बिहार में निरक्षरों( सरकारी शब्दालय से लिया गया शब्द)ने अपने लिये एक डिग्री बनाई है। बहुत से पाठक जानते होंगे। इसे
सर्वजन भाषा में एलएलपीपी कहते हैं। इसका विस्तार कुछ इस तरह से है- लिख लोढ़ा पढ़ पत्थर। अक्सर पढ़े लिखे लोग कमअक्लों को एलएलपीपी कहते हैं। अरे भई वो तो एलएलपीपी ही है। उसके पीछे दिमाग मत खराब करो। इस शब्द की उत्पत्ति किस काल और संदर्भ में हुई नहीं मालूम। लेकिन लगता है कि इसका उदगम साक्षरता निरक्षता विवाद के मध्य से हुआ होगा। साक्षर के पास डिग्री और निरक्षर के पास नहीं। कोई बर्दाश्त करेगा। मुझे तो लगता है कि इसे साक्षरों ने निरक्षरों को नवाज़ा होगा। उनकी तुलना में अपनी हैसियत ऊंची करने के लिए। तो आप कितने एलएलपीपी को जानते हैं बताइयेगा।
चमनमोती- साठ के दशक में अंगूर इसी नाम से बिकता था। मेरे ससुर जी ने कहा कि जब वो कलकत्ता से दिल्ली आए तो फेरीवाला इसी नाम से अंगूर बेचा करता था। चमनमोती ले लो। आज कल वो इसी नाम से तिन्नी को अंगूर खाने के लिए प्रेरित करते हैं। तिन्नी को अंगूर पसंद नहीं है। इसलिए उसके नाना जी कहते हैं कि ये अंगूर नहीं है, चमनमोती है। इसे खा लो। तिन्नी भी जानती है। सिर्फ नाम का कोई मतलब नहीं होता। आकार देखकर जान जाती है कि अंगूर ही है। नाम बदल गया तो क्या हुआ।
अहाता- इसका इस्तमाल अब तक आंगन के अर्थ में होता था। एक ऐसा इलाका जिस पर व्यक्ति विशेष का कब्जा होता था। उनके अहाते में कोई नहीं जा सकता था। किसी की हिम्मत नहीं थी कि उनके अहाते में चला जाए। एक तरह से ज़मींदारी रौब से जुड़ा था। राजाओं का दरबार हुआ करता था तो ज़मींदारों का अहाता। आज ही पानीपत में एक बोर्ड देखा। देसी शराब का अहाता। अब अहाता का इस्तमाल ठेके के बदले हो रहा है। यहीं पर एक और साइनबोर्ड दिखा। लिखा था पानीपत जूस बार। ठेका अहाता और जूस कार्नर बार हो गया है। वैसे जूस कार्नर के प्रयोग पर हिंदी तहलका में एक ज़बरदस्त लेख छपा था। अभी भी साइट पर है। पढ़ें तो दिव्य ज्ञान प्राप्त होता है।
पी देसी बोल विदेशी- यह भी एक देसी शराब के ठेके पर लिखा था। मजा आया। गुज़रता हुआ देखता जा रहा था।
नोट- अनामदास ने एलएलपीपी और चमनमोती का उदगम सही ढंग से बताया है। ककड़ियां लैला की के बारे में जानना हो तो
टिप्पणी में जाकर प्रियंकर को पढ़ सकते हैं।
14 comments:
बढ़िया है रवीश जी
आपके 'एलएलपीपी' कई ही तरह हमारे यहाँ कई तरह के शब्द प्रचलन में है, कुछ तो नितांत निजी स्तर पर प्रयोग किए जाने वाले :)
रवीश भाई
चमनमोती इसलिए कहते हैं कि पाकिस्तान अफ़ग़ानिस्तान की सीमा पर एक क़स्बा है चमन जहाँ के अंगूर मशहूर हैं, चमन तो वैसे भी बाग़ को कहते हैं, अंगूर के बाग ज्यादा होने की वजह से शायद चमन नाम पड़ गया होगा..चमन में खेती होती है और अंगूर की मंडी जहाँ है उसका नाम है अंगूरअड्डा...
एलएलपीपी का अर्थ टाइप करने में शायद गड़बड़ी हो गई है, लिख लोढ़ा पढ़ पत्थर होना चाहिए. लिख लोढ़ा पढ़ पत्थर की उत्पत्ति जो मुझे समझ में आती है, वह ये है सिल कॉपी की तरह है और लोढ़ा कलम की तरह...सिल पर खिंची रेखाएँ कॉपी की तरह होती है और लोढ़ा एक मोटा सी कलम है, अनपढ़ का कागज कलम, लोढ़ा पत्थर है, शायद ऐसा आशय है...
बार का मतलब पूरे यूरोप में बहुत विस्तृत है, स्नैक बार, कंप्यूटर का टूल बार, स्पेस बार, नाश्ते का सीरियल बार..बार शराबख़ाने के तौर पर भारत में जितना रूढ़ हुआ है, बाक़ी जगहों पर नहीं...
बातें मज़ेदार छेड़ रहे हैं आप..
लिख लोढा पढ़ पत्थर साठ के दसक मे एल.एल.पी.पी. हो गया .आम आदमी मे उस समय नेम प्लेट का चलन जोरों पर था . आम लोग अपनी योग्यता नाम के निचे लिखाकर ख़ास हो जाने को आतुर था . जैसे बी.ए . एम् .ए. एम् कॉम , बी.एड.एम्.एड. , बी. एस .सी ऑनर्स . एम्.ए.पी.एच.डी. डी .लिट .
ऐसे मे मनचले ने उपर्युक्त मुहाबरा का संक्षिप्त अंग्रेजीकरण करके किसी अनपढ़ को मजाक मे एल.एल.पी.पी. की डिग्री थमा दी . जैसे संजय शर्मा एल.एल.पी.पी. लेकिन इस टाईप का नेम प्लेट कहीं दिखा नही . मजाक मजाक मे बने हिग्लिश का मजा बोलकर लीजिये :-
a .b.b.g.
t.p.o.g.
I.p.k.I.
u.p.o.g.
भाई अनामदास ने संदर्भ साफ कर दिया है .उनसे सहमति है.
सब्ज़ी-फलवालों की आवाज़ लगाने की आकर्षक शैली, तुलनाओं और विज्ञापन का आद्यरूप उनकी पुकार का सम्यक अध्ययन होना चाहिए .क्योंकि अब वे दिनोंदिन लुप्त होती जा रही हैं . ककड़ियां लैला की उंगलियां कह कर बेची जाती थीं और फलों की मिठास को इंगित करती 'पेड़ा है,पेड़ा है' की पुकार से चौक गूंजता रहता था. बचपन में मेले-नुमाइश में मिलते बुढिया के बाल और घंटी बजाकर बेचने की शैली किसको याद नहीं होगी .
MAHESHWAR A N I Tv anamdas ho sanjay sharma in logo ne LLPP ka sahi arth aur mane bataye hai. ravish v. apne blog me sayed sahi sabd type karne me galti kar gaye hai. jaha tak in shabdo ki bat hai apne apne prant pahchan bolchal khanpan aur rahansahan ko represent karta hai.admi ki parvirati kuch naya karne ka hota hai . o shabdo ka mamla ho yea koi creative kam
ham log jab patna padha karte the to kuch shabd kuhh chijo le liy kiya karte the jaise----
BBC ---( Surti or Khaini)---Budhi Bardhak Churn
Kalaktari---- (Bartan Saf Karne Ke Liy)
Pakistan---(Toilet or Paikhana Ke Liye)
रवीश जी आपका लेख अच्छा लगा और टिप्पणियाँ भी।
अनामदास जी
सुधार और संदर्भ के लिए शुक्रिया। प्रियंकर की ककड़ियां लैला की ने तो महफिल लूट ली। अच्छा हुआ आपने चमनमोती का उदगम बता दिया। जानकर और उत्साहित हो गया हूं। एक अध्ययन तो इस पर होना चाहिए कि चना चूर गरम किस तरह बेचा जाता था। कितनी कविताएं, कितने हास्य के साथ चने की बिक्री लाजवाब थी। अब कौन समेटे इसे। लेकिन ब्लाग के जरिये स्मृतियों से दो छंद ही निकल आएं तो काम हो
ऐसा ही कुछ होता है एलएफ़डीएफ़। जिसका इस्तेमाल कुछ चुनिंदा पत्रकारों के लिए किया जाता है। इसका मतलब होता है लंच फ़टका डिनर फ़टका। वो महानुभाव जो पूरी वार्ता या गोष्ठी से तो गायब रहते है लेकिन ऐन खाने के वक़्त अवतरित हो जाते हैं।
दीप्ति
रवीश जी छंद का मतलब बताने के लिए धन्यवाद
वैसे इस पर बाकी लोगों की टिप्पणियां भी कम मजेदार नहीं हैं.
बहुत ही अच्छा चिटठा है आपका । हिन्दी साहित्य में अब तक चिटठाकारों को दर्जा नहीं मिल पा रहा
है। हमें इस ओर भी ध्यान देना चाहिए।
-- शंकर सोनाने
www.shankarsonane.blogspot.com
वेलेंटाइन डे पर सोचा था आपका मन जरूर कुलबुलाएगा और वो कुलबुलाहट आपके ब्लॉग पर पढ़ने को मिलेगी ।पर आपने तो कुछ लिखा नहीं पर मैंने ये लैटर राखी लिए लिखा है,अगर आपके पास पता हो तो भेज देना।
डीयर राखी
थैंक्स,
राखी तुम सच में कितनी अच्छी हो। थैक्स,थैंक्स, थैंक्स, थैक्स और हजारों बार तुम्हें धन्यवाद। अगर तुम अपना वेलेंटाइंस डे इस तरफ नहीं मनाती तो हम सभी हिंदी न्यूज चैनल्स का पता नहीं क्या होता ? तुम्हें नहीं पता कि पर 14 फरवरी को जो रिपोर्टर ऑफिस में थे उन पर कितना प्रेशर था। कोई अच्छी सी स्टोरी लाओ, अच्छे विजुअल्स हों,एक्सक्लूसिव स्टोरी हो। बेचारे इसी चिंता में मरे जा रहे थे कि कहां से लाएं ऐसी स्टोरी ? बॉस पिछले 10 दिन से पीछे पड़े थे कि वेलेंटाइनंस डे के लिए स्टोरी आइडिया लाओ। ऐसे टाइम पर तुम न्यूज चैनल्स के लिए अवतार बनकर आईं। तुम्हारा प्यार से चांटा लगाना, पहले गुस्सा रहना, फिर मान जाना और यहां तक तुम्हारा रेड टॉप और शॉर्ट पहना हुआ था, टीवी के लिए गजब था। तुम सच में टीवी पर अच्छी लगती हो।
तुमने न्यूज चैनल को स्टोरी के संकट से उबार दिया। तुम्हे देखकर दर्शकों को अच्छा लगा,साथ ही रिपोर्टर्स, प्रोड्यूसर और चैनल हेड्स ने भी राहत की सांस ली।
राखी तुमने वेलेंटाइनंस डे पर सही मायने में प्रेम का संदेश दिया, तुमने सारे भेदभाव खत्म कर दिए, हर चैनल के पास तुम्हारे एक जैसे विजुल्स,एक जैसी बाइट.कोई एक्सक्लूसिव का झंझट नहीं। अभिषेक, इन सबके बीच तुम्हारा योगदान भी हम नहीं भूल सकते, टीवी पर तुम भी अच्छे लगते हो और तुम्हारी एक्टिंग देखकर लगा तुम राखी के लिए ही बने हो।
आशा है राखी तुम अगली बार एसे ही संकट मोचन बनकर आओगी और बाकी तुम्हारे दोस्त तुमसे प्रेरणा लेंगे
तुम्हारे अगले अवतार के इंतजार में
अपराजिता
चेतावनी -राखी, और वो रिपोर्टर जो उस यादगार दिन में तुम्हारे साथ थे, एक सूचना है कि आप सभी थोड़ा सचेत रहें। इंटरटेंमेंट इंडस्ट्री के दुश्मनों की लिस्ट में आप सभी शामिल हो चुके है। जो काम इंटरटेनमेंट इंडस्ट्री लाखों रुपए खर्च करके करती थी वो काम न्यूज इंडस्ट्री बिना रुपयों के किए दे रही है। अब कोई बेरोजगार होता है तो गुस्सा तो आता ही है ना? अगर ऐसा न होता तो राज ठाकरे क्यों भड़कता ?
hithis norahaty in EGYPT.I only speak ARABIC &ENGLISH.OK,I just want to say hallo for every person on every blog.THANKS
Aprajita ne jo likha us par soochana chahiye. News media kahan ja raha hai politics kya mod le rahi hai- in chand chutkele shabdon main bahut kuch kaha gaya hai- is par soochna chahiye aur bahas honi chahiye.
Habib Tanveer sahab ka mashhoor natak hai "Agra Bazaar". Natak Nazir Akbarabadi ke kaal ka hai. Bazaar aur sahitya ke beech rishte bareek nazar hai. Usee natak mein kakdiwala kahta hai ki mujhe kakdi par koi nazm likh kar de de to khoob bikree hogi. use ek nazm miltee hai
ghaur farmayye:
"kya pyari pyari meethi aur patli patliyan hain !
ganne kee porian hain, resham kee takliyan hain !!
farhaad kee nigahein, sheeriN kee hanslian hain !
Majnoo kee sard aahein Laila kee unglian hain !!
kya khoob narmo nazuk is aagre kee kakdi
terdhi hai so to chhoodi, vo heer kee hari hai
seedhi hai so vo yaaron, raanjha kee baansuri hai.
chhoone mein barg-e-gul hai, khaane mein kurkuri hai
garmee ko maarne ka ik teer kee saree hai
aankhon mein sukh kaleje ko thandhak hari bhari hai
kakdi na kahiye isko kakdi nahin Paree hai."
p.s Iske baad uski kakdiaan khoob biktee hain. Waise lucknow mek ek baar bolte suna ... Kakdi le lo kakdi le lo... "Laila kee unglian hain Majnoo kee paslian hain"
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