प्रणाम सर

कई लोगों ने सर सर कह कर मुझे पका दिया है। अचानक सर संबोधन में आई वृद्धि से परेशान हो गया हूं। पहले जब लोगों ने जी संबोधन का इस्तमाल किया तो तनिक विरोध के बाद छोड़ दिया। लगा कि जी से उम्र ही अधिक लगती है वर्ना समस्या खास नहीं है। सर ने सर खपा दिया है। कई लोग अब जी की जगह सर लगाने लगे हैं। ऐसा भी नहीं कि मैं कोई बड़ा अफसर हो गया हूं। होता भी तो इसकी ख्वाहिश तो बिल्कुल ही नहीं है।

सर क्या है? नाम के बाद आने वाला एक ऐसा सामंती उपकरण जो आपको कई लोगों से अलग करता है। इंसान सर संबोधन से इतना प्रभावित क्यों हैं? जब तक इसका इस्तमाल नहीं करता, उसे लगता ही नहीं कि सामने वाले को इज्जत बख्शी है। क्या सर के बिना सम्मान का कांसेप्ट नहीं होता है? करें क्या? मैं इनदिनों बहुत परेशान हूं। अब सुन कर उल्टी होती है। कहने वाले को समझाता हूं मगर मानते ही नहीं। सर और जी से बड़ा सरदर्द कुछ नहीं होता। मुझे यह समझ नहीं आ रहा है जो लोग साथ काम करते थे वो भी सर लगा देते हैं। मज़ाक की भी हद होती है। कई बार जब कहने को कुछ भी नहीं होता तब भी सर लगा देते हैं। कैसे हैं सर? क्या सर के बिना कैसे हैं का वाक्य पूरा नहीं होता? जिस तरह मुंबई में बीएमसी ने थूकने पर फाइन लगा दिया है उसी तरह दफ्तरों में सर संबोधन पर फाइन की व्यवस्था होनी चाहिए? क्या आप भी सर संबोधन से परेशान है? क्या आप इस परेशानी को दूर करने वाले किसी हकीम को जानते हैं? मैं उसकी पुड़िया सर संबोधन कार्यकर्ताओं को खिलाना चाहता हूं। ताकि यह मर्ज जड़ से गायब हो जाए।

36 comments:

अपने से बाहर... said...

एकदम सत्यवचन सर, सर का असर तो इतना है कि हमारे इलाक़े में मैडमो को सर बोल दिया जाता है...ब्लॉग की दुनिया में नौसिखिया हूँ, इसलिए कमेन्ट करने का लोभ संवरण नहीं कर सका, आशा है अन्यथा ना लेंगे...

अनूप शुक्ल said...

सत्यवचन सरजी!

Sanjay Karere said...

मुझे उन लोगों से ज्‍यादा चिढ़ होती है जो मुझे मेरे नाम से बुलाने की जगह नाम के साथ जुड़ने वाले सरनेम (यानि यहां भी सर तो है ही) से बुलाते हैं. आजिज आकर मैने इसकी हर संभव मौके पर घोषणा कर डाली कि जिसे मुझसे बात करनी हो वह कृपया नाम से बुलाए अन्‍यथा मैं जवाब नहीं दूंगा. दोस्‍तों ने तो कहना बंद कर दिया, अनजान लोग भी यदि कहते हैं तो दो टूक बता देता हूं कि उन्‍हें नहीं कहना है. जिससे दोबारा मिलने की संभावना नहीं उन्‍हें लेकर परेशान नहीं होता. रवीश अच्‍छा यही है कि आप इस समस्‍या को अपने सर पर हावी नहीं होने दें. भारतीय समाज को अभी कई विडंबनाओं से मुक्‍त होना शेष है और सामान्‍य लोकाचार तथा शिष्‍टता की परंपरा को अभी भारतीय संदर्भों में परिभाषित होना शेष है. सम्‍मान देने के नाम पर ओढ़े गए ऐसे कई छद्म आवरण अभी उतार कर फेंके जाने बाकी हैं भइया.
मस्‍त रहो सSSSS अर्ररर.... मेरा मतलब है रवीश.

ghughutibasuti said...

आप बहुत सही बात कह रहे हैं । कम से कम चिट्ठाजगत में तो हम सब बराबर हो सकते हैं । मुझे तो जब मैडम कहा जाता है तो पसन्द नहीं आता। उससे तो बेहतर हमारे गुजरात का बेन है । दक्षिण का अम्मा, बंगाल का माँ और उत्तर भारत का बहन जी है । वैसे बहुत से जान पहचान वाले लोग भाभी जी कहकर काम चला लेते हैं । परन्तु यह तो हुई पुरानी पीढ़ी की बात । नई पीढ़ी तो जान पहचान वालों को नाम से ही बुलाए तो बेहतर होगा । आइ टी इन्डस्ट्री में नाम ही चलता है । परन्तु कोई कैसे जानेगा कि किसे जी चाहिये या नहीं ?
घुघूती बासूती

abhishek said...

ab yah to prasidhdhi aour kursi ka kayda hai, nibhana hi padega , chahe aap chaho na chaho samne wala to kami nahi rakhega( buttering main?????)

Rajiv K Mishra said...

रवीश भाई....कैसा है।

बोधिसत्व said...

आप उचित कह रहे हैं सर

उमाशंकर सिंह said...

इस 'सर-सराहट' से परेशान ना हों आप। कई बार ये स्वत:स्फूर्त होता है। बिना किसी बटरिंग के। अपना उदाहरण देना चाहूंगा। जब भी कोई फोन बजता है या आवाज़ आती है और वो आवाज़ साल भर भी बड़ी नज़र आती है...उम्र के या अनुभव के तौर पर...तो ज़ुबान से सीधा 'सर' निकलता है। कई मामलों में 'जनाब' भी बोलता हूं जो 'सर' बोलने जैसा ही है। शायद ऐसा इसलिए भी है क्यों एक अच्छा लंबा अर्सा अनुशासित फौजियों के बीच बीता है। और ऐसा करते समय ना तो खुद को दीन-हीन सा महसूस करता हूं और ना ही सामने वाले महाराजाधिराज या फ्यूडल लार्ड...बस सीखने समझने या संस्कार की बात होती है। सामने वाले को कोई ग़लतफहमी नहीं पालनी चाहिए। कई मुझे भी 'सर' बोलते हैं तो इसी तरह से लेता हूं। पर एक मायने में आपका सचेत रहना बिल्कुल सही है। 'सर-सराते' हुए कई आपको इतना पका देते हैं कि ऐसी पोस्ट लिखनी पड़ती है।

अजय रोहिला said...

वैसे तो ठीक कहा आपने, लेकिन वो लोग भी बेचारे क्या करे। जिस रफ्तार से आप दौड़ रहे है। ना जाने कब उनके लिये खतरा बन जाए। कौन जाने। किसी भी संक्रमण से बचने के लिये टीकाकरण आवश्यक होता है। बस् वही सब लोग भी कर रहे है। सर.......

अफ़लातून said...

फाइन न लगवाइए । 'सहारा परनाम' टाइप नया सम्बोधन इजाद होने लगेगा । टोकने की आदत टिकाए रखने पर कम-से-कम खुद बचे रहेंगे जल्द ही।

Rajesh Roshan said...

आपका मना करना ठीक है लेकिन फाइन करना कुछ जायदा होगा.

Ashish Maharishi said...

रवीश जी सबसे पहले नमस्‍कार,
आपने जो बात कही है अपनी जगह सही है लेकिन इसमें कई ऐसे लोग भी होंगे जिनके लिए रवीश कुमार एक बड़ा नाम है क्‍यूंकि वह एनडीटीवी में है, लेकिन सब ऐसे नहीं होंगे, यदि कोई मीडिया में नया नया आया है तो हो सकता है उसके लिए आप बरखा दत्‍त या प्रणय राय की तरह एक आदर्श हो सकते हैं ऐसे में ये लोग आपकों रवीश जी या रवीश भाई बोलने का सा‍हस नहीं रख सकते हैं, ऐसे लोगों की तादाद काफी होगी तो बेचारे सर ही कहेंगे ना रवीश सर

आशीष

पुनीता said...

ब्लाग पढ कर ऐसा लगा कि, नहीं, यह 'सर' शब्द अब उतना दमदार नहीं रह गया है. कुछ परिवर्तन की जरुरत मह्सुस की जा रही है. पर मैं सोचती हूँ भाई जी, भाईसाहब या जी लगाकर नाम का संबोधनु पुराना हो चुका है. और अतीत में अगर झांके तो पाऐगे कि सर की प्रथा ये आईटी और मिडिया वालों की ही देन है. लोग पहले सर का संबोधन सिर्फ अपने से बडे ओह्देवाले के साथ ही करते थे. और बडे लोग प्रफुलित मह्सुस करते थे, क्यों कि अंग्रेजों को गए कुछ वर्ष ही हुए थे. पर आज माहोल अलग है और बेह्तर भी है क्यों कि लोगों की जुबान पर 'सर' इस कदर मेहरबान है कि वह पीयून हो या रिक्सावाला उसे भी सर कह कर पुकारने में उन्हें हिचकिचाह्ट नहीं होती.
हाँ तो सर जी बीज बोये हो तो काट्ना भी आप ही लोगों को है. 'सर्' शब्द से उबकाई अब आना वाजीब है आपका तो क्यों ना सारे परिचितों को नव वर्ष की बधाई के साथ 'सर्' शब्द का बाय़काट जो आपने कर रखा है, कि जाए और सभी को संदेश भेज दीजिए.
रवीश भाई, मैं आपको बताँऊ कि हम मध्यम वर्ग के लोग बहुत ही लिजलिजे किस्म के होते हैं हमें सब कुछ चाहिए पर थोडा निम्न वर्ग से अलग ह्ट्कर होना चाहिए. इसलिए शायद 'सर' शब्द अब हमलोगों को सहन नहीं होता.
मुझे सब से ज्यादा उस वक्त कोफ्त होती है जब किसी पारकिंग पर या आम बोलचाल की भाषा में आपके बेटे के उर्म्र का बच्चा भी आपको कहेगा कि- 'सर्' तुम गाडी यहाँ खडी कर दो. अब आप समझते ही रहिए कि वो आपको कितना प्रतिशत आदर दिया या फिर उसे हिन्दी नहीं आती. पहले तो मैं लड बैठती थी पर अब समझ आ गया है चुपचाप सुन लेती हूँ.
इसलिए रविश भाई मेरी तो यही सलाह होगी कि सामनेवाले को उसी के दिए संबोधन से इतना उक्ता दो कि वो लज्जीत हो जाए. एक प्यारा सा संबोधन की जरुरत समाज को है जहाँ सामंत्ता की बू ना आए.

संजय शर्मा said...

Sir jee, Yes Sir,Aap Sahi kah rahe hain Sir, NDTV me to Zee to pachata nahi tha. ab Sir ka sarasar
parachalan shuru ho jana sach me sirdard hai Sir. par Sir Jee ka kariyega aap Sir bolane vaale par sarsari nigah daliye aur Sar jhatakte huye chal digiye.
Apna to man hi nahi bharta kisi ko Sir kahke ya kisi se Sir sambodhan
receive karke.jabki hame maloom hota hai na ham Sir hain na Saamne wala.fir bhi Sir,
kuchh tathyahin shabd bhi chalan me rahe isaka prayas jaari rahe Sir.

Unknown said...

"सर" आपके साथ पूरी हमदर्दी है मगर बेचारे बोलने वालों का क्या कसूर। जो शब्द आपको परेशान करता है वही कुछ लोगों के ईगो से जुड़ा है। अब ईगो सैटिसफाई करते-करते ये नाटक आदत बन गया है। लेकिन जुर्माना लगाना केवल सरकार का काम है। आप कानून हाथ में न लें ये बेचारे तो हमदर्दी के काबिल हैं जुर्माने के नहीं।

सुबोध said...

अधकचरी संस्कृति में साहब अधकचरे संबोधन ही सामने आएंगें ना...सर जी

...अमर said...

ravish bhai... aapki baat alag ho sakti hain kyongi aap alag hain... lekin media mein aise log zyadatar mil jayenge jinmein ek jhootha dambh aur ego kachre ki tarah jamta chala gaya hai...aur is 'sir' shabd ko sune bina unhe ya to 'identity crisis' hone lagti hai ya apna astitva hi sankat mein lagne lagta hai!
amar.

pawan lalchand said...

ravishji sir ka matlab bhi alag-alag jagah alag alag hota hai.. kal tak lihnne ka samvad chitthi-patri hi hota tha ab apno ke sath garon ka hal bhi blog or doosre E-upkarno se ho jata hai. lihaza main to samy or pristithiyo ke mutabik sir ka istemal karta rahunga..sir ji

pawan lalchand said...

ravishji sir ka matlab bhi alag-alag jagah alag alag hota hai.. kal tak lihnne ka samvad chitthi-patri hi hota tha ab apno ke sath garon ka hal bhi blog or doosre E-upkarno se ho jata hai. lihaza main to samy or pristithiyo ke mutabik sir ka istemal karta rahunga..sir ji

Ranjan said...

Pranaam Sir !

Kuchh bhi likh dena hi "Journalism" hai , kya ?

harsh said...
This comment has been removed by the author.
harsh said...

Baat to kafi pate ki hai aapki, lekin jara gaur farmaiyega ki kisi jawan saheb ko unke pita ki umra ka wridha chaukidaar beta to nahi kah sakta naa, bechare ki naukri chali jayegi. Kahne ka matlab yah hai ki ye sir ki samsya bhi sir logon ki hi den hai. Dusra paksh to nirnay le hi nahi sakta. Sir kaho to unhe ubkai aati hai, na kaho to baat hi be-asir ho jaati hai. Hai ki nahi S..ab aap hi dekh lijiye bhai, ka ho Ravish, kaise ho ? sun sakte hain to fir thik hai, suniye.

Anonymous said...

रवीश आपको क्या बताऊँ जबतक इस प्रोफेसन मैं आया नहीं था, तबतक स्कूल और कालेज मैं ही सर कहा करता था और सोचा करता था की वे सम्मान म्हसूश करते हैं ..........और ऐसा था भी ..........पर पत्रकारिता मैं मेरे पहले कदम के साथ सीनियर को सर नही कहा तो वे नाराज ......फ़िर आखबारों मैं काम करने गया तो वहाँ पहले से काम कर रहे सीनियर और डेस्क पर आसीन सुपर सीनियर नाराज ..........फ़िर इलेक्ट्रोनिक मैं आया तो यहाँ भी उम्र मैं और अनुभव मैं बड़े सभी ब्यूरो हैडों के नाराज होने का डर रहता है ...........रवीश आप तो वहाँ दिल्ली मैं सर के मारे सर पकड़े हैं .............पर सभी जगह यही हाल है .............दरअसल सर शब्द का उपयोग तो इगो प्राव्ल्म को सोल्व करने का तरीका है .............और यदि आप इसे तरीका नहीं मानेते .........तो भी आपको इस को अपनाना पड़ेगा .....................आपका समझते और एक सकारात्मक नजरिया अपना रहे हैं साथ ही एक नया विचार दे रहे हैं ..........जो सामंती और चापलूसी जैसे विषय पर ध्यान खींचता है ...............पर सर क्या करें लोग जब छोटी सोच रखने लगते हैं और बड़े इगो पालने लगते हैं तब सर ही एक मात्र संकट मोचन बचता है .................

Anonymous said...

रवीश आपको क्या बताऊँ जबतक इस प्रोफेसन मैं आया नहीं था, तबतक स्कूल और कालेज मैं ही सर कहा करता था और सोचा करता था की वे सम्मान म्हसूश करते हैं ..........और ऐसा था भी ..........पर पत्रकारिता मैं मेरे पहले कदम के साथ सीनियर को सर नही कहा तो वे नाराज ......फ़िर आखबारों मैं काम करने गया तो वहाँ पहले से काम कर रहे सीनियर और डेस्क पर आसीन सुपर सीनियर नाराज ..........फ़िर इलेक्ट्रोनिक मैं आया तो यहाँ भी उम्र मैं और अनुभव मैं बड़े सभी ब्यूरो हैडों के नाराज होने का डर रहता है ...........रवीश आप तो वहाँ दिल्ली मैं सर के मारे सर पकड़े हैं .............पर सभी जगह यही हाल है .............दरअसल सर शब्द का उपयोग तो इगो प्राव्ल्म को सोल्व करने का तरीका है .............और यदि आप इसे तरीका नहीं मानेते .........तो भी आपको इस को अपनाना पड़ेगा .....................आपका समझते और एक सकारात्मक नजरिया अपना रहे हैं साथ ही एक नया विचार दे रहे हैं ..........जो सामंती और चापलूसी जैसे विषय पर ध्यान खींचता है ...............पर सर क्या करें लोग जब छोटी सोच रखने लगते हैं और बड़े इगो पालने लगते हैं तब सर ही एक मात्र संकट मोचन बचता है .................

मनीषा पांडे said...

बहुत सही रवीश। ये सिर्फ सर कहने वाला ही मसला नहीं है। अँग्रेजी पत्रकारिता की दुनिया, आईटी या बड़े कॉर्पोरेटों में शायद ये सर-वर वाला चक्‍कर बहुत नहीं होता। लेकिन हिंदी पत्रकारिता के संसार में, हिंदी लेखकों के संसार में, हिंदी की सामंती दुनिया में सर संस्‍कृति बड़े जोरों पर है।

मनीषा पांडे said...

अरे हां, एक बात और। सर पुराण के बाद एक पोस्‍ट हिंदी की चरण-चुंबन की संस्‍कृति पर भी लिखो। जहां चमचागिरी का स्‍कोप दिखा, लोट गए चरणों में दुबे जी के, मिश्र जी के, पाणे जी के। चैनल में कम-से-कम लोग सर बोलकर काम चला रहे हैं, तुम किसी विश्‍वविद्यालय के हिंदी विभाग में प्राध्‍यापक होते या हिंदी के किसी पत्रिका के संपादक, या किसी संस्‍थान या अकादमी के सचिव तो सर संबोधन के साथ-साथ चरण छूने वालों का भी तांता लगा रहता।

Hindustan said...

वैसे बात सर की नहीं असर की है, और अगर असर हो तो कोई कोर कसर न छोडने के लिए कुछ इज्‍जत तो बख्‍श्‍नी ही पडेगी न सर जी,
इसीलिए आप सर हो जाते हैं

Dr. sarita soni said...

aapne sir kahne ko itna halka kaise liya ravish ji
mujhe kuch dino pahle NIOS jaise (shiksha) sarkari deptt me kaam kerne ka mauka mila "contract pe" waha mene ek madam se ek person ka naam leker pucha ki ye saaab kaha hai to wo mujh pe naraz hoti hue person ke naam ke saath SIR shabd lagati hue boli soch ke bola karo us waqt bura laga kyuki phark sirf itna tha ki wo dono permanent the aur me contract pe per tab samjh me aaya ki chahe padayi unse jayada ki kaam unse jayada karu per aader pe un sab ka haqk banta hai.

aap chahe to mere comments delet ker sakte hai per aaj yaha ye likh ker mera maan halka ho gaya.

Manjit Thakur said...

कई बार अपने से ऊपर के लोग सर के बिना सुनते ही नहीं... जूनियर-सीनियर का फासला इसी शब्द से तय होता है। फिर ईगो का भी सवाल है। कल को इंडस्ट्री में आया नया-नवेला लौंडा अगर पुराने धुरंधरों को भी नाम से बुलाने लगे तो महारथी लोग खुद ब खुद इग्नोर फील करने लगेंगे.. कहेंगे स्साले को मां-बाप ने तमीज ही नहीं सिखाई। बात मां-बाप तक पहुंचे उससे बेहतर है कि सामने वाले के सर पर सर मार दिया जाए.. है कि नहीं.. रवीश भाई?

ravish kumar said...

सहर्ष

मुझे रवीश ही कहो। मैं सुन भी सकता हूं और यही सुनना चाहता हूं। मैं एनडीटीवी के संस्थापक को उनके नाम से ही बुलाता हूं। बल्कि पूरी कंपनी उन्हें उनके नाम से बुलाती है। प्रणय कहती है। सिर्फ कुछेक हिंदी के लोग सर लगा देते हैं। बल्कि वो भी कहने में संकोच करते हैं। जब उन्हें नाम से बुलाया जा सकता है तो हम जैसे लोग सर क्यों कहाए जाएं।
कोई तुक नहीं बनता।

सर संबोधन को लेकर तमाम प्रतिक्रियाएं मिली। कुछ ने कहा कि यूं ही चला आता है। कुछ ने कहा कि मातहत को तय करने की छूट नहीं है। मैं कहता हूं बोलने वाला तय कर ले। तो सब सुनने लगेंगे। किसी भी किताब में नहीं लिखा है कि कलेक्टर को चपरासी सर कहेगा। अगर है तो प्लीज बताइये।

Hindustan said...

लोगों का सर कहना अगर आपको अच्‍छा नहीं लगता तो यह आपकी समस्‍या है, पर लोगों के अपने संस्‍कार हैं, कुछ को मजबूरियों ने और कुछ को चापलूसी की परंपरा ने यह सिखा दिया है

मेरा अनुरोध सिर्फ इतना है कि ऐसे लोगों के प्रति कोई दुराग्रह न रखें

बात यह नहीं है कि सर कहना कोई अच्‍छी चीज है, लेकिन इसका बुरा मानना कई ऐसे लोगों को कटघरे में खडा कर देता है जिनका दरअसल कोई दोष नहीं है
और सचमुच अगर आपका कष्‍ट इतना बडा है तो अपने विजटिंग कार्ड पर लिख दें 'मुझे सर न कहें'

harsh said...

Ye hui na mardon wali baat. Jo kahte hai wahi karte hai. Maan gaye Ravish aapko. Ummid hai apne meri baton ko anyathaa nahi liya hoga. Naya ghoda hun, thoda jaldi bidak jata hun.
Waise apki baaton se saf jahir hai ki ye sir wali samsya apki koi wyaktigat samasya nahi hai, balki aap jaise aam logon ke prati hum jaise aam logon ki bhrantiyon w purwagrah ko hal karne ka ek safal prayas hai. Log yah bhul jate hai ki ped me jitna fal lagta hai, dali utni hi jhuk jati hai. Fir ye pranam sir ya ji hujuri se baat nahi banti, baat to kaam se hi banti hai. Aur, shayad yahi karan bhi hai ki aaj NDTV padhe-likhon w budhijiwiyon ka News Channel kahlata hai, jahan kamgaron ke liye sabse upyukt mahaul hai. Jahan ka chief hi chetna ki parakshtha par ho, wahan fir kaisa lag-lapet. Sarthak pratikriya ke liye dhanyawad. Asha hai aage bhi apke anubhawon w vicharon se hum labhanwit hote rahengen.

Srijan Shilpi said...

आपने ब्यूरोक्रेसी में किसी जूनियर अफसर को फोन पर अपने सीनियर अफसर के साथ हो रही बात करते सुना ही होगा। कितनी बार 'सर'का प्रयोग होता है...उसे गिनना कठिन हो जाएगा। हर बात के उत्तर में एक 'सर' ठोंक दिया जाता है।

मीडिया में भी नौकरशाही के कुलक्षण आ रहे हैं। यह तो नहीं कह सकते कि यह सरसराना हमने अंग्रेजों से सीखा। अंग्रेजों की बातचीत में सर की इतनी फिजूलखर्ची तो नहीं होती।

Anonymous said...

सर माफ़ कीजियेगा रवीश आप ही कोई बेहतर सुझाव दें की इसका निराकरण हो सके

harsh said...

Jab se 'pranaam sir' ko padha hun, ajib peshopesh me fans gaya hun. Yah post hi bada prasangik hai. Ab, aapne apna hal to sujha diya aur meri duwidha kam kar di ki mujhe Rawish hi kaho. Lekin gurujano, jinse maine class me padha hai, unhe kya kahun maharaj. Bataiye. Sir ji kahne par kaun ese chaplusi maan le aur nahi kahne par kaun ese apni beijjati maan le, kuchh pata nahi chal raha hai? Aap unhe kya kahengen ya kuch bhi kahne se bachte firengen.

ajit rai said...

चलिए आज से सामंथी व्यवस्था ध्वस्त किये देता हूँ और सर जी के जगह पत्रकार महोदय से संबोधित करता हूँ