अधूरी उदास नज़्में- सस्ती शायरी

१.

पुराने रिश्तों पर पैबंद चढ़ा कर आया हूं।
दोस्तों मैं अपने गांव जाकर आया हूं ।।

२.
आज ही तो तुमसे वादा किया है ।
निभाने के लिए वक्त तो दे दो।।

३.
तुम्हारे हाथ क्यूं लरज़ते हैं मेरे कंधों पर
मुझको छूकर कहीं दिल तो नहीं धड़कता

४.

याद करो जब बहुत इश्क था मुझसे
तुम बेचैन भी रहे और चैन से भी

५.

मेरे कितने मकान हैं इस जहान में
हर मकान पर किरायेदार का कब्ज़ा है

६.

मेरी शक्ल उस राजकुमार से मिलती है
जो सपनों में तुम्हें परी बुलाता था

14 comments:

रंजू भाटिया said...

सब एक से बढ़ कर एक लगे ..


मेरी शक्ल उस राजकुमार से मिलती है
जो सपनों में तुम्हें परी बुलाता था

बहुत सुन्दर

पुराने रिश्तों पर पैबंद चढ़ा कर आया हूं।
दोस्तों मैं अपने गांव जाकर आया हूं ।।

Aaditya said...

एक से बढ़ कर एक..

mehek said...

मेरी शक्ल उस राजकुमार से मिलती है
जो सपनों में तुम्हें परी बुलाता था
kya kahe,bahut bahut sundar,dil khush kar diya,behad lajawab.

Himanshu Pandey said...

याद करो जब बहुत इश्क था मुझसे
तुम बेचैन भी रहे और चैन से भी"

मैं इन पंक्तियों की अर्थवत्ता पर मुग्ध हूं. धन्यवाद ।

शोभा said...

मेरे कितने मकान हैं इस जहान में
हर मकान पर किरायेदार का कब्ज़ा है
मुझे यह शेर सबसे अच्छा लगा। बधाई।

Hari Joshi said...

पुराने रिश्‍तों पर पैबंद चढ़ाकर आया हूं
दोस्‍तो मैं अपने गांव होकर आया हूं

पढ़कर यकायक प्रतिक्रिया आई

ताजी आबो-हवा में कुछ पल बिताने के बाद
नाक पे रूमाल रखकर शहर में आया हूं

Prakash Badal said...

अरे भाई साहब आप तो कमाल की ग़ज़ल कहते हैं वाह।

Nikhil said...

बढ़िया है....
मेरी शक्ल उस राजकुमार से मिलती है
जो सपनों में तुम्हें परी बुलाता था

सुशील छौक्कर said...

वाह क्या बात है रविश जी।
पुराने रिश्तों पर पैबंद चढ़ा कर आया हूं।
दोस्तों मैं अपने गांव जाकर आया हूं ।।

बेहतरीन।

Udan Tashtari said...

मेरी शक्ल उस राजकुमार से मिलती है
जो सपनों में तुम्हें परी बुलाता था

उसका जबाब आ गया है:

मिलने को तो उस पहलवान से भी मिलती है,
जो सपनों में आ कर मुझे डराता था.


-बुरा न मानो, होली है. :)

Arun Arora said...

१.होली के रंग लगाने आया हू
दोस्तो मै भंग चढाकर आया हू

२.गलती से तुमसे जो वादे किये थे
उन्हे भूल जाओ बताने आया हू
३.तुम्हारे हाथ क्यूं लरज़ते हैं मेरे कंधों पर
अभी तो गले लगने का मौका हाथ आया है
४.इश्क की बाते ना करो मुझसे
मै उन पुरानी रस्मो से पीछा छुडा आया हू
५.माना के शानदार है ये मंका तुम्हारा
पर मै झोका ठहरता ही कहा हू
६. मत जाओ शकल पे मेरी
मै नही राजकुमार तो तुम भी हूर कब हो

Unknown said...

लाजवाब , बहुत सुन्दर , बस यही निकलता पढ़ने के बाद कलम से ।

Anonymous said...

अधूरे हैं नज़्म कबाड़ा तो निकालिए १
*********************************
पुराने रिश्ते पर पैवंद कर आया हूँ

दोस्तों मै अपने गाँव जाकर आया हूँ .

यहाँ जी नहीं लगता आँखों का कहीं कुछ छूट गया है

संभालो इस बुत को तबतक जरा मै हो आता हूँ ..



वहीँ जहाँ मिली थी वो इस बार

महुआ के पास गंडक के उस पार .

जहाँ झूठे गुस्से में रूठकर बैठी थी वो सीढियों पर

कोमल बाहों से से फेक रही थी कंकरियाँ तरंगों पर .


मुह फेर लिया उसने जब मैंने हँस के कहा

वादा करता हूँ आउंगा जल्दी अबकी बार .

मेरी शक्ल उस राजकुमार से मिलती है ना

जो सपनो में तुम्हे परी बुलाता था .



सुनते ही मुड़कर देखा

रोते रोते उसने पूछा .

तुम्हारे हाथ क्यों लरजते हैं मेरे कन्धों पर

मुझको छूकर कहीं दिल तो नहीं धड़कता ..



याद करो जब बहुत इश्क था मुझसे

तुम बेचैन भी रहे और चैन से भी .

भूल गए जब तुम बहुत बेचैन होते थे

छुपकर चली आती थी मै तुम्हारे लिए ..



बोला समेट लूं अपने अन्दर तुम्हे

जाऊं जहां भी पर ले जाऊं तो कैसे ?

मेरे कितने मकान हैं इस जहान में

हर मकान पर किरायेदार का कब्ज़ा है ..



वो उठकर लिपट गयी और पुछा मुझसे

नर्म गर्म साँसों को मेरी गर्दन पर फेरते हुए .



फिर कब आओगे तो?

बस यही बोल पाया मै .

आज ही तो तुमसे वादा किया है

निभाने के लिए वक़्त तो दे दो ..

Pranesh srivastava said...

Wah kya baat hai sir,