शाम के चार बज रहे थे। ढाबे वाले को बार-बार दबाव डाल रहा था कि जल्दी कुछ भी बना दीजिए। सुबह नाश्ता भी नहीं किया था। पेट जल रहा था। बगल की कुर्सी पर ढाबे का मालिक भी आकर बैठ गया था। तभी सामने से एक शख्स शराब के नशे में धुत ख़ुद को संभालता हुआ मेरे पास आने लगा। आकर बैठ गया। आप हैं। आपको टीवी पर देखता हूं। अच्छा लगता है। ठीक बात करते हैं आप। वो इतना होश में था कि मुझे पहचान रहा था। कहने लगा कि मैं ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी में क्लर्क हूं (मैं सही पदनाम नहीं दे रहा हूं)। इतना सुन कर मैं पूछने लग गया कि कितनी ज़मीन किसानों की गई है। कोई गांव बचा भी है जिसका अधिग्रहण न हुआ हो। उसकी आंखें नाचने लगती थीं। जब टिकती थीं तभी जवाब निकलता था। बोला एक भी ऐसा गांव नहीं है।
बातचीत थोड़ी ही लंबी हुई कि उसके साथ खड़े लोगों ने खींचना शुरू कर दिया। कहा भाई साहब इन्हें जल्दी छोड़ दीजिए। फिर उसे पकड़ कर ढाबे में बने कमरे की तरफ ले गए। एक आदमी बाइक पर एक महिला को बिठा कर ले आता है। सरेआम उसे कमरे की तरफ धकेलने लगता है। थोड़ी हिचक के बाद वो अंदर चली जाती है। दरवाज़ा बंद हो जाता है। पांच मिनट के भीतर वो शख्स फिर बाहर आ जाता है। मेरी तरफ आने लगता है और आकर बैठ जाता है। तभी बाइक वाला फिर उस महिला को लेकर चला जाता है। जब तक वो बाइक स्टार्ट करता, दूसरा उसके गाल खींचने लगता है। वो हाथ छुड़ा कर बैठ जाती है। बाइक चली जाती है। शायद मेरे जाने का इंतज़ार किया जा रहा होगा। उन्हें लगा होगा कि टीवी रिपोर्टर के सामने सुरक्षित नहीं है। वो तीन-चार लोग क्लर्क को घेरे हुए थे। दलाल टाइप के लग ही रहे थे। मेरे जाने के बाद उसे दुबारा लाने की योजना इशारों इशारों में बन गई थी।
मैं कार में बैठने लगा। क्लर्क फिर मेरे पास आ गया। मैंने कह दिया कि देखिये हम तो जा रहे हैं। लेकिन बातें समझ में आ ही जाती हैं। जीवन में इतना ग़लत न करें कि अफसोस का भी मौका न मिले। बस इतने में वो बिलखने लगा। अपनी आवाज़़ को दबा कर कहने लगा कि मेरे बस में क्या है। कहते-कहते अपने बांह की चमड़ी नोचने लगा। बोला इसमें कीड़े पड़ गए होंगे। मैं शराब न पीयूं और ये सब न करूं तो इसी नहर में काट के फेंक देंगे। कौन ग़लत नहीं है इस दुनिया में। आप कितनों को दिखायेंगे। आपने जिनता भी शूट किया है वो सब झूठ है। आप सच्चाई के पांच फीसदी भी करीब नहीं पहुंचें होंगे। आपको क्या मालूम कि ज़मीन को लेकर किस लेवल पर कैसा खेल होता है। ये तो आदमी की बोटी खा लेते हैं। मुझमें इतनी ताकत नहीं कि इनको मना कर दूं। ये साले सब...। काग़ज़ तो देना ही होगा न। ज़मीन आदमी को लालची बना देता है। आप रवीश जी अच्छे आदमी हो। मैं भी आपकी रिपोर्ट देखता हूं। मगर बेकार हो आप।
मैं कहने लगा कि ये सब बहाना है। आप ठीक मालूम होते हैं। बस शराब छोड़ दीजिए और इससे पहले कि वो महिला फिर आए आप यहां से चले जाइये। घर जाइये। दफ्तर के बाहर लोगों से क्यों मिलते हैं। मत मिला कीजिए। वो कहने लगा कि रंडी( ये उसी के शब्द हैं) और पैसा दोनों छाती पर डाल कर ये लोग खड़े हो जाते हैं। रही बात बड़ी कंपनी वालों की तो उनका खेल रवीश जी आप कभी नहीं जान पायेंगे। कौन सुधर रहा है। बड़े-बड़े लोग इन ग़रीबों की चमड़ी नोच कर खा जा रहे हैं। वो क्या रंडीबाज़ नहीं हैं। किसानों की चमड़ी से तो ही खेलते हैं वो सब। आप पत्रकारों को कभी इसकी भनक भी नहीं लगेगी। और ये साले जो अभी नारे लगा रहे हैं, ये सब कीड़े की तरह शांत हो जाएंगे। कितनी रिपोर्ट बना लोगे आप। सब झूठी बातें होंगी आपकी रिपोर्ट में।
उसकी बातें मेरी आंखों में धंस गईं। अलीगढ़ के किसानों का प्रदर्शन,कंपनी माफिये के हाथों विकास के नाम पर ज़मीन का सौदा। इतना मन ख़राब हुआ कि रिपोर्ट की आखिर में एक पीटूसी करने की सोच रखा था,किया ही नहीं गया। जब कई लोगों की प्रतिक्रिया आ रही थी 'ज़मीन बनाम जनहित'पर,उस वक्त मैं घबराहट से भरा जा रहा था। कुछ ने तो हदें पार कर यहां तक कह दिया कि मैं महान हूं। जनता की बात करने वाला अकेला रह गया हूं। सच कहता हूं। लेकिन पहली बार मुझे भी लगा कि मेरी रिपोर्ट झूठी है।
तब से सोच रहा हूं कि समाज भी कितने कम से खुश हो जाता है। मेरी औसत से कुछ बेहतर रिपोर्ट को कालजयी बता देता है। टीवी पर दिखने वालों को स्टार मान कर किसी भी न्यूज एंकर को फेसबुक पर महान बताने लगते हैं। रिपोर्टर क्या करेगा। उसकी सीमा तो सिर्फ बताने तक ही है। उसमें भी वो सच के पांच फीसदी तक नहीं पहुंचता है तो फिर उसे महान क्यों कहा जाए। पहली बार लगा कि चिप(टेप की जगह चिप में रिकार्ड करता हूं)को लात मार-मार कर तोड़ दूं। ऐसा नहीं कर सकता था। हर शुक्रवार को रिपोर्ट जानी ही है। सो चली गई। मगर उस शराबी क्लर्क की बातें और उसका चमड़ी नोंचना भूल नहीं पा रहा हूं। मेरी रिपोर्ट की सच का झूठ आप तक पहुंचने से पहले ही उसने साबित कर दिया था। अलीगढ़ के टप्पल में आज भी किसान आमरण अनशन पर बैठे हैं। सब भूल गए। मैं भी। मैं कल से किसी और विषय के आलिंगन में चला जाऊंगा। फिर से अपनी औसत रिपोर्ट पर महान,कालजयी और बेहतरीन जैसी प्रतिक्रियाओं के स्वागत के लिए। मुझे उस क्लर्क की लाचारी कम,अपनी लाचारी ज़्यादा नज़र आ रही थी।
58 comments:
आपकी आपबीती पढ़ी, इसे पढ़कर झटका तो जरुर लगा लेकिन आपको इस से निराश होने की जरुरत नहीं है की आप सच को कितना बहार ला पा रहे हैं. कम से कम मेरे जैसे हजारों लोग ऐसे होंगे जिन्हें इनके बारे में कुछ भी पता नहीं होगा, लेकिन आपकी इस रिपोर्ट से (जो मैंने २ बार देखि शनिवार को रात में एंड रविवार को दिन में) मुझे शाइनिंग इंडिया के इस घिनोने रूप का पता अच्छी तरह से चला.
इसलिए आप अपना काम जारी रखिये, तह में जा सकते हैं तो जाएँ, वरना अपना इमानदार प्रयास जारी रखें..
शंकर
सही विश्लेषण किया है ।
शायद यह सबसे बड़ी लाचारी है कि हम सब कुछ जानते हुए भी लाचार बने रहते हैं ।
किसान भी लाचार है , कलर्क भी । रिपोर्टर भी और दर्शक भी ।
itna galat mat karo ki afosos ka mouka b na mile…apni inhi panktiyno ko dhyan me rakhkar sach ko khabro ki poshak pahna kar pesh karna taki dekhne walo ke sath anyay na ho sake . bhale hi aapko is kaam me aatam santushti nhi milti ho lekin aankho ke aange andhera rahne se behtar hai logo ke samne roshni ki kuch kirne rahe…
Ravish ji,yah sach bhi bayan karne ke liye sahas chahiye, jo apne dikhaya hai
हर कड़वा सच यूँ ही न जाने कितनी तहों में छिपा होता है ..असलियत सब जानते हैं पर इंसानी फितरत है की खुद को यूँ भ्रम में रख कर दो पल खुश हो लेता है ...आप अपनी बात यूँ कहते तो हैं ..कितने और ऐसे लोग हैं जो यूँ ईमानदारी से अपनी बात कह पाते हैं ...
Ravish, yeh aatm-slaagha vyaktigat hoti to shuddhh karti, sarwajanik hokar tamasha ban rahi hai. Sehmat hoon ki reporter bhi lachaar hai. Lekin saamanyataya aap jin vishayon ko chhute hain woh chhotte shahron ki aatma ko chhoota hai. Yeh acchhi baat hai.
आपकी यह रिपोर्ट तो नहीं देखि, पर आपकी इस पोस्ट की सच्चाई को पढ़ कुछ खास आश्चर्य नहीं हुआ...लेकिन मै(मीडिया स्टूडेंट)और मेरे जैसे तमाम वैसे छात्र जो अभी युवा हैं जो अभी पुरे जोश और जूनून से लबरेज हैं, मीडिया की पढ़ाई कर रहे हैं, आगे रिपोर्टर या पत्रकार बनना चाहते हैं उनकी आँखों के समाने जब ऐसी बेबसी आती हैं तो उन्हें आगे का रास्ता नहीं दिखता हैं, हम अक्सर सुनते हैं कोई कोई काम दिल लगाकर करना चाहिए...तो इस मीडिया में कभी कभी इस नज़र से सिर्फ अँधियारा ही दिखता हैं..
Bhaiya...hamare samaaj mein sabhi galat karne waalon ke beech nexus ban chuka hai. Lekin sachchai ke liye ladne waalon ke beech link doondhna mushkil ho jaata hai.
Yahi wajah hai ki kabhi aap bhi khud ko kamzor aur asahaay prateet karte hain.
Mujhe yaad hai us din station pe aapne mujhse kaha tha ki kabhi kabhi gussa sa aata hai jab khud se ummidein puri hoti nahi dikhti. Tab maine aapke 'Human Touch' ki baat ki thi.Bhale hi aaj hum sab laachaar dikh rahe hain lekin is samaaj ke liye aap jaise restraining powers ki zarurat hamesha rahegi.
Aaj apni wo baat main fir dohrana chahta hoon. Kitne log hain jo is sach ke saath apni laachaari bayan karne ka maada rakhte hain!
पठनीय ! बहुत खूब !! ऐसा ही लिखते रहें अच्छा लगता है !
आपका लेखन हमेशा प्रभावी रहता है ! खूब !
समय हो तो पढ़ें
क्या हिंदुत्ववाद की अवधारणा ही आतंकी है !
http://hamzabaan.blogspot.com/2010/08/blog-post_30.html
रिपोर्टर क्या करेगा। उसकी सीमा तो सिर्फ बताने तक ही है। उसमें भी वो सच के पांच फीसदी तक नहीं पहुंचता है ......sahi likha..... aaaj log reporter ko mahan hi nahi bhagwan maanne lagte hai...ooonhe lagta hai ki onki sari pareshani taklifo ko ek reporter turat hal kar dega...onhe insaf dila dega.....par sch hai ki उसकी सीमा तो सिर्फ बताने तक ही है।
सर, सिस्टम के सामने आप जैसे लोग इतने बेबस है तो जरा हमारे जैसे क्या करें। सब कुछ इतना ज्यादा गंदा है कि कितना साफ करें, समझ नही आता। जिस मकसद को लेकर मीडिया में कैरियर शुरू किया, उसकी मंजिल तो क्या ट्रैक तक नजर नही आता। सिस्टम के खिलाफ खबर करते है तो चैनल साथ नही देता और अब अगर मीडिया छोड़ने की सोचते है तो समझ नही आता कि कैसे जी पायेगें। यमुना एक्सप्रैस-वे की जमीन अधिग्रहण तो कुछ भी नही, यूपी सरकार ने बुलंदशहर में जेपी की यूनीवर्सिटी बनबाने के लिए करोड़ो रूपये की सरकारी जमीन (वन क्षेत्र की) मुफ्त में दे दी। यूनीवर्सिटी की जमीन एक जगह पूरी नही हो रही थी तो दूसरे कैम्पस के लिए जेपी की खातिर सरकार ने शासनादेश में ही संसोधन कर दिया। गंगा किनारे की वन क्षेत्र की जिस जमीन से जंगल खाली किये वहाँ दुर्लभ हिरण रहते थे, घर खत्म हो गया तो उन्हें जंगली कुत्ते और शिकारी नौंच कर खा गये। सब कुछ देख रहा हूँ। लेकिन चुप हूँ। रोज न्यूज चैनलों पर जेपी के विज्ञापन चलते देखता हूँ। कोई नही चलाएगा। ये जरूर हो सकता है कि स्टोरी करते समय जेपी के गुर्गो का शिकार बन जाऊँ।
आपकी बेबसी समझ में नही आती। आप तो बड़े है, आदर्श है हम सबके। आप ऐसा सोचेगें तो हम कितने दिन जी पायेगे। कोई तीसरा रास्ता बताईये सर। कुछ करना जरूर है। कभी तो हमारा वक्त आयेगा।
सही विश्लेषण किया है ।
शायद यह सबसे बड़ी लाचारी है कि हम सब कुछ जानते हुए भी लाचार बने रहते हैं ।
किसान भी लाचार है , कलर्क भी । रिपोर्टर भी और दर्शक भी ।
न जाने ऐसी कितनी ही झूठी-सच्ची रिपोर्ट्स आती हैं, चैनलों को टीआरपी दिलाती हैं और गायब हो जाती हैं. ज्यादातर लोग भी उसको ही सच मान लेते हैं. फर्क इतना है कि आप ये मान लेते हैं कि क्या सही हुआ-किया और क्या गलत. वरना यहाँ तो लम्बे समय से खबरें बनाने का ट्रेंड भी रहा है (नत्था यूँ ही नहीं पैदा हुआ). युवा पत्रकारों के लिए सीखने के लिए बहुत कुछ है इसमें.
लाचारगी से देखिये ... दिखाईये ... और अपनी तड़प को पालिए ... ये संसार का सार ऐसे ही धीरे धीरे समझ आएगा . दर्द भरा ही सही.. काम आएगा.
आप हो सकता है किसी पटवारी या लेखपाल से टकराए हों. पर संच तो बहुत पुराना है, शहरों और गाँव में जहाँ भी जमीन है वहां माफिया गुड की मक्खी कि तरह चिपका हुआ है. तो अधिग्रहण के समय तो समंदर ही होता है. बाकी शराब के नशे में जो उस 'क्लर्क'(!) ने बताया उसकी रिपोर्टिंग तो शराब पी कर ही कि जा सकती है. यूपी ही क्यूँ इससे पहले हरयाणा, बंगाल और पंजाब में भी यही हुआ है. ( उस दिन चैट पर मै आपसे यही बात करने कि शुरुआत कर रहा था पर आपने जवाब नहीं दिया...जानता हूँ व्यस्त थें .). सच्चाई तो ये भी होती है कि जिनके पास सिर्फ कागजों वाली ज़मीन होई है, उनकी लाटरी लग जाती है. (नदी किनारे वाली जगहों पर ये ज्यादा होता है.)
.....सन 2003 में लखनऊ में एक एनजीओ के लिए काम करता था, गोमती नगर में हुए अधिग्रहण पे रिपोर्ट बनाई थी. एल.डी.ए. के एक अधिकारी से बात करने गया तो उसने धक्के मार के बहार करा दिया, रिपोर्ट में माफिया कि बातें थी, किसानो का दर्द और दलालों का चक्कर था. किसी अखबार ने नहीं छापा. अब तो ज़मीन सोने कि तरह है. अब कहाँ से किसी को मना लेंगे. संच दिखा भी दें तो कुछ नई होने वाला, क्यूंकि गरीबों के सामने नोटों का खज़ाना रख दिया जाता है. "कोई नहीं सुनता, जब पैसा बोलता है........"
अब सुन पढ़के सिर भन्नाने लगा है। इंसान कितना दिमागदार हो गया है। खुराफात दिमाग की है दिल का सूकून इस दिमाग ने निगल लिया है।
माफ कीजियेगा, तमाम पाठकों को याद दिलाना चाहता हूँ की रवीश जी एक आम रिपोर्टर नहीं हैं, वे जितने बेबस, लाचार अपनेआप को शो कर रहे हैं उतने शायद बिलकुल भी नहीं हैं, उनका फर्ज सिर्फ अपने ब्लॉग पर सच बता देने से पूरा नहीं हो जाता..यह भी समझने की जरुरत हैं...हम तमाम मीडिया स्टूडेंट कैसे करेंगे जब रवीश जी जैसे लोग एक ब्लॉग लिख के हाथ पर हाथ थम के बैठ जायेंगे?? ज़रा सोचिये
माफ कीजियेगा, तमाम पाठकों को याद दिलाना चाहता हूँ की रवीश जी एक आम रिपोर्टर नहीं हैं, वे जितने बेबस, लाचार अपनेआप को शो कर रहे हैं उतने शायद बिलकुल भी नहीं हैं, उनका फर्ज सिर्फ अपने ब्लॉग पर सच बता देने से पूरा नहीं हो जाता..यह भी समझने की जरुरत हैं...हम तमाम मीडिया स्टूडेंट कैसे करेंगे जब रवीश जी जैसे लोग एक ब्लॉग लिख के हाथ पर हाथ थम के बैठ जायेंगे?? ज़रा सोचिये
इस वाकये को शेयर करने के लिए आपका
बहूत बहुत आभार
सच है ...सब आखिर मे बेकार ..आपके मैदान मे कूदने का समय आ गया है ...सोच लिजिये ...
सर पता नहीं कुछ दिनों से आप के लेख पड़कर नकारात्मकता सा प्रतीत होता है क्योंकि अगर आप सा बड़ा पत्रकार अगर लाचार हो गया है तो हम जेसे नए पत्रकारों को उर्जा कहा से मिलेगी.. हम तो लड़ने से पहले ही हार मान गए है . में तो उस रविश का फेन हु जिसने बिहार की दोगली सरकार को अपनी रिपोर्टिंग के माध्यम से गिरा दिया था i hope जब आप किसी भ्रष्ट इंसान या संस्था की पोल खोलवाली खबर के बारे बताएँगे, हमें अधिक उत्साह आयेगा.
क्या कहा जाये..सही विश्लेषण!
रवीष जी आपकी लाचारी समझ से परे नहीं है। दरअसल जो अपनी जगह सही है उसके लिए हर जगह हालात ऐसे ही हैं। ये पूरा मुल्क खाया, नहीं ये “ाब्द सही नहीं है। सही “ाब्द है चरा जा रहा है। रोज देखता हूं कि सबसे भष्ट व्यक्ति ईमानदारी पर भाषण देता है और थोड़ी ही देर बाद उसका असली वीभत्स और घिनौना चेहरा सामने देखकर उल्टियां होने लगती हैं। अपने होने और अपनी बेबसी पर जो गुस्सा आता है उसका बयान नहीं किया जा सकता। लेकिन मुझे लगता है कि बजाय इन सबसे डरने के सही लोगों को इकट्ठा किया जाय। हम जैसे लोग कम नहीं हैं बस बिखरे हुए हैं। जैसे डकैत संगठित होकर डकैती डालते हैं वैसे ही हमें संगठित होकर प्रतिरोध करने की आवष्यकता है।
समाज के अन्दर पैसों की इतनी मारामारी मची है कि क्या शराबी,क्या मीडिया,क्या अफसरान ,क्या हुक्मरान सभी आँखें बंद किये दोनों मुट्ठी से पैसे लूट रहे हैं,फिर भी इस लूट को सार्वजनिक करने के लिए आप जैसे चंद लोग बचे हुए हैं !
सक्षम ही जब लाचार हो जाएंगे तो बेचारे अक्षम क्या करेंगे? आज यही हो रहा है कि देश की सही तस्वीर जनता के सामने नहीं आ रही है। सब कुछ नकली है।
Agar aaj ka patrkaar hi khud ko lachar bataye to ...ek aam insaan kya kar sakta hai.Aap loktantra ke chouthe pahredaar hain sirf blog per likh dene bhar se aapka kaam pura nahi hota...aapki sima sirf batlane bhar ke liye nahi hai..aapko sach ke peeche ka bhi sach dikhana chahiye...
दुनिया में गम बहुत है किस किस को रोइये ,,,,,आराम बड़े काम की चीज है मुंह ढककर सोईये.....
हम क्यों बेबस है ?
बस इतना ही ?
सर, इसी को सिस्टम कहते है. हमारे लिए एक लकीर खिंच दी जाती है.हम उसके पार नहीं जा सकते.अगर जायेंगे तो वही हाल होगा जो पीपली लाइव में राकेश का हुआ था.बेहतर यही है कि नत्था की तरह गुप चुप निकल जाएँ. वैसे आपने अपनी प्रशंसा के लिए भी एक लकीर खिंचने की कोशिश की है .वह भी बेहद प्रशंसनीय है.
sir aapki parakh isi baat se ho jati hai ki aap sach ki kasuati par khara na utarne ki tis rakhte hai..koshish jari rakhiye..
"मेरी झूटी रिपोर्ट का सच"
आपकी इस लाइन से आपका नज़रिया और व्यक्तित्व सामने आता है...सफ़ेद कपडे मैं चार छीटें लगने से कपडा अपने आप को सुंदर समझना नहीं चाहता..अगर वह मटमैला होता तो उसमे ढल जाता....आपकी रिपोर्टिंग में कई बार आम आदमी की आवाज़ सुने देती है...सच कड़वा और बहुत कड़वा भी होता है...इतना है की पीना जरूरी है...उसको पीकर ही उसकी गुणवत्ता परखी जा सकती है...इस काडे को आपने काफी पीया है... वह आपकी सेहत मैं नज़र आता है...एक तलवार की भी अपनी सीमा है...उसके आगे वह भी लाचार हो जाती है...हमारी सीमा का कोई वर्णन नहीं हो सकता...
रवीश जी, हालांकि मैं आपकी यह रिपोर्ट देख नहीं सकी, लेकिन इस पोस्ट ने सबकुछ साफ कर दिया है. सिर्फ़ इतना ही कहने को है कि रिपोर्टर सिर्फ़ रिपोर्ट दिखा सकता है, वो समाजसुधारक नही हो सकता.
एक झकझोरने वाला सच जो लगभग हर कोई जानता है मतलब ये कि सभी जानते है कैसे कैसे घिनोने खेल चल रहे है लेकिन हर कोई लाचार है पता नहीं ये लाचारी कब दूर होगी !
रवीश जी, आप एक अच्छे पत्रकार होने के साथ अच्छे इंसान भी हैं....... इसलिए आप यहाँ हमारे बीच है. रिपोर्टिंग करते करते - जब इंसान उसी लय में डूबने लगता है ....... तो इंसानियत शुरू हो जाती है.....
वर्ना एक आम पत्रकार ड्यूटी के बाद - दो पेग लगा कर घर जा कर सोता है - या कहीं मुफ्त कि पार्टी में आनंद लेता है.
रवीश जी मैं आपसे सहमत नहीं हूँ ,वो कलर्क लाचार नहीं लोभी-लालची और ऐय्यास है ऐसे लोग लोगों को गलत करने के लिए प्रोत्साहन देते हैं और उसके बदले गलत एय्यासी की सुविधा भोगतें हैं |
आपका उस कलर्क से यह कहना की - देखिये हम तो जा रहे हैं। लेकिन बातें समझ में आ ही जाती हैं। जीवन में इतना ग़लत ना करें कि अफसोस का भी मौका ना मिले।
आपकी जगह कोई दूसरा भ्रष्ट और ऐय्यास पत्रकार होता तो वह इस गंदगी में डुबकी लगाने की कोशिस करता न की इंसानियत की बातें उस कलर्क को समझाता | लेकिन आपने वही किया जो एक सच्चे इंसान को करना चाहिए था और यही एक सच्चे इंसान की पहचान है इससे ज्यादा आपके पास अधिकार और साधन नहीं था ,नहीं तो आप आगे की सख्त कार्यवाही भी जरूर करते ,इसलिए मेरा मानना है की जब तक इंसान खुद ना चाहे उसे कोई गंदगी में नहीं धकेल सकता है | आज मनमोहन सिंह जी प्रधानमंत्री की कुर्सी पे बैठकर अगर इस देश और समाज को लूटने वालों के खिलाप कार्यवाही के सभी अधिकार और साधन रखने के बाबजूद कुछ नहीं कर रहें हैं तो उस कलर्क से ज्यादा दोषी मनमोहन सिंह जी हैं जिनकी वजह से भारत सरकार पे दलाल होने का ठप्पा लग चुका है और अगर कुछ इमानदार पत्रकार,अधिकारीयों के समूह को इसकी जाँच का जिम्मा दिया जाय तो इसे पूरी तरह देश की नीतियों और क्रियान्वयन के तरीकों की जाँच कर साबित भी किया जा सकता है | इसलिए अपने आप को सीमित साधन की वजह से दोषी मानने के वजाय मनमोहन सिंह जी और सोनिया गाँधी जैसे असल गुनेह्गारों के खिलाप हमें आवाज उठानी होगी ...और जब तक ऐसा नहीं होगा तबतक लोग अपने आप को इसी तरह लाचार और मजबूर समझते रहेंगे ...अतः इस दिशा में कुछ गंभीरता से सोचिये और कीजिये ...जान तो आज न कल जानी ही है ...?
यही तो कडवा सच होता है जिसे मजबूरन पीना पडता है।
ravish ji apki vatha padhi sach se to lagbhag hum sabhi wakif hi hain ghatnaon ke byore aapse milte hain .kul milakar jo hai so hai aapki ki tees dekhkar kah nahi sakta kaisa laga per kasak wahi de gaya ............such aneko wakye hain jinko publicly share nahi kiya ja sakta apne kiya ............bahut bahut dhanyawaad
समझ नहीं आता की आपकी यह प्रतिक्रिया इस घटना विशेस को लेकर है या फिर आपकी रिपोर्ट के दौरान की गयी छानबीन का परिणाम.
या फिर किसी शराबी द्वारा अपनी कमजोरी को लाचारी का नाम देकर सहानुभूति बटोरने का सफल प्रयास.
कुछ भी तो ऐसा नहीं था जो हमें पहले से नहीं मालूम था . बस सबूतों की कमिं थी, है और रहेगी.
आप लोग इतने बेचारे इतने लाचार कैसे हो गए जबकि आप लोग मीडिया से ताल्लुक रखते हैं. ( संविधान का चौथा स्तम्भ.)
अगर इतना ही अन्याय और अंधेर है तो भाई कलम उठाइए , कैमरा चलाइये , करिए कुछ स्टिंग ऑपरेशन जैसा .
सर कभी कभी आपको टीवी पर देख पाया हूँ ,आज जब पत्रकारिता की पढाई कर रहा हूँ तो यह अहसास हो रहा है कि मीडिया कितना संवेदनाशून्य हो गया है .काश आपका ये आलेख हम जैसे आने वाले पत्रकारों में आम लोगो के प्रति संवेदना जगा पाए ............
Har kissi ka ek dayra hai, ek pahunch hai, jismein woh koshish karta hai, kuch naya karne ki, kuch badlav laane ki.
Aap bahut hi zyada badiya kaam kar rhe hain. Bahut sare log to yeh 5 % ka sach bhi nai jaante honge. Aap itna to kam se kam bta rhe hain.
sach batao sir mje ek purani khahani jaisi lag rhi hai
सर,
अलीगढ़ के मुद्दे पर आपने एक नया एंगल से सोचने को बाध्य कर दिया
धन्यवाद सर
बस यही लगता है कि
...हैराँ हूँ दिल को रोऊँ के पीटूँ ज़िगर को मैँ...
Fine...
रवीश लेख को पढकर अापकी मनोवृत््ति सपष््ट दिखाई देती हेे।
to phir marz ka ilaz kya hai Raveesh?
we all come here to read and learn something new or different...this is what i just read....
ravish ji, baat aapki idealism ke qarib lagti hai. idealism aaj ke daur mein pent ki pichchli jeb mein rakh kar ghar se nikalna padta hai. har aadmi aaj ke daur mein apne peshe se juda hua aur as a forensic expert main yeh kehna chahunga, CRIME NEEDS WILLINGNESS AND OPPORTUNITY. jahan aadmi ko dono mil jayein to wo sab ghatit hota hai jise hum apne man ki gehraion mein le kar ghoomte hain. aur iske baad agar kuch bachta hai to sirf Excuses and nothing else. aur is cheez se koi bhi nahi bachta 'NA AAP AUR NA MAIN'
VARUN GAGNEJA, FAZILKA PUNJAB
सब व्यवस्था का दोष है। अगर रिपोर्टर सही रिपोर्ट बना भी ले तो क्या पता लोंगो के सामने आये। आखिर चैनल भी तो उसी व्यवस्था में डूबकर एक कटपुतली भर है।
आप तब जो कर सकते थे वो आपने किया और अब जो कर सकते है वो भी आपने किया . अच्छा विश्लेषण किया है आपने पर उससे अच्छा यह है की आप जान गए इतना बड़ा होने के बाद भी अभी आप कितना छोटे रह गए ..आगे क्या होगा ? कबतक रहेगा प्रश्नवाचक .
ghupp andhere me roshni ki ek kiran bhi mashaal lagti hai... Apko mahan kahne wale bhi apni jagah galat nahi hain. Ho sakta hai unke shabd par aapko aitraaz ho .. per unki bhavnayen jaayaz hain ...
Jai Karan Singh
ab to samjh nahi ata kya sahi kya galat hai, lagta hai jaise ek prkriya hai aor isese hum sabko guzrana hai. kai baar bhagywadi ho jati hu. kia bar awsarwadi.
fir lagta hai tay kar lu koi ek rasta aor chalu us par, agle hi pal wo bhi kahin gum ho jata hai, Ravish ji, kai baar lagta hai ki darasal accha aor bura kuch hai hi nahi kai baar is soch par hi koft hoti hai.
Ravishji,aap 5 fisdi to 5 fisdi sach to samne late ho.Yaha aur kiske pas samay bhi hota hai dusro ki baatein sunne ka ya unka sach duniya ko batane ka.Aap apni reports ke madhyam se jitni aapke bas main ho utni sachchai sab ke samne lane ki koshish karte rahiye.
sach kahte ho aap ki log kitne kum me hi khush ho jate hain. kuch kar nahi paye to jyada fark nahi pada, bus kah diya tab b mahaan ho gaye aap....sab ki nazron me
RAVISH JI .AAP APANA KAM KARTE RAHE .AALOCHAKO KI CHINTA NAHI KARE. JAB TAK KISI KAM AALOCHANA N HO VAH KAM SUDH NAHI HO SAKTA .
www.amitkrguptasamajikaurrajnitikmudde.blogspot.com
सर आज भी 4 चार बजने को हैं। क्या करें आपका ब्लाग अब घर सा लगता है। आज भी बहुत कुछ सीखा आपसे। अब नींद आ रही। कुछ कहना तो है आपसे। पर शायद कल हिम्मत कर पाया तो कहूंगा। ..............सादर
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