पता नहीं कहाँ से ख़ुराफ़ात सूझी कि सुहागरात के फ़िल्मी दृश्यों पर लिखने का मन करने लगा । जानना चाहता हूँ कि हिन्दी सिनेमा में सुहागरात का सीन कैसे प्रवेश करता है । शुरू के सुहागरात के दृश्य किस तरह के होते होंगे । जैसे ही नायक दरवाज़ा बंद करता है एक नई दुनिया दर्शकों के सामने नुमायां होने लगती है । शादी के बाद कमरे में प्रवेश करने का सीन हमेशा से पुरुषों के लिहाज़ से रचा गया । उसका प्रवेश करना एक किस्म का एकाधिकार है । ब्याह कर लाई गई दुल्हन पलंग पर शिकार की तरह बैठी होती है । वो सिर्फ एक हासिल है । सुहागरात के सीन में एक पुरुष दर्शक किस एकाधिकार से प्रवेश करता है और एक महिला दर्शक कैसे प्रवेश करती है मालूम नहीं । इसका किसी ने अध्ययन किया हो तो बताइयेगा । हिन्दी फ़िल्मों ने हमीमून भले ही पश्चिम से चुराया है मगर सुहागरात मौलिक आइडिया लगता है । सुहागरात के दृश्यों ने आम वैवाहिक जीवन की 'पहली रात' को कितना रोमांटिक और ख़ौफ़नाक बनाया इसका विश्लेषण होना बाक़ी है । अव्वल तो आप और हम सब जानते हैं मगर हमने कभी इसे सार्वजनिक नहीं किया है ।
जैसे सुहागरात के सीन में दूध का ग्लास कब प्रवेश करता है । दूध का ग्लास सिर्फ मर्द के लिए क्यों होता है और औरत क्यों नहीं पीती है। दूध का ग्लास कई रूपों में आता है । साज़िश, ज़हर, शरारत और भय के रूप में । ननद या सौतेली सास जब दूध का ग्लास लेकर आती है तो बैकग्राउंड म्यूज़िक 'पहली रात' को आख़िरी सीन बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ता । दूध के ग्लास का गिर जाना एक किस्म का इंकार है । सिनेमा में प्रेम से ज्यादा हवस के सुहागरात दिखाये गए होंगे । बल्कि कब प्रेम से हवस में बदला ।उसी तरह से दूल्हे के आने का अंदाज़ भी सुहागरात का पेटेंट सीन है । शराब के नशे में , पागल दूल्हा, बेवकूफ दूल्हा , बूढ़ा दूल्हा आदि आदि के प्रवेश करने का अंदाज़ भी खास तरह से गढ़ा गया होगआ । नशे और उम्र के कारण लड़खड़ाने के बाद भी पुरुष का एकाधिकार बना रहता है ।
सुहागरात के सीन में दिखाये गए दूल्हा दुल्हन के प्रकार की भी सूची बननी चाहिए । हिन्दी सिनेमा के निर्देशकों ने सुहागरात को भयावह भी बनाय है । भ्रष्टाचार फ़िल्म में शिल्पा शिरोडकर पर फ़िल्माया गया है । यू ट्यूब में जैसे ही सुहागरात टाइप किया पता नहीं यही एक दृश्य क्यों बार बार उभरता रहा । यू ट्यूब में अपलोड करने वाले ने इस दृश्य को किस नज़र से देखा होगा बार बार सोचता रहा । खलनायक की अतिमर्दानगी विचित्र है । दूल्हे की नपुंसकता का सीन भी एकाधिकार के फ़्रेम में शूट हुआ है । दुल्हन को छूने और साथ में अलग तरह की संगीत रचना भी सुहागराती सीन है । दूल्हा हमेशा या कई बार दोस्तों के पी पा के बाद ही कमरे में आता है । सिर्फ । दुल्हन ही कमरे में पहले से बैठी रहती है ।
सुहागरात की बात हो और सेज़ की न हो ठीक नहीं लगेगा । सेज़ मतलब एक प्रकार का स्टेज समझिये । जहां दोनों का ' सीन' परफार्म होता है । 'गजरे के सफ़ेद फूलों से लदा पलंग । आख़िरी सीन में फूलों की लड़ियों का टूटना, दुल्हे की कलाई और दुल्हन के जूड़े में गजरा । सेज़ को लेकर गाने भी खूब लिखे गए है । बेला चमेली का सेज़ बिछाया सोवै गोरी का यार बलम तरसे रंग बरसे । सुहागरात में सेज़ कैसे बदलता है यह भी देखना है । कैमरा कैसे दुल्हन के पाँव का क्लोज़ अप करता है, पायल कैसे रगड़ खाकर टूटती है । इन सबको स्त्री को अधीन बनान वाले दृश्यों और प्रसंगों को रूप में देखा जाना चाहिए । यह एक किस्म का भयानक कंस्ट्रक्ट है जिसे रोमांटिक समझ कर लोग आम जीवन में उतारते हैं । गाँव गाँव में सुहागरात के सीन की असली नक़ल होती रही है । सबकी निगाहों से बचाकर फूल लाये जाते हैं । दरवाज़ा बंद कर भीतर ही भीतर कमरे को वैसे ही सजा दिया जाता है जैसे फ़िल्मों में दिखाया जा चुका होता है । आपमें से कितनों के जीवन में सिनेमा के यह दृश्य रचें गए, इसका वृतांत इतना गुप्त क्यों हैं । क्या दुल्हन वैसे ही बिस्तर पर घूँघट में बैठी थी जैसे सिनेमा ने दिखाया था । कितना कुछ है जानने को ।
जैसे ही मैंने यू ट्यूब पर सुहागरात टाइप किया सुहागरात के अनगिनत मल़याली दृश्यों से घिर गया । लगता है मल़याली फ़िल्मों में सुहागरात ख़ासा कमाऊ सीन है । पर सभी फ़िल्मों के नहीं थे । पर कई में मल़याली 'हाट बेब' के साथ सुहागरात टाइप कुछ लिखा देखा । आप ज़्यादा कल्पना न करें इसे पढ़ते हुए । मैंने इन दृश्यों को चला कर नहीं देखा है । डर्टी माइंड ! पर मैं गंभीर हूँ । सिनेमा में सुहागरात पर लिखना चाहता हूँ । कुछ फ़िल्मों के नाम और असली जीवन के प्रसंगों की चर्चा करें तो अच्छा रहेगा । हाल की फ़िल्मों में सुहागरात के सीन कम हो गए हैं । कई फ़िल्में देखी हैं पर सुहागरात का कोई सीन याद नहीं आ रहा । शायद यह सीन अब पकाऊ हो गया है इसीलिए निर्देशकों को इसमें अब वो पहली रात वाली बात नज़र नहीं आती या फिर दुल्हन का किरदार ही स्वतंत्र हो गया है ।
18 comments:
ह्म्म्म... अपने साथ तो ऐसा कुछ नहीं हुआ.
bhai ye saab thik hai.. aap twitter se kahan gaye ? All ok ?
Interesting post! "Suhaagraat" (or the wedding night) is an important element in our films. I think this is partly because in India sex is still considered a subject we don't discuss in open. Suhaagraat offers an opportunity to a film director to hint at sex directly, even if the scene passes over the actual activity. You ask an interesting question about why a woman does not get to play a dominant role in such scenes. I agree with you that our patriarchal society has a lot to do with it. Even in the west, in an obligatory and in some ways similar real-life scene of "you may now kiss the bride" at the end of a wedding ceremony, men get to have an upper hand, as they’re given the choice. Improving the status of women and girls should be a national priority for us. Films should try and do their part by creating stronger roles for women and showing them in a more empowered light. Many among our film audiences look at a wedding night scene and vicariously feel and express what they in real life are acutely uncomfortable doing: expressing their sexual feelings in a healthy and respectful manner.
It would be interesting to see if the suhaagraat scene has changed in the last few decades, and if so, in what ways. It is in some ways ironical that a society that gave the world a treatise such as Kamasutra is mired in difficulties involving sexual expression and communication. Perhaps I speak from a western bias, but as a society we need to look at sex in a more realistic, quotidian manner. This does not mean that we pry open private moments for voyeuristic consumption. It just means that we understand and acknowledge necessities of human life. -- Anish Dave
we r w8ing for ur article regarding suhagrat
meri shaadi nahi huyi hai. But, main aisi hi suhagraat ki kalpana kar raha hun. Asal musibat ye hai ki gharwalon ke saamne biwi ke kamre me jana aisa hi hai. Jaise pakistani miletry ke saamne bina hathiyaaron ke khare diye gaye hon.
comment लिखना चाह रहा हूँ.यकीन पता नहीं क्यों नहीं लिख पा रहा हूँ. टॉपिक अच्छा है.
Indeed, a topic-people love to read about but hardly would see as you saw. What amazing is the ability to equalize men and women in your above written blog. Liked it.
सरजी ! कुछ बातें परदे में ही रहने दीजिए ।
kafi anutha aevam dilchasp lekh likha hai appne ravishji... Shayad kabhi is nazariye se in drishyo ko kisi ne nahi dekha hoga, aur ab shayad filmo may waise bhi kam hi dikhte hai aise drashya... Humare pitra satta mansikta se grasth is samaj ki asliyat ko ujagar karta hai appka yeah lekh...ajjkal jo striyo ke saath horahe anginat durvyavahar ki ghantanye cahrcha ka vishay bani rehti hai, un samasyao ki jad shayad appke is lekh may kahi na kahi nazar ati hai........
आजकल फिल्मों में शादी आखिर में होती है और रोमांस के दौरान ही इतना कुछ हो जाता है कि सुहाग का सीन दर्शको को फीका लगेगा।
bahut badhiya sir ji....accha reserch kiya hai aapne...
Manish ji ke comment se main pura itefaq rakhta hoon.Suhagraat to apne leye checklist ka tick karne wala item hee tha. Jab ladka aur ladkee pahle baar milte ya baat karte hai tab is prasang ke baare main ham kuch kah sakte hai.Aaj ke samay main to iska koi matlab nahi hai. Mere bibi se mulaqat ya baat to useke sasural main yani ke mare ghar ke dyorhi langhne ke kuch ghantke ke baad informaly kahiye RAAT se bahoot pahle hee ho gaya aur phir so called SUHAGRAAT ke samay aisa hum ek dusre ko with family bahoot salon se jante hai. Ab aise main SUHAGRAAT ko kaise difine karen.Filmon kee naqal to alag baat hai
SUHAGRAAT ke samay aisa laga jaise
hum ek dusre ko with family bahoot salon se janta hain.Ab aise main SUHAAGRAAT ko kaise define karen.Filmon kee naqal to alag baat hai.
twitter pe kab aa rahe hai??????
बहोत अच्छे सरजी...
पुरुष आधिपत्य का सबसे उपयुक्त उदाहरण "सुहागरात" आपकी दृष्टि वास्तव में बहुत व्यापक है ॥
पुरुष आधिपत्य का सबसे उपयुक्त उदाहरण "सुहागरात" आपकी दृष्टि वास्तव में बहुत व्यापक है ॥
रवीश जी,
एक सबसे यादगार सुहागरात का दृश्य तो जेपी दत्ता कि फिल्म बोर्डर में था. वो गीत याद कीजिये, "ऐ जाते हुए लम्हों, जरा ठहरो-जरा ठहरो.
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