कैफ़ी आज़मी

चलता हूँ थोड़ी दूर हर इक तेज़ रौ के साथ,
पहचानता नहीं हूँ अभी राहबर को मैं ।
- कैफ़ी आज़मी 
----------

लीडर की आमद
शोर है ख़त्म चार तरफ़ राहनुमा आता है
मुश्किलें ख़त्म हुई उक़दाकुशा आता है
(उक़दाकुशा -कष्ट निवारक) 
-----
सोमनाथ 

दिल पे यह सोच के पथराव करो दीवानों 
के जहाँ हमने सनम अपने छिपा रक्खे हैं
वहीं ग़ज़नी के ख़ुदा रक्खे हैं 

बुत जो टूटे तो किसी तरह बना लेंगे उन्हें 
टुकड़े टुकड़े सही दामन में उठा लेंगे उन्हें 
फिर से उजड़े हुए सीने में सज़ा लेंगे उन्हें 

गर ख़ुदा टूटेगा हम तो न बना पायेंगे 
उस के बिखरे हुए टुकड़े न उठा पायेंगे 

तुम उठालो तो उठालो शायद 
तुम बना लो तो बना लो शायद 

तुम बनाओ तो ख़ुदा जाने बनाओ क्या
अपने जैसा ही बनाया तो कियामत होगी 
प्यार होगा न ज़माने में मुहब्बत होगी
दुश्मनी होगी अदावत होगी 
हम से उस की न इबादत होगी ।
-----

16 comments:

Unknown said...

Sab bounce ho gaye ....kher u wrote these lines on ur blog den m sure dese lines must b palpable

Unknown said...

sir ji shukriya kal k prime time k liye , kisano ki problems tv pe dikhana kitna important h khaskar abhi aapko bhi pta h
pichle 10-15 years me 2.5 laakh se jyada suicides hui h , kinhi riots se kayi jyada
baar baar 2002, 1984 etc utha sakte ho tv me to itni saari suicides k baare me kyu nahi ??

Unknown said...

Ek brahman ne kaha hai ki ye saal accha hai…

zulm ki raat bahut jaldi dhalegi ab to..
aag chulhe me har ek roz jalegi ab to

bhookh ke maare koi baccha nahi royega..
chain ki neend har ek shaks yahan soyega

aandhi nafrat ki chalegi na kahin ab ke baras..
pyaar ki fasl ugaayegi zameen ab ke baras

hai yakeen ab na koi shor sharaba hoga..
zulm hoga na kahin khoon kharaba hoga

os aur dhoop ke sadme na sahega koi..
ab mere des me beghar na rahega koi

naye vaadon ka jo daala hai, wo jaal accha hai..
rehnumaaon ne kaha hai ki ye saal accha hai..

humko maalum hai jannat ki haqeeqat lekin
dil ke khush rakhne ko Ghalib ye khayal accha hai..

Vikram Pratap Singh said...

Ravish Sir, Another great Poem By Kaifi Azami Ji on 1992 Babri issue- I read this in India today special edition way back to 1996-96 in my which school days.

I posted this on my blog- http://bulbula.blogspot.in/2013/08/great-poem-by-kaifi-azmi-6.html

राम बनवास से लौट कर जब घर को वापस आये।
याद बहुत जंगल आया जो नगर में आये।
रख्से दीवानगी आँगन में जो देखा होगा। .........

AVINASH said...

Kal ka prime time toh ravish ki report tha... Mast.... Vaise bahut hi qualified farmers the... Bahut knowledge mili mujhko ... Thanks for that.

Ashi said...




आमने- सामने दो नई खिड़्कियाँ
जलती सिग़रेट की लहराती आवाज़ में
सुई-डोरे के रंगीन अल्फाज़ में
मशवरा कर रही हैं कई रोज़ से

शायद अब
बूढ़े दरवाज़े सिर जोड़ कर
वक्त की बात को वक्त पर मान लें
बीच की टूटी-फूटी गली छोड़ कर
खिड़्कियों के इशारों को पहचान लें!

निदा फाज़ली-सफर में धूप तो होगी

Unknown said...

India ke super hero hai ravish sir aap.

Atulavach said...

तुम जो बनाओगे बंदिगी तो
क्या ला पायोगे वही टूटी तासीर
हमारे जेहन का क्या करेंगे
बस सी गयी है पुरानी तस्वीर

tasser-efficacy- Desired result

Aryaputra said...

मैं मिट्टी था किसने चाक पर रखकर घुमा दिया,
वो कौन हाथ थे कि जो चाहा बना दिया .........

Aryaputra said...

जिनकी आंखें आंसू से नम नहीं क्या समझते हो उसे कोई गम नहीं... तुम तड़प कर रो दिये तो
क्या हुआ गम छुपा के हंसने वाले भी कम नहीं

Unknown said...

आप दिल की बात लिख सकते हैं । उनका क्या जो दिल में तूफ़ान लिए बैठे हैं, परन्तु जब कागज़ पर उतारना चाहें तो कुछ नहीं लिख पाते । शब्द एकाएक गायब हो जातें हैं, दिल की बातें फिर दर्द बन जाती है और आँसू बनकर बहने लगती हैं । उन आँसुओं को भी रोकना पड़ता है, डर लगता है कहीं ये दुनिया, डूब न जाए.....
हमने कलम उठाई पर शब्दों ने साथ न दिया,
आँसू बहाये पर आँखों ने साथ न दिया ।
मेरी बात रही मेरे मन में.... कुछ कह न सकी उलझन में...

sachin said...

अगर गलत हूँ तो लिखने से पहले ही माफ़ी मांग लेता हूँ । मेरी अतिसिमित समझ के अनुसार , शायद पहला वाला शेर क़ैफ़ी का नहीं, ग़ालिब का है। ग़ालिब की (allegedly) जिस ग़ज़ल का शेर है उसका मक़ता कुछ इस तरह है :

"ग़ालिब ख़ुदा करे की सवार-ए-समंद-ए-नाज़
देखूँ अली बहादुर-ए-आली गुहर को मैं "

(ऊपर लिखा शेर नेट से चस्पाँ हैं । ज़ाहिर है उसकी प्रमाणिकता की गारंटी नहीं ली जा सकती। किसी के पास दीवान हो तो कन्फर्म कर सकता है )

suman choudhary said...

Bahut khub kaha aapne..

Unknown said...

ravish ji, achhi khasi mahphil jama di aapne. aaj comment padhana bhi bahut achha lag raha hai.

Unknown said...

रवीश भाई, कल के प्राइम टाइम मे भी आपने कैफी आज़मी का ज़िक्र किया था, इस चुनावी मौसम मे शायद उनका लिखा "दूसरा वनवास" ज्यादा उपयुक्त होता।
वैसे मैंने ज्यादा तो नहीं पढ़ा है, पर उनका लिखा "औरत" शायद उनकी उत्तम कृतियों मे से एक है और जो लोग साहित्य और सामाजिक समस्याओ(खासकर महिलाओ कि समस्या) से सरोकार रखते है, उनके लिए मस्ट रीड है।

Neeraj Neer said...

शोर है ख़त्म चार तरफ़ राहनुमा आता है
मुश्किलें ख़त्म हुई उक़दाकुशा आता है...
क्या कहने बहुत बेहतरीन .. देखें रहनुमा एवं कष्ट हरने वाला आता है या वही पुरानी कहानी दुहराई जाती है जो हेमू के साथ, जो पृथ्वी राज के साथ :) हुआ ..
KAVYASUDHA ( काव्यसुधा )