आपने सत्यनारायण गंगाराम पित्रोदा के बारे में तो सुना ही होगा। तीस सालों से जो भारतीय सत्ता के शिखर तबके में सैम पित्रोदा नाम से जाने जाते हैं। उत्तर प्रदेश के रमाबाई नगर की एक रैली में जब राहुल गांधी ने सैम पित्रोदा के नाम का असली विस्तार बताया तो वहां मौजूद भीड़ में कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। राहुल उस भीड़ को बता रहे थे कि भारत में दूरसंचार क्रांति के लेखक सैम पित्रोदा हैं और सैम विश्वकर्मा जाति के हैं यानि अति पिछड़े वर्ग से आते हैं। मैं बचपन से सैम पित्रोदा के बारे में एक रहस्य की तरह पढ़ रहा हूं। जैसा कि हर स्कूली छात्र का मासूम मन होता है मैं भी सैम को एक ऐसे शख्स के रूप में जानता रहा मानो वो भारत की समस्याओं के कोई टेक्नो दैवी रूप रहे हों। अब मैं सैम को इस नज़र से नहीं देखा मगर हैरानी हो रही है कि मैंने अब तक सैम को सत्यनारायण गंगाराम पित्रोदा यानी विश्वकर्मा जाति के प्रतीक के रूप में क्यों नहीं देखा था। राहुल गांधी ने क्या इस चुनाव से पहले कभी सैम को देखा होगा? क्या उनके पिता राजीव गांधी ने सैम से दोस्ती किसी जातिगत राजनीतिक समीकरणों को ध्यान में रखकर की थी? अगर ऐसा था तो राजीव कभी सैम को चुनावी सभाओं में नहीं ले गए। एकाध अपवाद हों तो माफी चाहूंगा मगर जो सैम टैक्नो क्रांति के गैर जातीय और गैर क्षेत्रीय प्रतीक रहे हों वो उत्तर प्रदेश के चुनावी मैदान में विश्वकर्मा जाति के निकल आए तो इस सामान्य समझ कर नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
यह खोज मौलिक रूप से राहुल गांधी की ही रही होगी। उत्तर प्रदेश में अति पिछड़ों की मदद से मायावती ने पिछली बार अपनी ज़बरदस्त जीत का जाल बुना था। राहुल इसमें सेंध लगाना चाहते हैं। इसलिए वो मंच पर मौजूद अति पिछड़े नेताओं की तरफ इशारा कर रैली में आए लोगों को बता रहे थे कि आप भी आगे बढ़ेंगे। वो मुलायम सिंह के गढ़ में भी घूमते रहे। जिनका पिछड़ी जातियों पर कब्जा रहा है। राहुल के ही इशारे पर कुर्मी जाति में पकड़ रखने वाले पूर्व समाजवादी नेता और कांग्रेस सांसद बेनी प्रसाद वर्ना को कबीना मंत्री भी बनाया गया। अब सवाल यह उठता है कि क्या एक नितांत गैर जातिवादी माहौल में पला बढ़ा यह युवा राजनेता राजनीति की व्यावहारिकता को समझने लगा है? राहुल गांधी कांग्रेस पार्टी के भीतर बदलाव के लिए निकले थे। युवा कांग्रेस में लोकतंत्र की बहाली के लिए एक किस्म की राजनीतिक प्रतिस्पर्धा कायम कर रहे हैं जिसका मूल इस बात में बताया जाता रहा कि जो ज़मीन के स्तर पर लोकप्रिय होगा वही चुनकर युवा कांग्रेस में नेता बनेगा। तो क्या यह राजनीतिक जानकारों की कमी थी जो यही देखते रहे कि राहुल गांधी प्रतिभा को मौका दे रहे हैं, पृष्ठभूमि को नहीं। क्यों यह माना जाने लगा कि यह युवा राजनेता बीसवीं सदी की जकड़नों में फंसी राजनीतिक समीकरणों से निकलने का कोई रास्ता ढूंढ रहा है? अगर ऐसा ही था तो क्या राहुल गांधी का विश्वास कमज़ोर पड़ रहा है? क्या वो मायावती और मुलायम सिंह यादव के जातिगत समीकरणों का काट उन्हीं के फार्मूले से देने लगे हैं?
दरअसल राहुल गांधी कई स्तरों पर बदल रहे हैं। वो समझ रहे हैं कि दिल्ली की जनता या ट्वीटर जमात को सबसे पहले भारतीय वाले नारे से खुश किया जा सकता है मगर वोट नहीं बटोरा जा सकता है। वोट बटोरने के लिए ज़रूरी है कि सैम पित्रोदा अब अति पिछड़े के रूप में आगे आएं। ये सैम पित्रोदा की नाकामी है कि उन्होंने जिस कांग्रेस पार्टी के नेताओं से नज़दीकी का लाभ लिया और कई काम अच्छे भी किये मगर खुद को विश्वकर्मा जाति के रूप में पेश नहीं किया जिससे वे कांग्रेस के काम आ सके। अच्छा राहुल गांधी बदल रहे हैं। सात साल से उत्तर प्रदेश की लगातार यात्राओं ने उनकी सोच बदल दिया है। वो लड़ रहे हैं और ज़रूरत पड़ने पर भिड़ रहे हैं। अपने गुस्से को ज़ाहिर करते हुए एंग्री यंग मैन की छवि देने की कोशिश करते हैं मगर गांव कस्बों के वोटरों के लिए जातिगत नायकों को ढूंढ रहे हैं।
सिर्फ जाति के आधार पर ही नहीं। राहुल गांधी बदायूं की आलिया कादरिया मदरसा पहुंच गए। नमाज़ी टोपी पहनकर छात्रों से गले मिलने लगे। लखनऊ में थे तो इस्लामी शिक्षा के केंद्र नदवातुल विश्वविद्लाय चले गए। यह सब वो केंद्र रहे हैं जो कई कारणों से बाबरी मस्जिद के खिलाफ चले राजनीतिक आंदोलन के दौरान चर्चा में रहे थे। हर जगह जाने के बहाने अलग हैं। कहीं शिक्षा के अधिकार के तहत मदरसों का मामला हो तो कहीं मुसलमानों को आरक्षण देने का मसला। राहुल यूपी के चुनावी मैदान में उसके सारे पुराने हथियारों से ही लड़ रहे हैं। उनके अभियान के बाद कांग्रेस के नेता खुल कर पिछड़े मुसलमानों को आरक्षण देने के मसले पर बोल रहे हैं। वो फिर से उस पुराने कांग्रेस की जमीन खोज रहे हैं जिसने कांग्रेस को लंबे समय तक सत्ता दी। क्या यह मुमकिन है? देखना होगा कि एक साल कई कार्ड खेलते हुए राहुल गांधी कांग्रेस को यूपी की सत्ता में ला पाते हैं या नहीं? उनका एक्का तो यूपी के विकास का मुद्दा है मगर बाकी पत्तियों को वो उनकी चाल के मुताबिक ही फेंक रहे हैं।
राहुल गांधी क्या बेसब्र होते जा रहे हैं? उन्होंने खुद को उत्तर प्रदेश के चुनाव से इतना जोड़ लिया है कि अगर नतीजे नहीं आए तो उनकी व्यक्तिगत नाकामी समझी जाएगी । यह एक बड़ा जोखिम है जिसकी ज़रूरत नहीं थी। राष्ट्रीय मुद्दों से उनकी अनुपस्थिति उनका पीछा कर रही है और करेगी। लेकिन क्या राहुल गांधी खुद को विकास और जातिगत राजनीति के मिश्रण के मुताबिक ढालने लगे हैं। जो लोग राहुल गांधी से राजनीतिक कारणों से मिलते रहे हैं वो हमेशा ये बात कहते हैं कि इलाके के तमाम समीकरणों की वे पूरी जानकारी रखते हैं मगर वो इन समीकरणों से आजाद एक ऐसा स्थानीय लीडर ढूंढ रहे हैं जो उनकी फौज को नया चेहरा दे सके। राहुल अगर यूपी का मैदान जीत भी गए तो क्या वो राहुल गांधी होंगे जिसकी छवि उन्होंने खुद बनाई या वो राहुल गांधी होंगे जिसे आप एक नए मुलायम या नई मायावती का संस्करण के रूप में देख सकेंगे। ऐसे निष्कर्ष के लिए जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए मगर अगर ऐसा हो जाए तो हैरान भी नहीं होना चाहिए। राहुल गांधी उत्तर प्रदेश में सोई हुई कांग्रेस को लड़ना तो सीखा रहे हैं मगर हथियार वही पुराने हैं जिसके वापस मिलने के इंतज़ार में कांग्रेस यूपी में हारती रही है। पिछले लोकसभा के नतीजों से उत्साहित राहुल गांधी के पास वक्त कम है और उत्तर प्रदेश की चुनौती बड़ी। याद रखियेगा उन छवियों को जिन्हें राहुल ने लोगों के घर पहुंच कर खुद बनाई। एक ऐसे नेता की छवि जिसके लिए जनता जाति या धर्म से ऊपर है। जिसके लिए कभी सैम पित्रोदा विश्वकर्मा जाति के नहीं हुआ करते थे।
(यह लेख राजस्थान पत्रिका में छप चुका है)
24 comments:
bharat ki jatigat sanrachna me bina jatigat bato ke aap election nahi jeet sakte
Dekh bhai dekh
ek janhit sndes,
sochne wali baat akhi apne..khup acha likha
he is also UNSUNG hero of India !
abhi toh leader chahiye na ke aise politician. kuch waqt pehle rahul gandhi se bahut umeed thi lekin ab lagta hai global level mai apni koi aukat rahegi ya ni(tradition aur values alag bat hai)....apni taraf se toh sab karunga naukri milne ke baad
yahan par Bihar age nikal jata hai UP se ...ab ye official ho chuka hai. rajneeti to wahi jatigat rahe hain...muslim arakshan ki bhi ...wahi sari cheezen jispe netaon ko ham ghrina ki drishti se dekhte hain. ab dekhna hai ki vikas kya layenge...ye Mayawati jaisa kya administration dila poayenge...yahan bhi raj thakre ki tarah koi gunda palwa denge...UP wale bhule nahin hain...kahan the Rahul? jab latiyaye jaa rahe the UOP wale bhaiya? kyun nahin rukwa diye? inhi ki sarkar thi...ab naseehat de rahe hain ...ki kab tak bheekh mangte rahoge?
भारत में किसी भी राजनितिक पार्टियों जाती के उपर राजनीती नही कि तों चुनावोंमे जीत नही मिलती.
rahul gandhi...ek confusd carrector...usko bhi nahi pata ki wo desh ko aghe badana chahta he ya congres ko...wese uske sath lage hue neta to khud ko aghe badane me yakin rakhte he.jiska rajnetik jeevan mahaj 10 varsh purana aur wo bhi virasat me mili sansadiy seat se ho to kese kah sate he ki usko dekh ki nabj pata he..durbhagya he desh ka jo ese boz ko majburi vash jhel raha he.
Bahut satik vishleshan kiya hai apne ....... as usual in your unimitable style
Swal sirf RAHUL ki mehnat aur unki soch ka nahi hai, bahut kuchh depend karta hai ki rashtriay str ke muddon ke karan congress ke baare mein votres ki vyaktigat soch kya kahti hai.
-Hardeep Singh Bhatia
Yamunanagar (HRY)
राहुल की इस खोज पर पर पुरस्कार!
SAM PITRODA TO VISHWAKARMA JAATI KE HAI....RAHUL KIS JAATI KE HAI ..YE BHI UNHE BATANA CHAHIYE THA TAAKI VOTER KO KOI CONFUSION NA HO..
RAHUL "DISCOVERY OF INDIA "KARTE KARTE YE NAYA SOCIAL DISCOVER KARNE LAGE..JAI HO
रवीशजी, सत्ता के खेल में पुराने औजारों को नया कर चलाने की प्रथा को ही राहुल गाँधी आगे बढ़ा रहे हैं वो एक ऐसे व्यक्तित्व को सारगर्भित कर रहे हैं जो सत्ता पर काबिज होने के लिए कुछ भी कर सकता है. अगर सत्ता की बिसात पर उनकी चली हुई बाजियां सफल होती हैं तो जल्द ही ये देश एक तानाशाह शासक भी देखेगा..
राहुल गांधी राष्ट्रीय नेता हैं जबकि मुलायम सिंह और मायावती प्रदेश स्तर पर ही अभी तक स्थापित हैं। इसलिए राहुल गांधी को ऐसे बयानों से बचना चाहिए जो प्रांत के लिए ही हों। क्योंकि उन्हें सम्पूर्ण देश देख रहा है। यदि नयी पीढी भी जातिवाद को उछालेंगी तब देश का क्या होगा?
If this is the thinking of future prime minister of india.then what will we say about the future of india. will we ever free from binding from cast and religion..
अजीब बात है न ! जो इस देश को बदल सकते है वे या तो अंधे है या बहरे ? या उनमे इच्छा शक्ति नहीं ?
Rahulji kee main problem yeh hai ki unkee center main sarkar hai.Mayawati aur Mulayam se alagh woh apne ko kaise behtar bata sakte hain. Jo yahan Mayawati aur Mulayam ne kiya wohi congress aaj usee kam ko kar rahee hai ya kar chukee hai. Ultimately duniya gol hai. Ek tamil gana hai" Sut Sut de Bhumi" matlab duniya gol gol hai. Ant main sab "Kolavari D" hai
Rahulji kee main problem yeh hai ki unkee center main sarkar hai.Mayawati aur Mulayam se alagh woh apne ko kaise behtar bata sakte hain. Jo yahan Mayawati aur Mulayam ne kiya wohi congress aaj usee kam ko kar rahee hai ya kar chukee hai. Ultimately duniya gol hai. Ek tamil gana hai" Sut Sut de Bhumi" matlab duniya gol gol hai. Ant main sab "Kolavari D" hai
azadi ke pahle se hi angrejo ne is desh ki rajniti me jativad ka virus dal diya hai.
Sam ko bhi apni ye ahmiyat pahle nahin pata hogi, unhen Rahul ko shukriya bolna chaahiye jisne Sam ke andar chipi Vote Bank ke Magnet ko pahchana.
बहुत खूब सर प्रतिक्रिए देना रह गयी थी. आपका लेख अंतिम लाइन तक लेख से अटूट रखे हुए था.
वैसे लेख का नाम और बीच बीच में आपकी सुलझी हुए शब्द बान से दूध का दूध और पानी का पानी होगया..
बहुत खूब सर प्रतिक्रिए देना रह गयी थी. आपका लेख अंतिम लाइन तक लेख से अटूट रखे हुए था.
वैसे लेख का नाम और बीच बीच में आपकी सुलझी हुए शब्द बान से दूध का दूध और पानी का पानी होगया..
रवीश जी देखना पड़ेगा कही कुछ दिनों\में सोनिया जी भी इटालियन SC या बैकवर्ड ना निकल आये
आप एक धर्म निरपेक्ष पार्टी के विषय में लिख रहें है। पर ये सब जाति निरपेक्ष कब होगें।
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