आश्रम जाम में रोमांस- पार्ट वन

(अविनाश की ख्वाहिश पूरी करने का इरादा कर लिया है। ट्रैफिक जाम पर अपने अनुभवों को उपन्यास में बदलने की कोशिश कर रहा हूं। पहली कड़ी हाज़िर है। )

कार ने बढ़ना बंद कर दिया था। शीशे पर चढ़े काले रंग की पन्नी ने कार के भीतर के अंधेरे को और गहरा कर दिया था। शाम आकर रात में ढल चुकी थी। एक रूके हुए सफ़र में इंतज़ार लंबा होता जा रहा था। दोनों ने अब सामने देखना बंद कर दिया था। वो अब एक दूसरे को देख रहे थे। इंतज़ार छोटा होने लगा। बेक़रारी बढ़ने लगी। सामने बहुत दूर पहिए से उतरा ट्रक एक सब्र पैदा कर चुका था। अब बहुत देर यहीं रहना होगा। सड़क के किनारे खड़े बिजली के खंभे की रौशनी उनके कार के बोनट पर उतर रही थी। सामने की कार की बैक लाइट अटक गई थी। दोनों को लगने लगा कि कार बंद हो गई है। बिजली के खंभे की रौशनी के बाद भी अंधेरा गहरा गया है। ट्रैफिक जाम की छटपटाहट शांत होने लगी थी।

बैक मिरर दूर तक नहीं देख पाता। लेकिन पीछे की कार की अगली सीट पर बैठे लोगों को साफ साफ देख लेता है। उनका चेहरा क्लोज़ अप में दिखने लगता है। दोनों के भाव बदलने लगे थे। वो एक दूसरे को देखने लगे थे। बहुत देर तक देखना चाहते थे। सामने की दोनों सीटों के बीच की दूरी कार डिज़ाइनर की बेवकूफी लगने लगी। इस गैप का कारण उन्हें समझ नहीं आ रहा था। दोनों करीब आना चाहते थे। उनके कंधे झुकने लगे। इस तरह से झुक रहे थे जैसे दोनों मिलकर एक साथ कुछ देखना चाह रहे हों। बैक मिरर में साफ साफ दिख रहा था वो एक दूसरे को छूना चाहते थे। घर जाने की बेकरारी ट्रैफिक जाम में रोमांस पैदा कर रही थी। उनकी लाल होती आंखें बाहर उड़ते पेट्रोल के लाल धुएं में घुल रही थीं। दिमाग के जकड़े हुए नस अब खुलने लगे थे। साफ साफ दिख रहा था दोनों एक दूसरे में घुलमिल रहे थे। बैक मिरर पीछे की कार का पता बताता है। लेकिन कार की सामने के शीशे के पार जाकर देखने लगता है, जिस पर काली पन्नी की परत नहीं चढ़ाई जा सकती। ट्रैफिक जाम के तमाम बेकार लम्हों में यह लम्हा बेकरार हुआ जा रहा था। रेड एफएम का बकबक उनकी दुनिया में बाहरी दुनिया का दखल बन कर तंग रहा था। दोनों ने रेड एफएम बंद कर दिया।

बाहर जाम से तंग आकर बजाए जा रहे हार्न के शोर में अंदर एक खूबसूरत खामोशी तैरने लगी थी। मैंने लेन बदलने के लिए अपनी कार थोड़ी तिरछी कर ली। बैक मिरर की तरसती निगाहों को हमने हल्की सी सज़ा दी तो किसी को मेरे इस इंसाफ की भनक तक नहीं लगी। इस बीच कार के भीतर सामने की दोनों सीटों की छोटी सी दूरी पाट ली गई थी। मेरी कार की विंग मिरर से कुछ ऐसा ही दिखा था। विंग मिरर की इस किस्मत पर बैक मिरर जल भून गया। मोहब्बत के तमाम महफूज़ लम्हों में एक लम्हा दुनिया की नज़रों का भी होता है। जिनकी नज़र में चढ़ कर मोहब्बत पूरी दुनिया में फैलने के लिए उड़ान भरने लगता है। एक आशिक कई आशिक पैदा करता है। ट्रैफिक जाम में फंसे धंसे लोग कई कहानियां लिख रहे हैं।
जारी....

4 comments:

Smriti Dubey said...

अथ श्री महाजाम कथा....
रवीश आपके उपन्यास का पहला अंक सराहनीय है क्योंकी इस दर्द के मर्म को केवल वही समझ सकता है जो कभी अनचाहे ही, लेकिन इसका हिस्सा बना हो। उम्मीद है कि अगले अंक में केवल कारधारियों की ही नहीं औरों की भी व्यथा-कथा सुनने को मिलेगी।
स्मृति

Jitendra Chaudhary said...

कहाँ अटका दिए महाराज? कार के आगे बड़ा सा ट्रक खड़ा कर देते, कार मे काले शीशे तो चढे ही थे, अगल बगल, दो बसें भी खड़ी कर देते तो कुछ ना उखड़ता। यूं कम से कम इत्ते नाजूक मोड़ पर ब्रेक पर तो मत जाओ.....

Dr. sarita soni said...

apke (upanyas) lekh me aapne shabdo ka bahut sunder prayog kiya hai jo padne me bahut aacha laga.

सुबोध said...

रवीश जी जाम भले जिंदगी के ठहराव का हिस्सा लगे...लेकिन कुछ आंखे इसमें चलती फिरती जिंदगी तलाश ही लेती हैं.....