मन की अवस्थाएं विचित्र होती हैं । मन के भीतर अनेक मन से उलझती रहती हैं । एक मन दूसरे मन को काट कर अपना एकांत ढूँढ लेता है । कुछ मन ऐसे होते हैं जो अक्सर उस एकांत मन को ढूँढते रहते हैं । ज़रा सा ध्यान हटा कि उसके एकांत में पहुँच कर तूफ़ान मचा देते हैं । हमारे मनों की दुनिया में कई लोगों के मन भी होते हैं । वे भी टकराते रहते हैं । बतियाते रहते हैं । नाराज़ होते हैं और मनाते रहते हैं । हम सब के मन के साथी होते होंगे । मन लायक । मनो की इस बेतार दुनिया की कोई नई बात नहीं कह रहा । सब कहते ही तो रहते हैं । मन जानता है । मन की दुनिया ज़ुबान से स्वतंत्र है । आप कुछ भी बोलें, मन कुछ और ही बोलता रहता है । मन से जुड़ने की क्षमता ही तो इंटरनेट है । मनों को ज़ाहिर करने के प्लेटफार्म धंधा करने लगे हैं । ये सबूत बनने लगे हैं । ये षड़यंत्र करने लगे है । मन ख़ुराफ़ाती होता है । हम सब मन के एकांत को तोड़ उसकी बातें ज़ाहिर करना चाहते हैं । मनों की आदर्श दुनिया जहां पत्नी प्रेमिका दोस्त रिश्तेदार सब आदर्श स्थिति में होते हैं । हमेशा नहीं लेकिन मन के संगी साथी अपने हिसाब से ही होते हैं । मन रोता है । मन ही मन हँसते हैं । कहते हैं । ज़ुबान मनों की दुनिया का फ़ेसबुक और ट्विटर है । कोई बात मनो के बेतार जगत में घूमते घूमते किसी तार के सहारे दूसरे जगत में जाने के लिए बेताब रहती हैं । जहाँ हम सब मन की पोथी लिये बैठें रहते हैं । साझा कर रहे हैं । मन मन में नहीं रह पाता है । जो रह जाता है वो घाघ बन जाता है । मन बेमन नहीं रह पाता । मन की आहट चेहरे पर झलकती है । मन का रिश्ता शारीरिक रिश्ते से भी गाढ़ा होता है । जब जुड़ जाए तो अलग करने पर सन्न रह जाता है । मन मायूस हो जाता है । कई बार हम मन को युद्ध का मैदान बना देते हैं । मन की बातों से हम तलवार चलाने लगते हैं । मन सारी धमनियों से रक्त जमा कर लाता है । हम नींदें उड़ाकर हाँफने लगते हैं । मन हारता है तो कभी जीतता है । मन अपने अनुकूल तमाम दलीलें देने लगता है । मन आग हो जाता है । मन जलने लगता है । मन को वश में करो और जो होना है उसे होने दो । मन को क़ाबू में रखो और जो नहीं होना है उसे होने पर मजबूर कर दो । मन के आगे मन है मन के पीछे मन । बेतार मन बेक़रार मन । मन की मर्ज़ी मन की । मन अपना बादशाह मन अपना ग़ुलाम । मन उचाट मन आवारा । कहने का मन नहीं लिखने का मन नहीं । मन है और मन नहीं ।
Ravish Kumar
13 comments:
Kabhi chup rahe kabhi gaya ye kare man mera!
मैं आज तक कबीर के इस दोहे को नहीं समझ पाया हूँ. बारहाँ लोग यही कहते हैं कि आदमी को अपने मन की सुननी चाहिए जबकि कबीर कहते हैं कि -
मन के मते न चालिये, मन के मते अनेक
जो मन पर असवार है,सौ साधु कोय एक
मन की बातें मन ही जाने।
ओरे मनवा तू तो बावरा है / तू ही जाने तू क्या सोचता है / बावरे
waaahh maan gaye... ham chahte hain aapka man kabhi shaant na baithe, aap yun hi likhte rahein aur humein inspire karte rahein...
नेता का, पुलिस का, सरकारी अधिकारी का, मीडीया का..........
डॉक्टर का, इंजिनियर का.....और अब तो खिलाड़ियो का भी..........
सबका ईमान बिकाऊ हैं, हमारे प्यारे देश मे|
आप भी जाइए कीमत लगाइए, और घर ले आइए.........
गौरवशाली भारत के हुनर मन्द, नागरिको का ईमान..........
अब जा ही रहे हैं, तो मेरे लिए भी लेते आइए........क्रिकेट के भगवान का ईमान|
मैं भी तो देखूँ, ऐसा क्या है उसके ईमान मैं....जो 24 साल से बिका ही नही|
शायद बहुत घाटिया दर्जे का होगा, या फिर अनमोल|
सही कह रहे हैं सर,
इस इंटरनेट ने मन को मरने से बचा लिया|
बाहर तो सिर्फ़ देखने और दिखाने की दुनिया है,
किसी के मन की सुन ने का समय कहाँ हैं किसी के पास|
इसलिए सब इंटरनेट पर ही मन के ताले खोल देते हैं...........चाहे कोई सुने या ना सुने, खुद की तस्सली तो हो ही जाती है कि, अपनी बात कह दी.....वरना मन के बंद कमरे मैं रखे रखे पानी की तरह सड़ जाएँगी और बास मरने लगेंगी|
Hmm--yahi to mann ki seema rekha hai !! vah(mann) hai bhi aur nahin bhi--karte hai mann ki lekin mann ka kuchh hota nahin-hokar bhi na hona ya na hokar bhi hona-yahi to mann ka astitva hai :)
Mann ko tabhi dhaja(mandir ki dhwaja) ki poonchh ki tarah kaha hai-chanchal
shastron main 'antahkaran' (aap ka 'Internet' :) ke 4(four) shabda(vibhāg) kahe hai--(1)mann (2)bud'dhi (3)chitt (4)ahankār
Mann ki taasir aapne kahi vahi hoti hai
Bud'dhi ki taasir 1rupaiye ke mulya ki tarah 100 paise :)
Chitt main prakash nivas karta hai jo mann aur bud'dhi ko jod kar ek nirnay karne ki kshmata rakhta hai
Ahankar 'main' 'hunpad' 'aham' 'swatva' ya fir 'SOHAM' ka bodh deta hai yahi mann,bud'dhi,chitt,ahankar ki sahay se :)
yahi ved,upnishad,vedanton ka saar hai--jo meri samajh main aaya hai--fir bhi mere mann ko yah 'Apurna' sa aabhaas deta hai :)
मन की अनुपस्थिति में अ-मन होता है. अ-मन यानी अमन.
'मन से अमन की ओर' ले जाते हैं तथागत, 'अप्प दीपो भव' के प्रयोजन से.
58 मन की अवस्थाएँ.....बहुत खूब !
58 मन की अवस्थाएँ.....बहुत खूब !
जानते हैं रविश जी तीन चार दिन से आपका ये ब्लॉग पढ़ रहा हूँ| पढ़ने का कारण सही कहूँ तो ये है की अब यू ट्यूब पे जितनी 'रविश की रिपोर्ट', न्यूज़लौंड्री वाले वीडियोस थी वो सब तीन चार बार रिपीट कर चुका हूँ| आपका जो हिन्दी में बोलने का अंदाज है ना प्रेरित करता है और ज़्यादा हिन्दी सुनने और बोलने के लिए| इस ब्लॉग को जब पढ़ा तो लगा की एक हम भी हिन्दी वाला ब्लॉग लिखे, पर फिर ये आलस भी ग़ज़ब चीज़ है, सोचा अब नया ब्लॉग क्या बनाए, कितना अच्छा ब्लॉग तो है ये, इसकी कमेंट नुमा स्लेट को ही थोडा गंदा किया जाए..वैसे भी जब से बी.एन कालेज से आई एस सी पढ़ के निकले हैं हिन्दी लिखने का तो मौका ही नहीं मिलता|
आपका वो राजधानी वाला ब्लॉग बड़ा मस्त लगा. आपके बातों को कहने की सहजता ने और उन सहज से लवजो से बनने वाले दृश्यों ने ज़िंदगी को थोड़ा पीछे से देखने की प्रेरणा दी है.
चला जाए ... कल ऑफीस भी जाना है...पर जाते जाते फिराक का एक शेर आज यू ट्यूब पे सुना वो लिख के विदाई लेता हूँ.......
' ज़माने के हाथों से चारा नहीं है...
ज़माना हमारा तुम्हारा नहीं है'
when such things come up in mind then (as per my own experience) do one thing......
complete silence both from outwards to inwards.
let all moments pass and feel them as you are seeing them like a movie.....
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