आश्रम जाम का आध्यात्म- पांच

आश्रम में फंसे हुए दो घंटे हो चुके थे। घर फोन कर पत्नी को बता दिया था कि आने में देर होगी। दफ्तर भी फोन कर चुका था। रेडियो जॉकी की बातें अब कान के बगल से गुज़र रही थीं। सुनाई दे रही थीं मगर समझ नहीं आ रहा था। इतने तनाव में जाम में फंसी कारों के पीछले शीशे पर कुछ लिखा दिखाई देने लगा। सभी कारों के शीशे पर राम लिखा नज़र आया। मैं हैरान हो गया। इतने सारे राम जाम में। वो लड़की जिसे मैंने ट्रेड फेयर में टाटा की नैनो कार के बगल में नंगी टांगों के साथ देखा था वो भी जाम में फंसी थी। वो तो ट्रेड फेयर में भी फंस गई थी। शुक्र है नेता नहीं थे। चीयर्सलीडर के कपडों से बहुत पहले उसने कम कपड़ों में अपनी कमसिन अदाओं से कार को निम्न मध्यमवर्ग की आकांक्षाओं में पहुंचा दिया था। ट्रेड फेयर में नैनो कार के आने के बाद जाम लगने की आशंकाओं को यही लड़की अपनी अदाओं से खारिज कर रही थी। मैं भी आश्रम जाम की आशंका से बहुत दूर निकल आया। घूमती कार के साथ स्थायी भाव में खड़ी उस मॉडल ने बता दिया कि समस्या कार में नहीं बल्कि सरकार में है। कार नहीं ख़रीदने से भी जाम लगता रहा है। उन तमाम शहरों के चौराहों पर जहां अभी कार का आना बाकी है,वहां रिक्शे ठेले जाम लगाते हैं। दिल्ली के लोग क्यों डरें। आने दो नैनो को और आने से पहले देखने दो इन नयनों वालियों को। इनके होने से जाम का आध्यात्म कितना रोमांचक हो जाता है।

पुरानी स्मृतियों से दिमाग फारिग हुआ तो वो लड़की नज़र आने लगी। इस बार कम कपड़ों में नहीं थी। उसने रामनामी पहन लिया था। राम राम राम। अपनी कुर्ती पर अनगिनत बार राम नाम का वरण कर लिया था। घर के लिए ख़रीदे गए आशीर्वाद ब्रांड के आटे को उसने गरम बोनट पर रख दिया। ताकि भुन कर प्रसाद बन जाए। मुझे देखते ही पहचान लिया। आप तो ट्रेड फेयर में भी थे न। मैंने सर हिलाया तो बोली कि धीरज रखो। यह जाम सदियों तक चलेगा। आध्यात्म की शरण में आ जाओ। तुम भी अपनी कार के पीछे राम लिख डालो। मैंने कहा ज़रूरत नहीं है। मैं भी दुनिया को मुक्ति का मार्ग बताने वाला पत्रकार हूं। प्रेस लिखा है अपनी कार के शीशे पर। पुलिस वाला डरता है।चोर सोचता है कि चुरायें या छोड़ दें। पार्किंग वाला पैसे नहीं मांगता। प्रेस और राम की ताकत की तुलना मत करो। मेरे इस जवाब पर कार वाली मॉडल बिदक गई। कहा कि इस जाम से मुक्ति सिर्फ आध्यात्म के रास्ते मिलेगी। तुम राम की शरण में आ जाओ। कब तक जाम के सांसारिक दर्द से कराहते रहोगे। शारीरिक पीड़ा को भुला कर आध्यात्मिक शांति हासिल करो।

मैं उसके हर प्रस्ताव को खारिज कर रहा था। जाम से मुक्ति के लिए राम की शरण में नहीं जाऊंगा। ज़रूर यह कोई मज़ाक है। जंगलों में भटके राम को ट्रैफिक जाम का क्या अनुभव। लेकिन वो मॉडल ठीक कहती थी। जीवन में जाम के कारण भजन का वक्त नहीं रहा। तो क्यों न जाम में भी भजन का मार्ग अपना लें। मगर राम ही क्यों। तभी मेरी नज़र आश्रम से लगे सिद्धार्थ एक्सटेंशन की दीवार से लगे एक पोस्टर पर पड़ी। मां आनंदमयी का दिल्ली आगमन। एक ऑटो पर लिखा देखा- धन धन गुरु तेरा ही आसरा। सामने एक टाटा चार सौ सात खड़ी थी। भगवती जागरण के बाद दुर्गा, हनुमान और गणेश को लाद कर साहनी घोड़ी वाला अगले पड़ाव की ओर जाने वाला था। लेकिन जाम में फंस गया था। मूर्तियों को संभाले कारीगर भगवान पर ही तरस खा रहे थे। उनसे मांगने की बजाए कहने लगे कि प्रभु सरकार और इंजीनियर भी तो आपने ही पैदा किये हैं। फिर हमीं क्यों सरकार को गाली दें, उसे बदलें। आप भी तो कुछ कीजिए न।

इस बीच कार वाली मॉडल फिर कहने लगी, मुझे भी लगता था कि कम कपड़ों में आज़ादी है। अब सोचती हूं कि मन की आज़ादी कपड़ों में नहीं बल्कि भक्ति में है। कार हो, कम कपड़े हों और आश्रम जाम में फंस गए तो आधुनिकता गई तेल लेने। ऐसे में तो सिर्फ लिपस्टिक लगाने का ही वक्त मिलेगा। और कब तक होठों को चमकाते रहें। क्यों न भजन में मन रमा दे। और जाम की पीड़ा को भुला दें।

इस बीच कार की बोनट पर आशीर्वाद ब्रांड का आटा भुन कर प्रसाद बन चुका था। मॉडल ने सबको बांटना शुरू कर दिया। मैंने हाथ बढ़ा दिया और चरणामृत पी ली। घऱ पहुंचने से पहले आध्यात्म और आश्रम का यह रोमांस तनावों से मुक्ति देने लगा। नैनो कार की वेदना कम होने लगी। उस ट्रक पर लिखा था- शंकर तेरा सहारा। ज़माने से ट्रक वाले शंकर के सहारे गंगा तेरा पानी अमृत का जाप करते हुए शहरों को पार करते रहे हैं। आश्रम जाम से गुज़रने वाली कारों ने भी अब भगवान का सहारा ढूंढ लिया है। कार के पीछले शीशे पर राम का नाम लिख लिया है।

3 comments:

अबरार अहमद said...

रवीश भाई क्या करीने से पिरोते हैं शब्दों को। काश इन शब्दों को आपकी आवाज मिल जाती। सच कह रहा हूं मजा आ जाता। आपके बोलने के लहजे का तो मुरीद हूं। स्पेशल रिपोर्टस में तो आप कमाल कर देते है। काश ब्लाग पर भी ऐसा होता। खैर अब अगली जाम का इंतजार रहेगा। अभी राम नाम से जाम से मुक्ति मिल गई।

राज भाटिय़ा said...

मुझे तो लगता हे इस जाम का कारण वो नंगी तांगॊ वाली हसीना ही हो गी, नेनओ का तो नाम बदनाम कर रहे खमखा मे वो लोग जिन कि जमीन जर्वर्दस्ती घोस कर गोली मार के,डडे मार कर भगा दिया था, गरीब कही के,देश की तरकी से भी जलते हे,

JC said...

Tulsidas amit aksharon mein likh gaye, Treta Yug mein Bhagwan Rama jab sone ka sinhasan tyag jungle mein poore 14 saal bhatake to wahan bhi unhein sone ne nahin chhorda. Ardhangini Sita ke dabava mein swarna-mriga ka peechha karna parda. Phir bhrata Lakshaman ko bhi Sita dwara unki khoj mein bhej dene se Ravan dwara Sita haran ke karan dono bahiyon ka raat ka sona bhi gum ho gaya!

Wo to bhala ho vanaron ka, Nal-Neel, Sugriva, Hanuman, Angad adi ka, jo Ravan ki swarna-Lanka bhi bhasma kar aye aur Sita bechari Ayodhya laut payi – phir se banvas hetu!

Kahani darshati hai ki manava jati yoon jungli pashu saman jungle mein paida hui, concrete athva swarna jungle mein kuch samaya rahi, aur phir se jungle mein hi laut gayi! Yadyapi arambha mein machhli saman jal mein utpanna ho, pralaya kal mein usi mein sama gayi!

Yaadein kewal sone ki hi raha jati hai manas-patal per! Shayad yahi maya hai!