खोड़ा से मीनू रोज़ बिना नागा काम करने आती हैं। गंगा की समय प्रतिबद्धता लाजवाब है। मैं सत्याग्रह और अहिंसा पर स्क्रिप्ट लिखने में व्यस्त था। अचानक मीनू अंदर आई और खुशी से लबालब नयना से बोलने लगीं। अरे भाभी मेरी बेटी को बेटा हो गया है। पता है सास ने एक हज़ार एक रुपये नर्स को दे दिये। उसकी सास बहुत ख़ुश है। तो अब सब ठीक हो गया मीनू घर में, हां भाभी, पोता होते ही बेटी से सबका व्यवहार बदल गया है। तभी तो हज़ार रुपये दिये नर्स को। क्या बताऊं, एक दम अंग्रेज़ जैसा है। उनकी फैमिली में तो सब कट हैं। ये एकदम कट नहीं है। तब मुझे मुड़ना पड़ा और पूछना पड़ा कि कट क्या होता है। कट मतलब किसी की शक्ल अच्छी नहीं है। सब के सब सांवले भी हैं। लेकिन मेरे नाती की शक्ल भैया बहुत अच्छी है। सही कह रही हूं लगता है अंग्रेज़ ही आ गया है। तो अब ठीक है न। सास तंग तो नहीं करेगी बेटी को। नहीं अब नहीं करेगी।
यही मीनू दो महीने पहले भी आई थी। दहाड़ मार कर रोने लगी कि भैया कुछ करो। मेरी बेटी को पति और ससुराल वाले बहुत मारते हैं। दहेज़ में तीन लाख रुपये दे चुकी हूं। घर घर जाकर काम कर अपनी आजीविका चलाने वाली मीनू ने तीन लाख रुपये दहेज़ के कहां से लाए। जितना कमाती हूं सब ससुराल वालों को दे आती हूं। वे लोग और मांग रहे हैं। आप पुलिस वाले से बोल कर कुछ करा दो। बहुत तक़लीफ़ होती है जब बेटी को मारते हैं तो। देखा नहीं जाता है भैया। कभी यह काम किया तो नहीं है लेकिन उस दिन बोल ही दिया मीनू तुम दोनों को घर ले आना। पहले बात करूंगा और तुमको लगता है कि पुलिस से बात करने से कुछ हो सकता है तो चलूंगा। करोलबाग के एस एच ओ से मिलकर बात करते हैं। मीनू रोज़ आती रही मगर फिर कभी इस बात को नहीं छेड़ा।
मीनू आज भी खुश ही थी तो फिर मैंने पूछ लिया कि अब बेटी के साथ सब ठीक है। नहीं भइया। फिर से वही हो गया। पोता मिल गया न तो सास को लगता है कि मेरी बेटी चली भी जाए तो क्या फर्क पड़ता है। उसको आपरेशन हुआ है और ज़ोर कर रही है कि नहा ले। सोच रहा हूं कि समाज में व्याप्त हिंसा कैसे जाएगी। कब जाएगी। आम ज़िंदगी में कितनी तक़लीफ़ है। इन मर्दों का कुछ करो भाई।
(मैंने नाम बदल दिया है। मीनू असली नाम नहीं है)
44 comments:
मर्द अंग्रेज का बाप है। जुल्म उसके खून में है।
sir mardo ka nahi aurato ka.. Jaise aapne bataya hai.. uski saas use tang kar rahi hai.. Uske pati ka gunah hai. aur use sabak sikhana chahiye lekin utni hi gunegaar saas bhi hai. aur is ke liye sabse jyada jaruri hai hamari mansikta badalna..
shayad hum is muskil se kabhi ni nikal paenge, pehle lagta tha ki ye atyachar sirf unpadho aur garib tabko k beech hi hota tha, fir pata chala ki is gunaah k jimmedar high society aur seher k log hi jada hai.gaon me to aaj b ladki hone ka jasn manaya jata hai. Nahi pata ye bimari kab jaegi log apne vansh k baare me chod kar kab apni beti k baare me sochenge. Mere ghar me hi lahja badal jata hai btane ka jb lakdi hoti hai. Nahi pata hum kab jagruk ho paenge.
जिस घर-समाज में महिलाओं का सम्मान न हो,उन्हें अपने हिसाब से जीने का अधिकार न हो, वो इनसानों नहीं भूतों का डेरा होता है...
I saw your programme on Khoda which NDTV repeated few months back with a different anchor. I was surprised to see the plight of people in Khoda. There is a saying, Aa gaya hai Khoda, saans rok lo thoda. How our politicians let people live in inhuman circumstances and these very patriach of environment give non stop lecture without looking back the plight of people of Khoda and similar other thousand of human bastis. We may have shot in air many missiles, but on human front, we are toeing the line of britishers, i.e. don't give them more. It was a very touchy programme and we cannot expect this from 5-star editors like Barkha Dutt, Rajdeep Sardesai and Vinod Dua who has admitted that he is the one who eat for people.
Rajinder Katoch
9873018558
ये दोस सिर्फ मर्द या औरत का नहीं है ये समाज की सोच को दर्शाता है it's so called inheritance पता नहीं कब सुधरेगा
कसमसा कर रहने के अलावा ऐसा लगता है कुछ नहीं कर सकते.किस-किस की तो शिकायत करे.जब भी ऐसा कुछ पढने ,सुनने या देखने को मिलता है,तो बहुत गुस्सा आता है.मेरे मामा की लडकी खुद यही जिल्लत सहन कर रही है.मामा भी उतना ही दोषी है.लगता है पढना लिखना सब बेकार है.बस अपने को सुधार सकते है या लिख सकते है............
बहुत आत्मा द्रवित करने वाली घटनाये हैं ये सा धन्वाद आप जैसे पत्रकारों का .....
इन ना-मर्दों (मीनू का दामाद ) का कुछ करो
सत्यमेव जयते खत्म.....पैसे हजम....चलो अगला काम देखते हैं...बहुत काम है भई...
yeh mard ya aurat hone ka phark nahi hai,yeh samaj ke najariya ka problem hai,badlna mushkil hai,kya kare solution kaun dega,saab politics karte hai jaminee halat sirf wahi tak rukte hai kua
जब तक नारियों को समाज में प्रतिष्ठा या जननी के रूप में देखा नहीं जायेगा तब टेक ये बदनुमा दाग लगता ही रहेगा समाज के आँचल पर...कोई सर्फ़ एक्स्केल इसे भी धो डालने के लिए इजाद तो हो!
Kasoor kisi ek ka nahin , hum apne aas paas najar dalen ...aisi ghatnayen sab jagah ho rahi hain, magar hum andekha kar jate hain . Jarurat hai hame apna najaria badalne ki...jab hum sanvedansheel banege tabhi samaj aur soch badlegi aur aisi ghatnayen rukengi.........Kya hum apne aap ko badlne ko taiyar hain ? yaa intzar karenge jamana badalne ka.....Navratron mein Kanya Poojan karte hain aur sara saal partadit karte hain. Jai Ho
Kal raat ko Dubai airport pe mere finance consultant ke sath beitha cigaret pi raha thaa. Bahot padhe likhe familiy se hai, Unhone bataya jub unke father ke sister ki birth hui thi tab un ke grand father gussa hoker , relatives ko denewali sab gift vapis (siver box, sweets etc..)de di thi, because he was expecting son. My consultants grand father was well educated, lived in Mumbai,all family have british passport and he refused to accept daughter as child, aise padhe likhe paisewalo logo ke family mai ye halaat hai
iski jyaada vajah hamari religious belief hai, beta hoga to baap or maa swarg mai jayega etc..abhi bhi bahut saare log mante hai
हमें लगा कि मोक्षै मिल गया है..
एक लम्बी आह लेकर सिर्फ यही कहा जा सकता है - वो सुबह कभी तो आएगी.......!!!
Sir, This is only your capability to express such things from the daily course of life.
We people have lost our sensibleness.
I salute you, Sir.
Rahul Gupta
Sir,
This is your tallent. You are keep all of us human.
We all remained busy in whatever but are busy for the issues like these.
I salute you for such touchy lines from the normal course of life.
Regards,
Rahul..
prabhat bhai .... Sahi kaha..badhai
prabhat bhai .... Sahi kaha..badhai
prabhat bhai .... Sahi kaha..badhai
Jab tak hamare samaj me paise aur putra(son) ki varchaswata rahegi tab tak is tarah ke udahran milte rahenge. Samasya ye bhi hai ki jab ek saas jo ki khud ek aurat hai , bhi dusri aurat yani apni bahu ki dushman bani hui hai to phir sirf mardon ko dosh dene se kya fayda. Ye mard ya aurat ki nahi gandi mansikta ka parinam hai.
this is what we called "nari sashktikaran" pati ke vetan se adha paisa lo aur chup raho. agar nari ko samman dena hi hai to guvahati aur gudgaun ke gunahgaron ko saja dijiye aur kahiye ki jo bhi ab aisa karega use hum aisi saja denge.paisa de dena samsya ka samadhan nahi hai.iska ek pahlu yeh bhi hai ki mahilayen paise se koi acchi cheez kharidengi ya pura paisa fair&lovely me hi uda dengi
Aurat hi Aurat ki sabse badi dushman hai. kabhi saas k roop mein toh kabhi sotan ke roop mein aurat hi aurat pe atyachar karti hai aur badnaam purshon ko kiya jata hai.
Aurat hi Aurat k sabse badi dushman hoti hai aur Ravishji aapne jis ghatna ka jikr kiya hai, usse yeh baat ek baar phir sabit ho gayi.
Maaf kijiyega par ek ladki hone ke naate main kahin na kahin ladkiyon ko bhi is sthiti ke liye doshi manti hun. Agar sabhi dharmik pravachano ko hata kar dekhein to vastvikta mein bete ka sthan isliye mahatvapurn mana jaat hai kyunki budhape mein maan baap ke bharan poshan ka dayitva ladke pe hota hai. Chunki aarthic suraksha ladke dete hain to jaahir hai unhe prathmikta di jayegi. Ab agar yehi aarthik suraksha betiyan dene lagein to betiyon ke prati vichadhaar badlegi. Sirf shaadi ho jane ke karan maa baap ki jimmedari se farig nahi ho sakti ladkiyan. Maa baap jitne bhai ke hain utne hi mere aur isliye mera dayitva hai ki unhe wahi suraksha wahi bharosa dun jo bhai deta hai. Ye keval kori philosphy nahi hai maine sach mein mansikta aur vyavhar badalte hue dekha hai.
पड़ने में अच्छा लगा।इस सच्चाई को सभी जानते है स्वीकारने के लिए हमें आप जैसे बाजीगर की लेखनी का सहारा लेना पड़ता है।सच्चाई पता नहीं अब सीधे सपाट जल्दी से समझ से दूर हो गया है जब तक की शब्दों को संगीतमय लय बद्द न किया जाये इसकी गंभीरता का पता नहीं चलता। फिर भी खुद में विचारो का तरंग टकराता रहता है की इस तरह की सच्चाई के प्रती विछुब्धता दिखा रहे या सिर्फ लेखनी की कला से खुश हो रहे है।
बस्तुतः इस समस्या का सम्बन्ध किसी वर्ग विशेस से न होकर संस्कारगत है।और ये समाज के निम्न वर्ग से लेकर उच्च पड़े लिखे जिसे हम अपनी भाषा में कहते है उन सभी में किसी में किसी न किसी रूप में यह समस्या बिभिन्न रूप रंग में अपनी उपस्थिति दर्ज करता है।हमरा समाज बस्तुतः एक बहुरुपिया समाज है जहा सच्चाई अपने अपने जरूरतों और मतलबो के अनुसार हम उसे स्वीकार करते है।डार्विन के क्रमिक विकासवाद का सिद्धांत तो यहाँ सही लगता है की आज का मानव जानवरों के क्रमिक परिवर्तन का फल है शायद ये परिवर्तन सोच को पूरी तरह से परिवर्तित नहीं कर पाया।तभी तो इस तरह की पाशविक क्रिया का किसी न किसी रूप में हमारे सामने आता रहता है।
देखिये इस सच्चाई से इंकार नहीं किया जा सकता है की महिला ही महिला की सबसे बड़ी दुश्मन है।अब इस परिवार और समाज को भी इतने ऋणों और भार से ग्रसित कर रखा गया है की कोई बेचरा इन सब परिस्थितियो से न सहमत होते हुए भी पितृ और मात्री ऋण की दुहाई या लो बेटा अभी से बहु की तरफदारी जैसे तानो से कई बार शुरू में इस तरह के वाक्ये को नजरंदाज कर जाता है जिसकी परिणिति को बाद में चाहते हुए भी टल नहीं पता।फिर भी आज के समय में ये हो रहा है पता नहीं किस उन्नति और मानसिक विकास को कैसे परिभाषित किया जाता है।
Dear Ravish,
Like your writing and program on NDTV specially Prime Time.
Following your path.Writing blog at
http://ajayekal.blogspot.in
have look and comment.
Ajay singh "ekal"
Sir ji you are 100% right. We are not civilized yet, even though, our tradition may be 5000 years old.
Theek! aisi hi hai maansikta.
yeh kahani kewal garibo ke ghar ki hi nahi balki kai padhe-likhe gharon ki kahani hai. aur is mansikata ko badhawa dene main aurto ka bhi yogdan hai.
yeh kahani kewal garibo ke ghar ki hi nahi balki kai padhe-likhe gharon ki kahani hai. aur is mansikata ko badhawa dene main aurto ka bhi yogdan hai.
yehi to saccai hai janab
सर आपने मुझे क्यों ब्लॉक कर दिया twitter pe? मैने तो कुछ कहा ही नही....और तो और मैने किसी क लिए भी ग़लत ट्वीट नही किया था..फिर भी .. @AapCommunalHain
simply fantastic..
Sir
Angrez keval afsaron mein hi nahi, thoda bahut yahan sabke andar ghusa padaa hai( Wo chahe Meenu kee saas ho ya uska pati ho. uchchadhikari to angrez hain hi). Kya pata isiliye shastron mein kaha gaya ho ki sabhi jeev barabar hain!
VERY TOUCHING STORY...INDEED,.. .....na mard bure hoten haain naa auraten
....RAVISH JEE ISS BANTE HUE SAMAZ KO AUR NAA BAANTIYE.
....POLITICIANS NE JATI PATI MEIN ITNA BAANT DIYA HAI PEHLE SE HI.
.....BELIVE ME SINCE MY 20 YRS OF AGE WHEN I WAS BEING BROUGHT UP IN MUMB I KNEW HARDLY ANYTHING ABOUT THE JAT-PAT
IT IS ONLY AFTER COMING TO DELHI I WAS ENLIGHTENED ABOUT DIVISION AND GENERALISATIONS
"गंगा की समय प्रतिबद्धता"
मैं इस वाक्य का मतलब नहीं समझा। बहरहाल, यही कहानी हमारे यहां खाना बनाने वाली की है। वह सुबह-शाम मेहनत करती है और पति दिन भर दारू पीकर पड़ा रहता है। रात को उसे मारता-पीटता है। बावजूद इसके इस साहसी महिला ने अपनी लिए नोएडा में जमीन का टुकड़ा खरीदा था कुछ साल पहले, लेकिन अब पति को पता चल गया है तो वह उसे बेचना चाहता है। सबकी यही कहानी है।
No word sir you r great
thanks.
Sir apki har comment fb Twitter aur aapka 9 pm prime Time dekhtahun ....apka blog bi.....bas sochta hun kya gazab ka insasan hai ..bas aapki soch ko.salam KARTA hun...
sir i want to share some personnel comment on your emai can get it .you know my id.
Humare yahan nazeer pesh karne wale supreme court ne bhi kuchh din pahle ek vyakti ko fansi isliye de di kyunki aaropi ne ek parivar ke eklaute bete ko maar diya tha aur court ne ise kulvansh ka nash hona bataya aise na jane kitne mamle aaye is desh me jisme eklauti santaan beti hone par aise nirnay nhi diye gaye...aur to aarushi ka mamla hi dekh lo use insaaf kab milega ye to khuda bhi nhi janta...
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