई मतलब नहीं है उसे सडक बिजली पानी से मतलब है। अभी तो गाडी पटरी पर खिसकना ही शुरू हुई है ।मगर स्टेशन पर पहुंचने के लिए जरूरी है कि अगले चुनाव में जनता यही सब चुने तब बात बनेगी । हालांकि अपने क्षेत्र मिथिला मे इस विकास को सिर्फ़ और सिर्फ़ सडकों तक सिमटते हुए पाया मगर इसका दोष सिर्फ़ सरकार के सिर पर नहीं मढना चाहता । हां बिहारीपने का गर्व अब किया जा सकता है ॥

शून्य said...

प्रसन्नता की बात है

संजय शर्मा said...

बहुत ख़ुशी हुई अपने बिहारीपने पर !

Ranjan said...

रविश भाई - मन खुश हो गया - आपका लेख पढ़ कर ! "सड़क-छाप" या "सड़क-निर्माण" मुख्यमंत्री ने कुछ किया है ! पर वो कर बहुत कुछ सकते थे ! जिस अखबार समूह ने इस तरक्की की खबर जिस तरक्की से बता रहा है - जरा गौर फरमाए ! काफी दिनों से इस अखबार समूह के सभी संस्करण में "सड़क-निर्माण" की निविदाएँ छाप रही हैं - ५-६ पेज में ! जैसे ..पिपरा - कोठी के किसी गाँव के सड़क निर्माण का टेंडर - इस अखबार समूह के बंगलोर और मुंबई इत्यादी संस्करण में ढेर सारे " टेंडर" आये ! सड़क निर्माण मुख्यमंत्री को लगा होगा की मुंबई के ठेकेदार शायद मुखिया जी के गाँव का सड़क बनवा दें ! खैर... अब अखबार समूह का भी कर्तव्य बनता है - कुछ छापने का - खबर के रूप में ! वैसे एक बार आप ने सही कहा था की - नितीश जी "सड़क निर्माण" मुख्यमंत्री हैं ! वो बात बिलकुल सच्ची लगी ! विशेष ..तो इस वर्ष चुनाव भी है ! हो सकता है ...नितीश खुद कई ..."तिवारी" - "पाण्डेय" - "सिंह" को टिकट मिल जाए !

Anonymous said...

Ravishji,

Wo samay yaad ata hai jab Patna men jobs ki taiyari kar rahe students men ye hatasha thi ki bihar men Sarkari naukari to milegi nahi.. kyonki uske liye Political link aur rishwat dene ke liye paise dono chahiye... sab ko nahin to kafi logon ko naukri isi tarah milti thi...

Ham jaise logo ne Patna chhor Dilli ka rukh kiya, Professional Degree hasil ki, jisme paisa nahin sirf Dimag aur lagan ki jaroorat thi.

Aaj 12 saal ho gahe yahan.. thik thak kama raha hoon... sari suvidhayen hain... magar ye sab apna sa nahin lagta..

Bihar ke development ki khabar utni hin achhi lagi jaisi ki CS pass hone ka result dekh kar hui thi.

Nikhilesh

सहसपुरिया said...

SAB KE LIYE BAHUT ACHCHA HAI,

संजय बेंगाणी said...

बिहार का विकास केवल उसके लिए नहीं, भारत के लिए हर्ष की बात है. बिहार अपनी ही नहीं भारत की भी शक्ल बदल सकता है.

साथ ही लालू प्रेम में डूबे पत्रकार जमात से ऐसी बाते सुनना भला लगता है.

दिनेशराय द्विवेदी said...

बिहार पूर्व में भारत का गौरव रहा है वहीं पहुचे ऐसे प्रयास होने चाहिए। आप का आलेख पढ़ कर अच्छा महसूस हुआ।

dharmendra said...

ravish bhaiya. aapki kuch baato se main bilkul sahmat nahi hun. kyonki isme me mujhe tiwari pandey ki mansikta dikhti hai. aap log delhi me bihario ko represent karne wale log hain. aap log jo kahenge sahi kahenge. lekin ek baat puchu aapse ki kya nitish bjp ka daman chor satta chaleyenge to bhi aap unki tarif karenge. kya us samay aap ke nitish, nitishwa nahi ho jayenge. kya us samay aap unhe nich jati wala nahi kahenge. aap log dil se unki tarif kar rahe hain ya us mansikta ki wajah se, jo humlogo ne is adhunikta ki roshni me bhi dekha hai.

Unknown said...

Ravish jee,

I feel great to read this news of Bihar development.It's a dream come true for all of us.I am so exiced about this latest happening.May allmighty bless my bohar.Hamare Bihar ko kisi ki najar na lage.
Regards,
Sanjeev, Laxmi Nagar.

डॉ टी एस दराल said...

अजी बिहारी ही क्यों, बिहार की तरक्की के बारे में पढ़कर तो हम दिल्ली वालों को भी ख़ुशी हुई ।
शुभकामनायें।

विनीत कुमार said...

बिहार में हमलोगों का बहुत बड़ा घर है। हवेलीनुमा जिसके बारे में फोन पर पड़ोसी बताते हैं कि सबकुछ ढह गया है। सिर्फ चारो तरफ झाडियां और घास उग आए हैं। मुझे गए छ साल हो गए होगें वहां। मां को जमशेदपुर जैसे शहर में सबकुछ बनावटी और निर्मम लगता है। जब भी तकलीफ में होती है-कहती है जो सुकून उस घर में था,इस फ्लैट में नहीं है। तुम कुछ बन जाओगे तो आते-जाते रहना। साफ-सुथरा करा दोगे तो स्वर्ग हो जाएगा। बहुत जल्द ही वहां जाना होगा शायद अंतिम बार। दस्तखत करने..और तब मेरे मुंह से यही शब्द निकले। बाबा हमने आपको कभी नहीं देखा। मेरी मां के ब्याहने के दो साल बाद ही आप गुजर गए। लेकिन मैंने आपकी जमीन बेच दी।
बिहार में मेरे बहुत सारे नाते-रिश्तेदार हैं। दिल्ली में रहते हुए बिहारी दोस्त जितने बने उतने पहले कभी नहीं। उन्हीं के गांव-कस्बे में जाकर रहूंगा,तब आपकी बातों को महसूस कर सकूंगा। नहीं तो जहां भी जाता हूं सरकारी गेस्ट हाउस में ठहरकर कुछ पता ही नहीं चल पाता।.

मनोज कुमार said...

आलेख अच्छा लगा। आपकी बातें हमने भी महसूस की थी। छठ पर्व से अवसर पर घर गया था। तब। पटना से समस्तीपुर की दूरी जो टूटी सड़कों के कारण पहले 6-7 घोटे में पूरी होती थी इस बार आधा समय लगा। और गांव में जो मोबाइल के सिगनल नहीं मिलते थे, इंटरनेट भी चला और वहीं से घाट से लौटकर ब्लॉग पर छठ के दृश्य पोस्ट किए। अजय झा जी की बातों से सहमत हूं कि जरूरी है कि अगले चुनाव में जनता यही सब चुने तब बात बनेगी । हां बिहारीनेस का गर्व अब किया जा सकता है ॥

Vishal Mishra said...

achcha tha bihari majboot ho rahe hain sunkar achcha lagta hai.... warna hum UP aur bihar wale sabse zyada Prime Ministers aur IAS toppers dene ke bawjood Maharashtra aadi me hey drishti se dekhe jate hain...

par ek baat ajeeb lagi ki kya bihar me sirf brahmin hi apraadhi hain jo bandook aadi lekar haal chaal poochte the... maine to aur jaati ke logon ke baare me bhi suna hai.. phir apke lekh sirf brahmin jatiyon ka zikra kyon?

aapka bada fan hu... brahmin aur patrakar hone ke naate apke biased hone par dukh hua... aur yadi main galat hun to mujhe uchit jaankari bhi dijiyega....

Gajraj Rao said...

gundo ke beech chatpatati naayika ko bachane ke liye jab achanak nayak kahin se aa jata hai, aur manchalo ki chaturmukhi dhunai karta hai, us waqt rago main khoon thoda speed se daudne lagta hai...aapka lekh padhkar waisa hi mahsoos hua abhi... kash aapka likha sach ho... netao ne hi Bihar ke naam ki matti-paleed ki hai, unme se koi ek ise sudhar raha hai ,padhkar thodi asha bandhti hai...aankho-dekhi aage pahunchane ke liye aapko dhanywad !

मेरी आवाज सुनो said...

रविश जी
सादर प्रणाम,
आपक लेख पढ़कर बहुत खुशी हुई. यह जानकार हार्दिक प्रसन्नता हुई कि आप भी पूरब की माटी के शेर हैं. बिहार तरक्की कर रहा इसका मतलब है कि देश तरक्की कर रहा है. उस जगह आप का जन्म हुआ जहां से क्रांति और शांति की शुरुआत हुई. मैं भी पूरब की माटी( गोरखपुर ) का हूँ. निश्चित रूप से एक दिन पूर्व की भांति बिहार विश्व फलक पर अपना परचम फहराएगा.

--
शुभेच्छु

प्रबल प्रताप सिंह

कानपुर - 208005
उत्तर प्रदेश, भारत
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Shambhu kumar said...

बस आप जैसे कुछ पत्रकार, ज्ञानवान और मानवहित के पैरोकार पटना में अपना आसन जमा ले तो, बिहार की सेहत दुरुस्त से तंदुरुस्त हो जाएगी... नवप्रत्यूष बिहार की तरह एक अखबार ही क्यों नहीं निकालते वहां से... पैसों की कमी नहीं है वहां भी... देखिए कैसे भोजपुरी चैनल
करोड़ों बटोर रहा है... आप ही ने तो सबसे पहले महुआ को बधाई दी थी... आप तो पहले दिन ही पूरे बिहार में छा जाएंगे... पूंजी लगाने वालों की कमी भी नहीं होगी... आखिर रवीश सर जो होंगे... ब्रांड एंबेस्डर... आप तो पूरे पत्रकार बिरादरी के प्रणव राय हैं... ये दिल से निकले सीधे और सपाट शब्द हैं... छोड़िए वैशाली में रहने का मोह... और चलिए पटना... वहीं से मीडिया सहित तमाम चीजों को नई दशा और दिशा देने की जरूरत है... और पूरे सूबे का कल्याण भी हो जाएगा... फिर जिस धरती पर पैदा हुए उसका कर्ज भी तो चुकाना है... या सिर्फ उम्र के अंतिम पड़ाव में सुख शांति ही जोहने जाएंगे वहां...

बिक्रम प्रताप सिंह said...

जब से जयपुर आया सभी यही पूछते हैं अच्छा आपके बिहार में ऐसा होता है वैसा होता है। पहले तो खंडन करने और बात काटने की बहुत कोशिश करता था लेकिन बाद में कहने लगा, हां कुछ ऐसा होता है पटना स्टेशन पर ट्रेन लगी, आप उतरने दरवाजे पर जाएंगे तभी कोई गुंडा वहां आएगा और आपको उड़ा देगा -----ठांय। मैं बिहार बराबर जाता रहता हूं और मैंने भी इस बदलाव को महसूस किया। अब लोग मानने को तैयार नहीं तो किया जाए --ठांय

JC said...

अंग्रेजी में एक कहावत है कि 'किसी भी श्रंखला की मजबूती उसके सबसे कमज़ोर कड़ी से जानी जाती है'...और यह धरती, जो पंचतत्व से बनी है, अरबों साल से टूटी नहीं है - भले ही कितने परमाणु बम फूटे हों, कितने ही बार जलमग्न हुई हो, कितने ही तूफ़ान आये हों, आदि आदि...हाँ इसका बाहरी रूप भले ही बदलता रहा हो समय- समय पर...

किसी ने बाजपाई जी से कहा था, "आप अटल हैं", तो उनका उत्तर था, "मैं बिहारी भी हूँ!"

मैं भले ही हिमाचल में पैदा हुआ, किन्तु अनंत अन्य भारतीयों के समान दिल्ली, यानी इन्द्रप्रस्थ, में ही पला-बड़ा हुआ हूँ, यद्यपि इस जीवन काल में इधर-उधर भी भटका हूँ...ऐसे ही मैं भी (हो सकता है भूत के कारण) एक-दो दिन पटना में भी बिता चुका हूँ, और वर्तमान में झारखंड कहलाये जाने वाले हिस्से में भी वर्षों पूर्व कई बार काम के सिलसिले में जा चुका हूँ, शायद वहाँ की मिटटी का कोई पुराना ऋण चुकाने :)

जय (भारत) माता की :)

SHASHI SINGH said...

भारत के नक्शे को कभी गौर से देखें... एक इनसानी काया नजर आती है। ... और बिहार की स्थिति उस काया में दिल की जगह पर है। जाहिर सी बात है स्वस्थ दिल पूरे शरीर के लिए बेहद जरूरी है। दिल के बगैर शरीर नहीं, शरीर के बगैर दिल नहीं।

रवीश भाई,

शंभू भाई के सीधे सपाट शब्दों का मर्म समझ रहें हैं न? दम है इस निवेदन में...

Dreamer said...

रविश जी,

आपके आलेख के लिए धन्यबाद परन्तु यह सत्य से परे है इसमें भी कोई शक नहीं. कानून व्यवस्था और चंद सड़कों (अधिकतर एन.एच ) को छोड़ दें तो कुछ भी ऐसा नहीं हुआ की गर्व से कहा जाय की बिहार तरक्की कर रहा है या यूँ कहें की कम से कम तरक्की के रास्ते पर है.
कानून व्यवस्था की बात ठीक है, क्यूंकि नितीश जी खुद भी अफसरशाही प्रविर्ति के हैं इसीलिए उन्हें अफसरों से काम करवाना आता है परन्तु क्या ठीक ठाक कानून व्यवस्था के लिए नितीश सरकार का गुणगान किया जाय. नितीश सरकार को एक मत से चुने जाने का मतलब सिर्फ कानून व्यवस्था सुधारना नहीं था (लालू से तुलना गलत होगा) अपितु उनसे मुलभुत ढांचागत विकास की अपेक्षा थी जो की नगण्य है.

बिजली की स्थिति बाद से बदतर हुई है, शिक्षा प्रणाली जस का तस है (२००७ के छात्र २००९ तक अपनी प्रथम वर्ष की परीक्षा नहीं दे पाए हैं).

जीतने के ६ महीने के अन्दर साड़ी बंद चीनी मीलों को चलाने का सब्जबाग दिखाया था परन्तु ५ साल बाद भी एक भी चीनी मिल शुरू नहीं हो पाई है.
रोज़गार गारंटी योजना की सबसे बुरी भद नितीश जी के राज मैं ही पिटी है. कुल १०% भी लागू नहीं हो पाया है.

वैसे आपके अछे शब्द से एक बात तय है की नितीश जी वाकई मैं एक अछे मीडिया मेनेजर हैं- प्रेस वालों को पटा के रखना उनको बहुत फायदा दे रहा है - लालू यादव जहाँ प्रेस के साथ अपने लहजे (अरोगेंस) से बतियाते थे नितीश जी उसके विपरीत है और नतीजा सामने है- की रविश कुमार को लगता है की बिहार ने बहुत तरक्की की है.

मैं आपसे थोडा सा निरास ज़रूर हूँ (पिछले ६ महीने मैं लगातार बिहार का दौरा करता रहा हूँ वो भी अलग अलग क्षेत्रों मैं आपकी बात बहुत दमदार नहीं लग है.

मैं नितीश विरोध नहीं लिख रहा परन्तु नितीश और लालू मैं दुरी बहुत ज्यादा का नहीं है- एक बोल कर काम नहीं करता दुसरा काम करना ही नहीं चाहता है)

sushant jha said...

बिहार पर लिखना बर्रे के छत्ते में हाथ डालने से कम नहीं। तारीफ करो… तो आलोचना, गाली दो तब तो मानो मौत का फतवा! आप तारीफ में आप एक पोजीटिव बात बोलिए, तुरंत ही विरोध में 10 बातें रख दी जाएगी। उसी तरह धोखे से आपने कोई निगेटिव बात रखी, तो तमाम लोग इसे सेंटीमेंट पर लेंगे और 100 तरह की पोजिटिव बात करेंगे। तो ये है बिहार...जो 7 अंधों के लिए हाथी के तरह है जिसे सारे लोग अपने-2 तरीके से डिफाईन करते हैं। अब सापेक्षता के सिद्धांत की बात करें तो बिहार बदला तो जरुर है थोड़ा सा। सरकारी आंकड़े भी 11 परसेंट की बात कह रहे हैं-तो जरुर बदला होगा! अब पटना में फ्लैट का रेट 30-70 लाख हो गया तो जरुर बदला होगा। पटना, हिंदुस्तान के उन गिने चुने शहरों में शुमार हुआ है जहां से हवाई यात्रा करने वाले लोगों की तादाद में भारी बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। बदला तो है जरुर बिहार। अब, आप 80 फीसदी बीपीएल लोगों का जिक्र कर इस स्वाद को कसैला मत कीजिए। अब ऐसा तो हर जगह है-क्या दिल्ली-बंबई में स्लम नहीं है! अब मान लीजिए कि रोज अपहरण, डाके और बलात्कार की खबरे पटना से न आकर दिल्ली से आने लगी है तो इसमें बिहार का क्या दोष? भई, श्रेय तो राजा को ही जाता है न, सो नीतीश कुमार को शुक्रिया बोलिए। पैसा भले ही केंद्र का लगा हो..लेकिन रोड और बिजली तो नीतीश बाबू ही बनवा रहे हैं न...तो उनकी तारीफ नहीं करेंगे आप...वाह भैया...लालूजी का हैंग आवर नहीं उतरा है का...? का बोले...अच्छा गांव तक इंटरनेट नहीं गया है... और शिक्षामित्र सब अनपढ़ है? अरे उससे का होता है, बिहार का नाम दशकों बाद अच्छी वजहों से अखबार में आया ये कम है का? सुना अंग्रेजी वालों ने भी तारीफ की है।

Anonymous said...

क्या आपको बिहारी होने पर गर्व है, तो ये गर्व नि:संदेह हमें ना ही आपके आलेख से लेना पड़ेगा और ना ही आपके विचार से क्यूंकि बिहारी होने का गर्व मैं सम्पूर्ण हिन्दुस्तान भ्रमण कर महसूस करता हूँ.

रही बात तरक्की की तो आपने जिस चश्मे से बिहार कि तरक्की करा दी , विकाश के आंकड़े ( जो सिर्फ सरकार और मीडिया के लिए होता है ) ११ प्रतिशत पर जा कर भी बिहार के आम जन तक कि विकाश सोचनीय और चिंतनीय है. आपके सुर में रेंकते हुए सुशांत भाई ने बिहार विकाश कि सही परिभाषा गढ़ दी है कि पटना में फ्लैट का रेट बढ़ना हो या हवाई यात्री कि संख्या में इजाफा बिहार तरक्की कर रहा है.

मीडिया का हरे वृक्ष का गुणगान नए ज़माने की परिभाषा है आखिर सरकार लाखो के विज्ञापन का बंदरबांट करती है और इस लूट का सीधा हिस्सा बटोरते मीडिया सरकारी गुणगान ना करें तो अपच हो जाता है और इस विकाश के आंकड़े के साथ संभावित चुनाव यानि कि विज्ञापन का मोटा धंधा और पेड न्यूज़ के लिए मंडन तो होना ही था.

अगर आप बिहारी होते और बिहार कि विकास को देखते तो जरूर देख आते कि सोदूर ग्रामीण इलाके में शिक्षा के नाम पर कडोरो के भवन बने मगर पढाई के नाम पर खिचड़ी, साइकल, और शिक्षा मित्र के नाम पर जातिवाद का दीमक बिहार विकाश का गवाह है. उच्चतर शिक्षा कभी अपने नियत समय पर नहीं रही और आज भी स्थिति वही है. बिजली आती नहीं और रौशनी के लिए सरकार मिटटी का तेल देती नहीं मगर रविश बाबु आपका विकाश और गौरव सोचनीय है.

बाकी अप्रवाशी बिहारी के बजाय बताता चलूँ कि मेरा परिवार मधुबनी में ही है और दौरा होता ही रहता है मगर रविश जी आपके मिडिया के चश्में के बजाय एक बिहारी के चश्मे से बिहार को देखने के करण आपसे सहमति के बजाय निराशा हुई. वैसे पत्रकारिता का गुड मन्त्र है कि अपने वरिष्ठों के सुर में रेंको और आपके सुर में रेंकने वाले कि तादात काबिले तारीफ़ है मगर कहता चलूँ कि बिहारी होने पर पहले भी गौरव था और आज भी है मगर इसमें ना ही रविश जी का ज्ञान और ना ही नितीश जी का विकाश जिम्मेदार है.



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Rajneesh K Jha
www.rajneeshkjha.blogspot.com
+919899730304

शेष said...

आप सब सुधि जनों से आग्रह है-

1- सीएसओ के आंकड़े पढ़िए,
2- यह पता लगाइए कि बिहार के सकल घरेलू उत्पाद में सबसे ज्यादा हिस्से किस क्षेत्र में हुई है, खासकर पिछले चार साल में,
3- गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों को लेकर पिछले चार साल से केवल बिहार नहीं, देश भर में कोई आंकड़ा क्यों जारी नहीं किया गया,
4- बिहार के मीडिया को अगर आज का बिहार पूरी तरह सुरक्षित लगता है, तो इसके पीछे क्या कारण हैं, क्या केवल तथाकथित सच्चाई कि बिहार में आज लोग रात में भी घर से निकलने लगे है? और स्पीडी ट्रायल की सच्चाई की तहकीकात कीजिए,
5- राज्य में अपराधों की स्थिति के बारे में बिहार के बिके हुए (मुझे यह कहने में कोई गुरेज नहीं है) अखबारों या मीडिया ने क्या प्रचार किया है, और खुद सरकार ने विधान सभा में क्या स्वीकार किया है,
6- थोड़ी ईमानदारी से चमकीली सड़कों की तहें उतारिए,
7- यह पता करिए कि नीतिश सरकार ने कुल बजट का तीस फीसद हिस्सा सड़कों को क्यों दिया,
8- शिक्षा की स्थिति का विश्लेषण कीजिए,
9- स्वास्थ्य सेवाओं की हालत देखिए,
10- मौका निकाल कर जिला औऱ प्रखंड स्तरीय सरकारी कार्यालयों का भ्रमण कीजिए और वहां की "गतिविधियां" देखिए, और पता लगाइए कि भ्रष्टाचार औऱ घूसखोरी की कितनी परतें तैयार की गई हैं,
11- जनता दरबार की असलियत पता कीजिए,
12- राज्य में जिस निवेश का वितंडा मचाया गया है, उसकी सच्चाई क्या है, कितने निवेश का दावा किया गया था, कितना हुआ है,
13- इथनॉल उत्पादन की सच्चाई को चीनी मिलों में निवेश के हंगामे तले क्यों दबाने की कोशिश हुई,
14- विकास यात्राओं के हिसाब-किताब और रास्तों में हुए "कर्मकांडों" की जानकारी हासिल कीजिए,
15- बिहार में किसी ने कुछ पुस्तिकाएं छपवा कर वितरित की है, उसे वायस्ड कह कर खारिज करने के बजाए एक नजर दौड़ाइए, खास कर सबसे ताजी प्रस्तुति के कवर पर छपी तस्वीर पर,

16- जिस रोशनी से नहाने की खुशफहमी पाल कर हम झूम रहे हैं, उसकी सच्चाई का भी पता लगाइए,

...दोस्तों, सरकारी आंकड़ों से अगर दुनिया बदलने लगती, तो हमारा इंडिया कब का शाइन कर चुका होता...
...केवल फ्लैट के दाम बढ़ने से विकास हो जाता तो दिल्ली में कीड़े-मकोड़े की तरह जीवन गुजारते लोगों को भी उच्चवर्गीय विकसित जानवर में मान लेने से परहेज नहीं करना चाहिए...
...कभी हिम्मत कर सकें, तो इस पर भी निगाह डालने की कोशिश कीजिएगा कि इन चार सालों के पहले के पंद्रह साल में बिहार में पत्रकारिता ने क्या भूमिका निभाई थी, और आज इस राज्य की पत्रकारिता ने भ्रष्ट व्यवस्था और सत्ता के साथ खड़े हो जाने के कौन-से नए मानक गढ़े हैं।

ऐसा क्यों हुआ है...?

क्या इसका संदर्भ नीतीश कुमार की सामाजिक विकास-दृष्टि और उसके उसके उस पाए से जुड़ती है, जिसके बल पर वह राजगीर जैसी रमणीय स्थलों में मंत्रिमंडल की बैठकें कर रहे हैं।

anil yadav said...

अगर बिहार में सचमुच कुछ अच्छा हो रहा है तो ये अच्छी बात है....बदलते बिहार के लिए शुभकामनाएं...

शशांक शुक्ला said...

सही कहा आपने मै तो आज भी बिहार के नाम से डरता हूं सोचता हूं कि खबरो में जैसा बिहार है क्या उसी तरह है, लेकिन आपकी बातों और बिहार के विकास की खबरों के बाद वहां जाने का मन ज़रुर होने लगा है

sushant jha said...

@रजनीशजी, कृपया भाषा की शालीनता बरकरार रखें..."आपके सुर में रेंकते हुए सुशांत भाई ने बिहार विकाश कि सही परिभाषा गढ़ दी है कि पटना में फ्लैट का रेट बढ़ना हो या हवाई यात्री कि संख्या में इजाफा बिहार तरक्की कर रहा है"...ये एक बहस है...रेंकता कौन सा जानवर है ये आपको भी पता है और बहस में भाग लेने वाले लोगों को भी।

Anonymous said...

भाई शशांक,
आपने खुद उत्तर भी दे दिया,
आप बिहार जाने से डरते हैं क्यूंकि मीडिया में डरावनी हकीकत देखते हैं, क्या मीडिया हकीकत दिखता है ?
कल ही माननीय पत्रकार विनोद मेहता ने एन डी टी वि के ही कार्यक्रम में कहा कि अगर अमर सिंह जैसे लोग राजनीति से चले जाएँ तो मीडिया का दुकान बंद हो जाएगा. निशंदेह दुकानदारी में बिहार का जो स्वरुप मीडिया को बेचना है वो दिखता है. हकीकत से आप रु बा रु होकर ही परिचित हो सकते हैं.

@ भाई शुशांत,
तकलीफ हुई के लिए क्षमा प्रार्थी

Anonymous said...

सर वाकई सालों बाद बिहार के बारे में अपनी बीस साल की जिंगगी में पहली बार बिहार के बारे में कुच ऐसा सुना जिससे गर्व महसूस हुआ उम्मीद है कि आगे भी ऐसी खबरों का सिलसिला जारी रहेगा
स्मिता मुग्धा
भारतीय जनसंचार संस्थान

Unknown said...

kya badla hai bihar me? patna se motihari jane me abhi jyada waqt lagta hai..motihari me bijli pehle se jyada gul rahti hai..apradh hote hi hain..khabar nahi aati..koshi ka kehar koi bhool sakega kya..apne to wo manzar cover bhi kiya hai..mehangai ke liye to congress hi jemmedaar hai to nitish ji kya kar lenge..Wah re vikas, wah re bihar, wah Nitishji...shayad ek aur term log de den to poora vikas kar lenge!

एक सलाहकार said...

बहुत खूब रविश जी ...काफी बढ़िया लिखते हैं आप...

imnindian said...

ITS A MUST READ ARTICLE & MORE THAN THAT MUST READ DEBATE FOR ALL BIHARIES.
JAB SABNE TAY KAR LIYA HAI TO BIHAR KI SOORAT BADLEGI HI.

ALL D BEST... BHAIYA & BAHANI..........

Unknown said...

Ravishji, Bihari hone ke nate hi maine aapke blog ko revisit kar is post ko padha. Aur kisi vikas ko log mane ya na mane par mansikta me badlav nishchit rup se hua hai. Bihar me rah rahe log ab sakaratmak soch rahe hain, unke man se bhay dur ho raha hai. Yeh is baat ka sanket hai ki Bihar sahi disha me aage badh raha hai. Aage badhne ki gati is baat par nirbhar karegi ki sarkar ke saath aam janta kitna sahyog karti hai aur tathakathit pragatishil vichar ke log kitni sakriyata se samaj nirman me bhag lete hain. Ek acche aalekh ke liye dhanyavad.

prabhat gopal said...

बदलाव तो हुआ है, भले ही माइंडसेट में लगे। विकास भी हुआ है और शासन तंत्र पिछले के मुकाबले अच्छा ही है। क्या यही संतोष का विषय नहीं है? भागते भूत की लंगोटी भली।