पंजाब की तरह पटना




एक दौर रहा है जब पंजाब के लोग पंजाब से निकल कर कई प्रांतों में गए। पंजाबी ढाबा देश के तमाम हाईवे पर खुला। पंजाब रोडवेज़ से लेकर गुरुनानक टैक्सी स्टैंड तक खुले। पंजाब के लोग जहां भी गए अपनी मिट्टी का नाम और संस्कार ले गए। हिंदुस्तान के भीतर माइग्रेशन के दूसरे चरण में बिहार और उड़ीसा के लोग काफी रहे हैं। लेकिन अभी उड़ीसा की इस तरह की पहचान नहीं उभर रही है। बिहार की उभरनी शुरू हो गई है। गाज़ियाबाद के जिस इलाके में रहता हूं वहां पटना टैक्सी और पटना सलून खुल चुका है। हमारे मित्र जल्दी ही वैशाली में भोज भात नाम से एक रोड साइड फूड स्टॉल लगा रहे हैं। जिसमें बिहार के प्रतीकों की तस्वीरें होंगी। इस फूड स्टॉल में पहली बार चंपारण के मटन भेराइटी परोसा जा रहा है। ताश एक खास किस्म का मटन फ्राई है। जिसे भूजा के साथ खाने पर सुरूर चढ़ता है। कई तरह के बिहारी पराठे भी परोसने का वादा कर रहे हैं। पूरी तैयारी हो चुकी है बस एक दो दिन में खुलने वाला है। उनका दावा है कि कम तेल कम दाम में बेहतर बिहारी व्यंजन का ठिकाना बनायेंगे। ये अच्छा है। भारत के भीतर माइग्रेशन के इस स्तर का भी पाठ होना चाहिए। माइग्रेशन सिर्फ मज़दूरों का नहीं होता हम जैसों का भी होता है। जो हर दिन अपने भीतर गांव और शहर को लेकर रोते रहते हैं।

17 comments:

ss said...

"हमारे मित्र जल्दी ही वैशाली में भोज भात नाम से एक रोड साइड फूड स्टॉल लगा रहे हैं।"

जब खुल जाये तो कहियेगा, घुम आयेंगे।

दर्पण साह said...

Is baat par main aapse sehmat nahi ho paaonga, kshama karein...

..Jahan pe abhi main rehta hoon...
..Vinod Nagar...
Wahan pe 'Uttarakhand beauty parloure' ya 'Uttaranchali' naamo ki dukan hai...

Ashram chawk main 'Keral' aur anya south naam bahutayat se paaiye jaate hain,

..kaaran aap jaante hi hain kyun.
To aise hi ye 'Patna Beauty Parlour'

विनीत कुमार said...

मेरे गाइड अक्सर कहा करते हैं कि माइग्रेटेड लोग हमेशा अपने कंधे पर दो पोटली ढोते चलते हैं। एक जहां आकर बसने की कोशिश में लगे हैं और एक जहां से बसने आए हैं। दोनों को वो परस्पर विरोधी स्थितियों में खोला करते हैं।.

Nikhil said...

घुघनी-चूड़ा बनेगा तो हम भी आएंगे खाने...ब्रांडेड होना कौन नहीं चाहता....

वैसे, पटना में अमेरिकन हेयर कटिंग सैलून भी खुला है....अमेरिकी माइग्रेट तो नहीं कर रहे.....

सुशीला पुरी said...

बिहारी भेरायती का कहना ही क्या ! लिट्टी चोखा भी होगा न !

Unknown said...

Migration dilutes hardcore traditions,culture and cuisine according to new place,in a way its good,people know about new things except when we see the original thing is almost gone.Almost in all cases the soul of that thing is gone.But its inevitable and has happened over centuries and will continue...

शरद कोकास said...

यहाँ भिलाई मे तो बिहार ढाबा और भी कई चीज़े बिहार के नाम से हैं ।

JC said...

'videshi' hi kewal sampoorn bharat ka 'anand' le paye, aur hum - kewal unke liye hi bharatiya - apne-apne 'bihar' mein hi atke rahe aur sadaiv latke rahenge shayad!

Happy bhai-dooj!

Dr. Shreesh K. Pathak said...

प्रखर बोध, आत्म सम्मान बिहार के कण-कण में है..वहां के व्यंजनों का स्वाद लिया है मैंने ...अहाहा...मेरे पिता जी लिट्टी-चोखा बहुत अच्छा बना लेते हैं और बार बार वो बिहार का गुणगान करते हैं...

Unknown said...

local ka globlization hona bhi zaroori hai.vaise bhi bihar desh ka charchit pradesh hai.....isliye wahan ki sankriti,zayka etc se desh-duniya ko avagat karaya jana chahiye.vaise acha prayas hai.

Unknown said...

Bihar Dhaba ya Bihari Dhaba to Bharat men kai jagah hain lekin mere khayal se Tash-Bhuja,ghughani chura,Litti- chokha aur Tasmai ya rasiao ... ka menu me hona bihari byanjanon ko prachalit karne ka sarthak prayas hai.
Lage raho bhai, hum bhi khane ayenge

nagarjuna said...

Bihar ki asmitaa khaane tak hi na sameta jaaye.Delhi ko dekhiye kitni teji se bihar ke log apni pahchan banaate ja rahe hain.1998-99 ka wah daur mujhe yaad hai jab 4 distt ke SP bihar ke hi the.Waise Hindustan ke har shahar mein Patna ka ek bank officer to mil hi jayega...Apni pahchan to ye hai...litti chokha nahi..

Unknown said...

Bihar rajniti aur officersahi ko lekar hamesa charchit aur agrani raha hai aur isi chakkar me bihar ki anya khubiyan daba di gayin hain.Thik usi tarah jaise Bhikhari Thakur jaise prakhyat lok natyakar aaj etihas ke panno me kahin na kahin kho gaye hain.
Ab samay aa gaya hai ki wahan ke jayakon,sawad aur anya sanskritik pahuluon ka ananda liya jaye. Dhosa ki tarah Tash aur Litty bhi sare jahan me charchit hoga.

BHOJ-BHAT....PRASAS SARAHNIEY HAI

ravishndtv said...

नागार्जुन की बात बिल्कुल सही है। हम उस सर्वव्याप्च पहचान से इंकार नहीं कर रहे। अलग अलग हिस्से हैं भोज भात एक हिस्सा भर है। बिहार की पहचान तक सीमित नहीं है।

Arshia Ali said...

बदलाव हमेशा ऐसी घटनाओं को जन्म देता रहता है, जिस पर किसी का वश नहीं चलता।
( Treasurer-S. T. )

ashok dubey said...

INTERNATIONAL LITTI-CHOKHA
JO KHAYE NA PAYE DHOKHA
U.P CHAHE BIHAR ME
GAAD KE JHANDA AA JAYE
JAYE JAHA SANSAR ME.......

santoshsahi said...

दोस्तन क कहीं हमहुं खायला अयब,दीपावली शुभ मुहुर्त रहे तहिए खेल देवे के चाहीं ,देर काहेके बा