फ़ैज़ाबाद के फादर ऑफ फोटोग्राफी
फ़ैज़ाबाद की गलियों में भटकता हुआ मैं एक फोटो स्टुडियो में चला गया। गली के किनारे से अंदर झांका तो कुछ ब्लैक एंड व्हाईट तस्वीरों पर नज़र पड़ी। ख़ासकर इन महिला की तस्वीर पर। ऐसा लगा कि इनकी खूबसूरती हमेशा के लिए एक फ्रेम में क़ैद हो चुकी है। ज़माने का इतना ही असर पड़ा है कि श्वेत श्याम इन तस्वीरों पर लाल रंग की बिंदी और लिप्स्टिक चस्पां कर दी गई है। मैं अंदर आ गया। हलो, मैं रवीश हूं। टीवी वाला पत्रकार। दुकानदार ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखाई। फिर भी अंदर आ गया। इस बारी ठीक से नमस्ते की और सवाल दाग दिया कि ये चारों तस्वीरें किनकी हैं।
दुकान के मालिक ने बताना शुरू किया कि आप जिस तस्वीर की बात कर रहे हैं वो फैज़ाबाद के ही एक रेलवे अफसर की बेटी हैं। ये फोटो मैंने 1962 में खींची थी। आशी दत्ता नाम है। इस तस्वीर के खिचे जाने के 48 साल बाद आशी दत्ता अब कैसी लगती होंगी कहना मुश्किल है। लेकिन कोई भी अपनी इस खूबसूरती को हमेशा ऐसे फ्रेम में देखकर खुश ही होता होगा। फ़ैज़ाबाद में आज भी एक ढंग का सिनेमा हॉल नहीं है। उस ज़माने में तो कुछ भी नहीं रहा होगा फिर भी अदायें सिने तारिकाओं की तरह हैं। एक लड़की की इस अदा से कई चीज़ों का अंदाज़ा मिलता है। कपड़े की स्टाइल,आकाक्षांएं,आधुनिक दिखने की चाह और कोई ख्वाब जो शायद फैज़ाबाद की सेटिंग में नहीं किसी मुंबई लंदन की सेटिंग में रची गई हो। जगत नारायण गुप्ता की इजाज़त से ये तस्वीरें ब्लॉग के लिए खींच लीं। आशी जी इस वक्त पंजाब में कहीं रहती हैं। इनके पति ब्रिगेडियर के पद से रिटायर हो चुके हैं। अब देखिये एक फोटो शॉप के मालिक को अपनी तस्वीर की इतनी लेटेस्ट रिपोर्ट मालूम है। आशी जी की तीनों तस्वीरें दुकान में लगी थीं। वहां भी सार्वजनिक थीं और ब्लॉग पर भी सार्वजनिक हैं।
(जगत नारायण गुप्ता की तस्वीर)
दुकान के मालिक जगत नारायण गुप्ता ने कहा कि फ़ैज़ाबाद में फोटोग्राफी मैंने शुरू की है। 1953 में। तब फोटोग्राफी आर्ट थी और अब दुकान है। फैज़ाबाद में फोटो की पहली दुकान मेरी थी।मेरी बातचीत जमने लगी। जगत नारायण गुप्ता ने कहा कि फ़ैज़ाबाद में मैंने कई लड़कों को ट्रेनिंग दी। पहले लोग फोटो नहीं खिंचाते थे। मैं शादियों में खुद से फोटो खींचता था। बाद में दिखाता था तो खुश हो जाते थे। इस तरह से फोटोग्राफी को यहां पोपुलर किया। जगत नारायण के बेटे ने पीछे से आवाज़ दी कि मेरे पिताजी फ़ैज़ाबाद में फोटोग्राफी के फादर हैं।
जगत जी बताने लगे कि कैसे इंदिरा गांधी फ़ैज़ाबाद आईं। एक पुल का उद्याटन करने। गैमन इंडिया के अफसर ने कहा कि एक अल्बल गिफ्ट करना है उन्हें। जगत जी ने एक डीएसपी सहित सरकारी जीप की मांग कर दी ताकि वे प्रधानमंत्री की सुरक्षा के बीच से आसानी से निकल सकें। इंदिरा गांधी ने पुल का उद्याटन किया। जगत जी कहते हैं कि मैं बिल्कुल करीब था। पहली तस्वीर तब ली जब वो कार से उतरी थीं। फिर जब मंच पर आईं तो मैं बिल्कुल पास से तस्वीर ले रहा था। चार-पांच तस्वीरें लेने के बाद मैं जल्दी से स्टुडियो भागा। एक घंटे में फिल्म डेवेलप की। फिर उसी सरकारी जीप से एयरपोर्ट गया जहां वीआईपी लाउंज में इंतज़ार कर रही थीं। मैंने जब अल्बम सौंपी तो इंदिरा जी हैरान हो गईं। एक फोटोग्राफर के पास कितनी यादें होती हैं। कितने चेहरे होते होंगे।
(जानकी प्रसाद गुप्ता)
ये तस्वीर जगत नारायण गुप्ता के पिता जानकी प्रसाद गुप्ता की है। लॉन टेनिस के रैकेट के साथ। जानकी प्रसाद गुप्ता फ़ैज़ाबाद के ही किसी बलरामपुर इस्टेट में शिक्षक थे लेकिन अंग्रेजों के साथ लॉन टेनिस खेलते थे। 1930 में फैज़ाबाद में एक सरकारी स्कूल का मास्टर लॉन टेनिस खेल रहा था। ये शाही पोज़ पहले राजाओं और गोरों की रही होगी बाद में अन्य भारतीयों ने भी इसकी कॉपी करनी शुरू कर दी होगी। कुर्सी पर सीधे बैठे हैं जानकी प्रसाद जी। गोद में रैकट है। ये तब का दौर रहा होगा जब आधुनिकता निजी संपर्कों से पसर रही थी न कि मीडिया जैसे माध्यम के सहारे। आज मीडिया को लगता है कि आधुनिकता वही फैला रहा है।
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26 comments:
बहुत रोचक लगी. न जाने कितने शहरों के पुराने फोटोग्राफर याद आ गए. किस्सागोइ में तो आप अच्छे-अच्छे कथाकारों को भी मात देते हैं.
बेहतरीन पोस्ट! जबरदस्त किस्सागोई!
फ़ोटोग्राफ़ी को आर्ट से व्यवसाय में बदलते देखा गुप्ता जी ने और हमने भी।
फ़ोटो यादों को संजोने का एक बहुत ही अच्छा माध्यम था।
फ़ोटो कैमरा-कुछ यादे कुछ बातें
aise hi kuch naye pate(address) phir laiye .. :)
2005 में डॉक्यूमेंट्री आई थी सिटी ऑफ फोटोज़....निष्ठा जैन ने बनाई थी....हमने देखी थी पढ़ाई के दौरान.....यही थीम थी...छोटे शहरों में फोटोग्राफी का शौक और सफर कैसे बदले...
वेलडन अब्बा में भी इसकी मिसाल है कि कैसे आधुनिकता ने फोटोग्राफी में ज़हर घोल दिया है.....बावड़ी खुदने की परियोजना के कई चरण सिर्फ फोटोशॉप के ज़रिए आगे बढ़ जाते हैं....
जमेशदपुर में एक सचिन दा थे....75-80 साल के...हमें फोटोग्राफी पढ़ाते थे....मेरा मन था उन पर कुछ शॉर्ट फिल्म बना पाता...आपने दोबारा याद दिला दी...वो जमशेदपुर के फादर ऑफ फोटोग्राफी लगते थे....
अब आप रिपोर्ट तैयार कीजिए...मैं मदद करने को तैयार हूं....फोटोग्राफी के डिजिटल युग से डर लगता है....कैमरा फन फैक्टर बन गया है....कुछ फायदे तो हैं मगर पुराने तरीके खत्म होने का अपना नुकसान है...
फैजाबाद में रहता हूँ और जगत नारायण गुप्ता को भी कई बार देखा है लेकिन पोस्ट से लगा कि आप अपने आस-पास की चीजों से कितने बेखबर होते हैं! संभव है कि कोई आपके व्यक्तित्व के बारे में भी कुछ नई बातें बताये और आप उसे आश्चर्य से अपनी सहमति दें. तमाम लोगों ने एक ऐतिहासिक दौर में अपनी-अपनी विधाओं में चीजों को,विचारों को,अवधारणाओं को लोकप्रिय बनाने का काम किया, एक पैशन के साथ; लेकिन अब ये लगता है कि ये 'पैशन' लोकप्रिय नहीं हो सका समय के साथ. ये लगभग सारी संस्थाओं में है और जगतजी की दुकान तो सिर्फ़ एक बिम्ब है!!
sir aapki ayodhya wali report bahut achi lagi kal...........
असली रवीश इज़ बैक... :)
आपके लिखे हुए को पढ़ते वक्त जो रूमानियत का अहसास होता है उसका अब बार-बार उल्लेखित करना अच्छा नहीं लगता। फिर भी सबसे अच्छा आपका ये कहना लगा कि 'तब आधुनिकता निजी सम्पर्कों से फैल रही थी।
photographi ka shauk mujhe bhii hai.kbhi apne kuchh photo bhejungi.
pr.........कुछ चेहरे कितने प्यारे होते हैं.बरबस अपनी ओर खींच लेते हैं.आशी जी ऐसी ही एक प्यारे से चेहरे और उस जमाने में प्रचलित फेशन का एक बहुत ही प्यारा-सा एक्साम्प्ल है हमारे सामने.
गुरुदत्त जी की फिल्म्स की फोटोग्राफी का कोई मुकाबला नही.लाईट और शेडो का प्रयोग उनकी फिल्म्स जैसा मैंने नही देखा. उनकी फिल्म्स हमेशा मेरे लिए फोटोग्राफी के बेमिसाल मिसाले ले के आई.ऐसा ही और कोई हो मुझे बताइयेगा.
सुंदरता किसी नयी तकनीक कि मोहताज़ नहीं थी और न है .
aaj laga ki ndtv blog me utar aaya. superhit reporting.
यार रवीश जी , आपको जब भी पढता हूं तो एक बात यकायक ही मन में उभर आती है वो ये कि , अपने आसपास , सामने , आगे पीछे तो सब देखते ही हैं , मगर इन सबके बीच , किसी को कुछ खास दिख जाए तो ...उन नज़रों को सलाम करना चाहिए .......तो सलाम आपको .......गुप्ता जी और उनकी फ़ोटोग्राफ़ी से मिलवाने के लिए ...बहुत जल्दी हम भी आपकी राह मोबाइल फ़ोटोग्राफ़ी को आज़माने जा रहे हैं
Ravish ji, bahoot achhi report rahi. Indupuri ji ke vicharon se 100% sahmat hoon. Gurudutt sahib ne apni filmo main jaise kaimera ka use kiya hai waisa aaj tak kisee ne nahi kiya hai khaskar 'kagaj ke phool" main dawaje par khade background main roshni ke sath dhooan nikalta hua.Unkee filmo main long shot ka behatreen istemal hua hai.
Ravish ji, bahoot achhi report rahi. Indupuri ji ke vicharon se 100% sahmat hoon. Gurudutt sahib ne apni filmo main jaise kaimera ka use kiya hai waisa aaj tak kisee ne nahi kiya hai khaskar 'kagaj ke phool" main dawaje par khade background main roshni ke sath dhooan nikalta hua.Unkee filmo main long shot ka behatreen istemal hua hai.
रवीश भाई.... लगा कि अपने बाबा(श्री राम बिहारी चौरसिया जी) की कहानी पढ़ रहा हूँ.. वो आज ७६ साल की उम्र में भी सक्रिय फोटोग्राफर हैं और जिला जालौन(उरई) के फोटोग्राफी के पितामह भी.. उन्होंने भी शौकिया तौर पर फोटोग्राफी १९५२ में शुरू की थी आज तक फोटोग्राफी और इलेक्ट्रोनिक्स के क्षेत्र में मैंने उनसे बड़ा तकनीकि विशेषज्ञ नहीं देखा.. सालों तक कॉलेज में फोटोग्राफी के अध्यापक रहे और ये रिकोर्ड भी है कि उनका कोई विद्यार्थी कभी फेल नहीं हुआ..
जगत नारायण गुप्ता जी कि इस उपलब्धि पर उनको बधाई.. वास्तव में कुछ लोग जो भी करते हैं जुनून के साथ करते हैं..
bilkul chhooti hui cheejon aur bhaon ko badi safai, nazakat aur samvedna se utha lena hi ek achchhe sahityakar aur patrakar ki visheshta hoti hai. Ravishji, aap is prayas mein safal hain.
its too gud...fantastic.
hum to rangeen camare se photo khichate hai aur chehare ke gadhdhe najar aane lagte hai....likhte achcha hai aap...
उम्दा पोस्ट.
वाकई, कमाल है। तस्वीरों के जरिए आपने उस ज़माने के लोगों की आकांक्षा ही उतार कर रख दी।
पोस्ट पढ़ कर आनंद आ गया .हर कस्बे शहर में ऐसे फोटोग्राफर मोजूद हैं.मेरे शहर जयपुर में भी एतिहासिक हवामहल के नीचे उन्ही पुराने कैमरों के साथ फोटोग्राफर टूरिस्टों की तस्वीर बना रोज़गार कर रहे हैं.इस डिजिटल के युग में कैमरे हाथ में लिए भी लोग फोटो उतराते देखे जा सकते हैं.खेर आपने इस मामूली सी बात को जिस सुंदरता से पेश किया है इक कहानी सा लगा.
ऐसे ही लोगों ने समय को कैमरे में कैद कर रखा है । ये सिर्फ फोटोग्राफर नही कलाकार भी है ।
Faizabad mein baithe hue bhi ham in hastiyon se waqif nahin ho pate...yahi 'Report' ka apna andaz hai. A roving eye, essentially sympathetic in its reach, but not without some significant comment contained within it. Aur aapke introduction mein apne aap ko sahityik vagairah prati baddhataon se mukt karna bahut accha laga! We each have to define our own 'free'ness as part of the so called 'free' writers/thinkers/press.
Ravish ji, aapse subharti men mulakat hui thi. mai bhi faizabad ka hi hun. bahut achhi jankari dee hai aapne. bahut-bahut dhanyvad.....S R PANDEY Meerut
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