दलितबस्ती में भगवान

इंडियन एक्सप्रेस की ख़बर से पता चला है कि तिरुपति भगवान अब घूमने भी लगे हैं। लगता है मंदिरों में पाषाण प्रवर्तित बालाजी भक्तों की भीड़ से उकता गए हैं और भ्रमण पर निकल पड़े हैं। अख़बार बताता है कि बालाजी इन दिनों दलित बस्ती में पधार रहे हैं। इसके लिए एक वैन तैयार किया गया है जिसके साथ मंदिर के मुख्य पंडित होते हैं। बालाजी दुनिया के सबसे अमीर भगवान हैं। अब तो लोगों ने तीनलोक के खजाने के स्वामी कुबेर को भी भुला दिया है। अंबानी नहीं तो बालाजी ही अमीर माने जा रहे हैं।

तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम ट्रस्ट के मुताबिक वैन में बैठे भगवान इसलिए निकले हैं ताकि दलितों को उनकी झलक मिल जाए और उन्हें अपने घर के सामने बालाजी की पूजा का अधिकार भी। क्योंकि हिंदू धर्म में तिरस्कृत दलित दूसरे धर्मों की तरफ मुड़ रहे हैं। इसी को रोकने के लिए बालाजी उदार मन से भ्रमण करते हुए दलित बस्तियों में पहुंच रहे हैं। बता रहे हैं कि देखो दलित तुम मेरी पूजा कर सकते हो। इसके लिए किसी दूसरे धर्म में जाकर असलम या अब्राहम होने की ज़रूरत नहीं है। तुम अमरकांत ही बने रहो। अब तो मेरे पास वैन भी आ गया है। मैं आता रहूंगा। मंदिर से निकलता रहूंगा। निकलना ही होगा। कब तक हमारे भगवान मंदिरों में बैठे रहेंगे। उन्हें भक्तों के द्वार जाना ही होगा।

इस कार्यक्रम का नाम है दलित गोविंदम। इसके तहत दलितों के गांव के बीच में वैन पार्क की जाती है। मुख्य पंडित सहित भगवान उसी वैन में पूरी रात दलित बस्ती में गुजारते हैं। क्योंकि देवस्थानम का मानना है कि दलित ग़रीब होते हैं इसलिए वे बालाजी के मंदिर तक नहीं जा सकते और चूंकि बालाजी सबसे अमीर हुए हैं वो तो कभी भी कहीं भी जा सकते हैं। कहीं पुराने सवर्ण भक्त ईर्ष्या से जलने न लगे कि हमने इतने पैसे खर्च किये लेकिन हमारे यहां तो भगवान वैन से नहीं आए। उन्हें समझाना होगा कि भगवान का यही तो काम है। जो वंचित है,उपेक्षित है उसकी रक्षा करना न कि जो समृद्ध है,आदरणीय है उसकी ड्यूटी बजाना। इसीलिए वैन में बालाजी की प्रतिमा रखी गई है। एक ही मंच पर मुख्य पंडित और नवभक्त दलित एक साथ प्रसादम ग्रहण करते हैं। यह काफी है जातिगत पूर्वाग्रहों को खत्म करने के संदेश के लिए। इतना ही इन दलितों को सिर्फ वीवीआईपी को मिलने वाला वैदिक आर्शीवाद भी दिया जा रहा है। दलित वीवीआईपी हो गए हैं। दलित भी प्रसन्न हैं। कहते हैं कभी कल्पना नहीं की थी कि इस तरह से भगवान हमारे घर आ जाएंगे।

पता नहीं यह फैसला ट्रस्ट का है या भगवान का। मंदिरस्थ भगवान मोबाइल हो जाएं तो क्या बात। एक दिन घर ही आ जाएं। कोई घंटी बजा दे और कहे कि उठो रवीश, देखो दरवाज़े पर स्वंय प्रभु आए हैं। तुम उनका मंत्रोच्चारण से स्वागत कर अतिथि धर्म का पालन करो और नवभक्त बनो। लेकिन बहुत सारे देवी देवता किसी भक्त के गले में लटक कर, पर्स में छुप कर, कार के डैशबोर्ड में बैठकर,कैलेंडर में झूल कर एक जगह से दूसरी जगह तक यात्रा करते रहते हैं। ओरीजीनल भगवान तो मंदिर में रहते हैं और फोटोकॉपी भक्त के साथ भ्रमण पर। यहां अलग है। यहां खुद ओरीजीनल बालाजी दलितों को कृतार्थ करने निकले हैं। जिस तरह से मंदिर की भीड़ में किसी भक्त को पता नहीं चलता कि बगल वाला भक्त किस जाति है उसी तरह से किसी सवर्ण भक्त को क्या फर्क पड़ता है कि उसके भगवान कहां कहां घूमते रहते हैं। वो तो अदना सा भक्त है। कभी हिम्मत करेगा कहने की कि भगवन तुम दलितद्वारे न जाओ। भगवन को भी पता चल गया होगा कि उसके द्वारे विनम्र और सर्वस्व लुटा देने वाला यह भक्त घर लौटकर जातिवादी हो जाता है। इंसानों के बीच जाति के आधार पर फर्क करता है। लिहाज़ा क्यों न भगवान खुद यह संदेश दें कि सब भक्त बराबर हैं। जहां तक और जब तक मेरी पूजा का सवाल है तुम दोनों मेरे प्रिय हो। उसके बाद तुम चाहे जो करो। मुझे तुम्हारी निजी ज़िंदगी से क्या मतलब।

हे दलित बालाजी को स्वीकार कर लेना वरना उन्हें कितना दुख होगा कि तुम चंद सवर्णों की हिंसक नज़रों के कारण अन्य धर्मों के ईष्ट की शरण में जा रहे हो। अब तो निकलोगे भी तो रास्ता छेंक कर स्वयं बालाजी खडे होंगे। अच्छा है आने दो भगवानों को। उनका आदर करो। पूजा भी करो। पूछो भी। बालाजी हम मानते हैं जब जागे तब सवेरा। लेकिन भेदभाव तो हमने नहीं की न। जो करते हैं पहले उनके यहां क्यों नहीं जाते हैं। जब भ्रमण पर निकले ही हैं तो वहां जाइये जहां आपकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत है। वो बदल जायेंगे तो हम भी आपके यहां आ जायेंगे। कुछ न कुछ कर लेंगे।

12 comments:

anil yadav said...

मेरे पास आओ मेरे चाटुकारों कुछ तो लिखो....कस्बे में बसने वाले परजीवियों कहाँ हो....अब तक कोई चाटुकारिता नही क्या तुम्हारी कलम की स्याही सूख गयी है....आओ औऱ जल्दी लिखो कि आपने मेरे मन की बात कह दी है....मेरे पिता जी आपके दोस्त हैं....क्या लिखते हैं....मैं तो पढते ही पहचान गया था....कैसे सोचते हैं....आपकी लेखनी को मेरा सलाम .....लिखो ..लिखो हो सकता है तुम जिस उद्देश्य से चाटुकारिता करते हो उसमें कामयाब हो जाओ....

अब देखना कस्बे के श्वान कैसे काटने के लिए दौड़ेगें ....सब इस प्रतिस्पर्धा में रहेंगे कि कौन मुझे ज्यादा जोर से काटकर अपने आका रवीश को सबसे ज्यादा खुश करता है....

अंगूठा छाप said...

अविनाश जी नमस्कार,

मेरे पिता जी आपके दोस्त हैं....क्या लिखते हैं आप....मैं तो पढते ही पहचान गया था....कैसे सोचते हैं....आपकी लेखनी को मेरा सलाम .....

अंगूठा छाप said...

क्या तरकीब निकाली है चरचा में आने की...


ऐसे बिरले श्वान अनिलजी को मेरी शुभकामनाएं...

Sarvesh said...

Good move by TTDT. I am not sure the wordings are from TTDT or from Indian Express but it should be corrected to poors. Its a famous temple and every Hindu's wants to have a glance of the Balajee. Journey has become so costly thanks to government. All can't afford to visit Tirupati from deep rurals of India. So they can have a glance of their God to their nearest place.
Now I can imagine the statement of one of Christian friend who applied leave to visit Delhi to have a glance of Pope. I asked him why is he doing? As per him its life time achievement to see Pope as he comes from God's place.
Good news please share the details as which all places HE will be visiting along with date.

Abhishek Ojha said...

भगवान् चुनाव तो नहीं लड़ रहे ?:-)

sanjay vyas said...

भगवान् अब भक्तों के द्वारे. ये निर्णय चाहे ट्रस्ट का हो पर परिस्थितियों का ठेला हुआ लगता है .धर्म अपने आप को reinvent करता रहता है ताकि अप्रासंगिक न हो जाय .हिंदू धर्म एक बड़े भगौने की तरह है . यहाँ सब कुछ मूल स्वाद में मिल जाता है .

SummerDiary said...

Go Balaji go, you get my vote for next prime minister.

Rajesh said...

With the parents seated in the chairs in front of him, the headmaster began to fill up the application form for enrolling the new student:

“Son, what is your name?”

“Jeevan”

“Good … good name. Father's name?”

“Anwar Rasheed”

“Mother's name?”

“Lakshmi Devi”

The headmaster looked up and addressed the parents:

“Which is the religion you want to enter against the boy in the register”?

“Nothing. You may write no religion”

“Caste?”

“Not necessary”

The headmaster leaned back on his chair and asked a little reflectively:

“Supposing the child feels the need for a religion when he grows up?”

“Let him choose when he wants to”

केरला की सातवी कक्षा की समाज-शास्त्र के पुस्तक से ये अंश हैं। आज कल इन्ही को लेकर वहां राजनैतिक घमासान मचा हुआ है। अब तो बालाजी ही बचाएँ...

अंगूठा छाप said...

हा! हा! हा!!
अभिषेक ने बढ़िया कमेंट किया है...
जीते रहो...

कुमार आलोक said...

देवेंद्र.. डेविड हो गया है और रफीक रफायल ..बहस तो बहुत दिन से चल रही थी कि आखिर क्रिस्तानों से कैसे लोहा लिया जाय ..हिंदूवादी संगठनों के अलंबरदार विचार कर रहे थे ..इस दिशा में कुछ प्रयास जूदेव साहब मध्यप्रदेश और छत्तीस गढ में कर रहे है ..कुछ इसी तरह काम ालाजी मंदिर के ट्रस्ट वालों ने करने का बीडा उठा लिया है।
बकबालाजी के दरश के लिए जाने वालें भक्तों के लिये दो पंक्तियां होती है ..एक स्पेशल दरशन
और दूसरा साधारन ..स्पेशल के लिये मनी मुद्रा खरचनी होती है और साधरण के लिये मुफ्त ..लेकिन साधारन वाले का नंबर आने में सबेरे से शाम भी हो जाती है ..जिनकी मन्नते पूरी होती है वो सिर का मुंडन भी करवाते है ..गंजों के सिर पर नकली बाल उपजाने वाली बीग बनाने का कारोबार करने वाली कंपनीयों के टेंडर भी होते है ..अमीरों के भगवान है इसमें कोइ दो राय नही ...लेकिन कांग्रेस चली गांव की ओर की तर्ज पर बाला जी चलें दलितों की ओर बडा मजेदार है ..राहुल गांधी से प्रेरणा लेने वाले ट्रस्ट के स्वामियों को हमारी ओर से शुभकामनाएं .....


नोट ( ये जनतंत्र के प्रहरी अनिलजी सरीखे लोगों के पास लगता है रविशजी के ब्लाग से गजब का प्रेम है ..इन्हें स्पेशल आमंत्रित आलोचक के लिये एक स्पेशल कोना रविश जी के व्लाग में मिलना चाहिये)

Dr. sarita soni said...

Anil ji,

blog ka matlab hi hai apni baat kahna aur dusro ki rai janna sabhi ka apna ek kona hota hai jaha wo apno ke sath rahta hai (aur agar koi apna sa mahsus na ker raha ho to bahar ja sakta hai) aapko agar is blog se problem hai to yaha aate kyu hai apki rai zaruri to nahi har baat ke liye.

aapo ravish nahi pasand ya unka blog nahi pasand ya visitors ke comments nahi pasand - jo bhi apki problem hai wo aap aaram se kyu nahi soch lete baki sab logo ko kyu bura bhala kah rahe hai.

i dnt kno u but, u hv commented on the visitors tat is not good.

Devender Kumar said...

रवीश जी,
सबसे बड़ी बात तो यह है कि यह एक सोची समझी चाल है । इसका सबसे ज्यादा फ़ायदा भी सर्वण समाज को ही होगा ।
पहला फ़ायदा :
आज कल दलितो में जागरुक्ता आ गई है और लोग यह जान गये है कि वो अपना हक लड़कर ले सकते है । यही कारण है कि अब आये दिन विभिन्न राज्यो के मंदिरो में द्लितो के प्रवेश को लेकर संघर्ष होते रहते है । इसमें एन.डी.टी.वी. जैसे मिडिया भी जब इन खबरों को प्रमुखता से दिखाते है तो प्रसाशन व समाज पर एक दबाब होता है कि वो दलितो को मन्दिर में प्रवेश दे । और अगर दलित मंदिर में प्रवेश कर गया तो मंदिर अपवित्र हो जायेगा । यही कारण है कि बालाजी को दलित बस्तिओ में ले जाया जा रहा है ताकि दलित मंदिर कि सीड़ी न चड़ पाये ।
दूसरा फ़ायदा :
दलितो का हिन्दू धर्म में विश्वाश खत्म होता जा रहा है और यह लोग अपना धर्म बदल रहे है , जिसका सबसे ज्यादा नुकसान भी इन लोगो को उठाना पड़ रहा है । क्योकि सबसे ज्यादा धर्म के नाम पर लड़ने के लिये दलित ही इस्तेमाल किये जाते है । और जब भगवान बस्ती में आयेगें तो लोग हिन्दू धर्म से भी जुड़े रहेगें ।
तीसरा फ़ायदा :
अगर दलित भगवान से विमुख हो गया तो इन लोगो के चमत्कार पर कौन विश्वाश करेगा । क्योकि द्लित समाज अभी भी बड़ी संख्या में अशिक्षित है और इन लोगो के बहकावे मे आ कर बड़ी-२ अफ़वाहो को हवा भी देने के काम आता है । और इस दलित रूपी मोहरे को कौन जाने देना चाहेगा ।
अगर सच में कोई दलित का भला करना चाहता है तो पहले इस ऊँच नीच को खत्म करो तभी दलित मन और तन से भगवान का होगा ।