एक मुलाक़ात नीतीश कुमार के साथ....

बिहार विधानसभा। दनदनाते अंदर प्रवेश कर जाइये। मुख्य दरवाज़े से दायीं तरफ है मुख्यमंत्री का कमरा। दरवाज़ा खुलता है और हम बिना किसी औपचारिकता के भीतर प्रवेश कर जाते हैं। सामने नीतीश कुमार बैठे हैं। दीवार पर लगे रेडिये सेट से विधानसभा के भीतर चल रही बहस की आवाज़ आ रही है। राजद के नेता आंकड़ों का सहारा लेकर सरकार पर हमला कर रहे हैं। अंदर कमरे में नीतीश कुमार आंकड़ों के सहारे सामने बैठे सभी लोगों को बताने लगते हैं कि बिहार बदल रहा है। मैंने अपना काम कर दिया है। पहले साल में लड़कियों को डेढ़ लाख साइकिलें दी थीं लेकिन धीरे धीरे पांच लाख से ज़्यादा हो गई। लड़कियां स्कूल जाने के साथ-साथ घरों का काम करने लगी हैं। नीतीश बताते हैं कि लड़कियों का आत्मविश्वास लड़कों से ज्यादा बढ़ गया है। वो एक साथ ई लर्निंग कार्यक्रम के उदघाटन के दौरान पांच स्कूलों के लड़के-लड़कियों से बात करने का अनुभव बताते हैं। कहते हैं कि जितनी भी लड़कियां थीं वो दनादन सवाल पूछ रही थीं। लड़कों को जब मैंने कहा कि आप भी पूछिये तो जब तक वो अपने सवाल तैयार करते, उनके पीछे बैठी लड़की ने सवाल कर दिया। अब यह साफ नहीं हो सका कि यह आत्मविश्वास उनकी साइकिल योजना के कारण आया या फिर बिहार के बदले माहौल के कारण पनपा है। लेकिन नीतीश सामाजिक स्तर पर आ रहे हैं बदलावों से खुश हैं। बताने लगे कि मुझे लगा कि कहीं लड़के मायूस न हो जाएं इसलिए छह लाख साइकिल लड़कों के बीच भी बांटी जाएगी। छोटे बच्चों को स्कूल यूनिफार्म दे रहा हूं। सभी जाति और समाज के लोगों को। एक बच्चा नहीं पहनता है तो बाकी सवाल करने लगते हैं कि तु्म्हे यूनिफार्म मिला नहीं या फिर किसी और को दे दिया। सेलेक्शन लीड्स टू करप्शन। नीतीश ने कहा कि इसीलिए सारी योजनाएं सबके लिए हैं।

कमरे का वातारवरण क्लास रूम जैसा हो गया था। नीतीश ही बोल रहे थे। उनके बोलने के साथ-साथ सहमतियों के सर हिल रहे थे। विधायक,मंत्री और पत्रकार कमरे में बैठे हैं। द वीक के कन्हैया भेल्लारी,टाइम्स नाउ के प्रकाश कुमार और महुआ टीवी के ओमप्रकाश। बीच में मैंने भी कहा कि हां मेरे गांव में सड़क आ गई है। बिजली नहीं आई है। मुख्यमंत्री तुरंत बिजली बोर्ड के चेयरमैन को फोन कर देते हैं। जितवारपुर गांव में बिजली कब तक आएगी, तुरंत रिपोर्ट दीजिए। जवाब तो नहीं आया लेकिन एक झटके में लगा कि वाह मुख्यमंत्री तो वाकई सहज हैं। उन्होंने ऐसा कोई संकेत नहीं दिया कि वो मुझे किसी रूप में जानते हों। फिर भी फोन किया। थोड़ी देर के लिए अच्छा लगा लेकिन बाद में मन कई सवालों से घिर गया। अफसोस हुआ कि मुझे भी सिर्फ अपने गांव की चिन्ता नहीं करनी चाहिए थी। सबके गांव के बारे में बात करनी चाहिए थी। नीतीश बताने लगे कि हर गांव में बिजली जा रही है। एक बत्ती कम से कम जल जाए। लेकिन डर है कि ट्रांसफार्मर से ज्यादा कनेक्शन लिए गए तो आप लोग स्टोरी लिखेंगे कि गांव-गांव में ट्रांसफार्मर फूंक गए।

इसके तुरंत बाद नीतीश यह कहने लगते हैं कि इस टर्म में मेरा सारा ज़ोर संख्या पर है। मैं हर चीज़ ज़्यादा से ज़्यादा जगहों पर पहुंचा देना चाहता हूं। अभी गुणवत्ता नहीं सुनिश्चित कर सकता। राज्य की हालत ख़राब थी। समय कम था। अब क्वालिटी पर जोर दूंगा। इस बीच वो विधानसभा की कैंटिन से लाई गई गाजा मिठाई बढ़ा देते हैं। खाइये। ये एक चीज़ है जिसके बारे में दावे के साथ कह सकता हूं कि उच्च स्तरीय है। नीतीश ही बोल रहे हैं। कोई विरोध नहीं करता। सब हां में हां मिला देते हैं। नीतीश इस हां में हां को खूब समझते हैं। आंखों से कन्हैया भेल्लारी से बात करते हैं और हंस देते हैं कि क्या तारीफ हो रही है। रेडियो से फिर से शकील अहमद ख़ान की आवाज़ आती है। आंकड़े। बिहार में अब बात आंकड़ों के आधार पर होने लगी है। नीतीश कहते हैं कि मैंने विकास इतना किया तो विपक्ष कहता है कि आपने इतना नहीं किया। बिहार की राजनीति का एजेंडा बदल गया है।

इस पूरे अहसास के बाद जब कमरे से बाहर निकला तो डाकबंगला चौराहे पर दो पोस्टर नज़र आए। एक पोस्टर रामविलास पासवान के मुस्लिम रैली की तो दूसरा पोस्टर एक और मुस्लिम सम्मेलन का जिस पर नीतीश की तस्वीर है। अगले दिन हिन्दुस्तान अख़बार में सबसे ऊपर नीतीश कुमार की तस्वीर छपी है। हाईकोर्ट के पास के मज़ार पर उर्स है और नीतीश चादर चढ़ा रहे हैं। नीचे रामविलास पासवान की मुस्लिम रैली की तस्वीर है। ठीक एक दिन पहले इसी डाकबंगला चौराहे पर नीतीश के समर्थकों ने अपने नेता का एक होर्डिंग लगाया था। इसमें नीतीश की तीन तस्वीरें थीं। एनडीटीवी, सीएनएनआईबीएन और एक और किसी संस्था से श्रेष्ठ राजनेता,मुख्यमंत्री का पुरस्कार लेते हुए। लेकिन इसी पोस्टर को उनके किसी और समर्थक ने मुस्लिम सम्मेलन के पोस्टर से अगले दिन ढंक दिया था। लगा कि नीतीश रामविलास की मुस्लिम रैली का जवाब देना चाहते हैं। किसी जानकार ने कहा कि नीतीश की महादलित रैली के जवाब में पासवान ने मुस्लिम रैली की है। बिहार के नेता अभी नहीं बदले हैं। थोड़ा वक्त लगेगा लेकिन ये भी बदलेंगे।

इस बीच पटना की सड़के बेतरतीब आंकड़ों में दर्ज विकास को ढहाती हुई नज़र आती हैं। लोग हॉर्न को लेकर हिंसक हो गए हैं। सड़कों पर अब कोई मां-बहन नहीं करता। यह लालू राज की निशानी थी। अब लोग पंद्रह लाख की गाड़ी में बैठे हैं और हार्न बजा-बजा कर गाली दे रहे हैं। यह नीतीश राज के विकास की निशानी है। सड़कों पर कोई अनुशासन नहीं है। लेकिन किसी को कोई परेशानी नहीं है। सब अपना रास्ता खोज रहे हैं। एक किस्म की बेचैनी है।

पटना की सड़कें बेहतर हो गई हैं। सीमेंट खूब पसरा है। पंद्रह साल में बिहार शून्य के नीचे था। पांच साल में शून्य के ऊपर आया है तो सब राहत महसूस कर रहे हैं। विधानसभा के अपने कमरे में नीतीश निश्चिन्त हैं। समर्थक आते हैं और बैठ कर चले जाते हैं। कोई उनकी बात को काटने का साहस नहीं करता। किसी आयोजक को कहते हैं कि बच्चों का कार्यक्रम है। जब मैं पूरा समय नहीं दे सकता तो नहीं आऊंगा। वीआईपी की तरह आ कर गया और उनके बीच वक्त नहीं बिताया तो बच्चों पर बुरा असर पड़ेगा। वो सीएम से नीतीश अंकल बनना चाहते हैं। नीतीश अपनी छवि बना तो रहे हैं लेकिन सजग भी हैं कि पब्लिक बदल गई है,उसके साथ अब खिलवाड़ नहीं किया जा सकता। इसीलिए जब नीतीश ने शरद यादव से अलग लाइन लेकर महिला आरक्षण बिल पर यूपीए का साथ देने का एलान किया तो मुझे कोई हैरानी नहीं हुई। नीतीश कुमार बीस साल पहले की राजनीति की हर छाया से बाहर आना चाहते हैं। बिहार दिखता तो वैसा ही है लेकिन महसूस ऐसा होता है कि दिल्ली से भी बेहतर हो गया है। जिन लोगों ने जंगल राज देखा है वो आंकड़ों के उन्नीस बीस के फेर में नहीं पड़ेंगे। कहेंगे कि इतना ही काफी है।

कमरे से निकल विधानसभी की कैंटिन में आ गया। मटन बहुत स्वादिष्ठ था। सस्ता था। बाहर माली ने बहुत सुन्दर तरीके से विधानसभा की सजावट कर रखी थी। एक किस्म का अनुशासन नज़र आया। बिहार विधानसभा के अध्यक्ष ने कहा कि नीतीश के टर्म में मार्शल का इस्तमाल कम करना प़ड़ा है। सदन की कार्यवाही ठीक चलती है। सुनकर अच्छा लगा। ये एक मुलाकात और एक दिन का अहसास है। जो लगा वही लिखा। इसलिए नहीं लिखा कि गांव में नीतीश के फोन करने से बिजली आ जाएगी। आज तक मैंने अपने गांव में किसी को बिजली के लिए बेचैन नहीं देखा। किसी को बिजली का इंतज़ार करते नहीं देखा। दरअसल बिहार बिजली के बिना जी लेगा। लेकिन बेहतर सड़क और कानून व्यवस्था के बिना नहीं। लोगों ने ट्रैक्टर और बाइक की बैट्री से मोबाइल फोन चार्ज करना सीख लिया है। टीवी ट्रैक्टर की बैटरी से चला लेते हैं। लेकिन नीतीश ने अगले टर्म में गुणवत्ता सुधारने की बात क्यों की? सोच रहा हूं।

31 comments:

ABHIVYAKTI said...

Dear Ravish Ji,

I am new to your blog but I tell you I am more than happy to read this BIHAR IS CHANGING.

EK KAhawat suni hogi apne

ANDHER NAGRI CHAUPAT RAJA....
EK Leader ki jaroorat thi , soul Bihar ka pure hai .....
Mujhe aisa lagta hai ki sirf Soch ko badalna hai .... badlao apne aap dikhega.
Woh kehte hai na
BAD BHALA BADNAM NAHI !!!
AChha lagta hai log ab Bihar ke baare mein achha sochte hain.. BAs YEh soch hi toh badalni hai . Basic jaruroton pe dhyan dena hai EDUCATION , INFRASTUCTURE .. Aur Ek Din mein MARASMUS SE AAFECTED BACHHA PEHELWAN THODE HI BAN JAYEGA.
PAR MAN MEIN HAI VISHWAS ....... BIHAR BADAL RAHA HAI AUR YEH ACHHI SURUAT HAI..
Ragards
swati sharma

विनीत कुमार said...

कोई नीतिश बाबू तक इस पोस्ट की लिंक पहुंचाए प्लीज। उन्हें नए सिरे से बिहार के विकास के बारे में सोचने की जरुरत महसूस होगी।..

Kaushal Kishore , Kharbhaia , Patna : कौशल किशोर ; खरभैया , तोप , पटना said...

रविशजी
बदलाव पूरे प्रदेश में आ रहा है .जिधर भी जाएँ लगता है की निर्माण हीं निर्माण हो रहा है.
प्रदेश की राजधानी से लेकर शहर ,कस्बों , गाँव , खेत सब जगह . सड़क और नालियां बन रही हैं.
मगध में आहर - पईन की नरेगा के तहत उड़ाही हो रही है. स्कूलों में नए भवन बने हैं .
रंग रोगन हुआ है,मेरे गाँव के लोगों को फसल बीमा योजना के तहत सरकारी मदद मिल रही है.
इतना सारा काम हो रहा है की सहसा विश्वास नहीं होता की वाकई यह सब हो रहा है.जब से होश हुआ है
(सत्तर -पचहत्तर से ) गाँव -जवार में इतना काम सरकारी मदद से होते हुए नहीं देखा.हाँ जब इतने बड़े पैमाने पर काम हो रहा है
तो बिचौलिए , जनप्रतिनिधि , सरकारी अफसर और ठेकेदार मालामाल हो रहे हैं.धन सम्पति का पुराना समीकरण तेजी से बदल रहा है,
चिकन चिल्ली और बीअर गाँव कस्बों तक पंहुच गया है. ज्यादातर नव नियुक्त शिक्षक अनपढ़ हैं. जो सिर्फ पैसा उठाते हैं , मिड डे मील योजना का पैसा खाते हैं और
प्रखंड और जिला स्तर की अफसरों को खिला पिला कर गाँव देहात के बच्चों का भविष्य गढ़ रहे हैं. हाँ शिक्षा के प्रति लोगों की ललक इतनी बढ़ गयी है की हर गाँव और टोलों में तियुशन के तौर पर शिक्षा की समानांतर व्यवस्था शुरू हो गयी है. और इस अनौपचारिक व्यवस्था में गरीबों दलितों और अति पिछड़ों की प्रयाप्त भागीदारी है.
यूं तो बिहार के सन्दर्भ में कोई भी बात हो ,कई तरह के माने मतलब निकले जाने लगते हैं. लेकिन बिहार में विगत चार -पांच सालों में आये चहुँ मुखी बदलाव को
कोई प्रतिबद्ध आदमी ही नकार सकता है.
कौशल किशोर

संगीता पुरी said...

बिहार में विकास हो रहा है .. पर उसे सामान्‍य होने में भी समय काफी लगेगा .. इसमें कोई शक नहीं !!

ABHIVYAKTI said...

Ek baat puchna chahti hoon .......... Apne daltonganj ka naam suna hai ??

दिनेशराय द्विवेदी said...

अच्छा लगा जान कर कि बिहार बदल रहा है।

कृष्ण मुरारी प्रसाद said...

मैं एक इंजीनियर होने के नाते यह भली-भांति समझता हूँ कि पहले मात्रा बढ़ाने पर ही जोर देना सही होता है. मात्रा के बाद ही गुणवत्ता का नंबर आता है.मात्रा को लेकर वाद-विवाद हो न हो गुणवत्ता हमेशा से देखने बाले के नजरिये पर ही निर्भर करता है,इसलिए विवाद पैदा करना आसान होता है.
बिहार का निवासी होने के कारण मैं जब भी मध्य-प्रदेश से छुट्टियों में घर जाता हूँ तो परिवर्तन साफ़ दिखाई देता है.नितीश सही रस्ते पर चल रहे हैं.डर है कि स्वार्थी व्यवस्था उन्हें कब तक टिकने देगी?

chanakya said...

रवीश जी ...आप ने कहा कि बिहार बदला है ..लेकिन ज़िक्र तो पटना का ही किया है ..दो साल पहले मुझे सहरसा ,पूर्णिया ,खगडिया ...जैसी जगह पर जाने का मौका मिला था ...और वहां की गरीबी और बदहाली मुझे आज भी कचोटती है ,,पता नहीं उन जगहों पर बिहार की ये विकास क्रांति पहुची भी है की नहीं ......अगर उनका हाल मालूम चले तो शायद मुझे अच्छा लगेगा .......
और अगर बात गुणवता कि करें ...तो इस नए भारत में इसका तो खुदा ही मालिक है .......और बात अगली पारी की करें तो हर पार्टी ये सोचती है कि अगर उन्होंने पहले ही कार्यकाल में बहुत अच्छे परिणाम दे दिए अगली बार चुनाव वो जीत कर क्या करेंगे इसे भी भारतीय राजनीति में .........पूर्व ....मंत्रीजी के काम अधूरे ..........जी करेंगे पूरे जैसा नारा बहुत प्रचलित है

aadarsh said...

रविश जी बगल मे सरया पिपरा है आपने सुना है? बहरहाल आप नितीश कुमार से प्रभावित तो दिखाई देते है लेकिन शायद तठस्थ दिखना आपकी चाहत से ज्यादा पेशे कि मजबुरी है। अच्छा लगता है आपको पढना जब बिहार पर कुछ लिखतेँ है एक पहचानी बेचैनी देखना सुखद हैँ।

manglam said...

प्रिय रवीश जी,
आपका यह आलेख कहीं से भी नीतीश कुमार की मुंहदेखी बड़ाई नहीं है। वाकई बिहार बदल रहा है और मैंने भी गत माह की अपनी यात्रा में इसे महसूस किया है और अपने ब्लॉग manglam-manavi.blogspot.com पर इसके बारे में लिखा भी है। इनायत फरमाएंगे तो अच्छा लगेगा। एक बात और, आपका जितवारपुर किस जिले और ब्लॉक में है, इसके बारे में बताएंगे, प्लीज।

Ranjan said...

रवीश जी , 'बिहार' सबका है ! 'राजा के दरबार से आप लौटे हैं - तो गुणगान आपका फ़र्ज़ है' - दान में क्या मिला - वह तो सिर्फ आप ही बता सकते हैं - शायद 'जीतवारपुर' गाँव में बिजली का इंतज़ार :) जब सभी लोग 'नीतीश कुमार' की बड़ाई हांक रहे हैं - फिर हम और आप क्यों चुप रहे ? हाँ , १८ विधानसभा के उपचुनाव हारने के बाद - नीतीश बहुत हद तक अपनी राजनीती बदले हैं - बिहार अब 'नालंदा' बन गया है - खासकर 'पटना' ! सिर्फ एक ही जिले और जात के इतने लोग सभी 'मलाईदार' जगहों पर आज तक नहीं देखे गए - जंगल राज में भी नहीं !

JC said...

"...इस बीच वो विधानसभा की कैंटिन से लाई गई गाजा मिठाई बढ़ा देते हैं। खाइये। ये एक चीज़ है जिसके बारे में दावे के साथ कह सकता हूं कि उच्च स्तरीय है। नीतीश ही बोल रहे हैं।..." और "...कमरे से निकल विधानसभी की कैंटिन में आ गया। मटन बहुत स्वादिष्ठ था। सस्ता था।..."

उपरोक्त से याद आई नोर्थकोट सी पार्किन्सन के कथन की, (हिंदी में रूपांतर), "...किसी भी प्रशाशन को जानना हो तो फाइलों को देखने की आवश्यकता नहीं है / यदि उसकी कैंटीन सही चल रही है तो समझ जाइये की प्रशाशन ठीक चल रहा है..."

prakashmehta said...

बिहार दिखता तो वैसा ही है लेकिन महसूस ऐसा होता है
कि दिल्ली से भी बेहतर हो गया है। your article best line ..............

JC said...

रविश जी ~ आपकी अंतिम पंक्ति है, "...लेकिन नीतीश ने अगले टर्म में गुणवत्ता सुधारने की बात क्यों की? सोच रहा हूं।"

उपरोक्त के सन्दर्भ में मैं कहना चाहूँगा कि जैसा आपने भी कहा, "...पंद्रह साल में बिहार शून्य के नीचे था।..." बिहारी या भारतीय जनता में 'भूत' के कटु अनुभवों के कारण 'सरकार' में 'अविश्वास' की भावना व्याप्त होना संभव है और 'दुशाशन' की आदत पड़ गयी है, यानि मान्यता कि यही 'काल का सत्य' है,,,जैसा प्राचीन ज्ञानी भी कह गए कि काल-चक्र (की मजबूरी) के कारण काल सतयुग से कलियुग कि ओर ही जाता है, जो किन्तु सक्षम भी है सीधे सतयुग में पहुंचाने में सही समय आने पर - 'क्षीर-सागर मंथन द्वारा' (और 'संयोगवश' हमारे तारा-मंडल को "मिल्की वे गैलैक्सी" कहा जाता है अनादिकाल से...:)

और इस कारण 'भविष्य' या काल ही बता पायेगा कि यह परिवर्तन हमें, संपूर्ण संसार को, प्राचीन 'हिन्दू मान्यतानुसार' 'सतयुग' की ओर ले जायेगा, अथवा 'ब्रह्मा जी' घोर साधना में चले जायेंगे (क्यूंकि यह भी मान्यता है कि ब्रह्मा के दिन के बाद उनकी उतनी ही लम्बी रात भी आती है - जैसे सूर्यास्त के पश्चात मानव के अनुभवानुसार रात्रि का आगमन होता है ?)

अनूप शुक्ल said...

अच्छी रिपोर्टिंग!

ravishndtv said...

रंजन,

दरबार से कुछ नहीं मिला। मैंने वही लिखा जो लगा। अब जो लगा है वह ग़लत भी हो सकता है। मैंने यह नहीं लिखा कि मैंने वही लिखा जो देखा और परखा। दोनों में फर्क है दोस्त। हम पत्रकार सबके दरबार में जाते हैं। चोर से लेकर राजा तक के दरबार में।

लेखों का सिलसिला अभी खत्म नहीं हुआ है। इंतजार कीजिए।

varunkumarblog said...

ye kuch naya nahi.ye us pathsala ki den hai jisme nitish ji ne padhai ki thi. ye pichele chief minister per bhi lagu hota hai.Lekin har stundent ek jaisa nahi hota. koi medhavi hota hai to koi chor nikal jata. Nitish ji ko medhavi wali shereni mai rakhiye.maine jis pathsala ki charcha ki hai wo aap behtar jante hai ravish sir.

Mukund said...

बिहार बदल रहा है समय बदल रहा है. बदल रहा है है देश की की तकदीर.
मुझे बिहार की इतिहास पता है. अगर ये बदलना चाहे तो शेयर लोगो को अच्चम्भित कर दिया है. एक उदारण के तोर पे सम्राट अशोक को लिया जाये . पहले तो उसने खून की नदियाँ बहाई फिर बोध धरम का एक सफल प्रचारक बन गया. बदलना बिहार की निशानी है , पहेचन है. हर किसी की दशा बदलता है एश बिहार की भी बदली. अगर एतिह्सश पे गौर किया जाये तो पयीगा की हमेशा से बिहार एक अलग पहेचन बना के इतिहाश के पन्नो मैं समाया रहा है. मेंस एषा कोई भी इतिहाश कार नहीं होगा जो बिहार पे अध्यन नहीं किया, ये बदलाब एक एतिहासिक है और ये भी जगह बनाएगा.
मुझे बच्चपन से गर्व है एक बिहार पे , हर बिहारी पे
तभी तो मैंने अपने नाम पे बिहारी रखा है. एक कास्ट, एक धर्म , एक पूजा , एक लोग ,एक संस्कार , एक शक्ति एक भक्ति , वो है मेरे दोस्तों बिहारी

शशांक शुक्ला said...

अब मुझे लगता है कि बिहार घूमने के लिये जाया जा सकता है। पहले इतना कुछ फिल्मों ही देख चुका था कि मन में डर था कि बिहार देश से अलग हो गया है
जहां मुंछ वाले भाई लोगों का राज चलता है और उनपर नेताओं का हाथ होता है,

sudesh said...

’सेलेक्शन लीड्स टु करप्शन’ बढ़िया लाइन है रवीश जी. कुछ हफ़्तों पहले तहलका में भी बिहार पर एक कवर स्टोरी आई थी. उसके बाद आपका लेख पढ़ कर अच्छा लगा. बिहार की हालत इतनी ख़राब थी कि शायद सामान्य होने में अभी बहुत वक्त लगे, फिर भी सकारात्मक परिवर्तन हो रहे हैं. अब नीतीश जी राजनेता हैं, चुनाव लड़ना है, तो कुछ राजनीतिक फ़ायदा उठाना कोई बहुत ग़लत तो नहीं पर साथ साथ प्रदेश का उद्धार भी हो तो और भी बढ़िया. सुन्दर लेख के लिये बधाई.

Sanjay Grover said...

Nitish ki vajah se agar Bihar badal rahaa hai to iski saraahanaa honi hi chaahiye. Magar NDTV ke Ravish kumaar ko Nitish ne nahi pahchaanaa, is par vishvaas nahi hota.

Girindra Nath Jha/ गिरीन्द्र नाथ झा said...

रवीश, मैं पूरी रिपोर्ट में आपकी इस पंक्ति से सहमत हूं कि जिन लोगों ने बिहार में जंगल राज देखा है वो आंकड़ों के उन्नीस बीस के फेर में नहीं पड़ेंगे। वे तो बस यही कहेंगे जितना कुछ बदला है वह काफी है।

Sarvesh said...

ek baat unase puchhate ki jo ADG of Police Bihar me first time fair and bloodless election karwaya oosko kis ego ke kaaran shunt kiye hue hain? Yes I am talking about ADG Abhyanand. Last week he was shunted in training department. Kabhi kabhi aisa lagta hai ki Nitish Kumar Andar hi andar eershya aur ego me aakar kaam karte hain. +ve junoon bahut achha hai lekin -ve junoon bahut kharab hota hai. aur Nitish jee me dono dikhta hai.

pinfeather said...

रवीश, मैं पूरी रिपोर्ट में आपकी इस पंक्ति से सहमत हूं कि जिन लोगों ने बिहार में जंगल राज देखा है वो आंकड़ों के उन्नीस बीस के फेर में नहीं पड़ेंगे। वे तो बस यही कहेंगे जितना कुछ बदला है वह काफी है।

I agree, was about to say it..

Vineet Punia said...

Ravish ji,
Jab aap yeh kah rahe hain to manana hi padega ki Bihar badal raha hai. The credit should go to Nitish or his team ???
-Vineet Punia

brajesh said...

Ravish bhai aapne apne gaon ka bijli ke liye phone karte nitish ji ko dekha. sadkein sudhri hui dikhi aapko. Lekin sahi mein gaon mein dekhiyen, unke sarkar ke mla aur administration ko dekhiye. Abhi haal hi mein main bhi patna gaya tha waha se mujhe muzaffarur jana tha. rat ko 11 baje north east se patna pahooncha. station se bahar aaya ki bus stand chala jayein to pata laga ki jo naya bus stand hain mithpur mein udhar jana muskil hain. samne ek petrol karne wali patna police ki zipsy aai maine unlogon se pucha ki bhai abhi muzaffarpur jana hain kya karein kuch log aisa kah rahe the ki abhi jana khatarnak hai. us petrol party ne mujhe bataya ki bhai abhi station par rat bita lijiye subah yahi station pe press ka paper dhone wali gadiyan aayegi us se chale jaiyega ya fir subah mein stand jaiyega. aap chahein to chaliye main aapko chod dete hain bus stand ke mod par lekin uske baad aap apne jaan ki hifajat kar payenge aisa mujhe nahi lagta. Naxalwad ka wahi haal hain thana ka pura ka pura staff hi dahsat mein ji raha hain. kya nitish ji ne administrative level par kuch kiya. kya bihar mein aisa mahaul taiyar kiya ki wahan bahar ke log bekhauf apna nivesh karein, apna karobar karein. abhi bihar ke hi purvi champaran mein kasturba teacher's ki bahali mein itne bade bade log pakde gayein jis mein nitish ke mla aur mantri tak samil the. kya aisa sahyogiyon se nitish ji bihar ka kaya kalp kar payenge? koi saq nahi ki unhone no. badhaya quality nahi. aapke gaon mein to bijli ke liye phone kiya hain mere gaon mein to pichle char salon se bijli ke khambhe khade hain us par tanga tar bachon ke patang fasane ke kaam aa raha hain aur jo transformar laga hain uska tel pata nai kab log apne ghar mein pain killer ki tarah use karne ke liye le gayin. jabki 500 log connection le liye aur fir bhi bijli ke taron ke bich current nahi aaya to kya karein log. sayad kam kagjon mein bahoot hua hain. fir bhi nirvirodh rup se ye swikar karna padega ki nitish ji ne kam kiya hain, laloo sarkar ke gundagardi se mukti mili hain. gayenge bhi wo lekin sahi mein thok baja kar janta apna nirnay degi ab wo samay door nahi.

Sameer Verma said...

jaan kar santosh hus ki aap bhi alochna se asahaj ho jate hain tabhi itne sarey comments me se aapne ranjan ke comment ka uttar dena uchit samjha.kya yeh prayas khud ko santwana dene ka tha ki ek ptrakar ke roop me aapne wahi kiya jo aap se apeksha thi?

निठल्ल चिंतन said...

रविश जी लगता है आपको मटन पैर सब्सिडी सबसे ज्यादा पसंद आयी समघ में नहीं आता है की किसी भी विधान सभा और संसद की कैंटीन पर महंगाई का आसार असर को नहीं होता| मगर ये समझ में आ गया की पत्रकार लोग संसद की कैंटीन में सस्ता नेताओं के लिये सस्ता और पब्लिक के लए महंगा होने की बात क्यों नहीं उठाते | मगर नितीश के ज़माने में लोग अब बिहार का मजाक नहीं उड़ाते | लालू के समय की तरह| जिन्होंने अपनी जोकरों की छवि बना ली है|

Anonymous said...

rabisji pariwartan kramik hi hota hai aur bihar me pariwartan ho raha hai ye hame manna chahiye ha ye alag bat hai ki aalochana honi chahiye ye viksit hote loktrant ki pahchan hoti hai par alochana aisi ho jo vikas ko uksati ho sakaratmakta ko badhati ho aisi honi chahiye aapke lekh se santosh ka bhaw jagta hai kyki shayad ab kisi papiya ghosh kisi s k lal jaiso ki din dahare hatya karke bheur jail ki aarakchit sell me jane ka sahas nahi karta yehi susasan hai

Pankaj Kapahi said...

रविश भाई को सदर प्रणाम
अब तो बिहार भी बदल रहा है अब तो पंजाब सरकार कुछ सोचे और लोगो को पञ्च वर्ष में बिजली देने के झूठे वादे देने बंद करे पञ्च वर्ष में नई सरकार आ जाती है पर बिजली नही रविश जी आपसे गुजारिश है की एक दिन पंजाब विधानसभा में भी आप एक दिन व्यतीत करे और उनसे मेरे गाँव में बिजली के बारे में पता करे की कब तक बिजली के प्ल्क़न्तो से बिजली उपलब्द कर्वी जाएगी ????????????

Nirala said...

kuch nahi badla hai, bas marketing or presentation me nitish lalu se ache hai.