कौन बनेगा किसान

खेती के उत्पादन संबंध जस के तस है। एक गन्ने के खेत में काम कर रहीं सभी बीस महिलाएं हरिजन थीं। सभी बेगार काम कर रही थीं। नकद मज़दूरी की जगह सभी तीस किलो चारे के लिए गन्ने की कटाई कर रही थीं। आठे घंटे की मज़दूरी की कीमत घास है। खेती के जटिल किस्सों को पंद्रह मिनट में समेटना मुश्किल है लेकिन देखियेगा आज रात साढ़े नौ बजे रवीश की रिपोर्ट। कौन बनेगा किसान। शनिवार रात साढ़े दस बजे विश्व कप के कारण नहीं आएगा। रविवार साढ़े ग्यारह बजे देख सकते हैं।

9 comments:

HARSH BAJAJ said...

Namaskar Ravish Kumar Ji,
Aajkal Kisan ki jameen hadapne ke liye Sarkar se lekar Bade Bade Builder unhein bahut paisa dene ko tyaair baithe hain. NCR mein zameen ke rate ki to aap puchho mat. Uske bad Bhumi Adhigrahan Neeti...Jab Croron mein paisa milta ho apni zameen bechne se to kaun banega Kisaan.....kaun mehnat karega kheti ke liye....Industry mein jab kam karne se aaj kal ki generation ko muh manga package milega to kaun kheti karne ko tyair hoga....

KRATI AARAMBH said...

namaskar sir,

kisano ki dasha aaj kya hai ye kisi se chipi nahi hai, ye such hai ki yadi unki dasha isi tarah se din par din bigadati rahi, to shayad desh ko chand saalon baad bhookha sone ki adat dalani padegi. likin is bich ek khas baat jo mujhe lagata hai ekaek samane aayi hai, vo ye ki ab upper middle class main farmhouse kharidane ka chalan badh gaya hai. do karan tex se bachav aur aur indirect income. par is samasya ka nidan to zaroori hai. har baar hum badh rahi national income dekhkar khud ko pagal to nahi bana sakate. desh ke primary sector khatare main hai,desh issase pehele gart main jaye, ise bachana hoga.

journalistkrati.blogspot.com

संतोष कुमार said...

सोचने को मजबूर कर देना वाला पोस्ट .....

डॉ. मोनिका शर्मा said...

विचारणीय.....

JC said...

यदि विभिन्न 'हिन्दू' मान्यताओं के आधार पर देखा जाए, तब शायद कोई अनुमान लगा सके कि प्राचीन योगियों (जिन्होंने अपने जीवन-काल में भूख पर भी नियंत्रण हासिल किया) के अनुसार एक पानी (पंचभूतों में से एक तत्व) का फव्वारा मानव जीवन के काल-चक्र को समझाने में सहायक हो सकता है, जो निरंतर बहता आ रहा हो और जिसका सर्वोच्च स्तर चार चरणों में, पहले १००% से घट ७५%, फिर ७५% से ५०%, फिर ५०% से २५%, और अंत में २५% से लगभग ०% पहुँच फिर से १०० % पहुँच जाए,,,और फिर उसी प्रकार चार चरणों में लगभग शून्य तक पहुँच, फिर यही कहानी कुल १०८० बार दोहराए,,,और जिस सम्पूर्ण चक्र को पूरा होने में लगभग साढ़े चार वर्ष निकल जाएँ,,,और उसके पश्चात फिर उतनी ही लम्बी रात आ जाती है (जैसे कि आधुनिक वैज्ञानिकों के अनुसार हमारे सौर-मंडल की अनुमानित आयु आज हो गयी है, और वर्तमान में पर्यावरण शास्त्री पृथ्वी की सेहत के लिए चिंतित हैं)...

JC said...

पुनश्च- क्षमाप्रार्थी हूँ, साढ़े चार वर्ष लिखा गया जबकि होना चाहिए था ",,,और जिस सम्पूर्ण चक्र को पूरा होने में लगभग 'साढ़े चार अरब वर्ष' निकल जाएँ",,,

vijai Rajbali Mathur said...

एकदम हकीकत कह दी है -प्लानिंग में सामाजिकता का आभाव है.

Raghav Choudhary said...

Insaan, insaan k liye to kuch krta nhi h or jb hmara anaaj chuhon ko hi khana h to bhla kheti kon krega.

ravi said...

कौन बनेगा करोड़पति ?



होड़ लगाओ, होड़ !
जीत लो,देवियों-सज्जनों,तुम रुपये पाँच करोड़ |
जी हाँ, पाँच करोड़ जनाब,
देकर कुछ सवालों के सही-सही जवाब |


खेल नहीं ये ऐसा-वैसा, है बड़ा फलदायक,
जिसे खेलने को बुला रहा आपको,सदी का महानायक |
रातों-रात करोड़पति बनने का, बाँध लो मंसूबा,
खेल है यह दुनिया का आठवां अजूबा |


तो लगाओ फोन अभी तुम, काम सभी छोड़,
करोड़पति बनने की बस तुम,होड़ लगाओ,होड़ |


अरे ओ किसानों !
क्यों खेतों में तुम पसीना अपना बहाते हो ?
दिन-रात मेहनत कर अन्न जो तुम उपजाते हो,
उसका उचित मूल्य भी तुम कभी नहीं पाते हो
और अंततः कीटनाशक पी सो जाते हो |


तोड़ो खेतों से तुम, लो हमसे नाता जोड़,
करोड़पति बनने की बस तुम,होड़ लगाओ,होड़ |

ओ मजदूरों !
क्यों खुद को तुम भट्टी में झुलसाते हो ?
मशीनों की खटर-पटर से बहरे हुए जाते हो,
रसायनों को सूंघ-सूंघ अस्थमा,कैंसर पाते हो,
पर फिर भी दो वक्त की रोटी बमुश्किल जुटा पाते हो |


त्यागो मशीनों को,दो अपने औजार तोड़,
करोड़पति बनने की बस तुम,होड़ लगाओ,होड़ |


अरे शिक्षकों ! क्यों विद्यार्थियों को पढ़ा-पढ़ा तुम सिर अपना चकराते हो ?
डाक्टरों ! क्यों रोगियों की कतारों में तुम उलझे जाते हो ?
ओ सैनिकों ! क्यों अपनी जान की बाजी तुम लगाते हो ?
हे युवाओं ! काम कोई भी हो, देता है पूरा निचोड़,
करोड़पति बनने की बस तुम,होड़ लगाओ,होड़ |

श्रम के बदले धन मिलता है,
धन मिलता है देकर सामाजिक प्रगति में योगदान,
अभी भी जो यह सोचता, है वह भोला नादान |
बिना मेहनत के धन पाने का, है यह आधुनिक विज्ञान,
पीड़ित मानवता को पूंजीपतियों का, है यह महान अवदान |


मानव सभ्यता के प्रगति-पथ पर, आया कितना सुखद यह मोड़,
करोड़पति बनने की बस तुम,होड़ लगाओ,होड़ |