अब तो बता दो
फैल कर
अपने ही दामन में
भींगोते हुए आंचल को
बहते हुए धारा प्रवाह
जी कैसा मचलता है
तु्म्हारा
जो कल तक नदी नहीं थी
नाम भर बहती थी तुम
और
आज तुम्हारी जवानी
ये भीतर से बाहर उठतीं लहरें
टीवी का रिपोर्टर क्या जाने
तुम्हारी मस्ती को
मौजों को कहता है बाढ़ है
शरारतों को बताता ख़तरा है
हेडलाइन से उतर जाने के बाद भी
तुम ऐसे ही बहते रहना
मेरी यमुना
और हां
आई हो लौट कर अपनी धारा में
तो रहना कुछ दिन ऐसे ही
डराते हुए
छेड़ते हुए
दिल्ली वालों को
निज़ामुद्दीन पुल से गुज़रते हुए
तुमको देख मैं मचल गया
मुरझाई धड़कनें जब ज़िंदा होती है
यमुना
तुम आज जैसी लग रही हो
वैसी ही लगती हैं
(ऐ दिल्ली वालों,जिस नदी को तुमने मार दिया था, वो आज खुद से जी उठी है,दो-चार दिनों के लिए ही सही लेकिन अपनी पुरानी धाराओं के दामन में लौटकर यमुना फिर से निहारने लायक हो गई है। मेरी कविता पढ़ें न पढ़े,आप यमुना को ज़रूर देख आइये। क्या पता हेडलाइन से उतरते ही यमुना भी वापस लौट जाए, और छोड़ जाए अपने पीछे एक गंदा सा नाला। नाला कहें या आपकी करतूत। यमुना से पूछिये न।)
35 comments:
Bahut khoob, wah
मौजों को कहता है बाढ़ है
शरारतों को बताता ख़तरा है
हेडलाइन से उतर जाने के बाद भी
तुम ऐसे ही बहते रहना
मेरी यमुना.....
chaliye sir ..kisi ne to marz ko samjha...har pankti ..apne aap mein man ka sailaab hai..so nice..so touchy!
हमारी भी दिली इच्छा है..... यमुना तुम बहती रहना.
पर आपकी बिरादरी के पत्रकार भाइयों को ये कहाँ सुहाती है .......... देखो बार बार दिखा कर इसको नज़र लगा रहे है......
यमुना तुम बहती रहना.
काश में जाकर तुम्हारे भाल पर काला टीका लगा देता...
भगवान बुरी नज़र से बचाए.
अभी २-३ दिन पहले एनडीटीवी के ही रवीश रंजन शुक्ला ने यमुना का जलस्तर कवर करते हुए कहा था कि यह हमपर है कि हम किस यमुना को देखना चाहते हैं, इस यमुना को, जिसकी गंदगी को कुछ समय के लिए प्रकृत्ति ने गायब कर दिया है या उस यमुना को जो साल-भर एक गंदे नाले के रूप में बहती है.
हमें तो ऐसी छलांगे मारती और इठलाती यमुना बहुत खूबसूरत लगती है. इसके एवज में थोड़ा डर लेने को भी तैयार हैं. :)
Bhav aur bhav ka bahav, chetan hone ke sunder lakshan hain. Bane rahein. God bless.
रविश , तुम भी ऐसे ही निरंतर लिखते रहना ,
भावनायों की गहराइयों में यूँ ही गहरे उतरते रहना ,
यमुना की तरह तुम्हे भी दूषित करने आएगी दुनिया ,
तुम सूख जाना लेकिन प्रदूषित मत होना.
कनक और कामिनी के लिए अपनी कलम को कलंकित मत करना.
मैं , सिनेमा , टीवी के लिए लिखता हूँ. लेकिन जमीन से आज भी अलग नहीं हुआ .
हमारा काम जरुर एक अलग दुनिया में है.. लेकिन ये सोच , इसे हमेशा जिंदा रखना , ऐसे ही लिखते रहना .
काश ये यमुना यूं ही बहती रहे
Ravish ji yamuna aisee hi bahatee rahe aur aap aise bolte aur likhte rahein.
bahut khoob.
मेरी यमुना
और हां
आई हो लौट कर अपनी धारा में
तो रहना कुछ दिन ऐसे ही
डराते हुए
छेड़ते हुए
दिल्ली वालों को
निज़ामुद्दीन पुल से गुज़रते हुए
तुमको देख मैं मचल गया
मुरझाई धड़कनें जब ज़िंदा होती है
यमुना
तुम आज जैसी लग रही हो
वैसी ही लगती हैं------------------------------बेहतरीन कविता रवीश जी--काश कि हर दिल्ली वाला यमुना के बारे में कुछ सोच सकता।
बहती ज़िंदा नदी खतरनाक इसलिए लगती है कि
उसकी मौजों को संभालने वाला पर्यावरण नहीं रहा.
अच्छी कविता पर बधाई.
क्या पता हेडलाइन से उतरते ही यमुना भी वापस लौट जाए, और छोड़ जाए अपने पीछे एक गंदा सा नाला। नाला कहें या आपकी करतूत। यमुना से पूछिये न।:)
क़रारा है !
बेहतर...
yamuna bahti hui bhi kuch kahti hai..yamuna thahre huye bhi sab kahti hai....chupchap sahti hai....bahti hai....kahti hai....par hum sunte kahan hai.....
ye kavita padh kar man sach mein hara ho gaya..
आई हो लौट कर अपनी धारा में
तो रहना कुछ दिन ऐसे ही ....kuch din kyu sir, hamesha behti rehna chahiye?
और अगर कभी मौका मिले तो
आई टी ओ से शोर्टकट मार लेना
मंडी हाउस,कनाट प्लेस,संसद मार्ग
जन-पथ होते हुए साउथ ब्लोक,
साउथ दिल्ली से गुडगाव की तरफ़
रुख करना,
सच मे तुम रास्ते मे
बहुत सारा पाप पडा पाओगी,
अगर हो सके तो
धोकर ले जाना संग अपने
बहुत अह्सान होगा तुम्हारा मानवता पर!!!!
sir kal raat me aapki report dekh raha tha. or ainsi hi utsahit hokar. apni bibi ke saamne bol diya i luv ravish kumaar. fir kya tha. ek to me use saas bahu, nahi dekhne de raha tha, dusra i luv u bhi bola to, wo bhi aapko.
sir bhagwaam kasam kha raha hun aaj sunday ko office aana pada wo bhi bukha.
par sar chijo ko dekhne ka najriya jo aapka hai. wo sayad hi kisi ko ho.
sir aap se ek sawal pucha tha ki muqabala ke host dewang sir kahan hai aajkal?
नदियों को हमने ही मारा है ।सार्थक रचना ।
अब तो बता दो
फैल कर
अपने ही दामन में
भींगोते हुए आंचल को
बहते हुए धारा प्रवाह
जी कैसा मचलता है
तु्म्हारा
जो कल तक नदी नहीं थी
नाम भर बहती थी तुम
और
आज तुम्हारी जवानी
ये भीतर से बाहर उठतीं लहरें
टीवी का रिपोर्टर क्या जाने
तुम्हारी मस्ती को
मौजों को कहता है बाढ़ है
शरारतों को बताता ख़तरा है
हेडलाइन से उतर जाने के बाद भी
तुम ऐसे ही बहते रहना
मेरी यमुना
यह वाक़ई एक पत्रकार की कविता है...
बहुत ख़ूब...
सच मे कविता के पीछे जो आकांक्षा है वह सब दिल्ली वालों की है, खास कर उनकी जिन्होने कभी यमुना को पूरे साल बहते देखा था । क्या ऐसा नही हो सकता कि जितना पैसे मे फुटपाथों को तोड़ कर हर साल यह सरकार बनवाती है उसके बज़ाय उस पैसे से यमुना मे गिरने वाले नालों के पानी को साफ़ करने के उपाय किया जाय , चाहे पार्क और फुटपाथ थोड़े पुराने ही रहें । कास कि जितना पैसा केंद्र और दिल्ली सरकार ने कॉमन वेल्थ खेल मे लगाया है उसमे से एक हिस्सा यमुना पर भी खर्च किया होता । मगर इसी दिल्ली सरकार यमुना सफाई के मुद्दे पर ने तब कोर्ट मे कह दिया था कि उनके पास पैसा नही है । क्या किया जा सकता है शासकों के मूड के बारे मे , उनकी इच्छा और प्राथमिकताओं के बारे में ।
रविश भाई मुझे लगता है कि जब किसी चीज़ को मारना हो तो उसे आस्था से जोड़ दो। बाक़ी का काम धर्मभीड़ू समाज कर देगा। अब देखिए ने नदियों को देवी का दर्जा दिया गया। लोगों ने फूल-अक्षत, सिक्के और ना जाने क्या क्या डालकर गंगा-यमुना सभी को प्रदूषित कर दिया। नदियों की लंबी-चौड़ी काया सिकुड़ने लगी तो फिर नया सफाई अभियान। जिन पर यमुना के कल्याण की जिम्मेदारी डाली गई, उन्होंने अपना घर तो भर लिया। यमुना की झोली में गंदगी बास ही मारती रही। ऐसे में यमुना का ये उफान वाक़ई आकर्षक है। कम से कम अभी जब आप उस पुल से गुजरते हैं तो दुर्गंध से आपका साबका नहीं पड़ता। कलकल धारा कुलांचे मारती भागती सी नज़र आती है। देश में जंगलों का भी यही हाल है। ख़ैर, आपकी कविता दिल में उतरी है तो कुछ लिखने का दिल कर गया सो लिख रहा हूं। पता नहीं मुझे ये अक्सर लगता है कि आप के भीतर एक ही समय कई आदमी रहता है। एक वो जो प्रोफेशन की ज़रूरतों के लिहाज से काम करता है, दूसरा वो जो व्यवस्था की गंदगी से हलकान हो भीतर ही भीतर तिलमिलाता रहता है और एक वो जो कहीं भी कुछ भी ख़ूबसूरत या सुंदर देखकर खिल उठता है, लेकिन व्यस्कों वाला संयम कभी-कभी उसे इस खास किस्म के रोमांस के बीच भी कर्तव्यबोध का अहसास दिलाता रहता है। आप तो फिर भी हस्तक्षेप करते हैं। हमारे जैसे लोग तो मुक्तिबोध की शैली में बस ये गुनगुनाते रहते हैं कि हमारी हार का बदला चुकाने आएगा, संकल्प धर्मा चेतना का रक्तप्लावित स्वर हमारे ही हृदय का गुप्त स्वर्णाक्षर प्रकट होकर विकट हो जाएगा।
सुन्दर कविता है रवीश भाई! बधाई! दिल को छू गई. बनारस में भी साल भर तक गंगा को नाले की तरह देख कर बरसात के मौसम में कुछ ऐसा ही आनन्द आता है! हम सबके दिलों की बात आपने शब्दों में पिरो दी!
sir , apko mai shabdo ka jadugar manta ho.... jis trha se aapne yamuna ki jawaani aur maujood chanchalta ko shabdo mai piroya hai.....bahut accha laga... waise to mai haridwar ka rehne waal ho.... hamesha se ganga ko ufanta dekhta tha lekin dilli aa ker yamuna ke haal per rota tha.... ab kuch aakho ko sukun mila hai.... kam se kam yamuna ke pani ka asli rang jo dekhne ko mila hai.... yakeen maaneye jab mai yamuna per koi reporting kerta hoo to apne desh ke netaao zaroor kosta hoo...kyuki inki wajha se yamuna ka rang poore saal badla rehta hai paisa pani ki trha to bahaya jata hai iski safai ke naam per... lekin vo kaagjo tak hi seemit reh jata hai....aur sukriya ada kerta hoo barsat ka jo bina kuch liye poore yamuna ki safaai ker deti hai
awesome stuff
Sir,
do check out www.simplypoet.com
World's 1st multi lingual poetry portal
aap ke kavita padhee aur maine ranchi se he yamuna dekh liya.Girjesh kumar
des ki yamuna ho ya ganga kamowes inki halat ekjaisi hi hai. enki maujo ko baitha kar dekhana apane aap me adbhut hai.magar ab inki maujo ko dekhana insano ki ekchha per nirbhar nahi karata iske liye jimedar bhi ham aur aap hi hai.aaj yadi nadiya aapna asli roop dekha rahi hai to y hamare liye vardan sarikha hai.
kudrat ka insaaf hai yeh
wah-wah...
आज तुम्हारी जवानी
ये भीतर से बाहर उठतीं लहरें
टीवी का रिपोर्टर क्या जाने
तुम्हारी मस्ती को
मौजों को कहता है बाढ़ है
शरारतों को बताता ख़तरा है
हेडलाइन से उतर जाने के बाद भी
तुम ऐसे ही बहते रहना
मेरी यमुना
Expressive !, Speechless ..What to say !!
यमुना का असली खेल तो अभी बाकी ही प्रकृति सब बराबर जरूर करेगी .. अभी भी वक्त ही दिल्ली वालो के पास और हार हिन्दुस्तानी के पास नहीं तो प्रकृति का तमाचा जरुर पड़ेगा..
सर मै कविता मे तो लिख नहीं पाउँगा पर शायद हमने मान लिया है कि किसी दर्द को बयां करने के लिए कविता एक सुलभ माध्यम है. जी मुझे खुद यमुना जी की ऐसी हालत देख कर रोना आता है. लेकिन मै कर क्या सकता हूँ..?? मेरा और मेरे पिता जी का जन्म दिल्ली में हुआ. मै इसलिए बता रहा हूँ कि आपने दिल्ली वालों से सवाल किया है.. बल्कि एक ताना मारा है.. सर आप बताएं हम दिल्ली वाले जो पुश्त दर पुश्त यहाँ बसते आये हैं...यमुना जी की इस दयनीय हालत के लिए कैसे जिम्मेवार हैं..??
क्या आपको नहीं लगता कि दिल्ली वाले नहीं बल्कि केंद्र और राज्य सरकारें इस के लिए जिम्मेवार हैं..?? दिल्लीवालों ने तो कभी मुम्बईया तर्ज़ पर दिल्ली छोडो का नारा नहीं लगाया. जो भी यहाँ आया है सबको गले से लगाया है. शायद यही गलती है दिल्ली वालों की कि हमने कभी भेदभाव नहीं किया. प्लीज़ सर यमुना जी की ऐसी हालत के लिए आप दिल्लीवालों को दोषी ना ठहराएँ. प्लीज़..!!
शील गुर्जर
http://sheelgurjar.blogspot.com
दिल्ली की दिल उतार ही दिया आखिरकार आपने। रोज निजामुद्दीन से देखता हूं। जानता हूं चार दिन बाद क्या होगा। पर जबतक है तब तक हर्षित होता हूं।
आमीन
तुम्हारी मस्ती को
मौजों को कहता है बाढ़ है
शरारतों को बताता ख़तरा है
हेडलाइन से उतर जाने के बाद भी
तुम ऐसे ही बहते रहना
मेरी यमुना
एकदम हमारे दिल की बात कही है आपने..
wah,bahut khub .behtarin kavita likhi hai apne raveesh bhai.lag raha hai apne logon ki juban se shabad chchin liye hain.
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