जर्मन दूतावास और फूल मोहम्मद का रिक्शा

दिल्ली में दूतावासों की बस्ती है चाणक्यापुरी। शांतिपथ के दोनों तरफ बने किलानुमा दूतावास। एक दिन यूं हीं जर्मन दूतावास टपक पड़ा। बात करने की आदत ने फूल मोहम्मद से दोस्ती करा दी। शुरू के सारे सवालों को फूल मोहम्मद ने यू अनदेखा कर दिया जैसे मेरे सवाल पतझड़ के पत्तों की तरह टूट कर गिरे हैं और अभी किसी गुज़रती कार के पीछे उड़ते दौड़ते गायब हो जाएंगे। नाम क्या है। ऐं क्यों बतायें। अरे जनाब नाम पूछा है। चलिये चाय पिला दीजिए। नज़र पड़ी फूल मोहम्मद के साइकिल रिक्शे पर। पैर से लाचार फूल मोहम्मद की झुंझलाहट मगर बात करने की मेरी आदत। टकराने लगी। अरे साहब आप बात क्यों नहीं करते हैं। तभी एक आटो आकर रूका। बुजुर्ग से ड्राइवर। यहां क्या कर रहे हैं साहब। पहली बार टीवी से बाहर देखा। ओए फूल साहब को चाय पिला। बस अब तो फूल मोहम्मद को खुलना ही था। पहले एक खिड़की फिर दरवाज़ा खुला और मैं फूल मोहम्मद की दुनिया के आंगन में।

इंदिरा गांधी की हत्या से पहले से यहां चाय बेच रहा हूं। इंदिरा जी ने ये साइकिल रिक्शा दी थी। विकलांगों के रोज़गार के लिए। ज्ञानी जैल सिंह राष्ट्रपति थे। दोनों ने बुलाकर ये रिक्शा दी। हमने इसे रोज़गार का ज़रिया बना लिया। फूल मोहम्मद साइकिल रिक्शे पर टेढ़े होकर बैठे थे। पीछे के हिस्से में बड़ा सा बक्सा बना था। जिसमें एक स्टोव, चाय का सामान, बिस्कुट, सिगरेट आदि आदि आराम से आ जाते थे। बक्सा बंद तो साइकिल रिक्शा बिस्तर औऱ खुल गया तो दुकान। दूतावास का इलाका भारी सुरक्षा का होता है। हर दो मिनट में पुलिस। आप कार खड़ी करें तो चालान हो जाए। तो फूल मोहम्मद साहब आपको पुलिस तंग नहीं करती। नहीं साहब। वो भी समझते हैं। अब तो पचीस साल से भी ज्यादा हो गए हैं। मेरे बारे में सब जानते हैं। अगर आपका चरित्र अच्छा है तो कोई दिक्कत नहीं है। कहीं भी धंधा कर सकते हैं।

मेरी नज़र साइकिल रिक्शे से हट ही नहीं रही थी। जिसके पास चलने फिरने का कोई विकल्प नहीं उसने इस साइकिल रिक्शों को किस तरह से विकल्प बना दिया है। खुद भी चलता है और ज़िंदगी भी। फूल मोहम्मद बिहार के सहरसा ज़िले से आए थे। तब दिल्ली ऐसी नहीं थी। कहने लगे। मेरे लिए तो वक्त ही नहीं बदला। हां जर्मन दूतावास के सब अफसर जानते हैं मुझे। किसी महिला राजदूत की बात करने लगा। जिन्होंने फूल मोहम्मद की चाय वाली साइकिल रिक्शा को हटने नहीं दिया। फूल ने कहा कि उनके पास दूतावास के किसी अधिकारी से मिला प्रमाण पत्र भी है। हमारी पुलिस का यह पक्ष अच्छा लगता है। पता है कि यह इलाका संवेदनशील है लेकिन फिर भी कुछ चाय वालों को, कुछ आइसक्रीम वालों को, कुछ भेलपुरी वालों को दुकान लगाने देते हैं। जो आधे दो घंटे में उस जगह से हट कर कहीं और चले जाते हैं। हां आप इसके पीछे के दूसरे तर्कों को देखेंगे। ज़रूर देखिये। लेकिन दूतावास के अधिकारियों की सहनशीलता की तारीफ होनी चाहिए। अपने शानदार दफ्तर के बाहर एक चाय की दुकान इसलिए चलने दे रहे हैं ताकि फूल मोहम्मद का कारोबार चलता रहे। बातचीत से ऐसे लगा कि यह शख्स जर्मनी को कितना जानता है। वो बीस सालों से लोगों को जर्मनी जाते देख रहा होगा मगर उसकी अपनी ज़िंदगी कभी उड़ान नहीं भर पाई होगी। बातचीत में काफी वक्त गुज़र गया। आटो वाले भाई साहब जाकर फिर लौट आए। मैंने कहा कि आप फिर आ गए। इसी इलाके में चलाते हैं क्या। नहीं साहब। जहां दिल लग जाता है वहां आदमी बार बार लौट कर आ ही जाता है।

20 comments:

Unknown said...

to kya app Delhi police ki achhi Chavi pesh karne ki koshis kar rahe hai ...?

Mahendra Singh said...

Phool Md se bahoot kuch sikha ja sakta hai.Jahni taur par bhi aur hamare purana leaderan ke aam hohe par bhi,is story ke liye shukriya."Kuch ne tadbeer se taqdeer badal dee, Kuch jyotishiyon ko hath dekhane main rah gaye."

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

... सुरक्षा एजेंसियों को Camouflage वाले राम न जाने किस किस वेष में मिल जाएं...

Anonymous said...

Excellent story! I like your subtle and understated point in the last paragraph. Doesn’t it seem surprising that despite so much cynicism and blaming of societal institutions in our country, day in and day out, people like Phool Mohammad live their life with dignity and happiness? More of such stories should be told so that we as a country and as a people learn the value of self-reliance. – Anish Dave

nptHeer said...

JubTakHaiJaan...:)just now tv promo ended on tv:)missing your funny funny discussions of new movies(remambering tweets you have posted 'yashji ke liye') :) reading all blogs that you have posted ravishji

nptHeer said...

JubTakHaiJaan...:)just now tv promo ended on tv:)missing your funny funny discussions of new movies(remambering tweets you have posted 'yashji ke liye') :) reading all blogs that you have posted ravishji

Unknown said...

रवीश जी लिखते है:- "जहां दिल लग जाता है वहां आदमी बार बार लौट कर आ ही जाता है।" @ravishndtv तो ट्विटर पे कब ???

Pankaj kumar said...

फूल मोहम्मद के बारे में जानकर अच्छा लगा. अंतिम लाइन तो वाकई बहुत अच्छा लिखा आपने - जहां दिल लग जाता है वहां आदमी बार- बार लौट कर आ ही जाता है.

Unknown said...

Grands salute sir. Waise wo auto wale kya mai bhi aap ko kahi dekh lu to jau hi na, ab to aapne twitter bhi band kar diya...

punam gupta said...

फूल मोहम्मद पर आप का यह लेख वास्तव में मन को एक सुखद अनुभूति देता है और कुछ सोचने को मजबूर भी करता है। फूल मोहम्मद की जीने की जीवन्ता और कला ने उन्हें आम से खास बना दिया। अगर पुलिस ऐसे लोगों के प्रति संवेदनशील भी होती है तो क्या बुरा है।

Unknown said...

नमस्कार सर।

Pradumna said...

मैँने फेसबुक पर जाना है जर्मन भारतीय संस्कृति और भारत को बहुत पसंद करते हैँ।

Pradumna said...

नहीँ,शायद इंसानियत,नैतिकता, नियम कायदोँ से कुछ परे

Unknown said...

SACHINotsav aur RUNmashthmi ki hardik badhayi Sir ji... :)

deep chand said...

रबीश जी बहुत समय बाद आम आदमी पर लिखा अच्छा लगा। धन्यबाद

deep chand said...

रबीश जी बहुत समय बाद आम आदमी पर लिखा अच्छा लगा। धन्यबाद

Geeta Kashyap said...

Sir, why you are not on twitter...I joined tht jus bcoz of your tweets...when are you coming back there....

Unknown said...

kya sir,kya kya kar dete jaise hi sochta hu yahi tak.phir kuch kadam aage nikal jate ha.main to picha karte thak bhi nahi rha.lutf de jate hai.
phool mohammad se sikha rhe hai.
"ek din mere hariyanvi mitra kah rhe the-dekhiyega sir wapas aayenge pta nahi kaise bardast kar rhe hai."

vinod_singh said...

sir, when you will return to twitter #ravishndtv

amarjit said...

Ye v ek rang hai bihar ke mati lh jo na jane jaha gum ho gayi hai.