सूरज दक्षिणायन हो रहा है

दक्षिण की दिशा में यमराज होता है। संस्कृत में दक्षिण को याम्या भी कहते हैं। ऐसी दिशा जहां राक्षस रहता है। इसलिए हिंदू धर्म के कर्मकांड में दक्षिण को कम पवित्र माना गया है। दक्षिण की तरफ सिर्फ एक ही कर्मकांड है। पितरों का तर्पण। इसके अलावा सारे कर्मकांड पूरब की दिशा में होते हैं जिसका संबंध इंद्र है। उपनयन संस्कार के वक्त कुलदीपक पूरब की तरफ मुख करके बैठता है। दुल्हा दुल्हन भी पूरब दिशा की ओर मुख किए बैठते हैं। पंडित या तो कुबेर की दिशा उत्तर की तरफ बैठता है या पश्चिम की तरफ। दक्षिण की तरफ नहीं। कर्मकांडों के हिसाब से हम दक्षिण से दूर रहते हैं। हम यानी उत्तर भारतीय। हैदराबाद जाने से पहले हमने कुछ पंडितों और इतिहासकारों से पूछा कि दक्षिण को हमने इतना निम्न क्यों बना दिया है।

इतिहासकार ने इसका संबंध द्रविड़ों पर आर्यों की श्रेष्ठता से जोड़ा है। इसी क्रम में ऐसी धारणाएं बनती चलीं गईं। उत्तर अपने आप को महान समझने लगा। तभी महाभारत की लड़ाई के मूक दर्शक और कायर भीष्म पितामह को मृत्यु से ज़्यादा दक्षिण दिशा से डर था।मर्ज़ी से मरने का वरदान पाए भीष्ण पितामह ने तय किया कि जब सूरज उत्तरायण होगा, तभी शरीर का त्याग करेंगे। जो शरीर नैतिक अनैतिक की लड़ाई में कोई काम नहीं आया, उसे त्यागने के लिए सूर्य के उत्तरायण होने का इंतज़ार करते रहे। मैंने जिस ज्योतिषाचार्य से बात की उन्होंने कहा कि मृत्यु का कोई शुभ मुहूर्त नहीं होता। जो कर्म आप कर चुके हैं उसी के आधार पर अगला जीवन तय होता है। इसलिए कभी भी शरीर का त्याग कर दें इससे पूर्व कर्मों के हिसाब किताब का कोई फर्क नहीं पड़ता। महाभारत के मूर्ख पात्रों में भीष्म पितामह भी उन भाइयों की तरह थे जो मामूली बात के लिए सौ से शून्य हो गए। खैर।

मैं दक्षिण की बात कर रहा हूं। अंग्रेजी ने भी दक्षिण दिशा से बड़ा अन्याय किया है। जब शेयर बाज़ार गिरता है तो कहते हैं मार्केट इज़ गोइंग साउथ। साउथ का मतलब नीचे जाना होता है। लेकिन धारणाओं के इस काल संग्रह में हम भूल गए कि दक्षिण के मायने आधुनिक समाज में कुछ नए भी हुए हैं। जैसे दक्षिण दिल्ली और दक्षिण मुंबई अमीरों की बस्ती है। यहां साउथ जाने का मतलब सामाजिक हैसियत अनुक्रम में ऊपर चढ़ना है। दक्षिणपंथी राजनीति को प्रगतिशील माना जाता है। ऐसा विद्वान कहते हैं।

लेकिन दक्षिण ने उत्तर को कभी नहीं धिक्कारा। बल्कि इतने धिक्कारे जाने के बाद भी उत्तर के बनाए कर्मकांडों को बेहतर तरीके से अपनाया। दक्षिण के ब्राह्मण उत्तर के ब्राह्मणों से ज़्यादा ओरिजनल हैं। ज्योतिष जी कहते हैं। उन्होंने उत्तर की संस्कृति को अपनी भाषाओं में ज्यादा संभाल कर रखा। एक इतिहासकार ने बताया कि दक्षिण के लोग अपनी कावेरी नदी को दक्षिण की गंगा कहते हैं। मदुरैई को मथुरा कहते हैं। लेकिन उत्तर के लोग गंगा को उत्तर की कावेरी नहीं कहते। पवित्रता की सर्वोच्चता में उत्तर बड़ा धूर्त है।

लेकिन उत्तर अब दक्षिण की शरण में है। अमरीका से आया रातों का कारोबार यानी आईटी सेक्टर दक्षिण के शहरों में अधिक है। उत्तर भारत के कई लड़के हैदराबाद, कोच्चि और बंगलूरु में काम कर रहे हैं। वहां जाकर इडली सांभर खाते होंगे या नहीं लेकिन वो दक्षिण को करीब से देख रहे हैं। आउटलुक पत्रिका ने भी हाल ही में एक विशेष अंक निकाला था। यह बताने के लिए हर मानकों में दक्षिण उत्तर से बेहतर है। सिर्फ भ्रष्टाचार की समानता को छोड़कर। इस मामले में भारत की सभी दिशाएं बराबर और अग्रणी हैं।

हिंदी साम्राज्यवाद विरोधी आंदोलन ने दक्षिण की अलग छवि बना दी थी। जितनी दीवार संस्कृत ने उत्तर दक्षिण के बीच खड़ी नहीं की उससे कहीं अधिक इस हिंदी ने की।लेकिन अंग्रेजी के आईटी ने उत्तर दक्षिण की दीवार को गिरा दिया है। अंग्रेजी बीच की भाषा है। मध्यस्थ बन कर दूरी मिटा रही है।पटना और जोधपुर में लोग अब बातें हैदराबाद और कोच्चि की करते हैं। दक्षिण का आत्मविश्वास बढ़ा है। तभी उत्तर प्रदेश की चुनावी सभाओं में जयललिता और चंद्रबाबू नायडू ने हिंदी में भाषण दे कर उत्तर को बता दिया कि वो क्या कर सकते हैं। उत्तर भारत के लोग भी समझ रहे हैं। इसलिए अब दक्षिण के सारे लोगों को मद्रासी नहीं कहते। फिल्म एक दूजे के लिए में सपना और वासु के प्यार को उत्तर और दक्षिण की दीवार परवान नहीं चढ़ने दिया। लेकिन आज वासु और सपना हर घर में हैं। करीब आ रहे हैं। कामकाज के सरकारीकरण के दौर में सिविल सेवा जैसी कुछ नौकरियों को छोड़ दे तो उत्तर के लोग उत्तर में और दक्षिण के लोग दक्षिण में ही काम कर रिटायर होते रहे। लेकिन उदारीकरण के इस दौर में कोई भी कहीं भी काम कर रहा है। उसके लिए दिशा का कोई मतलब नहीं रह गया है। इतिहासकार विश्वमोहन झा ने एक छोटी सी जानकारी दी जिसका मतलब शायद बहुत बड़ा है। इजिप्ट में नील नदी दक्षिण से उत्तर दिशा की ओर बहती है। वहां पर दक्षिण को पवित्र माना जाता है और उत्तर का मतलब होता है नीचे जाना। गोइंग नार्थ। हिंदुस्तान में भी नील नदी बहने लगी है। सूरज दक्षिणायन हो रहा है। यमराज की दिशा समृद्धि ला रही

11 comments:

उमाशंकर सिंह said...

बहुत खूब! 'चलो भाग चलें पूरब की ओर...' की जगह अब 'चलो भाग चलें दक्षिण की ओर...' गाया जाए।

Sanjay Tiwari said...

हर शहर में एक साउथ होता है जो आमतौर पर नार्थ से ज्यादा अमीर होता है. साउथ दिल्ली, साउथ बाम्बे आदि.

अजित वडनेरकर said...

सही कहा।

अनिल पाण्डेय said...

ise agyanta bhi kah sakte hain. jo log south ko achha nahi mante hain unhe south delhi aur south mumbai se kuchh seekhna chahiye. umashankar ji ne bhi sahi kaha hai chalo bhag chalein dakshin ki oor.

Priyankar said...

क्या बात है!

पूर्वग्रह ऐसे ही बनते हैं और टूटते भी ऐसे ही हैं .

संजय भाई ने सही लिखा है, शहरों में तो आम तौर पर दक्षिणी इलाके ही ज्यादा अच्छे माने जाते हैं . यहां भी किसी अदृश्य नील नदी के उद्गम या प्रवाह का मामला है क्या ?

Manoj said...

पता नही उत्तर- दखिन कि लडाई मे भीष्म पितामह कहाँ से आ गए? और जँहा तक नैतिकता अनैतिकता और कायरता कि बात है, तमाम अनैतिकता के बावजूद लोग अपने देश के लिए ही लड़ते हैं.... आज भी यदि भारत की किसी देश से लडाई हो तो मैं ये सोचने नही बैठूंगा कि कौन सही है और कौन ग़लत। पर यही काम जब भीष्म पितामह करते हैं तो वो कायर और अनैतिक कैसे हो जाते हैं, ये मेरी समझ से परे है।

मनोज

sushant jha said...

ye nahin digest hua ki dakhinpanthi rajneeti kab se pragatiseel ho gayi..jabki iska 999 saal ka theka toh baam-panthiyon ke paas hai...

निशान्त said...

दक्षिण हमेशा से प्रगतिशील माना गया है... जो हिन्दी का दाहिना है वो दक्षिण से दखिन होते बाना है. इस लिए दक्षिणा शब्द भी इसी से बाना है. दक्षिण हर जगह के सन्दर्भ में मुश्किल माना गया है... शायद इस लिए की हम उत्तरी गोलार्ध में रहते हैं. रोमनों में भी ( लातिन सस्कृति में और संस्कृत में भी. रोमानो के मिश्र विजय को बड़ा मना गया.... रामायण में राम के दक्षिण जाने को मुश्किल माना गया. पर दक्षिण को कभी भी तुच्छ नहीं माना गया, पर दुर्गम जरूर माना गया शायद इसलिए की वहाँ जीना ज्यादा मुश्किल है..... मार्केट इज गोइंग साऊथ का मतलब मेरे ख्याल से नीचे और उपर जाने से है.... अगर हम कोई नक़्शा लगते है तो उपर वाले आसमान की तरह वाले हिस्से को नॉर्थ कहते हैं इस लिए जब मार्केट का चार्ट जब नीचे की तरफ़ जता है तो उसको साऊथ कहते हैं. इसका निम्न या उच्च होने से शायद कोई मतलब नहीं है.

दक्षिण हमेशा से मेहनत-कश और आगे बढाने वाले के लिए अनूकूल जगह रही है. अपने जगह से दक्षिण जाने वालों को दुस्साहसी माना गया और इसलिए उत्तरायण की बात की जाती है.

दक्षिण की तरफ़ मुँह करके किए जाने वाले कर्मकांड... आप या हम जहाँ खड़े हैं वहाँ से एक दक्षिण है. और उस दक्षिण में जा के भी एक दक्षिण में जा के भी एक और दक्षिण मिलेगा. दक्षिण में भी कर्मकांड दक्षिण में मुँह करके नहीं करते हैं.

इस आलेख का भीष्म से क्या लेना था? थोड़ा समझा दें.

गुरचरण दास की एक किताब है india unbound - उसमें एक चर्चा है की अगर कानपूर से चेन्नई के बीच के लकीर खिंची जाए तो मानचित्र पर पश्चिमी हिस्सा २० साल आगे रहेगा पूर्वी हिस्से से. यह लकीर मुझे उत्तर और दख्सिं के द्वंद से ज्यादा बेहतर लगती है. इसपर कोई टिपण्णी कर सकते हैं.

Dr Rajesh Paswan said...

Ravish ji, apne chir parichit 'dakhine tola' ko bhool gaye jo dalito ki niwas ashthan hai. aajkal unhi ka bazar tez hai. jalwa hai. U.P. me sarkar bana hi di hai, ab delhi ki bari hai
Rajesh Paswan

बच्चन सिंह said...

सूरज दक्षिणायन हो रहा है। सही है। वो सूरज है जिधर चाहेगा उधर हो जाएगा। लेकिन यकीन मानिए आप को भी ये पता होना चाहिए कि आपको किधर जाना है। आप अच्छा लिखते हैं। लेकिन ये नहीं जानते की कहां जाना है। मतलब क्या लिखना है। आप कुछ भी लिखने के लिए कुछ भी नहीं लिख सकते। आप से ऐसी उम्मीद नहीं की जाती।
दक्षिण आगे बढ़ रहा है। ये बेहद अच्छी बात है। हमें खुशी होनी चाहिए। लेकिन रवीश जी जब भी वो पीछे रहा होगा या था उसमें उत्तर वालों का कोई हाथ नहीं था। नहीं ही उत्तर वाले इस बात का कोई गुमान रखते थे कि वो दक्षिण से आगे हैं। राजनीतिक रुप से हम भले ही हावी हो लेकिन वो हमारी गलती नहीं है। व्यवस्था ही ऐसी है। आपने तमाम मुहावरों से कुछ गलत साबित करने की कोशिश की है। लेकिन वो गलत कैसे है। सूर्य का दक्षिण में डूबना अपने आप में ही बुरा सगुन है। मतलब एक दिन का अंत हो गया। मतलब उजाला खत्म हो गया। अगर प्रतीक के तौर पर इसे दूसरी चीजों से जोड़ा जाता है तो इसमें दक्षिण कहां से आ गया। अरे इसमें भीष्म कहां से आ गए। भीष्म को जानते हैं आप। जानते होंगे। फिर आपको किसने ये अधिकार दे दिया कि आप किसी को भी मूर्ख बोल दे। आप अपने घर के किसी की बुरी इच्छा पर सवाल नहीं उठा सकते फिर आप भीष्म की इच्छा पर सवाल कैसे उठा सकते हैं। वो उत्तरायण में मरे या दक्षिणायन में इससे आपका क्या लेना देना। ये उनकी इच्छा थी। इसमें आपकी बुद्धिमत्ता कहां से आ जाती है। फिर दक्षिण का आगे बढना इसमें कहां से घुस जाता है। रवीश जी बांटिए मत। ये आपका काम नहीं है। इसे राजनीतिज्ञों को करने दिजीए। आप पत्रकारिता करिए।

बच्चन सिंह said...

सूरज दक्षिणायन हो रहा है। सही है। वो सूरज है जिधर चाहेगा उधर हो जाएगा। लेकिन यकीन मानिए आप को भी ये पता होना चाहिए कि आपको किधर जाना है। आप अच्छा लिखते हैं। लेकिन ये नहीं जानते की कहां जाना है। मतलब क्या लिखना है। आप कुछ भी लिखने के लिए कुछ भी नहीं लिख सकते। आप से ऐसी उम्मीद नहीं की जाती।
दक्षिण आगे बढ़ रहा है। ये बेहद अच्छी बात है। हमें खुशी होनी चाहिए। लेकिन रवीश जी जब भी वो पीछे रहा होगा या था उसमें उत्तर वालों का कोई हाथ नहीं था। नहीं ही उत्तर वाले इस बात का कोई गुमान रखते थे कि वो दक्षिण से आगे हैं। राजनीतिक रुप से हम भले ही हावी हो लेकिन वो हमारी गलती नहीं है। व्यवस्था ही ऐसी है। आपने तमाम मुहावरों से कुछ गलत साबित करने की कोशिश की है। लेकिन वो गलत कैसे है। सूर्य का दक्षिण में डूबना अपने आप में ही बुरा सगुन है। मतलब एक दिन का अंत हो गया। मतलब उजाला खत्म हो गया। अगर प्रतीक के तौर पर इसे दूसरी चीजों से जोड़ा जाता है तो इसमें दक्षिण कहां से आ गया। अरे इसमें भीष्म कहां से आ गए। भीष्म को जानते हैं आप। जानते होंगे। फिर आपको किसने ये अधिकार दे दिया कि आप किसी को भी मूर्ख बोल दे। आप अपने घर के किसी की बुरी इच्छा पर सवाल नहीं उठा सकते फिर आप भीष्म की इच्छा पर सवाल कैसे उठा सकते हैं। वो उत्तरायण में मरे या दक्षिणायन में इससे आपका क्या लेना देना। ये उनकी इच्छा थी। इसमें आपकी बुद्धिमत्ता कहां से आ जाती है। फिर दक्षिण का आगे बढना इसमें कहां से घुस जाता है। रवीश जी बांटिए मत। ये आपका काम नहीं है। इसे राजनीतिज्ञों को करने दिजीए। आप पत्रकारिता करिए।