लड़की की दिखाई

कभी कभी पुरुषों को सोचना चाहिए कि एक स्त्री या लड़की उनके बारे में कैसी कल्पना करती होगी। पुरुषों के कल्पना लोक में लड़कियां आतीं रहती हैं। फिल्म के पर्दे से लेकर पड़ोस की खिड़की से। मैगज़ीन के कवर से लेकर रेलगाड़ी में सामने की सीट से। फिल्म और छपाई के ज़माने में लड़कियों के सौंदर्य की एक सार्वभौमिक अभिव्यक्ति बनाई गई। जिनकी पूर्ति के लिए कई लड़कियों ने मटके के पीछे खड़ी होकर शादी के लिए तस्वीरें खींचाईं। फोटो की फाइनल कॉपी से पहले स्टुडियो वाले ने प्रूफ की कॉपी बनाई। उसके बाद यह कॉपी न जाने कितने योग्य वरों के घरों में गई। नहीं मालूम कि योग्य वर ने इंकार करने के बाद उस लड़की के साथ अपने कल्पना लोक में क्या किया। नहीं मालूम की मटकी के पीछे और राजस्थानी घाघरा चोली में खड़ी लड़की की तस्वीर हाथ में आते ही लड़के की नज़र पहले कहां गई। इसका कोई सामाजिक शोध उपलब्ध नहीं है।

मेरे पिता जी ने एक योग्य वर के नखरे से तंग आकर खरी खोटी सुना दी थी। गोरखपुर में किसी रिश्ते के अपने भाई की बेटी के लिए अगुवई में गए थे। लड़के वाले कैसी लड़की चाहिए पर वाम दलों की तरह सूची लंबी किए जा रहे थे। पिता जी की ज़ुबान फिसल गई या गुस्से में कह गए पता नहीं। चिल्लाने लगे कि लड़का को हेमा मालिनी चाहिए तो लड़की को भी धर्मेंद्र जैसा हैंडसम लड़का मिलना चाहिए। आपका बेटा इंजीनियर ही तो है। शक्ल देखिये इसकी। पतलून में बेल्ट लगाने नहीं आता, बाल में तेल है और कमीज़ की कोई फिटिंग तक नहीं। और आप हमारी लड़की में गुण ढूंढ रहे हैं। शादी करेंगे या नहीं। पिताजी बोल तो गए मगर शादी नहीं हुई। लड़के वाले इस बात को स्वीकार नहीं कर सके कि योग्य वर के बारे में योग्य दुल्हन की भी कोई कल्पना होगी?

ऐसे कई प्रसंगों में मैं खुद भी मौजूद रहा हूं। जहां लड़के वालों ने लड़कियों को ड्राइंग रूम में चला कर देखा कि चलती कैसी हैं। कभी चश्में का नंबर पूछा गया तो कभी लड़के की बहन ने लड़की की आंख को घूर से देखा कि कहीं कांटेक्ट लेंस तो नहीं लगा है। यह प्रक्रिया शादी के बाद भी जारी रहती है जब शादी के बाद घर आई दुल्हन की मुंहदिखाई के लिए लोग आते हैं। घूंघट उठा कर देखते हैं और सौ दो सौ रुपया दे जाते हैं। मैंने कई औरतों को देखा है कि दुल्हन की घूंघट उठाई और बोलते रह गईं। किसी ने वहीं कह दिया कि फलां कि बहू जैसी खूबसूरत है। बस इस तुलना से दुल्हन की तौहिन हुई सो अलग, वहीं बवाल मच गया। खैर ऐसे आयोजन को अंग्रेजी में रिसेप्शन कहते हैं। हिंदी में प्रीतिभोज।

यही देखते हुए बड़ा हुआ था। कई बार मां पिताजी, या रिश्तेदारों को पिछले दरवाज़े से जाते हुए देखा था। किसी को पता न चले कि लड़की दिखाने ले जा रहे हैं। बदनामी के डर से कि इनकी बेटी बार बार छंट जा रही है। पिताजी इस खौफ से कई अनर्गल और अवांछित रिश्तेदारों का मान मनौव्वल करते रहते थे कि कहीं वे उन जगहों पर जाकर बेटी के बारे में शिकायत न कर दें। शादी न कट जाए। यही जुमला चलता था। शादी कट गई क्या? रिश्तेदार कोई अनजाने नहीं बल्कि अपने ही मामा चाचा हुआ करते थे। हर दिखाई के बाद जब पड़ोस की चाची पूछती थीं तो पूरा परिवार तुरंत झूठ बोलने लगता था। मैं भी बोलता था। अपनी बहनों की भलाई के लिए। कोई नहीं कहता कि लड़के वाले ने देखा है। कुछ लोग यही गिनते रहते थे कि कितनी बार छंटाई हुई है। कई बार लड़की दिखाने के लिए मां नहीं जाती थी। गांव से बुआ आ जाती थी। ताकि किसी को शक न हो। लगे कि भतीजी अपनी बुआ के साथ कुछ खरीदने गई है।

यही देखते देखते कुछ और बड़ा हुआ। इतना कि मेरी कल्पनाओं में लड़कियां आने लगी थीं। किस रूप में आती थी उस पर बहस फिर कभी। लेकिन कभी कोई लड़की गुज़र जाए तो बहनें या पड़ोस की चाचियां ही कह देती थी कि सुंदर है..रवीश की दुल्हन ऐसी ही होगी। लंबी, गोरी और काले बालों वाली। मैं भी सुन लेता था। कान बंद करने का कोई उपाय नहीं होता था। मगर अच्छा नहीं लगता था। क्योंकि दुल्हन देखने के रस्मों की कड़वाहट ज़हन में उतर गई थी।

पटना स्टेशन के पास हनुमान मंदिर में पड़ोस की चाची की एक बेटी को स्कूटर पर बिठा कर ले गया था। मुझे यह काम इसलिए सौंपा गया कि किसी को शक न हो। मेरी ऐसी साख बन गई थी मोहल्ले की लड़कियों के बीच। लोगों को लगे कि कहीं कोचिंग सेंटर छोड़ने ले जा रहा होगा। मेरा एक काम यह भी था। इसलिए किसी को शक नहीं होता था। उस दिन मैं उस लड़की को हनुमान मंदिर ले गया था। चाची ने कह दिया था धीरे धीरे चलाना। शुभ काम है। मैं भी लगता था कि कितना बड़ा काम मिला है, कर ही देना है। पटना का हनुमान मंदिर। वहां लड़के वाले आ चुके थे। उसे देखने। चाची रिक्शे से पहुंची थीं। अलग से। लड़के ने लड़की को देखना शुरू किया। उसकी नज़रों को मैंने देखना शुरू कर दिया। वो कहां कहां देख रहा है। कहां ज्यादा रूक रहा है।मोहल्ले के फिल्मी भाई की तरह गुस्सा भी आया।लेकिन भला उसी का था, चाची के सर से बोझ उतरना था इसलिए चुप भी रहना था। वो मेरी बहन नहीं थी इसलिए सर उठा कर देख रहा था।अपनी बहनों के वक्त तो नज़र नीचे ही रहती थी। इसी से कई लोगों को लगा कि मैं सीधा हूं।अच्छा लड़का हूं।खैर पहली बार देखा कि मर्द कैसे लड़की को देखता है।साला सामान ही समझता है।और कुछ नहीं।बाद में
उस लड़की को स्कूटर के पीछे बिठा कर घर ला रहा था।रास्ते भर सोचता रहा कि कितना अपमान है।लड़की नहीं होना चाहिए। पहली बार मुझे यह पता चला था कि लड़कों की नज़रें गंदी हो सकती हैं। बुरा या गंदी पता नहीं। अच्छाई के विरोध में तब शब्द भी कम होते थे। उस लड़के ने पसंद नहीं किया। क्या पता किसी और को हनुमान के सामने घूर रहा होगा? पता नहीं।

हिंदुस्तान के लड़के बदसूरत, बेढंग और बेहूदे होते हैं। लड़कियां तो सज कर कुछ बेहतर से बहुत बेहतर लगती रहती हैं। लड़कों के पास नौकरी न हो और समाज में शादी का चलन न हो तो मेरा यकीन है कि लाखों की संख्या में लड़के कुंवारे रह जाते। पिता जी की बात सही लगती रही। आज तक लगती है। शाहरूख ख़ान सिक्स पैक बना रहा है तो मुझे ठीक लगता है। सारे लड़कों को नौकरी के अलावा इस लायक तो होना ही चाहिए कि किसी लड़की की कल्पना लोक में आ सके। वर्ना मैंने शादी से पहले सैंकड़ों मौके देखे हैं जब लड़कियों को लड़कों के सामने दिखाया गया है। एक भी मौके पर किसी भी लड़की ने लड़के की तरफ नज़र उठा कर नहीं देखा। कभी नहीं देखा कि लड़के ने भी लड़की के लिए तस्वीर खिंचाई है। सूट में। स्टुडियो वाले से टाई लेकर। यकीन न हो तो पटना के मौर्या लोक में एक स्टुडियो है। डैफोडिल्स। वहां जाकर पूछ लीजिएगा। यह स्टुडियो स्थानीय स्तर पर लड़कियों की ऐसी तस्वीर तो बना ही देता था कि पहले राउंड में क्लियर हो जाए। और लड़के वाले अपने ड्राइंग रूम में या हनुमान मंदिर में उसे देखने के लिए बुला लें। लड़कियों के सामने लड़कों की तस्वीरों का विकल्प कभी नहीं रहा। क्या पता उन्हें भी पिता जी की तरह लगता हो इंजीनियर ही तो है। जीवन काटना है। हां कह देंगे तो मां बाप है हीं मेरी तरफ से हां कहने के लिए।

मुझे फैशन से चिढ़ है। मेक अप से चिढ़ है। लेकिन जब पढ़ता हूं कि पुरुषों के सजने संवरने का कारोबार हज़ार करोड़ का हो रहा हो तो कभी कभी खुशी होती है। बीते दिनों की ख़राशों पर इसी बात से मरहम लगती होगी। जब मेरी एक दोस्त ने कहा कि शाहरूख इज़ हॉट तो सुनकर अच्छा लगा। एक बार लड़कियों की नज़रे लड़कों को नापने लगे तो कस्बे से लेकर महानगरों के कुंवारे इंजीनियरों, डाक्टरों और एमबीए लड़कों के होश उड़ने लगेंगे। वो भी सिक्स पैक बनाने लगेंगे। बल्कि बना ही रहे हैं।

22 comments:

bhupendra said...

ravish ji aacha likha hai. ladki dekhne jane wale ladkoo ki poll kholkar rakh de hai. ki kya dekhkar shadi karte hai.

said...

रवीश ही नमस्कार,
अब देखिये एक "सामान्य" राइप एज्ड नर किसी राइप एज्ड मादा को सिर्फ़ और सिर्फ़ एक ही नज़र से देख सकता है जिसका व्याख्यान आप अपने चिठ्ठे पर पहले ही कर चुके हैं. अब यदि नर आपकी तरह शरीफ है तो फ़िर भी सिर झुका लेगा मगर आज के लौंडे एकदम बेशरम, बेतरतीब और बेहूदा हैं - नजरों से ही मानसिक वीभत्सीकरण करने की क्षमता रखते हैं.

वैसे बड़े शहरों में तो आज लड़कियां मांग करने की स्तिथि में हैं मगर गाव देहात में बदलाव आने में थोड़ा वक्त लगेगा. आत्मनिर्भरता में बहुत शक्ति है !

ghughutibasuti said...

अच्छा लिखा है । यदि लड़के लड़कियाँ अपनी पसन्द से विवाह करने लगें तो यह सब झंझट ही ना रहे । पर आपका लेख पढ़कर एक मजेदार किस्सा याद आ गया जो फिर कभी । सोचती हूँ कि वह लड़का /पुरुष भी क्या सोचता होगा । :D
घुघूती बासूती

आलोक said...

लाख टके की बात कही है आपने। अफ़सोस यह है कि अब लड़कियाँ भी लड़कों को सामान समझने लगी हैं - यानी वही, पहली एक वर्ण द्वारा शोषण, उसके बदले में दूसरे वर्ग द्वारा आरक्षण की आक्रामक माँग। पर ठीक है, धीरे धीरे दोनो छोर मिलेंगे, पर इसमें कम से कम दो पीढ़ी लगेंगे।

Dipti said...

एक और बात जो मेट्रीमोनियल कालम में आजकल होती है, वो है कान्वेन्ट में पढ़ी लड़कियों की डिमान्ड। अंग्रेजी माध्यम की पढ़ी लड़कियों में शादी के हिसाब से कौन से सुर खाब के पर होते है,ये समझ नही आता। इस बात से मेरे घर वाले बड़े परेशान रहते हैं। कि उनकी इस हिन्दी माध्यम में पढ़ी बेटी का क्या होगा।

दीप्ति।

Ranjan said...

रवीश ,

बात आपने सही कही है ! लडके खुद तो "चेथरिया" स्कुल से पढते है और "बीबी" कोन्वेन्त वाली चहिये !

फ़िर भी - "बर्तुहारी" एक कला है !

Rakesh Kumar Singh said...

बहुत खू़ब रवीश भाई. दिल को छू गया आपका लेख. कम से कम एक दर्जन बार लड़की दिखाने की महत्त्वपूर्ण रस्मअदायगी का हिस्सा होना पड़ा. हर बार लगा जलील हुआ.

Ashish Maharishi said...

बाजार की माया अपरमपार है रवीश जी...आप हैं कहाँ??

मनीषा पांडे said...

बहुत सही रवीश। सही सुर पकड़ा है और बात भी सोलह आना खरी।

Neelima said...

बहुत खरा कहा रवीश जी ! वैसे अपने शहर की बात करूं तो नंदनगरी ,गोकुलपुरी ,जाफराबाद जैसे इलाकों पर सही बैठती है आपकी बात !पर यदि आप ग्रेटर कैलाश ,वसंतकुंज जैसे इलाकों को देखॆं तो बसती है वो आधी आबादी जहां लग़डके भी रिजेक्ट सिलेक्ट होने की प्रक्रियाऑं से गुजर रहे हैं उअर अपनी चमडी की देखभाल की चिंता में पगे हुए हैं !

संजय शर्मा said...

बहुत खूब रवीश जी, साले का मांस उतार लिया जाय, हड्डी रहने दिया जाय वाले सिधांत का प्रतिपालन करता ये पोस्ट निश्चय ही फलित होगा . बहुत लम्बी लड़ाई की जरूरत है , जंग जारी रहे . आज चवन्नी डॉलर का डिमांड
करता है . "बाप का नाम साग-पात बेटा का नाम परोर "{परवल } रुक-रुक के २-४ पोस्ट और मारिये कुछ तो
लाईन पर आएगा .

Nikhil said...

रवीश जी,
उम्र में थोड़ा छोटा हूँ आपसे मगर अनुभव बहुत अलग नही हैं...मेरी बहनें भी "मिल्की व्हाईट" लडकियां ढूँढने वाले अगुओं के सानिध्य में ही गुजरी हैं....
आपके लेख से अक्सर ख़ुद को जुदा हुआ महसूस करता हूँ..इतना सच्चा लिख पाने के लिए बहुत हौसला चाहिए...
बधाई फ़िर सभ्य को तमाचा मारने के लिए

निखिल आनंद गिरि
www.hindyugm.com

मनीषा पांडे said...

एक बात और कहनी रह गई। अच्‍छा हुआ, ये बातें तुमने लिखी हैं। किसी स्‍त्री ने लिखी होतीं तो ऐसे कमेंट आते - ओह फ्रस्‍टेटेट वुमेन, फेमिनिस्‍ट, मैन हेटर, रिएक्‍शनरी, लेस्बियन। तुमने लिखा तो ठीक। सारे पुरुष ताली बजा रहे हैं, सालों की पोल खोल दी, कहकर पीठ थपथपा रहे हैं। स्त्रियां लिखें तो बर्दाश्‍त नहीं होता। पें-पें, टें-टें करने लगते हैं। ऐसी और ढेरों बातें लिखो। पुरुषों के मुंह से ज्‍यादा कन्‍िविंसिंग लगता है लोगों को। स्त्रियों की बातों को लोग उतना सीरियसली नहीं लेते।

आलोक said...

स्त्रियों की बातों को लोग उतना सीरियसली नहीं लेते।

आजमा के तो देखिए।

कितनी स्त्रियाँ लिख रही हैं इस तरह? बेनामी तौर पर भी लिख सकती हैं, कितनी लिखती हैं? क्या स्त्रियाँ खुद आश्वस्त हैं अपने बारे में?

और कोई और गंभीरता से नहीं लेगा इसलिए स्त्रियाँ
बोलना बंद कर दें
? इस प्रकार का अफ़सोस जताना हारे हुए लोगों की निशानी है।

manish said...

raveesh ji jis speed se hum ajanmi ladkiyon ko maar rahe hain use dekhte hue haalat ulte hone main bahut samay lane wala nahin hai. balki kuch shuruaat to ho bhi chuki hai. aam middle class parivaaron main hone wale sambandhon main ab ladke ki pagaar aham mudda ho gaya hai. khas taour per jin logon ki ek hi beti hoti vo to bahut jaanch parakh kar rishta karne lage hain. jaipur jaise shahron main bhi 10 hajaar se kam kamane waale ladkon ki shaadi hona mushkil hota ja raha hai. ladkiyon ko sirf salmaan ya ritik jaisi body hi nahin moti pagaar bhi chahiye, isliye dakhne-dikhane ka silsila to donon tarf se shuru ho chuka hai

संजय शर्मा said...

मनीषा जी,
सही, तार्किक बातों का समर्थन होता आया है, होता रहेगा/ चाहे वो बातें पुरूष करे या नारी / लड़की दिखाने अगर चाची, मामी, मौसी, माँ या बड़ी बहन जाती है तो देखने का शुभ कार्य भी इन्ही का ज्यादातर होता है तो जाहिर है स्वीकृति /अस्वीकृति की मुहर ये लोग ही लगाते रहे हैं. आंकडे मेरे पास नही होते . आस पास के सेलेक्शन ,रिजेक्शन पर गौर किया जाय . सत्य से दर्शन होगा. ''बहुत सुंदर लिखा है " दिल को छू गया " झकझोर के रख दिया आपने" इस टाइप के कमेंट्स फालतू फंड के लेख और कविता को मिलते रहे हैं ,और खास कर लड़कियों को मिलते रहे है / लड़के ने नही आज किसी लड़की ने ही एक ग़लत परम्परा का शिलान्यास किया है कमेंट्स पर कमेंट्स ड़ाल कर / रबिश जी को बहुत कमेंट्स आए थे ''सड़क छाप सी. एम " पर तब आप उपस्थित नही हुईं ?

Manoj said...

रवीश जी,
After reading ur blogs for quite a while, i was wondering that what was the last thing u found positive in ur surroundings?
आपको हिंदुस्तान के लड़के "बदसूरत, बेढंग और बेहूदे" लगते हैं? क्या आप बता सकते हैं की किस देश के लड़के आपको खूबसूरत, सलीके वाले और शरीफ लगते हैं?
sir ji, मुझे नही पता कि ये सब आप सिर्फ़ लिखने के लिए लिखते हैं या सही मे महसूस भी करते हैं? अपने आप को प्यार कर सकने कि हिम्मत जुटाइएये, रवीश जी. और जब मैं अपने आप को बोल रहा हूँ तो उसमे सिर्फ़ आपकी खूबसूरत शरीर ही नही, आपका जन्मस्थान आपके लोग और आपका राज्य /देश और उसकी कुछ परम्पराएं भी शामिल है.
जिन लड़कियों कि आप हिमायत कर रहे हैं, क्या बता सकते हैं कि उनमे कौन सी ऐसी खाशियत है कि जिसके दम पर वो एक handsome and dazzling लड़कों को पा सकें? क्या अपने परिवार के सहयोग के बिना वो इस दुनिया मे १० दिन भी इज्ज़त के साथ रह सकती हैं? इसमे दोष दुनिया का है या उनका , इस पर बहस कि जा सकती है..पर फिलहाल सत्य यही है...
दुनिया Demand-Supply पर चलती है .... आप और हम चाहें या नही , ये basic सत्य है.... जिस तरह आज कई लड़किआं अपने choice से शादी कर रही हैं, ये इसी बात का सबूत है कि पहले पात्रता साबित करो और फिर अधिकारों कि बात करना.... एक बार आप ये साबित कर दें कि आप एक बेहतर लड़के के काबिल हैं, आपकी probability काफ़ी बढ़ जायेगी, मनपसंद लड़का पाने कि....again, it's probability not Guaranty.... Life is not an equal field....

Manoj

पुनीत ओमर said...

जल्दी ही इन सब प्रक्रियाओ से गुजरने वाला ह, तो काफी कुछ सोचने के लिए विवश कर दिया आपने. पर एक आध बार सोचता हूँ तो ये भी लगता है कि हमारे बुजुर्ग लोग (वो जो पहले से ही सालो पहले से विवाहित हैं ) ऐसा कर रहे हैं. तो बच्चा जो अभी विवाहित भी नही है, कैसे इस पूरी की पूरी प्रक्रिया से बगावत कर दे. उसकी सोच और उसकी परिपक्वता का प्रमाण कहाँ है कोई?

Dr Rajesh Paswan said...

Ravish ji, sahi likha aapne.
shadi me larke wale, larki walo se wahi ummid rakhte hai, jise shadi ke bad we galat mante hai. jin kasautio par shadi se pahle larki ko kasa jata hai, yadi larkiya shadi ke bad waisa hi karne lage tois duniya me pralay aa jay. shadi se pahle ye dekhte hai ki larki 'milki wahite' hai ya nahi. lambi kitni hai (jaise ki shadi ke bad army ki traing me bhejna ho).shadi ke bad ye ummid karte hai ki maa, bap ki respect kare, jaban nahi hilae, sunder hai to makeup nahi kare,"jahe vidhi rakhe ram, tahe vidhi rahie". kya kijieaga, bhartiya samaj hi aisa hai ki jo kahata hai usse ulta kam karta hai. ak achhi bat hai. aapke is blog par ausat roop se mahilaon ki adhik comment aaye hai. MAi manisha ji ki bat se sahmat hu. ha yadi iasi hi bate mahilae bhi likhe to aapse adhik pramanik aur jenuin hongi.
Rajesh Paswan
paswan_rajesh@yahoo.co.in

ram shankar said...

sach mein apne yahan ki shadi ki riti hi kuchh aisi hai ki ladki har jagah apmanit hoti hai. ab baap hi bataiye ki yadi koi ladki aishwarya ya kareena jaisi khoobsurat nahin hai to bhala ismen uska kya dosh. par baat yahin khatma nahin hoti jab usi ladki ki bhai ki shadi ki baat hoti hai to ek aur ladki ke sath wahi kahani duhrai jati hai. aakhir aisa kab tak chalta rahega.

Vivek Kumar Gupta said...

ye kahaani nahi vastwikataa hai. Mere samne puri chalchitra chal rahi thi kahani padhte samay. Is tarah ki ghatnaye aksar hi sunane me aati hain, khas kar gaon me to sahdiyon ko kaatne wale bahut log dekhen hai jo aapsi dusmani nikaalte hai. App ki lekhni bahut hi chitratmak hai use aise hi kharch karte rahen....

Vivek Kumar Gupta said...

Vivek Kumar Gupta