वैभव लक्ष्मी व्रत का पाठ

मुझे नहीं मालूम कि कब से वैभव लक्ष्मी व्रत कथा लोकप्रिय हुआ है लेकिन इस व्रत कथा का पाठ रोचक लगा। कई समृद्ध परिवारों में यह कथा चल रही है। इक्कीस हफ्ते तक इसका व्रत रखा जाता है। मेरे घर में कथा-वथा नहीं होती है लेकिन पड़ोसी से ही श्री वैभव लक्ष्मी व्रत कथा की किताब प्रसाद के रूप में मेरे घर में आ गई।

इस कथा में तीन कहानियां हैं। पहली कहानी महाराष्ट्र के शहर मुंबई की है। मनोज और शोभा के परिवार की कहानी। मनोज क्लर्क है। अच्छा इंसान है। शोभा भी। सब मिसाल देते हैं। अचानक मनोज बुरी संगत में पड़ जाता है। नशे की लत में घर बर्बाद हो जाता है। शोभा और उसका बच्चा भूखा है। एक सुंदर स्त्री घर आती है। वैभव लक्ष्मी व्रत रखने की सलाह देती है। सब कुछ अच्छा हो जाता है। मनोज बुरे से अच्छे रास्ते पर आ जाता है।


इस व्रत में नए वस्त्र पहनने के अलावा एक रोचक शर्त भी है। जो स्त्री व्रत रखेगी वो सारा दिन किसी की चुगली नहीं करेगी। चुगली एक बड़ी व्यावहारिक सामाजिक समस्या है। शोभा भी किसी की चुगली नहीं करती है। मन में मां लक्ष्मी का रटन करती है। इक्कीस शुक्रवार तक व्रत रखने के बाद सब सामान्य हो जाता है। एक शर्त और है। व्रत के बाद कथा पुस्तिका सात या इक्कीस औरतों के बीच प्रसाद के साथ वितरित करनी होती है।


दूसरी कहानी अशोक सक्सेना की है। जो कम्प्यूटर में पूरा कोर्स कर लिया था। अर्थशास्त्री( अर्थशास्त्र नहीं) विषय में एम. ए कि शिक्षा प्रथम श्रेणी में पास करने के पश्चात बेचारे अशोक सक्सेना को कहीन नौकरी नहीं मिल सकी। वो रोज़ परेशान रहता है। उसकी मां वैभव लक्ष्मी का व्रत रखती है और नौकरी मिल जाती है। अशोक इक्कीस पुस्तकें बांट देता है।

मुंबई में कम पैसे पर क्लर्की,बर्बादी,अशोक सक्सेना का कम्प्यूटर कोर्स करना और नौकरी न मिलना। ये सब आज के समय के संकट हैं। दूसरा संकट जो कथाओं में आम होता है,निसंतान होने और विवाह का संकट। इस व्रत के रखने से दोनों दूर हो जाते हैं। चमनलाल को हार्ट अटैक हो जाता है। उसके साथ खांसी बुखार का भी रोग लग जाता है। कोई दवा काम नहीं करती है।ग्यारह शुक्रवार वैभव लक्ष्मी का विधि पूर्वक व्रत रखने से चमनलाल ठीक हो जाते हैं।

बड़े शहरों में इस तरह की कथा काफी लोकप्रिय हो रही है। मां संतोषी मां का व्रत अब कम औरतें करती हैं। आर्थिक उदारीकरण के साथ समृद्धि बनाये रखने के लिए लोग वैभव लक्ष्मी का व्रत रखते हैं। एक महिला से फोन कर पूछा तो उन्होंने कहा कि हाल ही में सुना है इसलिए करती हूं।

भुटानी पब्लिकेशन ने व्रत कथा छापी है। पहले पेज में लिखा है कि यह तुरन्त फल देने वाली व्रत कथा है। इस पुस्तक के पाठ द्वारा आपके भाग्य में परिवर्तन होगा। परन्तु इसके लिए हर प्राणी को व्रत करने की शास्त्रीय विधि एवं व्रत कथा का पाठ ठीक नियमानुसार करना होगा। व्रत करने के साथ एक मात्र पुस्तक भुटानी पबिल्केशन(यही छपा है)में प्रकाशित कथा ही है जो आपके लिए धन के वैभव,ऐश्वर्य,सन्तान सुख व समृद्धि के द्वार खोल सकती है। हस्ता- संपादक।

संपादक का आदेश जारी रहता है। आगे लिखते हैं- पुस्तक खरीदने से पहले पुस्तक पर छपा भुटानी पब्लिकेशन का नाम अवश्य पढ़ लें। वैधानिक सूचना- इस पुस्तक का समस्त अधिकार प्रकाशकाधीन है। कोई भी सज्जन इसका कोई भी अंश घटा कर या तोड़ मरोड़ कर छापने की चेष्टा न करें। अन्यथा समस्त हर्ज़े खर्चे व कानूनी कार्यवाही के लिए ज़िम्मेदार वह स्वयं होंगे।


इस व्रत कथा की लेखिका आशा रानी गुप्ता हैं। अब उनसे संपर्क करने की कोशिश करूंगा कि उन्होंने वैभव लक्ष्मी कथा के लिए ये कहानियां किस आधार पर चुनी है। अशोक सक्सेना की कहानी उनके दिमाग की उपज है या सत्य कथा है। आशा रानी गुप्ता ने लिखा है कि वैभव लक्ष्मी मां का पूजन देव काल से अब तक निरन्तर होता आ रहा है।

पूजा पाठ की कथाओं का अध्ययन खूब हुआ है। लेकिन कथायें कैसे बदल रही हैं। फिर से देखने का टाइम है। कथाओं में पात्रों की चिंतायें आधुनिक हो रही हैं। कंप्यूटर कोर्स वाला बेरोज़गार तो समुद्र मंथन के समय पैदा नहीं हुआ होगा। संदर्भ बदल रहे हैं मगर मौलिक चिंतायें वही हैं। संतान,नौकरी,बर्बादी,रोग और विवाह। हमारे समाज ने इन मुद्दों पर लोगों का जीवन नरक करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। शायद इसी हकीकत को समझ कर आशा रानी गुप्ता ने कथा का प्लाट तैयार किया है। हर कथा के बाद कम से कम सात और अधिक से अधिक एक सौ एक घरों में पहुंचने वाली आशा रानी गुप्ता की यह कथा किसी प्रेमचंद की तुलना में अधिक रफ्तार से पहुंच रही है। दस रुपये की यह पुस्तिका है। एक कथा के बाद बंटने वाली पुस्तिका की शर्त से भुटानी प्रकाशक के घर में लक्ष्मी खूब आती होंगी। किस पुराण में किस ऋषि मुनी ने आदेश दिया है कि पुराण का पाठ करो और पांच कॉपी बांटों। हमारे डर का अच्छा आध्यात्मिक इस्तमाल है। मैं पूजा पाठ का विरोधी नहीं हूं। जिसे शांती मिलती है वो खूब करे। मगर कर्मकांड बाद में जोड़े जाते हैं। यह हमेशा ध्यान रखा जाना चाहिए। कर्मकांड सिर्फ कारोबार के लिए होता है।

23 comments:

Neeraj Nayyar said...

you r right sir, is baat ke tah tak jaana he chaiyee

शरद कोकास said...

वेद पुरान चापने वालों को ये एक अच्चा आईडिया दे दिया आपने ,कथा का हाल तो ना पूछें सत्यनारायण की कथा मे भी जो राजा वगैरह कथा सुनते है वो किसकी कथा सुनते है (क्योंकि हम तो उनकी कथा सुंते है) इस तरह का गडबड घोटाला तो सदियो से चला आ रहा है..

दिनेशराय द्विवेदी said...

दैवी अप्रसाद का भाजन बनने का विश्वास दिला कर कोई कार्य करवाना भारतीय दंड संहिता की धारा 508 के अंतर्गत दंडनीय अपराध है।

Shambhu kumar said...

ज्यादा नहीं पता.. कहीं पढ़ा था, धर्म और गुंडागर्दी दोनों डर से चलता है।

Jayram Viplav said...

भय से भक्ति भाव पैदा नही किया जा सकता है . भारतीय समाज में मिथकीय सन्दर्भों में थोडा बहुत ईश्वरीय दंड का दर दिखाया गया है ताकि समाज से बुराईयाँ कम हो मसलन , सच -झूठ , पाप -पुन्य की बात को ही लें . पर आजकल इश्वर का दर दिखा कर लोगों को बेवकूफ बनाना का अगौरख धंधा चल पड़ा है . रविश जी , भूटानी प्रकाश्जक ही नही अनेको प्रकाशन, बाबा , योग गुरु , पैसों को दुइगुना करने वाले बाबा (अशोक जडेजा ) आदि -आदि फर्जीवाडा करने वालो को हमारा समाज ही तो पैदा करता है . अनंत आवश्यकताओं वाले इस विश्व में मानवमन में जरुरत से अधिक धन संचय करने
-- की प्रवृति पैदा हो रही है . समाज को सँभालने की जिम्मेवारी वाले साधू संत भी आजकल धन संचय में लगे हुए हैं . आसाराम से लेकर रामदेव और न जाने कितने बाजार हावी है भैया ..........................................

अजित वडनेरकर said...

ओहो....वैभव लक्ष्मी...बेचारी रोज़ पिटती है पति के हाथों...

JC said...

‘हिन्दू मान्यता’ के अनुसार शिव-पार्वती विवाह के शुभ अवसर पर भी गणेश (मूलाधार मंगल ग्रह) की सर्व प्रथम पूजा की गयी. जबकि आज के बुद्धि-जीवी अक्सर प्रश्न करते दिखते हैं की गणेश तो शिव/ पार्वती पुत्र थे, वो शिव-विवाह में कैसे उपस्थित हो सकते हैं?! या, ‘समुद्र मंथन’ के आरंभ में ही उत्पन्न विष को, हलाहल अथवा कालकूट को, शिव कैसे अपने गले अथवा कंठ में, 'मानव हित' में, धारण कर पाए जबकि केवल मंथन के अंत में ही मोहिनी रूप में भगवान विष्णु ने अमृत बांटा था देवताओं को (राहू नामक राक्षश भी यद्यपि धोखे से अमृत ग्रहण तो कर लिया पर उसे 'सूर्य और चन्द्र' के कारण अपना सर खोना पड़ा)?!

ऐसे कई सवाल हैं जिन्हें समुद्र के किनारे बैठे-बैठे हासिल कर पाना वैसा ही है जैसे समुद्र की गहराई से अमूल्य मोती को पाने की इच्छा करना…

किन्तु कलियुगी-मानव हित में, जब अज्ञानता का राज्य था, ज्ञानी लोग इशारा कर गए कि अनादि और अनंत, अजन्मे और अमृत, प्रभु (‘भू’ अथवा ‘पृथ्वी’ के पहले भी) आकाश में शक्ति रूप में (नादबिन्दू यानि निराकार रूप में) विराजमान थे…और 'माया' के प्रभाव से ड्रामा अथवा लीला ‘चालू आहे’!

Sanjay Grover said...

हंसंे कि रोएं कि सिर पीटें।

रुख बदलते हिचकिचाते थे कि डर ऐसा भी था,
हम हवा के साथ चलते थे, मगर ऐसा भी था।

पांव आइंदा की जांनिब, सर गुजिस्तां की तरफ,
यूं भी चलते थे मुसाफिर, इक सफर ऐसा भी था।
(शायर का नाम याद नहीं)

नवीन कुमार 'रणवीर' said...

ये मल्टी लेवल मार्किटिंग(एमएलएम) का धार्मिक स्वरूप है। कोई चेन बिजनेस में गद्दा बेच रहा है आपकी कमर में दर्द नहीं होगा(जपान लाइफ), कोई फर्जी के प्रोडक्ट(एमवे,नैचुरलाइफ), कोई किशोरों और युवाओं को कम्प्यूटर शिक्षा का छलावा दे रहा है(स्मार्ट वैल्यू,ईबीज़)। अब कोई ये तो कहेगा नहीं कि पिंडदान नहीं करवाओगे तो तुम्हारे पूर्वज नर्क में जाएंगे,और वैसे भी पिंडदान हर सप्ताह नहीं होता शुक्रवार तो हर सप्ताह आता है। ये ब्रह्मामणवाद का आधुनिक और बाजारी संस्करण है।
"धार्मिक एमएलएम"
ज्यादा जानकारी के लिए मेरे ब्लॉग पर ठगी...लक्ष्य एक,नुस्खें अनेक! जरूर पेढ़ें।

sanjay vyas said...

यहाँ सब कुछ समय के साथ अपडेट होता है...

वेद रत्न शुक्ल said...

"इस व्रत कथा की लेखिका आशा रानी गुप्ता हैं। अब उनसे संपर्क करने की कोशिश करूंगा कि उन्होंने वैभव लक्ष्मी कथा के लिए ये कहानियां किस आधार पर चुनी है।" Pata lagakar uski thagi ka pardafash kariye. Yeh Prakashak ki 420i ki Ek Nayaab chaal hai. Na koi Asharani hain na koi clerk. Clerk ki katha padhne se pata nahi kya hoga.
Yeh vrat abhi naya-naya Fashion me aaya hai. Mere ghar bhi yeh vrat chaloo hai. Maine ghar phone karke vistar janana chaha. Mata ji ne kaha Devi-Devta ka majaak nahi udana chahiye. Khair thoda samjhane par maan gayeen ki pooja-vrat to theek hai lekin ye kitab aur katha thagi ka ek prayas matra. Wahan doosari kahani samne aayee hai. Thoda vistar me thodi der me apne Blog par likhunga.

Science Bloggers Association said...

अरे, चुगली न खाने वाली शर्त तो बडी टेढी है। शायद इसीलिए इस व्रत के बारे में लोग ज्यादा नहीं जानते।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

Dipti said...

वैभव लक्ष्मी की इस महिमा से मैं पिछले 18 साल से अवगत हूँ। मेरी माँ ने की बार ये व्रत किए हैं। अगर उनकी माने तो मेरे मामा का बेटा इसी व्रत का प्रताप है। इसमें और भी की नियम है कि सोने या पैसों की पूजा की जाए। केवल लाल फूल चढ़ाया जाए। प्रसाद में केवल मीठा बने। ये केवल शुक्रवार को ही हो सकता है। और, भी कई नियम है।

JC said...

भारत देश महान है! घोर कलियुग में, जब सृष्टि की रचना आरंभ हुई थी, तो अज्ञानता के कारण, अनजाने के भय से, यहाँ विभिन्न मान्यताएं आरंभिक काल मैं दिखाई पड़ी होंगी, क्यूंकि परम सत्य केवल सतयुग में ही संभव हो पाया था...

और काल की उलटी चाल के कारण, सतयुग से वापिस कलियुग तक १०८० बार, ब्रह्मा के एक दिन में, मानव रूप में आरंभिक काल का रस भूतनाथ शिव को मिल रहा है :)

इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से सम्बंधित बुद्धि जीवी को, और तिस पर 'हिन्दू' को, समझने में इतनी कठिनाई तो नहीं होनी चाहिए है...

anil yadav said...

अगर डर वश ही सही लोग चुगली....नशा....और हर तरह का गलत काम छोड़ रहे हैं तो ....इसमें कोई बुराई नहीं है....

Aadarsh Rathore said...

लंबे समय बाद पोस्ट लिखी है

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar said...

भाई रवीश जी ,
किताबें खरीद कर बांटने तक तो ठीक है कम से कम उसमें वैभव लक्ष्मी के भक्त पैसे खर्च करते हैं .लेकिन बहुत से हनुमान भक्त,सांई बाबा के भक्त आपके पास एस एम् एस करके फोटो भेज देते हैं ..इस धमकी के साथ की ये फोटो २१,५१ या आर भी लोगों के पास भेजो वर्ना भारी मुसीबत में पद जाओगे ...अब इन लोगों को क्या कहा जाय...
हेमंत कुमार

Sanjay Grover said...

दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi said...
दैवी अप्रसाद का भाजन बनने का विश्वास दिला कर कोई कार्य करवाना भारतीय दंड संहिता की धारा 508 के अंतर्गत दंडनीय अपराध है।

Dwidiji ne achchhi jaankaari di hai.

मधुकर राजपूत said...

सारे राड़ की एक जड़। ज़र, जोरू और ज़मीन। पुरातन काल से चली आ रही इन समस्याओं को तोड़ लो या मरोड़ लो , रहेगी तो वही। कर्मकांड में कल्याण है। उसका भी जिसे फायदा पहुंच रहा है और उसका भी जो इसे कल्याण का ध्येय रखकर करता है। बहुत दिन से मैं भी इस बारे में सोच रहा हूं कि इसे लिखता कौन है? कौनसे फड़िया साहित्या प्रकाशन में छपकर प्रचलित हो जाती है। कोई एक आरती या आरधाना इस फड़िया साहित्य में ऐसी नहीं मिलती जिसमें सुख संपत्ति घर आवे का जिक्र न हो। मैं भी बड़ा खीझता हूं इन्हें देखकर इसलिए दिखते ही दूर धकेल देता हूं। साधना में भी लालच है। इंसान लालच का पुतला, फायदे के लिए इंसान को या भगवान पटाने से नहीं चूकता। रिश्वखोरों ने यहां भी रिश्वत और चढ़ावे को काफी तरजीह दी है। फायदा उन्हें ही मिलता है जो अंधों में काणे सरदार होते हैं।

आनंद said...

रवीश जी,

आपने इस कथा के अंश को तोड़ा मरोड़ा है। अब आपकी खैर नहीं। माँ वैभव लक्ष्‍मी तो नाराज होंगी ही, साथ ही भूटानी प्रकाशन भी मुकदमा ठोंक देगा। एक साथ दो-दो मुसीबत कैसे झेल पाएंगे आप?

- आनंद

Unknown said...

रवीश जी,
आज के दौर में आज के बाज़ारू पंडितों ने भले ही कर्मकांड को कारोबार का ज़रिया बना दिया हो लेकिन पहले इसके मायने अलग थे। उसे भी पढ़े औऱ तमाम मसलों की तरह इसके भी वैज्ञानिक और मनवैज्ञानिक पहलुओं को समझें। आप जैसे प्रबुद्ध अगर बिना पढ़े समझे एक संस्कार को झुठला दें औऱ आज के बाज़ार के मायनों में उसे कस कर हाशिए पर ला दें तो नाइंसाफी लगती है। बहरहाल लेख अच्छा है।

Shishir singh said...

सर
यह दुर्भाग्य की बात है कि कुवांरे पुरूशों(शादीशुदा पुरपों की लिए तो उनकी अर्द्धागिनियां तो है ही) के लिए इस तरह का कोई पाठ पूजा नहीं है उन्हें काम की जरुरत है बाजार में मंदी है वैभव लक्ष्मी सबकी परेशानियां दूर करती हैं हमारे भी दूर करेंगी ऐसी उम्मीद है।

सागर नाहर said...

मैं आज यह पोस्ट पौने दो महीने बाद देखकर अपने अब तक के हुए नुकसान पर रो रहा हूं, काश यह पोस्ट पहले दिख जाती तो मैं भी वैभव लक्ष्मी माताजी का व्रत-उद्यापन कर इक्कीस पुस्तिकायें बांट ही देता तो मेरा भी कुछ तो भला होता।
खैर, सुबह का भूला! अब भी देर नहीं हुई, मैं वैभव लक्ष्मी माताजी की पूजा करवा कर इक्कीस पुस्तिका में से एक आपके यहां भेज रहा हूं; सही रास्ता सुझाने के लिये।
:) :)
अन्धविश्वास की पराकाष्‍ठा