मालवीय नगर की महबूबा और राजा गार्डन का राजकुमार

(1)
राजा गार्डन का राजकुमार अपने घोड़े को लेकर सराय काले खां में सुस्ताने लगा। मालवीय नगर की महबूबा को जैसे ही पता चला कि रायसीना हिल्स के घुड़सवारों की पीठ पर पत्रकार सवार हैं वो हाफंने लगी। ये पत्रकार हर उस निशान की छाप लेकर नार्थ ब्लाक फैक्स कर रहे थे जहां राजा गार्डन के राजकुमार के घोड़े की टाप पड़ी थी। रास्ते में मिले टूटे हुए नाल को लेकर रायसीना हिल्स का एक घुड़सवार तेज़ी से मुड़ गया था। वो पद्मा पुरस्कारों की घोषणा से पहले ही नाल सौंप देना चाहता था। सराय काले खां बस स्टाप पर राजकुमार भेष बदल कर दस रूपये के दस पेचकस बेचने लगा। मालवीय नगर की महबूबा बिग बॉस में एंट्री ले चुकी थी। मगर जैसे ही बिग बॉस ने प्लान ए,प्लान बी और प्लान सी का नाम लिया, आवाज़ सुनकर वो बेहोश हो गई। इस बीच सहारनपुर की तरफ रवाना होती बस से राजकुमार उतरा ही था कि रायसीना हिल्स के घोड़े नज़र आ गए। वो फिर से अलवर जाने वाली बस में सवार हो गया( लघु प्रेम कथा-लप्रेक अन्ना प्रसंग)

(2)
मालवीय नगर की महबूबा फार्मूला वन रेस देखने पहुंच गई। राजकुमार अपने घोड़े पर सवार उसे दिल्ली के अस्तबलों में ढूंढने लगा। शाहरूख़ ने अपनी फिल्म की कामयाबी के बाद दुबई का रास्ता ले लिया और दिग्विजय सिंह आराम से किसी और दिशा में एक और बयान की रचना में खोए गए। मगर घोड़े पर बैठा राजकुमार अपनी पीठ पर मुल्क का मुस्तकबिल लादे भटक रहा था। दोस्तों ने केक काटकर उसका जन्मदिन तो मना लिया मगर फ्रांस की महारानी का जूठन यह केक हिन्दुस्तान के ग़रीब प्रेमी के होठों से लिपट कर घोड़े की लीद बन गया। हिन्दी में कटकटाते उसके दांत कह रहे थे एक पागल आत्मकथा ऐसे ही लिखेगा। मालवीय नगर की महबूबा तो और भी पागल( लप्रेक)

(3)
अपने ही घोड़े के टाप से उड़ते ग़ुबार में राजकुमार को पता ही नहीं चला कि कब जेब से पंडारा रोड के रेस्त्रां की रसीदें उड़ने लगीं। पीछा कर रहे रायसीना के घुड़सवारों ने रसीदों को लपक लिया। किसी ख़तरे को भांप उसने मालवीय नगर की महबूबा से कहा जल्दी से मुड़ो, खिड़की एक्सटेंशन होते हुए साकेत में पीवीआर में रावन देखने बैठ जाओ। मैं ग़ाज़ीपुर होते हुए वसुंधरा चला जाता हूं। हमें प्यार करने से पहले सोच लेना चाहिए था कि इस मुल्क में मोहब्बत भी भ्रष्टाचार है। मालवीय नगर की महबूबा बोली, रायसीना के घुड़सवार वहां भी पहुंच गए तो? तो फिर तुम पीवीआर में ही किसी का दामन थाम लेना। मैं भागता हुआ मुज़फ्फ़रनगर निकल जाऊंगा। हो सके तो एक आख़िरी ख़त अन्ना को लिख देना। (लप्रेक)
(4)
वो राजकुमार घोड़े की पीठ पर बैठा राजपथ पर चला जा रहा था। घोड़े की टाप की आवाज़ उठती हुई रायसीना हिल्स की तरफ बढ़ने लगी। धनतेरस में स्टील का टिफिन बाक्स खरीद कर उसने मालवीय नगर की महबूबा को बता दिया था कि आज के दौर में मुमताजों को यही नसीब है। आसमान में निकला चांद चीन में बने अपने डुप्लीकेट से लोहा ले रहा था। ज़मीन पर घोड़े की टाप से उड़ती धूल से उसके आंखों की तकलीफ़ बढ़ती जा रही थी। अपने लंबे बालों को खोल उसने हवा को रोकने की कोशिश तो की मगर कानों के ऊपर से सरकती हुई उंगलियों ने मदहोश कर दिया। राजकुमार बोला- जब कुछ भी नहीं बचेगा तो इस टिफिन बाक्स में हम मोहब्बत की दो रोटियां रखा करेंगे।( लप्रेक)

11 comments:

बाबुषा said...

:-)
Interesting !

Sachin Agarwal said...

मुझे लगता है यह कहानियाँ सुनी, सुनी सी हैं. रवीश भाई > खुलासा कीजियेगा ?

BS Pabla said...

गज़ब की मोहब्बत

प्रवीण पाण्डेय said...

वाह, लप्रेक रंग दिखा रहे हैं।

संतोष कुमार said...

एक साथ लप्रेक पढ़ना अच्छा लगा .....

राजीव कुमार झा said...

लप्रेक के रंग अनेक

राजीव कुमार झा said...

लप्रेक के रंग अनेक

brajesh said...

sir,
Namste mujhe lagta hi ki ap kahan kuch aur chahate hi lekin hum samjh nahi pa rahe hi sayad.yahi chahte hi hum samjhe bhi nahi bhi.

योगेश कुमार 'शीतल' said...

सब ऊपर ऊपर गया. लेभल तनी डोन करिए.

satya said...

kafi dino ke bad kuchh achha padha. Aisa laga ki man ka fotostate utar gaya ho aur uspe kisine vicharo ki syahi se counter sign kar diya ho...

Aanchal said...

ये राजा गार्डन वाली कहानी मेरी फेवरेट :) वैसे आपसे रिक्वेस्ट किया था वेस्ट डेल्ही पे लप्रेक लिखने को !!